आज 4 अप्रैल है और इस तारीख का सम्बंध है पहले एंग्लो-मैसूर युद्ध से. 17वीं के मध्य में दक्षिण भारत में 5 बड़ी ताकतें हुआ करती थीं. सबसे बड़ी ताकत थे मराठा, जो तब दक्षिण और मध्य भारत के एक बड़े हिस्से पर राज करते थे. 1761 तक मैसूर भी मराठाओं के कब्ज़े में था. लेकिन 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठाओं की हार के बाद हैदर अली ने मैसूर में अपनी ताकत बढ़ा ली थी. तीसरी ताकत थी हैदराबाद रियासत. जहां के नवाब थे आसफ जाह द्वितीय. 1707 में औरंगज़ेब की मौत के बाद हैदराबाद रियासत की ताकत भी बढ़ गयी थी. चौथी ताकत थी कार्नेटिक रियासत. जहां आरकोट के किले पर नवाब वल्लाजाह का राज था. हालांकि वल्लाजाह को अंग्रेजों ने ही सत्ता दिलाई थी. इसलिए उनके ऊपर ब्रिटिश EIC की ही चलती थी. इसके बाद पांचवी ताकत थे, अंग्रेज़. तीसरे कार्नेटिक युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने मद्रास का किला अपने कब्ज़े में ले लिया था. और 1764 में बक्सर की जंग के बाद बंगाल भी ब्रिटिश EIC के कब्ज़े में जा चुका था. वीडियो देखिए.
टीपू को नवाब बनाने के चक्कर में सुल्तान हैदर अली का ये हाल हुआ था!
कहानी पहले एंग्लो-मैसूर युद्ध की.
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