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जज ने महिला ट्रेनी IAS के लेक्चर में डबल मीनिंग बातें की थीं, सुप्रीम कोर्ट ये बड़ी सजा दी है

झारखंड के जज से जुड़ा है मामला.

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भारत में कई जज 'योर ऑनर' या 'माय लॉर्ड' कहलाना पसंद नहीं करते. (सांकेतिक तस्वीर: पिक्साबे)
झारखंड के एक जज को सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामले में नौकरी से जबरन रिटायर होने की सजा सुनाई गई है. ये फैसला 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया. मामला क्या था? कुछ समय पहले ATI (एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट) रांची में डिप्टी डायरेक्टर अरुण कुमार गुप्ता पर आरोप लगे. ये गोड्डा में फैमिली कोर्ट के जज रह चुके हैं. डिप्टी डायरेक्टर के पद पर रहते हुए इन्होंने सिविल सेवा प्रोबेशनर्स को लेक्चर्स दिए थे. इन्हीं लेक्चर्स के दौरा उन्होंने बेहद सेक्सिस्ट भाषा का इस्तेमाल किया. 10 महिला ऑफिसर्स ने इनके खिलाफ ये आरोप लगाए थे. 2018 में झारखंड हाई कोर्ट ने अरुण कुमार गुप्ता को दोषी पाया. सज़ा सुनाई कि उन्हें जबरन उनके पद से रिटायर कर दिया जाए. इस फैसले पर अपील की गई. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता ने मामले की सुनवाई की. उन्होंने झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए उसे बनाए रखा. फैसला सुनाते हुए दोनों जजों की बेंच ने कहा,
‘इनके खिलाफ दो बहुत गंभीर आरोप हैं. पहला ये कि जब ये ATI, रांची में डिप्टी डायरेक्टर के तौर पर काम कर रहे थे, तो तकरीबन 10 महिलाओं ने आरोप लगाया कि लेक्चर्स के दौरान अरुण गुप्ता ने बेहद भद्दी भाषा का प्रयोग किया. ये सभी महिलाएं सिविल सर्विस  की परीक्षा पास कर ट्रेनिंग ले रही थीं. इन महिलाओं ने उदाहरण देकर बताया कि किस तरह से गुप्ता ने बेहूदे एक्जाम्पल दिए, और डबल मीनिंग शब्द इस्तेमाल किए. इससे वहां मौजूद महिलाओं को काफी परेशानी और शर्मिंदगी उठानी पड़ी. हमने सभी कम्प्लेंट्स देखी और उनमें कॉमन बात यही है कि लेक्चर्स के दौरान उनकी भाषा महिला विरोधी थी. इनके खिलाफ एक और आरोप ये है कि इन्होंने एक कपड़े धोने वाले के माथे पर गर्म प्रेस रखकर उसे जला दिया, सिर्फ इसलिए कि उसने इनके कपड़े ढंग से प्रेस नहीं किए थे’.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दूसरे अफसरों के मुकाबले न्यायिक अधिकारियों से अधिक सच्चाई और ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है.
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