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छत्तीसगढ़ः मां पर बेटे का जबरन धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगा है

इंटरफेथ शादियों में कैसे तय होता है बच्चे का धर्म?

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वह घटना पिछले साल नवंबर में हुई थी. हालांकि, नाबालिग के पिता को कुछ दिन पहले पता चला कि उसके बेटे के साथ कुछ ग़लत हो गया है.
छत्तीसगढ़ का जशपुर जिला. यहां एक व्यक्ति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है कि उसकी पत्नी ने उसकी मर्ज़ी के बिना उसके आठ साल के बेटे का धर्म परिवर्तन कर दिया. उसने आरोप लगाया है कि पत्नी ने बेटे का खतना करवाकर उसका मुस्लिम नाम रख दिया. पुलिस ने इस मामले में IPC और धर्म की आज़ादी कानून के तहत केस दर्ज कर लिया है. ये शिकायत चितरंजन सोनी नाम के शख्स ने अपनी पत्नी रेश्मा अंसारी के खिलाफ करवाई है. दोनों की 10 साल पहले हिंदू रीति-रिवाज से शादी हुई थी. जशपुर जिले के सन्ना गांव में दोनों रहते हैं. इस जोड़े के दो बच्चे हैं. आठ साल का बेटा और छह साल की बेटी. चितरंजन सोनी ने पुलिस को बताया,
"नवंबर, 2020 में मेरी पत्नी मेरे बेटे को उसके ननिहाल लेकर गई थी. वहां उसने उसका खतना करवा दिया, जिसके बारे में मुझे बाद में पता चला."
शख्स ने ये आरोप भी लगाए हैं कि उसकी पत्नी उस पर भी इस्लाम कुबूल करने का दबाव बनाया था. उसने बताया कि ससुराल वालों ने धर्म परिवर्तन करने पर पिकअप गाड़ी देने का लालच भी दिया था. जशपुर की असिस्टेंट सुप्रिटेंडेंट ऑफ पुलिस प्रतिभा पांडे ने न्यूज़ एजेंसी PTI को बताया कि आईपीसी की धारा 295-ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करना), 324 (जानबूझकर ख़तरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुंचाना) के साथ छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत FIR दर्ज की गई है और महिला को हिरासत में ले लिया गया है. इस मामले  पर राजनीति भी शुरू हो गई है. बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री गणेश राम भगत ने कहा,
"लोगों ने धर्म की रक्षा के लिए बड़ी संख्या में विरोध किया. उसके बाद पुलिस ने FIR दर्ज की. धर्म की रक्षा ऐसे ही की जानी चाहिए."
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी मामले को संज्ञान में लिया और इस संबंध में जशपुर कलेक्टर को पत्र लिखा. बच्चे को पिता का धर्म क्यों मिलता है? हम शुरू ऐसे कर सकते थे कि भारत एक पुरुष सत्तात्मक देश है. इस वजह से ये बाय डिफॉल्ट मान लिया जाता है कि जो पिता का धर्म या जाति होगी, बच्चों का भी वही धर्म या जाति होगी. लेकिन इसे लेकर क्या क्या कहता है? ये समझने के लिए हमने मदद ली कनुप्रिया से. उन्होंने डॉक्टर पारस दीवान की किताब 'Allahabad Law Agency's Family Law' के कुछ हिस्से हमें भेजे. इसमें लिखा था,
हिंदू कानून के मुताबिक, बच्चे के जन्म के वक्त माता-पिता में से कोई एक अगर हिंदू है तो बच्चा हिंदू होगा. वहीं शरिअत भी कहता है कि यदि एक पेरेंट मुस्लिम है तो बच्चा मुस्लिम होगा.
डॉक्टर पारस जैन लिखते हैं कि इंटरफेथ शादियों के केस में बच्चे का धर्म वो माना जाता है जिसे मानते हुए वो बड़ा हुआ हो. फिर चाहे वो धर्म मां का हो या फिर पिता का. लेकिन, पितृ सत्तात्मक व्यवस्था के चलते अमूमन ये मान लिया जाता है कि जो पिता का धर्म है, वही बच्चे का धर्म होगा. जबकि ऐसा होता नहीं है. बच्चे के पास अपने विवेक के आधार पर अपना धर्म चुनने का अधिकार होता है. धर्म चुनने का फैसला बालिग होने के बाद यानी 18 साल का होने के बाद लिया जा सकता है. यानी अगर माता-पिता अलग-अलग धर्म का पालन करते हैं तो वो अपने बच्चे पर अपने धर्म का पालन करने का दबाव नहीं बना सकते हैं. ये भी धार्मिक स्वतंत्रता का हनन माना जाएगा.