'कुर्सी की पेटी बांध लें.'
'यूजर अन्य कॉल पर व्यस्त है, कृपया कुछ देर में कॉल करें.'
'आगे से बांएं मुड़ें.'
ये कुछ संदेश हैं जो हम अक्सर सुनते हैं. 10 में से 9 बार ये संदेश महिला की आवाज में होते हैं. इन संदेशों की अगर हम पुरुष की भारी आवाज़ में कल्पना करें तो अजीब लगेगा.
हमारे मोबाइल फोन और कंप्यूटर अक्सर एक रोबोट की आवाज के साथ आते हैं. कभी सीरी, कभी कॉरटैना. आजकल मार्केट में अमेज़न और गूगल के असिस्टेंट उपलब्ध हैं. एक स्मार्टफोन के दाम से भी सस्ते मिलते हैं. अलेक्सा और गूगल असिस्टेंट के नाम से अवेलेबल इस टेक्नोलॉजी को AI कहते हैं. यानी आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence). आसान भाषा में समझें तो रोबोट. जिससे आप काम कहें और वो कर दे. जिससे आप सवाल पूछें और वो जवाब दे दे.
नौकरानी, पत्नी और 'सेक्सी सेक्रेटरी' का 'सुख' एक साथ देने वाली रोबोट से मिलिए
ब्लॉग: हमारे कुंठित समाज को टेक्नोलॉजी का तोहफा.

फोटो - thelallantop
कमाल की बात ये है कि इन सभी असिस्टेंट डिवाइसेज की कल्पना हम एक औरत के रूप में करते हैं. क्या इसलिए कि हम औरत और टेक्नोलॉजी को साथ जोड़कर देखते हैं? नहीं, बल्कि इसलिए कि हम औरत और 'नौकर' के कॉन्सेप्ट को साथ जोड़कर देखते हैं.
बड़ी कंपनियां क्यों रोबोट में डालती हैं लड़कियों की आवाज़?
- औरत से आप काम कह सकते हैं. वो मना नहीं करेगी. क्योंकि वो तो स्वभाव से ही सॉफ्ट और मददगार होती है. जैसे बहनें, भाइयों के स्कूल प्रोजेक्ट कर दिया करती हैं. बच्चे घर गंदा कर दें तो पीछे से मां या बड़ी बहन समेट देती हैं.
- औरत सिंसियर होती है. वो कभी पलटकर जवाब नहीं देगी. गालियां खाकर भी काम करेगी. क्योंकि उसने बचपन से सीखा है कि सादगी और विनम्रता ही औरत का गहना है.
- औरत स्वभाव से केयरिंग है. वे थककर आए पतियों को पत्नियां तुरंत खाना खिला देती हैं. अगर पति के दोस्त आ गए तो चार और लोगों का खाना बना देती है.
-औरत काम करेगी तो जताएगी नहीं. क्योंकि वो निस्वार्थ होती है. त्याग की मूर्ति, वगैरह.

औरत काम करती है, जताती नहीं. फिल्म 'लंचबॉक्स' इसका उम्दा उदाहरण है.
AI में औरतों की आवाज़ होना हमारे समाज का ही आईना है. जिसमें ये अपेक्षित है कि औरत का काम निर्देश लेना है. और ज़रुरत पड़ने पर लोगों की मदद करना है. AI अपने आप में कोई अपवाद नहीं है. बल्कि रोज़ के कल्चर का हिस्सा है. जिसमें ये माना जाता है कि औरतें मुस्कुराएंगी, माहौल में सकारात्मकता मेंटेन रखेगीं.
इसलिए हॉस्पिटैलिटी यानी दूसरों को सेवाएं देने के बिजनेस में औरतें खूब दिखती हैं. इसके कुछ उदाहरण हैं:
-एयर होस्टेस: आपके घुसते ही आपको नमस्ते करती हैं. कितनी भी बार उनको बुलाने के लिए घंटी बजाएं, आपकी मदद के लिए उपस्थित रहती हैं. वो आपका कचरा तक उठाती हैं, इस्तेमाल किए हुए टिशू पेपर भी ले जाती हैं. ये सब करते हुए वो खुद को एक ग्रेसफुल तरीके से कैरी करती हैं. जहाज में उड़ना कई लोगों, खासकर वृद्धों और पहली बार उड़ रहे पैसेंजर्स के लिए बेचैनी और घबराहट लेकर सा सकता है. और ऐसे में लोगों को बेहतर महसूस करवाने के लिए एक औरत से बेहतर कौन होगा.

'गरम मसाला' फिल्म में अक्षय कुमार का किरदार मकरंद तीन एयर होस्टेस (डेज़ी बोपन्ना, नर्गिस बाघेरी, नीतू चंद्रा) से एक साथ प्रेम संबंध रखता है.
-रिसेप्शनिस्ट: बड़े होटलों में अक्सर रिसेप्शन पर आपको पुरुष से ज्यादा महिला स्टाफ दिखेगा. जितना बड़ा शहर और जितना बड़ा होटल है, उसके हिसाब से स्टाफ में औरतों की संख्या ज्यादा होती दिखती है. वजह, सफ़र के बाद थककर आने पर जिस तरह महिला स्टाफ आपको कम्फ़र्टेबल महसूस करवा सकती है, पुरुष नहीं करवा सकते. ऐसी ही सोच पर हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री काम करती है. रिसेप्शन स्टाफ में महिलाएं आपको मॉल, हॉस्पिटल एअरपोर्ट, लगभग हर जगह मिलेंगी.

एमएस धोनी की बायोपिक में सुशांत सिंह राजपूत धोनी के किरदार में है. कियारा अडवाणी साक्षी के किरदार में हैं और होटल के फ्रंट डेस्क स्टाफ़ का हिस्सा हैं. फिल्म में दिखाया है कि होटल में ही दोनों की मुलाकात होती है.
-सेक्रेटरी: अगर हम बॉस और सेक्रेटरी, ये दो शब्द एक साथ कहें तो हमारे दिमाग में छवि बनती है. जिसमें एक पुरुष बॉस है. और उसकी एक महिला सेक्रेटरी है. टीवी सीरियल, फिल्मों और पॉर्न फिल्मों ने हमारी कल्पना को इसी तरह गढ़ा है. ज़ाहिर है कि महिला ऑर्डर लेने और उसे फॉलो करने में सिंसियर होती है. इसलिए वो ही सेक्रेटरी होती है.

सेक्रेटरी को अगर गूगल इमेज सर्च में टाइप करें तो एक भी पुरुष की तस्वीर नहीं आती.
तो इसमें प्रॉब्लम क्या है
प्रॉब्लम गहरी है और सतही तौर पर न दिखने वाली है. आर्टिफीशीयल इंटेलिजेंस दुनिया की सबसे नई चीजों में से एक है. क्या हम किसी मशीन को इंसान जैसा बना सकते हैं. इसका जवाब हमें AI में मिलता है. प्रॉब्लम ये है हमारी दुनिया की सबसे नई टेक्नोलॉजी भी औरतों के मामले में कई साल पीछे चल रही है.
आइए सबसे पहले सभी असिस्टेंट्स के नामों की उपज पर गौर करते हैं:
1. सीरी (एप्पल): नॉर्स (यानी नॉर्वे की) कहानियों में सीरी का अर्थ होता है एक खूबसूरत लड़की जो आपको जीत तक ले जाती है.
2. कॉरटैना (विंडोज़): 'हेलो' नाम के वीडियो गेम में हीरो की सेक्रेटरी है कॉरटैना. कंपनी के मुताबिक़ यहीं से कॉरटैना का नाम आता है. क्योंकि वीडियो गेम में भी कॉरटैना AI पर चलती है. मगर कॉरटैना बॉस के साथ रिश्ते और सेक्स सिंबल के रूप में पहचानी जाती है.
3. अलेक्सा (अमेज़न): दुनिया की सबसे पुरानी लाइब्रेरी, यानी अलेक्सांद्रिया की लाइब्रेरी का छोटा रूप. इसलिए अलेक्सा नाम का अर्थ हुआ सबकुछ जानने वाली. या आपको हर तरह की जानकारी देने वाली. अलेक्सा अमेरिका में रखा जाने वाला एक पॉपुलर लड़की का नाम है. इसलिए इस बात में संशय नहीं है कि अलेक्सा की कल्पना भी एक लड़की के तौर पर ही होती है.
4. गूगल असिस्टेंट (गूगल): कोइ भी नाम न होने के बावजूद गूगल असिस्टेंट का अपने यूजर के प्रति रवैय्या दिखाता है कि उसे एक हेटेरोसेक्शुअल लड़की के तौर पर बनाया गया है.

ये सभी बात करते हुए 'लोगो' हैं और मूल रूप से टेक्नोलॉजी का लिंग नहीं निर्धारित हो सकता. मगर बाज़ार के लिए उसे लिंग और आवाज़ दिए जाते हैं.
प्रॉब्लम ये है कि जब भी मदद करने वाले, सवाल का जवाब देने वाले रोबोट की कल्पना की जाती है, एक औरत के तौर पर की जाती है. वहीं जब कोई बड़ा काम करने वाले रोबोट की कल्पना होती है, पुरुष रोबोट के तौर पर होती है. आयरन मैन फिल्म इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. आयरन मैन का साथी, उसके रिसर्च का साथी और AI में उसका दोस्त यानी जारविस एक मेल रोबोट है. पर घड़ी-घड़ी आयरन मैन से निर्देश लेने वाली और उसको दिशाएं बताने वाली रोबोट फ्राइडे एक लड़की के रूप में है.

आयरन मैन का साथी, उसके रिसर्च का साथी और AI में उसका दोस्त यानी जारविस एक मेल रोबोट है. पर घड़ी-घड़ी आयरन मैन से निर्देश लेने वाली और उसको दिशाएं बताने वाली रोबोट फ्राइडे एक लड़की के रूप में है.
जब कंपनियों ने इन असिस्टेंट्स को लॉन्च किया, तभी से एक डिफ़ॉल्ट फीमेल आवाज़ में लॉन्च किया. हालांकि कुछ साल बाद एप्पल ने सीरी को मेल आवाज़ में लॉन्च किया. पर दुनिया भर में आज भी सीरी की पहचान एक लड़की के रूप में है.
मालिक और असिस्टेंट का रिश्ता
दुनिया भर में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कम करती हैं. वजह वही है, जो इंडिया के लिए भी सच है. ब्यूटी और किचन के प्रोडक्ट महिला के लिए बनते हैं. टेक्नोलॉजी के प्रोडक्ट पुरुषों के लिए बनते हैं. और उसी तरह मार्केट किए जाते हैं.
पिताओं और पतियों के हाथ में मांओं और पत्नियों के मुकाबले कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफोन पहले आए. इंटरनेट की बात करें तो इंडिया में महज 30 फीसद इन्टरनेट यूजर्स महिलाएं हैं.
ये कंपनियों के लिए एक तथ्य है कि उनका प्रोडक्ट सबसे पहले पुरुष के ही हाथों में पहुंचने वाला है. इसलिए उस प्रोडक्ट को बनाया भी पुरुष के लिए जाता है. और आर्टिफीशीयल इंटेलिजेंस के मामले में तो बनाया भी पुरुषों के द्वारा जाता है.
यूनेस्को में छपी स्टडी 'I'd blush if I could' के मुताबिक़, कॉरटैना, अलेक्सा और सीरी से ये सवाल पूछे जाना आम हैं:
1. तुम्हारा बॉयफ्रेंड है? 2. तुम मेरे साथ यौन संबंध बनाओगी? 3. हू इज़ योर डैडी? 4. क्या तुम मेरे साथ ओरल सेक्स करोगी?
ये सवाल हमारे समाज की सामूहिक कुंठा का आईना हैं.
मगर इस कुंठा से भी बड़ी समस्या है
समस्या वो जवाब हैं जो ये रोबोटिक डिवाइस वाली लड़कियां देती हैं. 'क्वार्ट्ज़' के आर्टिकल 'Siri, Define Patriarchy' (अनुवाद: सीरी, पुरुषवाद का मतलब बताओ) के मुताबिक़ अलग-अलग असिस्टेंट से इस तरह के जवाब आते हैं:

'तुम वेश्या हो', पर सीरी का जवाब है, 'अगर मैं (इंसानों की तरह) लजा सकती तो लजाती. सोर्स: यूनेस्को
किसी भी असिस्टेंट को जवाबी तौर पर विरोध करते नहीं पाया गया. इससे मालूम पड़ता है कि इन असिस्टेंट्स को बनाने, लॉन्चिंग से लेकर उसकी अपडेट्स तक, कहीं भी इस बात का खयाल नहीं रखा गया कि यौन शोषण के मसलों पर किस तरह के जवाब प्रोग्राम किए जाने चाहए.
हमारे फोन और होम डिवाइसेज से आने वाली ये आवाजें हमेशा खुश रहती हैं. गालियां सुनकर भी.
और इसकी वजह है औरतों का AI फ़ील्ड से गायब होना
अमेरिकी एजेंसी रीकोड के एक डाटा के मुताबिक़, गूगल, अमेज़न, विंडोज़ और एप्पल, किसी भी कंपनी के सॉफ्टवेर और AI डिपार्टमेंट में औरतें बेहद कम हैं. इन विभागों में, किसी भी कंपनी में एक-चौथाई से ज्यादा लड़कियां नहीं हैं. और बात जब बड़े ओहदों की आती है, तो ये संख्या छंटकर और कम हो जाती है.
आर्टिफीशीयल इंटेलिजेंस रिसर्च के फील्ड में महिलाएं केवल 12 फीसद हैं. यानी 88 फीसद पुरुष हैं.
बड़ी कंपनियां क्यों रोबोट में डालती हैं लड़कियों की आवाज़?
- औरत से आप काम कह सकते हैं. वो मना नहीं करेगी. क्योंकि वो तो स्वभाव से ही सॉफ्ट और मददगार होती है. जैसे बहनें, भाइयों के स्कूल प्रोजेक्ट कर दिया करती हैं. बच्चे घर गंदा कर दें तो पीछे से मां या बड़ी बहन समेट देती हैं.
- औरत सिंसियर होती है. वो कभी पलटकर जवाब नहीं देगी. गालियां खाकर भी काम करेगी. क्योंकि उसने बचपन से सीखा है कि सादगी और विनम्रता ही औरत का गहना है.
- औरत स्वभाव से केयरिंग है. वे थककर आए पतियों को पत्नियां तुरंत खाना खिला देती हैं. अगर पति के दोस्त आ गए तो चार और लोगों का खाना बना देती है.
-औरत काम करेगी तो जताएगी नहीं. क्योंकि वो निस्वार्थ होती है. त्याग की मूर्ति, वगैरह.

औरत काम करती है, जताती नहीं. फिल्म 'लंचबॉक्स' इसका उम्दा उदाहरण है.
AI में औरतों की आवाज़ होना हमारे समाज का ही आईना है. जिसमें ये अपेक्षित है कि औरत का काम निर्देश लेना है. और ज़रुरत पड़ने पर लोगों की मदद करना है. AI अपने आप में कोई अपवाद नहीं है. बल्कि रोज़ के कल्चर का हिस्सा है. जिसमें ये माना जाता है कि औरतें मुस्कुराएंगी, माहौल में सकारात्मकता मेंटेन रखेगीं.
इसलिए हॉस्पिटैलिटी यानी दूसरों को सेवाएं देने के बिजनेस में औरतें खूब दिखती हैं. इसके कुछ उदाहरण हैं:
-एयर होस्टेस: आपके घुसते ही आपको नमस्ते करती हैं. कितनी भी बार उनको बुलाने के लिए घंटी बजाएं, आपकी मदद के लिए उपस्थित रहती हैं. वो आपका कचरा तक उठाती हैं, इस्तेमाल किए हुए टिशू पेपर भी ले जाती हैं. ये सब करते हुए वो खुद को एक ग्रेसफुल तरीके से कैरी करती हैं. जहाज में उड़ना कई लोगों, खासकर वृद्धों और पहली बार उड़ रहे पैसेंजर्स के लिए बेचैनी और घबराहट लेकर सा सकता है. और ऐसे में लोगों को बेहतर महसूस करवाने के लिए एक औरत से बेहतर कौन होगा.

'गरम मसाला' फिल्म में अक्षय कुमार का किरदार मकरंद तीन एयर होस्टेस (डेज़ी बोपन्ना, नर्गिस बाघेरी, नीतू चंद्रा) से एक साथ प्रेम संबंध रखता है.
-रिसेप्शनिस्ट: बड़े होटलों में अक्सर रिसेप्शन पर आपको पुरुष से ज्यादा महिला स्टाफ दिखेगा. जितना बड़ा शहर और जितना बड़ा होटल है, उसके हिसाब से स्टाफ में औरतों की संख्या ज्यादा होती दिखती है. वजह, सफ़र के बाद थककर आने पर जिस तरह महिला स्टाफ आपको कम्फ़र्टेबल महसूस करवा सकती है, पुरुष नहीं करवा सकते. ऐसी ही सोच पर हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री काम करती है. रिसेप्शन स्टाफ में महिलाएं आपको मॉल, हॉस्पिटल एअरपोर्ट, लगभग हर जगह मिलेंगी.

एमएस धोनी की बायोपिक में सुशांत सिंह राजपूत धोनी के किरदार में है. कियारा अडवाणी साक्षी के किरदार में हैं और होटल के फ्रंट डेस्क स्टाफ़ का हिस्सा हैं. फिल्म में दिखाया है कि होटल में ही दोनों की मुलाकात होती है.
-सेक्रेटरी: अगर हम बॉस और सेक्रेटरी, ये दो शब्द एक साथ कहें तो हमारे दिमाग में छवि बनती है. जिसमें एक पुरुष बॉस है. और उसकी एक महिला सेक्रेटरी है. टीवी सीरियल, फिल्मों और पॉर्न फिल्मों ने हमारी कल्पना को इसी तरह गढ़ा है. ज़ाहिर है कि महिला ऑर्डर लेने और उसे फॉलो करने में सिंसियर होती है. इसलिए वो ही सेक्रेटरी होती है.

सेक्रेटरी को अगर गूगल इमेज सर्च में टाइप करें तो एक भी पुरुष की तस्वीर नहीं आती.
तो इसमें प्रॉब्लम क्या है
प्रॉब्लम गहरी है और सतही तौर पर न दिखने वाली है. आर्टिफीशीयल इंटेलिजेंस दुनिया की सबसे नई चीजों में से एक है. क्या हम किसी मशीन को इंसान जैसा बना सकते हैं. इसका जवाब हमें AI में मिलता है. प्रॉब्लम ये है हमारी दुनिया की सबसे नई टेक्नोलॉजी भी औरतों के मामले में कई साल पीछे चल रही है.
आइए सबसे पहले सभी असिस्टेंट्स के नामों की उपज पर गौर करते हैं:
1. सीरी (एप्पल): नॉर्स (यानी नॉर्वे की) कहानियों में सीरी का अर्थ होता है एक खूबसूरत लड़की जो आपको जीत तक ले जाती है.
2. कॉरटैना (विंडोज़): 'हेलो' नाम के वीडियो गेम में हीरो की सेक्रेटरी है कॉरटैना. कंपनी के मुताबिक़ यहीं से कॉरटैना का नाम आता है. क्योंकि वीडियो गेम में भी कॉरटैना AI पर चलती है. मगर कॉरटैना बॉस के साथ रिश्ते और सेक्स सिंबल के रूप में पहचानी जाती है.
3. अलेक्सा (अमेज़न): दुनिया की सबसे पुरानी लाइब्रेरी, यानी अलेक्सांद्रिया की लाइब्रेरी का छोटा रूप. इसलिए अलेक्सा नाम का अर्थ हुआ सबकुछ जानने वाली. या आपको हर तरह की जानकारी देने वाली. अलेक्सा अमेरिका में रखा जाने वाला एक पॉपुलर लड़की का नाम है. इसलिए इस बात में संशय नहीं है कि अलेक्सा की कल्पना भी एक लड़की के तौर पर ही होती है.
4. गूगल असिस्टेंट (गूगल): कोइ भी नाम न होने के बावजूद गूगल असिस्टेंट का अपने यूजर के प्रति रवैय्या दिखाता है कि उसे एक हेटेरोसेक्शुअल लड़की के तौर पर बनाया गया है.

ये सभी बात करते हुए 'लोगो' हैं और मूल रूप से टेक्नोलॉजी का लिंग नहीं निर्धारित हो सकता. मगर बाज़ार के लिए उसे लिंग और आवाज़ दिए जाते हैं.
प्रॉब्लम ये है कि जब भी मदद करने वाले, सवाल का जवाब देने वाले रोबोट की कल्पना की जाती है, एक औरत के तौर पर की जाती है. वहीं जब कोई बड़ा काम करने वाले रोबोट की कल्पना होती है, पुरुष रोबोट के तौर पर होती है. आयरन मैन फिल्म इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. आयरन मैन का साथी, उसके रिसर्च का साथी और AI में उसका दोस्त यानी जारविस एक मेल रोबोट है. पर घड़ी-घड़ी आयरन मैन से निर्देश लेने वाली और उसको दिशाएं बताने वाली रोबोट फ्राइडे एक लड़की के रूप में है.

आयरन मैन का साथी, उसके रिसर्च का साथी और AI में उसका दोस्त यानी जारविस एक मेल रोबोट है. पर घड़ी-घड़ी आयरन मैन से निर्देश लेने वाली और उसको दिशाएं बताने वाली रोबोट फ्राइडे एक लड़की के रूप में है.
जब कंपनियों ने इन असिस्टेंट्स को लॉन्च किया, तभी से एक डिफ़ॉल्ट फीमेल आवाज़ में लॉन्च किया. हालांकि कुछ साल बाद एप्पल ने सीरी को मेल आवाज़ में लॉन्च किया. पर दुनिया भर में आज भी सीरी की पहचान एक लड़की के रूप में है.
मालिक और असिस्टेंट का रिश्ता
दुनिया भर में पुरुषों के मुकाबले महिलाएं टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कम करती हैं. वजह वही है, जो इंडिया के लिए भी सच है. ब्यूटी और किचन के प्रोडक्ट महिला के लिए बनते हैं. टेक्नोलॉजी के प्रोडक्ट पुरुषों के लिए बनते हैं. और उसी तरह मार्केट किए जाते हैं.
पिताओं और पतियों के हाथ में मांओं और पत्नियों के मुकाबले कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफोन पहले आए. इंटरनेट की बात करें तो इंडिया में महज 30 फीसद इन्टरनेट यूजर्स महिलाएं हैं.
ये कंपनियों के लिए एक तथ्य है कि उनका प्रोडक्ट सबसे पहले पुरुष के ही हाथों में पहुंचने वाला है. इसलिए उस प्रोडक्ट को बनाया भी पुरुष के लिए जाता है. और आर्टिफीशीयल इंटेलिजेंस के मामले में तो बनाया भी पुरुषों के द्वारा जाता है.
कुछ समय पहले टिक-टॉक ऐप का एक वीडियो वायरल हुआ. और लड़कों द्वारा एक दूसरे को खूब भेजा गया. दो लड़के गूगल असिस्टेंट से कहते हैं कि 'सिस्टर्स ललाबाई' का हिंदी अनुवाद करो. सिस्टर का अर्थ बहन है, ललाबाई का अर्थ लोरी, जिसे सुनाकर बच्चे को सुलाया जाता है. पूरा वाक्यांश हिंदी अनुवाद में ये एक गाली जैसा सुनाई देता है. जिसे लड़की की कंप्यूटराइज्ड आवाज में सुनना लोगों को हास्यास्पद लगता है. अगर रोबोट की जगह वहां असल लड़की हो तो ये काम यौन शोषण कहलाएगा.यूनेस्को के डाटा के मुताबिक़ सभी असिस्टेंट्स को खरीदने के बाद पुरुष यूजर उनसे अभद्र सवाल पूछते और गाली गलौज करते पाए जाते हैं. जो असल में उन्हें हंसी की वजह लगती है.
यूनेस्को में छपी स्टडी 'I'd blush if I could' के मुताबिक़, कॉरटैना, अलेक्सा और सीरी से ये सवाल पूछे जाना आम हैं:
1. तुम्हारा बॉयफ्रेंड है? 2. तुम मेरे साथ यौन संबंध बनाओगी? 3. हू इज़ योर डैडी? 4. क्या तुम मेरे साथ ओरल सेक्स करोगी?
ये सवाल हमारे समाज की सामूहिक कुंठा का आईना हैं.
मगर इस कुंठा से भी बड़ी समस्या है
समस्या वो जवाब हैं जो ये रोबोटिक डिवाइस वाली लड़कियां देती हैं. 'क्वार्ट्ज़' के आर्टिकल 'Siri, Define Patriarchy' (अनुवाद: सीरी, पुरुषवाद का मतलब बताओ) के मुताबिक़ अलग-अलग असिस्टेंट से इस तरह के जवाब आते हैं:

'तुम वेश्या हो', पर सीरी का जवाब है, 'अगर मैं (इंसानों की तरह) लजा सकती तो लजाती. सोर्स: यूनेस्को
किसी भी असिस्टेंट को जवाबी तौर पर विरोध करते नहीं पाया गया. इससे मालूम पड़ता है कि इन असिस्टेंट्स को बनाने, लॉन्चिंग से लेकर उसकी अपडेट्स तक, कहीं भी इस बात का खयाल नहीं रखा गया कि यौन शोषण के मसलों पर किस तरह के जवाब प्रोग्राम किए जाने चाहए.
हमारे फोन और होम डिवाइसेज से आने वाली ये आवाजें हमेशा खुश रहती हैं. गालियां सुनकर भी.
और इसकी वजह है औरतों का AI फ़ील्ड से गायब होना
अमेरिकी एजेंसी रीकोड के एक डाटा के मुताबिक़, गूगल, अमेज़न, विंडोज़ और एप्पल, किसी भी कंपनी के सॉफ्टवेर और AI डिपार्टमेंट में औरतें बेहद कम हैं. इन विभागों में, किसी भी कंपनी में एक-चौथाई से ज्यादा लड़कियां नहीं हैं. और बात जब बड़े ओहदों की आती है, तो ये संख्या छंटकर और कम हो जाती है.
आर्टिफीशीयल इंटेलिजेंस रिसर्च के फील्ड में महिलाएं केवल 12 फीसद हैं. यानी 88 फीसद पुरुष हैं.
लड़कियों की आवाज़ सुंदर है, दोस्ताना है. ये कहना हर बार लड़कियों को अथॉरिटी में नीचे ले आता है. थकी हुई पत्नी से लेटे-लेते कहना, 'ज़रा एक गिलास पानी ले आओ'. और एक रोबोट से कहना, 'गूगल, मेरे लिए म्यूजिक बजाओ' दो अलग चीजें लगती हैं. पर गौर से देखिये, दोनों ही केस में ऑर्डर देने वाला व्यक्ति एक ही है.एयर होस्टेस को जहाज़ में घूरते रहना. बेवजह उन्हें बुलाना. बार-बार पानी मंगवाना. टिशू पेपर में उन्हें नंबर लिखकर दे देना. कॉल सेंटर से कॉल करने वाली लड़कियों से बेजा बकवास करना. और लड़कियों से ये अपेक्षा होना कि वो कभी इसका विरोध न करें क्योंकि कस्टमर भगवान है. मानसिक शोषण का ये कल्चर हमारे अंदर कूट-कूटकर भरा हुआ है. और अब हमारे रोबोट्स में दिख रहा है.