बच्चों पर अभी कोरोना वैक्सीन का ट्रायल नहीं हुआ है. इस संबंध में डाटा मौजूद नहीं है.
कुछ देशों में कोरोना वायरस वैक्सीन लगाने की प्रक्रिया चालू हो गई है. इंडिया में भी इसके जल्दी चालू होने की संभावना है. जिन देशों में वैक्सीन लगनी शुरू हुई हिया, उनमें शुरुआत में उम्रदराज और हाई रिस्क ग्रुप में आने वाले लोगों को कवर किया गया है. इसके साथ ही गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को यह वैक्सीन ना लेने की हिदायत दी गई है. जिन लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है, सरकारों ने उनके लिए भी कई दिशा निर्देश जारी किए हैे. इस बीच यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या बच्चों को यह वैक्सीन मिलेगी? हां, तो कब तक? नहीं, तो क्यों नहीं? और अगर अभी मिलेगी, तो उसमें किस एज ग्रुप वाले बच्चों को ये दी जाएगी? कोरोना वायरस वैक्सीन एक्सपर्ट कमेटी के अध्यक्ष और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल के अनुसार-
"बच्चों को अभी वैक्सीन देने की आवश्यकता नहीं है. बच्चों पर अभी ट्रायल भी नहीं हुए हैं. इसलिए बच्चों को अभी वैक्सीन नहीं दी जाएगी."
आईसीएमआर के आंकड़ो के अनुसार अभी तक भारत में जितने भी लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं, उसमें से 12 फीसदी हिस्सा 20 साल से कम उम्र के टीनेजर और बच्चों का है. इसी तरह अमेरिका में भी फिलहाल बच्चों को वैक्सीन लगाने की योजना नहीं है. हालांकि, यूनाइटेड किंगडम में सरकार ने उन बच्चों को वैक्सीन लगाने की मंजूरी दी हुई है, जो हाई रिस्क ग्रुप में है. दूसरी तरफ, कोरोना वायरस से उबर चुके बच्चों में एक इनफ्लेमेशन पाया जा रहा. जिसके मद्देनजर ना केवल कुछ स्वास्थ्य एक्सपर्ट बल्कि माता पिता भी उन्हें वैक्सीन देने की मांग कर रहे हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि फिलहाल बच्चों को कोरोना वैक्सीन देना सही नहीं है. जिस तरह से पर्याप्त डेटा उपलब्ध ना होने के कारण गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन ना देने के लिए कहा गया है, उसी तरह अभी बच्चों के लिए भी यह डाटा उपलब्ध नहीं है. रायपुर एम्स के मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉक्टर अंकुर जैन ने हमें बताया-
"फाइजर अपनी वैक्सीन 12 साल से कम बच्चों को नहीं दे रहा है. इसी तरह दूसरी कंपनियां भी 16 साल से कम बच्चों को वैक्सीन नहीं दे रही हैं. दरअसल, अभी बच्चों के ऊपर कोरोना वैक्सीन ट्रायल नहीं किया गया है. हमारे पास डेटा उपलब्ध नहीं है. ऐसे में उन्हें वैक्सीन दिया जाना सही नहीं होगा."
हमने उनसे यह पूछा कि कोरोना वायरस से उबरने वाले बच्चों को इनफ्मेशन हो रहा है, तो क्या उन्हें वैक्सीन दी जानी चाहिए. इस सवाल के जबाव में डॉक्टर जैन ने कहा-
"इनफ्लेमेशन के ठीक होने की संभावना अधिक है. थोड़े समय में यह ठीक हो सकता है. दूसरी तरफ, बिना ट्रायल के बच्चों को वैक्सीन देने से उन्हें साइड इफेक्ट हो सकते हैं. ये साइड इफेक्ट उनके ऊपर गंभीर असर डाल सकते हैं"
डॉक्टर अंकुर जैन ने वैक्सीन के ट्रायल पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ज्यादातर वैक्सीन अभी तीसरे चरण के ट्रायल में ही हैं. इन वैक्सीन को इमरजेंसी यूज की मंजूरी दी गई है. एक तरीके से ये वैक्सीन अभी पक्की नहीं हैं. ऐसे में बच्चों को इनका डोज देना किसी भी तरीके से सही नहीं होगा. कुछ ऐसी ही राय गोरखपुर के ग्रीनलैंड हॉस्पिटल में मेडिसिन के एमडी के तौर पर कार्यरत डॉक्टर विजय रंजन की है. उन्होंने बताया-
"बड़ों के मुकाबले बच्चों का शरीर लगातार विकसित हो रहा होता है. ऐसे में बिना जांचे परखे उन्हें कोई दवा या वैक्सीन देना सही नहीं है. इस तरह की गाइडलाइन भी नहीं है."
डॉक्टर रंजन ने आगे बताया कि फिलहाल ज्यादा से ज्यादा एडल्ट्स लोगों को यह वैक्सीन दी जानी चाहिए. थोड़े समय में हमारे पास बच्चों के संबंध में डेटा आ जाएगा, तब उसके हिसाब यह तय करना सही होगा कि उन्हें वैक्सीन दी जाए या नहीं.
बच्चों पर कहां तक पहुंचा ट्रायल?
फाइजर ने अपने वैक्सीन ट्रायल के शुरुआती दौर में 12 से 15 साल के कुछ बच्चों को शामिल किया था. लेकिन उनका हिस्सा बहुत कम था. कंपनी ने अक्टूबर में बच्चों के ऊपर ट्रायल शुरू किए हैं. फाइजर का कहना है कि छह महीने में ट्रायल के परिणाम आ जाएंगे. दूसरी तरफ मॉडर्ना ने इसी महीने बच्चों पर ट्रायल शुरू किए हैं. कंपनी ने कहा है कि रिजल्ट आने में कम से कम एक साल लगेगा.