कोरोना का संकट अभी खत्म नहीं हुआ है. हालांकि हालात पिछले कुछ महीनों से बेहतर हैं. लेकिन वो दौर याद कीजिए जब आप बाहर निकलने से भी डर रहे थे. आलम ये था कि अगर हमें ये भी पता चल जाता कि पड़ोस के घर में कोई कोरोना मरीज़ है, तो हम दसियों बार अपना घर सैनिटाइज़ करते थे. इस मुश्किल के वक्त में मेडिकल फील्ड से जुड़े लोग लगातार अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे थे. न केवल डॉक्टर्स, बल्कि नर्सेज़ और सफाई कर्मी भी. नर्सेज़ तो मेडिकल डिपार्टमेंट का वो हिस्सा हैं, जिनके बिना आप किसी पेशेंट के ठीक होने की कल्पना ही नहीं कर सकते. कुछ समय पहले तक इन्हें कोरोना वॉरियर्स कहा जा रहा था. लेकिन यही वॉरियर्स इस वक्त काफी परेशान हैं. इतने कि पिछले एक हफ्ते तक इन्होंने धरना प्रदर्शन किया था. मध्य प्रदेश में हज़ारों नर्सें स्ट्राइक पर थीं. लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के बाद 7 जुलाई को उन्होंने स्ट्राइक खत्म कर दी. क्या है ये पूरा मामला? आपको डिटेल में बताएंगे.
जान की बाज़ी लगाकर कोविड ड्यूटी की, अब सरकार ने इन नर्सों से मुंह क्यों मोड़ लिया?
मध्य प्रदेश में सात दिन तक हज़ारों नर्स धरने पर बैठी थीं.

क्या है पूरा मामला?
30 जून के दिन मध्य प्रदेश के ज्यादातर ज़िलों में सरकारी अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों ने हड़ताल शुरू की थी. मध्य प्रदेश नर्स असोसिएशन के बैनर तले. 12 अहम मांगों को पूरा करवाने के लिए. हालांकि स्ट्राइक पर जाने से पहले नर्सों ने अपनी मांगें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंचाने की कोशिश की थी, इसके लिए उन्होंने एक ज्ञापन अपने ज़िले के मुख्य अधिकारियों को सौंपा था. लेकिन जब सरकार कोई एक्शन लेते नहीं दिखी, तो फिर इस स्ट्राइक की शुरुआत कर दी गई. आगे बढ़ने से पहले आपको हम वो 12 पॉइंट्स भी बताते हैं, जिन्हें पूरा कराने की मांग ये नर्स कर रही हैं.
सबसे अहम मांग है, कि नर्सिंग प्रोफेशन को सेकेंड ग्रेड में लाया जाए. आप ये बात जानते होंगे कि सरकारी नौकरियों को ग्रेड्स के आधार पर डिवाइड किया गया है. फर्स्ट ग्रेड में सबसे बड़े लेवल के अधिकारी आते हैं, इसी तरह के लेवल के हिसाब से ग्रेड बांटे जाते हैं. मध्य प्रदेश में नर्सिंग प्रोफेशन अभी थर्ड ग्रेड में आता है. ज़ाहिर है कि ग्रेड के आधार पर सैलेरी और अन्य फायदे कर्मचारियों को मिलते हैं. नर्सेज़ चाहती हैं कि उनके प्रोफेशन को दूसरे ग्रेड में लाया जाए, क्योंकि वो भी प्रॉपर पढ़ाई करके, डिग्री हासिल करके और सराकारी एग्ज़ाम्स क्लीयर करने के बाद नौकरी पाती हैं. राजस्थान जैसे कुछ अन्य राज्यों में नर्सिंग प्रोफेशन सेकेंड ग्रेड में आता है.
दूसरी सबसे अहम मांग प्रोबेशन पीरियड को लेकर है. प्रोबेशन पीरियड नौकरी के बाद के उस समय को कहा जाता है, जिसमें नौकरी करने वाले के काम का जायज़ा होता है और उसे बीच में कभी भी निकाला जा सकता है. नवंबर-दिसंबर 2019 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. मुख्यमंत्री कमलनाथ थे. उन्होंने तब एक नियम निकाला था. थर्ड और फोर्थ ग्रेड के तहत आने वाले कर्मचारियों को प्रोबेशन पीरियड को दो साल से बढ़ाकर तीन साल कर दिया था. साथ ही ये नियम भी बनाया था कि नौकरी लगने के बाद पहले प्रोबेशन ईयर में कर्मचारियों को कुल वेतन का 70 फीसद ही मिलेगा, दूसरे साल में 80 फीसद वेतन मिलेगा और तीसरे साल में 90 फीसद. तीन साल पूरे होने के बाद, माने प्रोबेशन खत्म होने के बाद पूरी सैलेरी दी जाएगी. इसी नियम को खत्म कराने की मांग अब नर्सेज़ रख रही हैं.

नर्सेज़ की सबसे अहम मांग है कि इस प्रोफेशन को सेकेंड ग्रेड में लाया जाए. (फोटो- अरुण शर्मा)
ये तो सबसे अहम मांग इन नर्सों की है. हमने नर्सेस के IT एडवाइज़र अरुण शर्मा से भी बात की. वो बताते हैं कि 70, 80, 90 फीसद सैलेरी मिलने का नियम केवल थर्ड और फोर्थ ग्रेड के कर्मचारियों पर लागू है. फर्स्ट और सेकेंड ग्रेड पर नहीं. ऐसे में जिन लड़कियों ने इस नियम के आने के पहले ही नर्सिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी, उन्हें बहुत नुकसान हो रहा है. क्योंकि किसी को पता नहीं था कि ऐसा नियम आ जाएगा.
30 जून से 7 जुलाई के बीच हुई स्ट्राइक में प्रोबेशनरी नर्सेज़ ने भी हिस्सा लिया था, लेकिन सरकारी अधिकारियों की तरफ से ये सर्कुलेशन जारी कर दिया गया कि जो प्रोबेशनरी नर्स स्ट्राइक में शामिल हैं, उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा. ऐसे में इन नर्सों ने स्ट्राइक खत्म कर दी, लेकिन सोशल मीडिया के ज़रिए वो लगातार इसका सपोर्ट करती रहीं.
बाकी मांगें क्या हैं?
इन दो अहम मांगों के अलावा जो मांगें हैं, अब वो आपको बताते हैं. पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए, कोरोना काल में शहीद हुए नर्सिंग स्टाफ के परिवार वालों को अनुकंपा नियुक्ति दी जाए, 15 अगस्त को राष्ट्रीय कोरोना योद्धा सम्मान से सम्मानित किया जाए, कोरोना के समय सरकार ने जितनी भी घोषणाएं की हैं वो पूरी की जाए, कोरोना के समय अस्थाई रूप से भर्ती की गईं नर्सों को परमानेंट किया जाए या प्राइेट कंपनी से लगाई गई नर्सों को भी नियमित किया जाए, एक ही विभाग में समान काम के लिए समान वेतन दिया जाए, प्रमोशन किया जाए, मेल नर्सों की भर्ती हो, सेवेंथ पे कमीशन का साभ 2018 की बजाए 2016 से दिया जाए.
ये कुछ मांगें नर्सों ने सरकार के सामने रखी हैं. इनमें एक मांग काफी अहम है. उस पर हम अलग से जानकारी देते हैं. नर्सों का कहना है कि "सरकारी कॉलेजों में सेवारत रहते हुए नर्सेज़ को उच्च शिक्षा हेतु आयु बंधन हटाया जाए." इसका सीधा मतलब ये है कि जो नर्सें काम करने के साथ-साथ आगे की पढ़ाई करना चाहती हैं, उन्हें सरकार की तरफ से मदद मिलती है, लेकिन वो मदद तब मिलती है जब उन्हें प्रोफेशनली दस साल का एक्सपीरियंस हो जाए. इसी ड्यूरेशन को कम कराने की मांग नर्सों ने रखी थी.
आगे बढ़ने से पहले आपको मध्य प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में नर्सों की भर्ती की प्रोसेस भी क्लीयर कर देते हैं. दो तरह के एग्ज़ाम्स होते हैं. पहला 12वीं के तुरंत बाद होता है. व्यापम इसे करवाता है. इसमें कटऑफ के हिसाब से कैंडिडेट्स को सरकारी कॉलेज दिए जाते हैं. ज्यादा नंबर लाने वालों को सीधे नर्सिंग में BSc करने का मौका सरकार कॉलेज से मिलता है. उसके बाद जिनके थोड़े कम नंबर आते हैं, उन्हें GNM माने General Nursing and Midwifery की ट्रेनिंग के लिए चुना जाता है और सरकारी कॉलेज दिए जाते हैं. BSc चार साल की होती है और GNM की ट्रेनिंग 3 साल की. ये पूरी होने के बाद इन्हें सरकारी अस्पतालों में स्टाफ नर्स के तौर पर रखा जाता है. प्रोबेशन पीरियड पूरा होने के बाद ये परमानेंट होते हैं. वैसे ही जो कैंडिडेट्स 12वीं के बाद का एग्ज़ाम क्लीयर नहीं कर पाते या फिर वो एग्ज़ाम ही नहीं देते, वो प्राइवेट कॉलेज से नर्सिंग का कोर्स करते हैं और अगर उन्हें सरकारी अस्पतालों में नौकरी चाहिए होती है, तो उसके लिए कोर्स के बाद एग्ज़ाम देना पड़ता है.
वापस स्ट्राइक के मुद्दे पर आते हैं. 30 से 7 जुलाई के बीच मध्य प्रदेश के रीवा, विदिशा, छिंदवाड़ा, ग्वालियर, पन्ना समेत कई ज़िलों में स्ट्राइक हुई थी. छिंदवाड़ा में काम कर रही एक नर्स ने तो ये भी बताया कि वो जस्ट कैंसर से रिकवर हुई थीं, और उन्होंने कोरोना काल में ड्यूटी की.
नर्सेज़ की स्ट्राइक की वजह से अस्पतालों में बहुत दिक्कत हो रही थीं. मरीज़ों का ख्याल रखने वाला कोई नहीं था. और इतिहास गवाह है कि हड़ताल के बाद भी आसानी से हमारी सरकारें जनता की बात सुनती कहां हैं. ऐसा ही इस केस में भी हुआ. सरकार की तरफ से कहा गया कि नर्सों से बातचीत की जा रही है. मध्य प्रदेश के चिकिस्ता शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने 3 जुलाई को एक बयान जारी किया-
"नर्सेज़ से बात हो रही है वह बड़ी ज़िम्मेदारी से काम कर रहीं हैं. निर्देश दिया है कि अधिकारी स्तर पर उनसे बात कर समस्या का हल हो."
हाई कोर्ट में क्या हुआ?
'TOI' की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी बीच एमपी नागरिक उपभोक्ता मंच के पीजी नाजपांडे ने एक पेटिशन हाई कोर्ट में डाल दी. कहा कि राज्य में चल रही हड़ताल की वजह से मेडिकल सर्विसेज़ काफी ज्यादा प्रभावित हो रही हैं. इस पर राज्य सरकार की तरफ से सोमवार को माने पांच जुलाई के दिन कोर्ट में जवाब दिया गया कि नर्सों से स्ट्राइक खत्म करने की लिए बात चल रही है. 7 जुलाई को कोर्ट में फिर मामले की सुनवाई हुई. 'इंडिया लीगल' की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट की जबलपुर बेंच ने नर्सिंग असोसिएशन की इस स्ट्राइक को अवैध करार दे दिया. साथ ही नर्सों को आदेश दिया कि वो काम पर लौटें. इसके अलावा सरकार को आदेश दिया कि वो नर्सों की मांगों को देखने के लिए एक कमिटी बनाएं. इसके बाद हड़ताल खत्म कर दी गई. और 8 जुलाई से नर्सें अपने काम पर लौट गईं.
इस मुद्दे पर हमने नर्सों की राय जानी, उनसे बात भी की. लेकिन इन सब पर सरकार का पक्ष जानना भी उतना ही ज़रूरी था. इसके लिए हमारी टीम ने मंत्री विश्वास सारंग को कॉल किया, जो बहुत मुश्किल से लगा, मुद्दा सुनते साथ ही कॉल कट गया, दोबारा जब हमने लगाया तो किसी ने पिक नहीं किया. अब ये कॉल कुछ टेक्निकल दिक्कत के चलते कटा था या काटा गया था, हमें नहीं पता. हमने हेल्थ कमिश्नर आकाश त्रिपाठी से भी बात करना चाही, लेकिन उनका फोन नहीं लगा. हेल्थ मिनिस्टर प्रभुराम चौधरी से भी कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की, उनका फोन स्विच ऑफ बताया गया.
अब नर्सों की ये मांगें पूरी होती हैं या नहीं. इस पर हम कुछ नहीं कह सकते अभी. उम्मीद है कि हाई कोर्ट के आदेश पर बनने वाली कमिटी अपना काम सही से करेगी.