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ज्ञानवापी मस्जिद टाइटल सूट का 'अ से ज्ञ'

साल 1991 से शुरू हुए विवाद की अब तक की कहानी.

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मस्जिद के बाहर खड़े सुरक्षाकर्मी और ज्ञानवापी की पुरानी तस्वीर. (फोटो: रॉयटर्स/पीटीआई)

आजाद भारत के इतिहास में 9 नवंबर 2019 एक बेहद महत्वपूर्ण दिन है. इस तारीख को देश के करोड़ों लोगों की नजरें भारत की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई थीं. मौका था बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद के जजमेंट डे का. कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित भूमि को हिंदू पक्ष को दे दिया और अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए न्यायालय ने यूपी सरकार को आदेश दिया था कि मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिम समुदाय को अलग से पांच एकड़ भूमि दी जाए.

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कोर्ट ने अपने फैसले में ये स्पष्ट रूप से कहा था कि मस्जिद गिराना एक आपराधिक कृत्य था और इस घटना को अंजाम देने वालों को जरूर सजा दी जानी चाहिए. साथ ही न्यायालय ने साल 1991 के उस कानून की वाहवाही की, जिसमें ये कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, वो वैसा ही रहेगा और उसमें कोई धार्मिक परिवर्तन नहीं किया जाएगा. शीर्ष अदालत ने कहा था कि ये कानून 'देश के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों' को बचाने के लिए है, जो कि संविधान का एक आधारभूत अंग है.

इस फैसले के बाद ये उम्मीद जताई जाने लगी कि शायद आगे से इस तरह के मामले सामने न आएं, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच विद्वेष पैदा हो. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस फैसले की घोषणा के महज एक महीने बाद वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद-विश्वनाथ मंदिर विवाद को जीवित कर दिया गया. हिंदू संगठनों ने अयोध्या की तर्ज पर ज्ञानवापी मस्जिद की भूमि को हिंदुओं को देने की मांग की, जिसका मुस्लिम पक्ष पुरजोर विरोध कर रहे हैं.

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फिलहाल ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है जहां 19 मई को अगली सुनवाई होगी.

साल 1991 का मामला

पहली बार ज्ञानावापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर मामला साल 1991 में कोर्ट पहुंचा था, जिसमें ये दावा किया गया था कि जिस स्थान पर मस्जिद है, पहले वो मंदिर था, इसलिए उस जमीन को हिंदू समुदाय को वापस लौटाया जाना चाहिए.

काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2000 साल से भी पहले महाराजा विक्रमादित्य ने उस स्थान पर मंदिर बनवाया था. बाद में 1669 में मुगल शासक औरंगजेब के 'फरमान' पर इस मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बना दी गई.

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उन्होंने ये भी दावा किया है कि जब मंदिर जर्जर स्थिति में पहुंच गया था, तो उसके रेनोवेशन के लिए नारायण भट्ट को राजा टोडरमल से वित्तीय सहायता मिली थी. ये सहायता मुगल शासक अकबर के करीबी राजा मान सिंह के आदेश पर दी गई थी. लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरगंजेब के आदेश पर स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को तोड़ा गया और मंदिर के अवशेषों से मस्जिद बनाई गई.

हिंदू याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 'अनादि-काल' से उस स्थान पर शिवलिंग है. वो अपने आप जमीन से निकला था, इसलिए मंदिर को तोड़ने के बाद भी उसे अपने स्थान से हटाया नहीं जा सका है. इस आधार पर हिंदू याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि उस पूरी जमीन को हिंदू समुदाय को दिया जाए, ताकि वे शिवलिंग पर जल चढ़ाने के अपने धार्मिक अधिकारों को पूरा कर सकें.

वहीं मुस्लिम पक्ष और मस्जिद की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि उस स्थान पर हमेशा से मस्जिद थी, इसलिए इस पर विवाद खड़ा करने और सर्वे कराने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए.

इस मामले को लेकर साल 1998 में मस्जिद की प्रबंध समिति ने कोर्ट में एक आवेदन दायर किया था. इसमें उन्होंने मांग की कि हिंदू पक्ष की याचिका को खारिज किया जाना चाहिए. उन्होंने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का हवाला देते हुए कहा कि इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में है, उसे लेकर कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. इस कानून की धारा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसी धार्मिक स्थल के किसी हिस्से को किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल के रूप में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है.

समिति ने अदालत को ये भी बताया था कि लंबे समय से उस स्थान पर मंदिर और मस्जिद दोनों हैं और दोनों समुदाय के लोग अपने धर्म के अनुसार उपासना करते आ रहे हैं.

ये मामला बाद में हाई कोर्ट में गया और फिर करीब 20 सालों ठंडे बस्ते में पड़ा रहा. लेकिन साल 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद फिर से खड़ा हो गया.

साल 2019 की याचिका

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिसंबर 2019 में ज्ञानवादी-विश्वनाथ मंदिर विवाद को लेकर वाराणसी की लोकल अदालत में एक नई याचिका दायर की गई. बाबरी मस्जिद मामले के एक वकील विजय शंकर रस्तोगी ने 'विश्वनाथ मंदिर के भगवान विश्वेश्वर' के 'मित्र' के रूप में ये मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसद का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग से सर्वे कराया जाए.

वाराणसी की निचली अदालत ने आठ अप्रैल 2021 को इसकी इजाजत भी दे दी. इसके बाद मस्जिद प्रबंधन समिति और यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी. उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि जब 1991 की याचिका लंबित है तो फिर इस तरह का आदेश कैसे दिया जा सकता है.

इसके बाद हाई कोर्ट ने अदालत की कार्यवाही और उसके द्वारा दिए गए एएसआई सर्वे पर अंतरिम रोक लगा दी.

वर्तमान मामला क्या है?

इस मामले में एक नई कड़ी तब जुड़ गई जब एक दक्षिणपंथी समूह विश्व वैदिक संस्थान संघ से जुड़ी पांच महिलाओं ने पिछले साल याचिका दायर कर मांग की कि ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ परिसर में स्थित 'मां श्रृंगार गौरी स्थल' पर उन्हें पूजा करने की इजाजत दी जाए.

उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद के पश्चिम की तरफ वाली दीवार पर देवी श्रृंगार गौरी की तस्वीर है और पूजा करने के लिए वहां तक उन्हें जाने की इजाजत मिलनी चाहिए.

इसी याचिका पर कोर्ट ने मस्जिद परिसर के भीतर सर्वे कराने का आदेश दिया, जिसे लेकर इस समय विवाद चल रहा है. मामले में ताजा अपडेट ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज ना रोकने और कथित शिवलिंग वाली जगह की सुरक्षा करने का आदेश दिया है.

वीडियो: ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे पर वकील वकील विष्णु जैन ने बताया वजूखाने में क्‍या-क्‍या दिखा?

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