साल 1947 में भारत आजाद हुआ था, अंग्रेजी हुकुमत से. इसी साल बना था पाकिस्तान. यानी ये साल था विभाजन का. विभाजन के वक्त बहुत से परिवार भी एक देश से दूसरे देश गए थे. इन्हीं परिवारों में से एक परिवार बनारसी लाल चावला का भी था, जो पाकिस्तान के मुल्तान में रहता था. लेकिन पार्टिशन के कारण हरियाणा के कर्नाल आ गया था. फिर यहीं बस गया.
वो छोटी सी गलती, जिसकी वजह से कल्पना चावला धरती और अंतरिक्ष के बीच खो गईं
अपना नाम रखने वाली कल्पना, जो अंतरिक्ष को अपना सबकुछ मानती थी.

बनारसी बड़े मेहनती आदमी थे. घर चलाने के लिए पहले कपड़े बेचा करते थे, और भी कई सारे छोटे-मोटे काम करते थे. बाद में इन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से टायर बनाने का बिजनेस शुरू किया. इनकी बीवी, घर के काम देखती थीं. दोनों के चार बच्चे हुए. 17 मार्च 1962 के दिन सबसे छोटी बेटी हुई. नाम रखा 'मोंटो'.
मोंटो बहुत प्यारी बच्ची थी. उसे हवाई जहाज बहुत पसंद था. वो बचपन में सितारों के बीच उड़ने का सपना देखती थी. आंखों में एक अलग चमक थी. एक अलग जज़्बा था. इसी जज़्बे ने और आसमान में उड़ने के इसी सपने ने, मोंटो को एक दिन कल्पना चावला बना दिया. और यही मोंटो आगे चलकर स्पेस में जाने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. और राकेश शर्मा के बाद दूसरी भारतीय.

स्कूल में जब ड्रॉइंग बनाने की बारी आती. सारे बच्चे वही पहाड़, नदी के चित्र बनाते. कल्पना उन पहाड़ों और नदियों के ऊपर हवाई जहाज का चित्र बना देतीं.
अब जानते हैं मोंटो उर्फ कल्पना चावला की कहानी-
अब बनारसी जी ने अपनी सबसे छोटी बच्ची का कोई फॉर्मल नाम नहीं रखा था. मोंटो ही उसका नाम था. जब वो थोड़ी बड़ी हुई, तो स्कूल में एडमिशन कराने की बारी आई. एक आंटी मोंटो को लेकर कर्नाल के टैगोर बाल निकेतन स्कूल गईं. वहां प्रिंसिपल ने पूछा कि क्या नाम रखा जाए. तब आंटी ने बताया कि मोंटो के तीन नाम हैं- ज्योत्सना, सुनैना और कल्पना. लेकिन तीनों में से कौन-सा नाम रखा जाए, इस पर अभी कोई फैसला नहीं किया है. प्रिंसिपल ने मोंटो से ही पूछा, कि वो क्या नाम रखना चाहती है. मोंटो ने कहा कि वैसे तो उसे तीनों नाम पसंद हैं, लेकिन कल्पना सबसे ज्यादा पसंद है. क्योंकि उसका मतलब इमेजिनेशन होता है. और मोंटो को तो आसमान में उड़ने की कल्पना करना पसंद था ही. फिर क्या. स्कूल के पहले दिन मोंटो का नाम हो गया कल्पना चावला. उस वक्त किसी ने ये नहीं सोचा होगा, कि ये लड़की आगे चलकर स्पेस की सैर करेगी.
स्कूल में जब ड्रॉइंग बनाने की बारी आती. सारे बच्चे वही पहाड़, नदी के चित्र बनाते. कल्पना उन पहाड़ों और नदियों के ऊपर हवाई जहाज का चित्र बना देतीं. क्लास की दीवारों पर भी एक झटके में इंडिया का जीअग्रैफ़िकल मैप बना देती थीं. शुरुआत से ही साइंस की तरफ झुकाव था. गर्मियों में जब परिवार के लोग छत पर सोते थे, छोटी कल्पना रात में जागतीं, और सितारों को देखती रहतीं.
खैर, स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.टेक किया. फिर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स की पढ़ाई करने के लिए अमेरिका चली गईं. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सस से 1984 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग भी पूरी कर ली. फिर एक और मास्टर्स किया और पीचएडी की. जब कभी अपने दोस्तों के साथ करियर से रिलेटेड बातें करतीं, तो कहतीं, 'एक दिन मैं भी उड़ूंगी'

कल्पना क्लास की दीवारों पर भी एक झटके में इंडिया का जीअग्रैफ़िकल मैप बना देती थीं.
उड़ने का सपना कल्पना ने बचपन से देखा था. और उसे पूरा करने के लिए बहुत मेहनत भी करती थीं. उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद 1988 में 'नासा' के साथ काम करना शुरू किया. फिर अमेरिका में ही शिफ्ट हो गई. 1991 में इन्हें अमेरिका की नागरिकता भी मिल गई. फिर 'नासा' एस्ट्रोनॉट कॉर्प्स का हिस्सा बन गईं. 1997 में पहली बार स्पेस मिशन में जाने का मौका मिला. वो 'नासा' के स्पेस शटल प्रोग्राम का हिस्सा बनीं.
आगे बढ़ने से पहले स्पेस शटल प्रोग्राम के बारे में थोड़ा बात कर लेते हैं. नासा का एक प्रोग्राम है 'ह्यूमन स्पेसफ्लाइट'. इस प्रोग्राम के तहत कुछ लोगों को ग्रुप में स्पेसक्राफ्ट के जरिए स्पेस में भेजा जाता है. किसी रिसर्च के लिए. तो स्पेस शटल प्रोग्राम भी एक ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम था. चौथा ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम था. इस चौथे प्रोग्राम का 88वां मिशन था कोलंबिया फ्लाइट STS-87. इसका हिस्सा बनीं कल्पना चावला. ये कल्पना का पहला स्पेस मिशन था. वो 1997 में अपने 5 एस्ट्रोनॉट साथियों के साथ इस मिशन पर गईं. 10.4 मिलियन माइल्स का सफर तय किया. किया. पृथ्वी के 252 चक्कर काटे. पहला मिशन सफल रहा.

कल्पना साल 2003 में अपने दूसरे स्पेस मिशन पर गईं. मिशन था स्पेस शटल कोलंबिया STS-107. प्रतीकात्मक तस्वीर- वीडियो स्क्रीनशॉट
फिर कल्पना साल 2003 में अपने दूसरे स्पेस मिशन पर गईं. मिशन था स्पेस शटल कोलंबिया STS-107. स्पेस शटल प्रोग्राम का 113वां मिशन था. 16 जनवरी, 2003 के दिन STS-107 पृथ्वी से रवाना हुआ. कल्पना एक बार फिर स्पेस में थीं. वापसी थी 1 फरवरी 2003 के दिन. उस दिन कल्पना वापस आने वाली थीं. हर जगह उनके आने की खबर चल रही थी. टीवी पर यही उस दिन की बड़ी खबर थी. STS-107 बस धरती पर आने ही वाला था. लेकिन लैंडिंग के 16 मिनट पहले ही स्पेसक्राफ्ट टूटकर बिखर गया. हादसे में कल्पना की मौत हो गई. उनके साथ इस स्पेसक्राफ्ट के क्रू में शामिल 6 अन्य एस्ट्रोनॉट्स की भी मौत हो गई. इस क्रू ने स्पेस में 80 एक्सपेरिमेंट किए थे.
क्यों हुआ ये हादसा?
हादसे के बाद नासा की तरफ से जांच हुई. तब पता चला कि STS-107 के लॉन्च वाले दिन, यानी 16 जनवरी 2003 के दिन स्पेस शटल के बाहरी टैंक से 'फोम इन्सुलेशन' का एक हिस्सा टूट गया था. जिससे ऑर्बिटर का लेफ्ट विंग काफी प्रभावित हुआ. कुछ इंजीनियर्स का ऐसा मानना है कि ये डैमेज स्पेस शटल के लिए काफी बड़ा डैमेज था. नासा मैनेजर्स का ये कहना है कि अगर क्रू को दिक्कत पता थी, तो उसे फिक्स कर लेना चाहिए था.

STS-107 बस धरती पर आने ही वाला था. लेकिन लैंडिंग के 16 मिनट पहले ही स्पेसक्राफ्ट टूटकर बिखर गया. प्रतीकात्मक तस्वीर- वीडियो स्क्रीनशॉट
1 फरवरी के दिन जब स्पेस शटल ने जैसे ही पृथ्वी के वायु-मंडल में एंट्री की, तब उस छोटे से डैमेज की वजह से वायु-मंडल की गर्म गैसें स्पेसक्राफ्ट के अंदरूनी विंग स्ट्रक्चर में घुस गईं. जिसकी वजह से स्पेसक्राफ्ट टूटकर बिखर गया. और सभी एस्ट्रोनॉट्स की मौत हो गई. कल्पना चावला की भी.
पहले और दूसरे स्पेस मिशन को मिलाकर कल्पना ने स्पेस में कुल 30 दिन, 14 घंटे और 54 मिनट बिताए थे. वो अक्सर कहती थीं, 'मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं. हर पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है, और इसी के लिए ही मरूंगी.'
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