The Lallantop

जोरू का गुलाम और पल्लू में छिपने जैसे तानों में फंसे मर्द!

कहीं भी एक लड़का दकियानूसी चीज़ों पर सवाल करता है या महिलाओं के हक़ की बात करता है तो उसे भी यही सब सुनने मिलता है.

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फ़ेमिनिज्म एक जेंडर-न्यूट्रल वाद है.

ऑडनारी (Oddnaari) दी लल्लनटॉप (The Lallantop) का जेंडर वर्टिकल है. ऑडनारी पर हम जेंडर सेंसेटिव एंगल से मुद्दों पर, खबरों पर बात करते हैं. अधिकतर लोगों को ये लगता होगा कि नाम ऑडनारी है तो बात सिर्फ़ लड़कियों की, महिलाओं की होती होगी. आम समझ ये भी माना जाता है कि महिलाओं की बात सिर्फ़ महिलाएं ही कर सकतीं है. अगर कोई पुरुष महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात करने लगे तो उसे अजीब नज़र से देखा जाता है.

इसका उदाहरण तो हमको-आपको अपने घरों में देखने को मिल जाता होगा. अगर कोई कभी पुरुष महिलाओं की तरफ़ से बोल दे, उनके हक़ में कुछ कह दे तो तुरंत उसे ‘जोरू का गुलाम’, ‘पल्लू में छिपने वाला’, ‘बीवी का चेला’ कह दिया जाता है.

सीधे पॉइंट पर आते हैं. फ़रीहा नाम की एक ट्विटर यूजर ने एक किस्सा साझा किया. उन्होंने लिखा,

"एक घर में नई-नई शादी हुई थी. दुल्हा और दुल्हन रिश्तेदारों के साथ बैठे थे. इसी दौरान एक रिश्तेदार ने दुल्हन पर टॉन्ट कसा. पति ने बचाव किया तो सामने बैठी दूसरी रिश्तेदार ने हंसी उड़ाते हुए पूछा,
और, एक ही दिन में? पांव दबाना भी सीखा?"


 

पति ने पलटकर कहा, इम्पोर्टेन्ट स्किल है. आना चाहिए.

यहां रिश्तेदार का ताना इस बात पर था कि पति अपनी पत्नी का मखौल उड़ाए जाने का हिस्सा नहीं बना. बल्कि उल्टा उन्हें टोक कर पत्नी के तरफ से कहने लगा.

फरीहा ने आगे लिखा, 

“ मुझे पता है छोटी सी बेसिक चीज़ें करने के लिए लड़कों की तारीफ करने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन एक ऐसे समाज में जो पितृसत्ता पर सवाल उठाने वाले, बात करने वाले पुरुषों का विरोध करता है, उनका मज़ाक उड़ाता है, शर्मिंदा करता है, उनके लिए छोटी और बेसिक सी चीज़ करना भी अपने आप में जंग की तरह है. ऐसे में अगर आपके आस पास ऐसा कोई पुरुष है, तो उसे एप्रिशिएट कीजिए, उसकी सराहना कीजिए. ये उसकी लड़ाई को थोड़ा आसान बनाता है.”

फ़रीहा के इस ट्वीट पर खूब रिएक्शंस आए. किसी ने लिखा,

"लोगों को पति का पत्नी की केयर करना आपत्तिजनक क्यों लगता है, उनका ईगो क्यों हर्ट होता है? अगर आप पत्नी की केयर करते हैं, उनके हक़ की  बात करते हैं तो ये आपको कोई कम मर्द नहीं बनाता. इससे आपकी मर्दानगी कम नहीं हो जाएगी."

एक ने कहा,

"औरतें भी स्त्री विरोधी पुरुषों के समान बराबर पितृसत्ता का साथ देती हैं."

कई लोगों ने अपने निजी अनुभव भी साझा किए. एक यूजर ने लिखा,

"मेरी पत्नी की प्रेगनेंसी के वक्त मेरी मां ने कहा था कि रोज़ उसके पैरों का मसाज करूं. दर्द और परेशानी के वक़्त एक दूसरे की मदद करना ही तो इंसानियत है न? क्या हम पार्टनर्स नहीं हैं?"

एक ने कहा, 

"जब भी हम घर पर लोगों को खाने पर बुलाते हैं तब मैं और मेरी पत्नी खाना पकाने की ज़िम्मेदारी आपस में बांट लेते हैं. पर मेरी पत्नी ने अपने सबसे करीबी लोगों को भी इस बारे में बताना बंद कर दिया क्योंकि उनसे बर्दाश्त नहीं होता."

एक यूजर ने कहा,

"जोरू का गुलाम होने में गलत क्या है अगर गुलामी का मतलब एक दूसरे को प्यार, केयर और इज़्ज़त देना है. बेतुकी बातों के आगे पत्नी को डिफेंड करने में गलत क्या है. बिना सिर-पैर की बातों का जवाब ज़रूर देना चाहिए, लेकिन तमीज़ से."

मैंने कई बार लड़कों को ये कहते सुना है कि हम तो फंस जाते हैं. मां या रिश्तेदारों की गलत बात पर टोको तो वे कहने लगते हैं कि तुम तो पत्नी की ही तरफ हो, और अगर कुछ ना बोलो तो पत्नी कहती है कि तुम तो ग़लत पर कुछ कहते ही नहीं. 

बात केवल आम घरों की या पति-पत्नी के रिश्तों की नहीं है. अगर कहीं भी एक लड़का दकियानूसी चीज़ों पर सवाल करता है या महिलाओं के हक़ की बात करता है तो उसे भी यही सब सुनने मिलता है. पिछले वीडियो पर एक लड़के का कमेंट आया था. उसने कहा था, 

"मैं टीनेज में हूं. मैं महिलाओं का सपोर्ट करता हूं या उनके हक़ की बात करता हूं तो कुछ लोग मुझे फेमिनिस्ट बुलाते हैं और कुछ लोग मुझे जज करते हैं. मैं चाहता हूं कि आप इसपर बात करो."

फेमिनिस्ट शब्द को आजकल बहुत से लोग गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं. फ़ेमिनिस्ट व्यक्ति को पुरुषों के दुश्मन की तरह देखा जाता है. उन्हें लगता है फेमिनिस्ट तो बस महिलाओं को पीड़ित मानते हैं. फेमिनिस्ट लोगों को महिलाएं कभी गलत नहीं लगतीं. उनके हिसाब से महिलाएं ही अच्छाई की मूरत हैं, बाकी सब बुरे हैं. और कुछ तो ऐसे हैं जो मानते हैं कि बस लड़कियां ही फेमिनिस्ट होती हैं या हो सकती हैं.

लेकिन ये पूरा सच नहीं है. असल में ये सोच फ़ेमिनिज्म की धारणा को पॉल्यूट करती है. आसान भाषा में समझा जाए तो फेमिनिज्म बराबरी की बात करता है. वो कहता है कि किसी के भी साथ सिर्फ जेंडर देखकर भेदभाव मत करो. वो जेंडर पुरुष भी हो सकता है. फ़ेमिनिज्म पुरुषों के साथ होने वाले भेदभाव की भी मुख़ालफ़त करता है. ये धारणा कहती है कि इंसान के तौर पर सब समान हैं, इसलिए सभी को बराबर मौके मिलने चाहिए. समाज को मिसॉजिनी यानी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह या द्वेष से भरा हुआ नहीं होना चाहिए. 

फेमिनिज्म कभी नहीं कहता कि लड़कियां गलत नहीं हो सकतीं, वो कोई क्राइम नहीं कर सकतीं. बिल्कुल कर सकती हैं. आखिर वे भी इंसान हैं. वे भी गलतियां और गुनाह कर सकती हैं. लेकिन फेमिनिज्म कहता है कि आप उन्हें सिर्फ इसलिए गलत या बुरी ना मानें क्योंकि वे महिला हैं. पूर्वाग्रह में न रहें कि महिला है तो ऐसी ही होगी, मैथ्स में कमज़ोर होगी, साइंस से भागती होगी, गाड़ी ढंग से नहीं चला पाएगी टाइप.

फेमिनिस्ट कोई भी जेंडर का व्यक्ति हो सकता है. पुरुष भी फेमिनिस्ट हो सकते हैं. हमारी ऑडनारी टीम में पांच लड़कियां और दो लड़के हैं. सोम कहते हैं कि वो कैमरे के सामने सहज नहीं महसूस करते इसलिए वो कॉपियां लिखते हैं. आपने उनके कई आर्टिकल्स पढ़े होंगे. नीरज को आपने वीडियो में देखा होगा. नीरज को ऑडनारी पर वीडियो करता देख कुछ लोगों को बड़ा अचंभा हुआ. उन्होंने कहा, 

"ऑडनारी में एक ऑडनारा."
"ऑडनारी की जगह एंकरिंग में ऑडपुरुष आ गया."
"ऑडनारी में कोई ऑडनारी ही आए इंटरव्यू करने के लिए. तब थोड़ा मज़ा आएगा."
"ऑडनारी पर ऑडपुरुष क्या कर रहा है?"

लोगों को ऐसा लगता है कि पितृसत्ता का असर केवल महिलाओं पर होता है. इसलिए सिर्फ महिलाओं को ही इसपर बात करनी चाहिए.

हमारी टीम में ऑडनारी की तरह खूब सारे वर्टिकल हैं. सिनेमा, स्पोर्ट्स, रंगरूट, बुलेटिन, दुनियादारी. इसमें काम करने वाले बहुत सारे लोग जेंडर सेंसेटिव हैं, फेमिनिस्ट हैं, फेमिनिज्म पर विश्वास करते हैं. मैं ये साफ़ कर दूं कि उसमें काम करने वाले पुरुष भी हैं.

हमें ये समझने की ज़रूरत है कि पितृसत्ता को खत्म करने की ज़िम्मेदारी सभी की है. कोई भी जेंडर का व्यक्ति पैट्रिआर्कल हो सकता है. इसका उल्टा भी उतना ही सच है. किसी भी जेंडर का व्यक्ति जेंडर सेंसेटिव हो सकता है. फ़ेमिनिज्म एक जेंडर-न्यूट्रल वाद है.

जिस तरह लड़कियों को मॉडर्न और वोक कहकर नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है, उसी तरह लड़कों को जोरू का गुलाम या पल्लू में बंधने वाला कहा जाता है. अब सवाल ये है कि जिसको भी इससे दो चार होना पड़ता है वो क्या करे?

मैं कोई एक्सपर्ट तो हूं नहीं. लेकिन जो मैंने सीखा वो बता सकती हूं. मैंने सीखा कि गलत पर चुप नहीं रहना है, जहां लगे वहां टोक देना. जो महसूस करो, वो कहने से डरना नहीं. हमारी लड़ाई बराबरी की है. किसी व्यक्ति या जेंडर से नफरत की नहीं.

याद रखना कि फेमिनिस्ट एक गाली नहीं है. कोई अगर आपको नीचा दिखाने के लिए भी ये कह रहा है तो आप बुरा मत मानिए. आप उसे गाली की तरह लेना बंद करिए, क्योंकि आप तो उसका सही मतलब जानते ही हैं. इंसान के तौर पर कोई भी गलतियां कर सकता है. मैं भी गलतियां करती हूं. ज़रूरत बस इतनी है कि हम उन ग़लतियों से सीखते रहें और अपनी संवेदनशीलता का विस्तार करते रहें.

वीडियो : ऑडनारी के इस शो का नाम म्याऊं क्यों रखा?