आज का दिन बड़ा खास रहा. क्योंकि हमारे देश की सबसे बड़ी और सबसे अहम अदालत में तीन महिला जजों ने आधिकारिक तौर पर एंट्री ली. आज यानी 31 अगस्त को, 9 नए जजों ने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर शपथ ली. इनमें तीन महिलाएं भी शामिल हैं. इसके साथ ही मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट के 33 जजों में महिला जजों की संख्या चार हो गई है. और अगर इतिहास को देखें तो इन तीन महिला जजों को मिलाकर सुप्रीम कोर्ट में अब तक 11 महिलाएं जज के तौर पर नियुक्त हुई हैं. उम्मीद है और काफी ज्यादा चांसेज भी हैं कि इन तीन महिलाओं में से एक महिला जज आगे चलकर भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस भी बनेंगी. कौन हैं वो जज जो CJI बन सकती हैं? क्यों भारत में महिला जजों की संख्या पुरुषों के मुकाबले इतनी कम है? सब पर बात होगी डिटेल में.
इंडिया में कभी कोई महिला चीफ जस्टिस क्यों नहीं बनी?
क्या 2027 में ये सूखा खत्म हो पाएगा?

किन महिला जजों ने ली शपथ?
जिन तीन महिला जजों ने आज शपथ ली है, उनके नाम हैं- जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस बीवी नागरत्ना. अगर सब ठीक रहा, यानी चीफ जस्टिस के लिए नियुक्तियां सीनियोरिटी के बेसिस पर ही होती रहीं, तो सितंबर 2027 में जस्टिस बीवी नागरत्ना CJI बन सकती हैं. अगर ऐसा हुआ तो महिला CJI को लेकर जो हमारे देश में सूखा पड़ा हुआ है, वो खत्म हो जाएगा. हालांकि, जस्टिस नागरत्ना केवल 36 दिनों के लिए ही इस पद पर काबिज रह पाएंगी. फिर भी ये हमारे लिए जेंडर इक्वेलिटी की दिशा में एक बड़ा कदम होगा.
अब बताते हैं कि ये तीनों महिला जजों का सफर क्या रहा. सबसे पहले बात होगी जस्टिस हिमा कोहली पर. शपथ लेने के पहले तक जस्टिस हिमा तेलंगाना हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस थीं. इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला थीं. जस्टिस हिमा को महिला अधिकारों की रक्षा करने के अपने दृढ़ निश्चय के लिए जानी जाती हैं. कोविड-19 के दौरान उन्होंने तेलंगाना के बाहर रहने वाले लोगों के हक की बात कही थी. दरअसल, कोरोना के पीक के दौरान कई राज्यों ने दूसरे राज्यों के लोगों की एंट्री पर बैन लगा दिया था. इसी तरह के एक मुद्दे पर जस्टिस हिमा ने कहा था-
"ये संविधान का उल्लंघन है. आप लोगों को मेडिकल ट्रीटमेंट देने से मना कर रहे हैं. आप लोगों को बिना किसी ऑफिशियल ऑर्डर के एंट्री नहीं दे रहे. आपको ये करने की परमिशन किसने दी?"
अगर जस्टिस हिमा के करियर पर बात करें तो साल 2006 में वो दिल्ली हाई कोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त हुई थीं, अगले ही साल उन्हें परमानेंट कर दिया गया था. इसी साल वो तेलंगाना हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस बनी थीं. सुप्रीम कोर्ट में वो 2 सितंबर 2024 तक जज रहेंगी.

जस्टिस हिमा कोहली शपथ लेते हुए.
अब बात जस्टिस बेला त्रिवेदी के बारे में. सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर शपथ लेने से पहले तक जस्टिस बेला गुरजात हाई कोर्ट की जज थीं. 17 फरवरी 2011 में वो गुजरात हाई कोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त हुई थीं. जून 2011 में उनका ट्रांसफर एडिशनल जज के तौर पर ही राजस्थान हाई कोर्ट में कर दिया गया था. फरवरी 2016 में दोबारा उनका ट्रांसफर गुजरात हाई कोर्ट में हुआ. साल 2003 से लेकर 2006 के बीच जस्टिस बेला ने गुजरात सरकार की लॉ सेक्रेटरी के तौर पर काम किया था. जस्टिस बेला कोविड-19 के पीक के दौरान उस वक्त खबरों में आई थीं, जब उन्होंने गुजरात सरकार पर सख्त टिप्पणी की थी. जस्टिस बेला ने कहा था कि 'डेमोक्रेसी' को प्राइम कारण बताकर सरकार कोविड सिचुएशन से निपटने की अपनी ड्यूटी से दूरी नहीं बना सकती.

जस्टिस बेला शपथ लेते हुए.
कौन हैं जस्टिस बीवी नागरत्ना?
अब बताते हैं जस्टिस बीवी नागरत्ना के बारे में. सुप्रीम कोर्ट की जज बनने के पहले तक कर्नाटक हाई कोर्ट में जज थीं. छह महीने तक भारत के चीफ जस्टिस रहे ईएस वेंकटरमैया की बेटी हैं. जस्टिस नागरत्ना ने साल 1987 में एक वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. वो तब बेंगलुरु में प्रैक्टिस करती थीं. कर्नाटक ज्यूडिशरी की वेबसाइट के मुताबिक, एक वकील के तौर पर जस्टिस नागरत्ना ने संवैधानिक, कमर्शियल, प्रशासनिक, फैमिली, जमीन, कॉन्ट्रैक्ट वगैरह से संबंधित कानूनों में प्रैक्टिस की है. 18 फरवरी, 2008 को जस्टिस बीवी नागरत्ना की नियुक्ति कर्नाटक हाई कोर्ट में हुई. शुरुआत में उन्हें एडिशनल जज के तौर पर नियुक्ति मिली. दो साल बाद यानी 17 फरवरी 2010 को उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट का स्थाई जज बना दिया गया था. जस्टिस नागरत्ना अपनी कड़ी टिप्पणियों के लिए जानी जाती हैं. एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अपनी हाल की एक कोर्ट हियरिंग में जस्टिस नागरत्ना ने कहा था- "भारत का पितृसत्तात्मक समाज ये नहीं जानता है कि एक सशक्त महिला के साथ कैसे व्यवहार करें." वहीं इस साल जुलाई में, एक और सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस एच संजीव कुमार ने ऑब्जर्व किया था-
“अवैध माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन कभी भी बच्चा अवैध नहीं हो सकता.”
जस्टिस नागरत्ना साल 2009 में उस वक्त खबरों में आई थीं जब हाई कोर्ट के एक जज पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. कुछ वकील उनके खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे. प्रदर्शनकारी वकीलों ने जस्टिस नागरत्ना और उनके दो साथी जजों को एक कोर्ट रूम में बंद कर दिया था. काफी देर बाद उन्हें बाहर निकलने दिया गया था. बीते शुक्रवार, यानी 27 अगस्त को जस्टिस नागरत्ना का कर्नाटक हाई कोर्ट में आखिरी दिन था. 'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां स्पीच देते वक्त वो काफी इमोशनल हो गई थीं. उन्होंने कानून की फील्ड से जुड़ी औरतों को खास संदेश भी दिया था. कहा था-
"मैं चाहती हूं कि महिला वकील मेरी बुक से ये नोट लें कि सही अवसरों तक पहुंच के साथ, आपमें से हर कोई अपना सपना पूरा कर सकता है. मैं आप सबसे अनुरोध करती हूं कि खुद पर भरोसा रखें और इन अवसरों को खोजें. आप जो चाहते हैं उसे हासिल करने के लिए आगे बढ़ें और समाज को वापस भी दें."

जस्टिस नागरत्ना भारत की पहली महिला CJI हो सकती हैं.
इसके अलावा जस्टिस नागरत्ना ने ये भी बताया कि बरसों पहले उन्होंने दिल्ली में उनके पिता को मिला सरकारी अकोमोडेशन छोड़कर कर्नाटक बार काउसिंल में शामिल होने का जो फैसला किया था, वो अब उन्हें सही महसूस हो रहा है. उन्होंने ये भी बताया कि जस्टिस वेंकटरमैया की बेटी होना आसान नहीं था, क्योंकि ज़िंदगी के हर कदम पर, उनके काम को जज किया गया. जस्टिस नागरत्ना ने अपने पति बी.एन. गोपाला कृष्णा और ससुराल वालों को भी शुक्रिया कहा. उन्होंने कहा था-
"हर सफल आदमी के पीछे एक महिला होती है, लेकिन हर सफल महिला के पीछे एक परिवार होता है."
आज तक क्यों कोई महिला CJI नहीं बन सकी?
जस्टिस नागरत्ना भारत की पहली महिला चीफ जस्टिस बन सकती हैं. लेकिन सवाल उठता है कि हमें आज़ाद हुए 70 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं, फिर अभी तक भारत को कोई भी महिला चीफ जस्टिस क्यों नहीं मिली है? और क्यों आज भी महिला जजों की संख्या पुरुषों के मुकाबले इतनी कम है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए हमारे साथी नीरज ने बात की एडवोकेट सोनल से. उन्होंने कहा-
"पहली वजह है सामाजिक पूर्वाग्रह. सोशल बायस. क्या एक महिला मेरा मुकदमा लड़ सकती है? ये पूर्वाग्रह समाज में आज भी है. मुवक्किलों को लगता है कि पुरुष वकील ज्यादा होशियार हैं, ज्यादा ताकतवर हैं, उनकी कोर्ट में ज्यादा चलती है. इसलिए वो पुरुष वकीलों पर अपना केस लड़ने के लिए भरोसा करते हैं. यही वजह है कि महिला वकीलों के पास अवसरों की कमी है. इससे महिला वकीलों को अपना परफॉर्मेंस, अपना कोर्ट ग्राफ बेहतर करने का मौका नहीं मिलता है, जिसकी वजह से उन्हें नए अवसर नहीं मिलते हैं. महिलाओ की प्रैक्टिस उस स्थिति तक पहुंच ही नहीं पाती है कि उन्हें हाई कोर्ट का जज बनने के लिए उपयुक्त समझा जाए. जज बनाने के लिए महिला वकीलों की मेंटरिंग नहीं की जाती है. हाई कोर्ट्स में महिला जजों की कम संख्या और बड़ी उम्र में उनकी नियुक्ति होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन के लिए बहुत महिला जज उपलब्ध नहीं होती हैं. दूसरी वजह ये है कि महिला वकीलों को सामान्य रूप से प्रतिनिधी नहीं माना जाता है. ये लिंग भेद जेंडर डिस्क्रिमिनेशन का ही एक स्वरूप है. महिला वकील पूर्ण रूप से सक्षम होने के बाद भी, लीडरशिप पोज़िशन पर कम ही पहुंच जाती है. कुछ रिटायर्ड जजों ने इंस्टीट्यूशनल बायस की भी बात की है. निचली अदालतों में महिला जजों की संख्या बेहतर है, क्योंकि वहां नियुक्तियां परीक्षा आधारित होती हैं. पूरे देश में निचली अदालतों में महिला जजों की संख्या 25 से 30 प्रतिशत है. ये संख्या पूरे देश के हाई कोर्ट्स में गिरकर केवल 11 फीसद है. कई बरसों की कंडिशनिंग की वजह से पुरुष वकीलों को लगता है कि पब्लिक ऑफिसेज़ और पब्लिक डिसकोर्स पर उनका ही अधिकार है."
सुप्रीम कोर्ट में पहली महिला जज थीं जस्टिस फातिमा बीवी. साल 1989 में ये अपॉइंट हुई थीं. यानी सुप्रीम कोर्ट के वजूद में आने के पूरे 39 साल बाद. 'स्क्रॉल' को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- "मैंने बंद दरवाज़ा खोल दिया है." साल 2016 मं 'द वीक' को दिए इंटरव्यू में जस्टिस फातिमा ने कहा था कि आज बार और बेंच, दोनों ही जगहों पर औरतें हैं, लेकिन उनकी संख्या और पार्टिसिपेशन पुरुषों के मुकाबले कम है. इसके कई कारण हैं. इस फील्ड में औरतों ने लेट एंट्री की, इसलिए जूडिशियरी में इक्वल रिप्रेजेंटेशन में अभी वक्त लगेगा. जब जस्टिस फातिमा से पूछा गया कि क्या इंडियन जूडिशियरी पैट्रिआर्कल है, तो उन्होंने कहा था, बिल्कुल है. इसमें कोई डाउट नहीं है.
द वायर' की रिपोर्ट की मानें तो देश के 25 हाई कोर्ट्स के 1079 जजों में केवल 82 महिला जज हैं. कुछ समय पहले बॉम्बे हाई कोर्ट से जुड़ी महिला वकीलों ने एक लेटर लिखा था. जिसमें उन्होंने बताया था कि देश के हायर जूडिशियरी में केवल 10 फीसद औरतें हैं. सुप्रीम कोर्ट को भी पहली महिला जज मिले 30 साल से भी ज्यादा वक्त बीत गया है, लेकिन महिला CJI के लिए अभी इंतज़ार लंबा है. उम्मीद करते हैं कि ये इंतज़ार 2027 में फाइनली खत्म होगा.