मार्केट में बेशकीमती हीरे का कम दाम वाला सब्सटिट्यूट आया है. नाम है लैब ग्रोन डायमंड (Lab Grown Diamond) यानी प्रयोगशाला में पैदा हुए हीरे. ऐसा दिखता है कि कोई फरक ना कर पाए. चाहे जितना रगड़ लो, घिसट लो. चमक नहीं जाएगी. जो डिजाइन मांगोगे वो मिलेगा. अब सरकार भी इस बिजनेस को सपोर्ट कर रही है. बजट वाले भाषण में इसकी तारीफ भी की थी. निर्मला सीतारमण ने कहा कि लैब ग्रोन डायमंड टेक्नोलॉजी, इनोवेशन और रोजगार को बढ़ावा देने वाला सेक्टर है.
लैब में बन रहा है सस्ता हीरा, खदान वाले हीरे से इतनी सस्ती कीमत में मिलेगा!
ये हीरा देखकर कोई कुछ बोल ही नहीं पाएगा!

लैब ग्रोन हीरे (LGD) वो हीरे हैं जो खदान से नहीं निकाले जाते बल्कि लैब में तैयार किए जाते हैं. ये देखने में असली हीरे जैसे ही होते हैं. दोनों का केमिकल कंपोजिशन भी सेम होता है. लैब ग्रोन डायमंड बेचने वाली एक कंपनी एस्ट्रेला के को-फाउंडर समय महेंद्रू बताते हैं,
“ये एक टेस्ट ट्यूब बेबी की तरह है. जैसे उसमें मेल-फीमेल सेल्स मिलाकर बच्चा बनाते हैं. वैसे ही हम नैचुरल डायमंड का सीड लेकर लैब ग्रोन डायमंड बनाते हैं. ये लैब में तैयार होते हैं और इको फ्रेंडली भी है. कोविड के बाद से लोग सस्टेनेबल लाइफस्टाइल की तरफ बढ़ रहे हैं.”
कीमत के बारे में बात करते हुए समय बताते हैं,
लैब ग्रोन डायमंड की क्या जरूरत?“एक कैरेट का नैचुरल हीरा 4 लाख का मिलेगा तो वही लैब ग्रोन वाला 1 लाख के अंदर में मिल जाएगा. सेम कलर, सेम कटिंग, सेम डिजाइन और सर्टिफिकेट के साथ.”
समय महेंद्रू बताते हैं,
लैब में हीरे बनते कैसे हैं?“पिछले कुछ सालों में हीरो की खपत धीरे-धीरे कम होने लगी है. लोग ज्वेलरी में इतने ज्यादा पैसे खर्च नहीं करना चाहते. लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि हीरों की फैक्ट्री बंद हो जाए. फैक्ट्री चलाने का पैसा निकालना है, अपने कर्मचारियों-कारीगरों को पैसा देना है. इसलिए लैब ग्रोन डायमेंड की मैनुफैक्चरिंग में शिफ्ट किया गया.”
पहले ये जान लें कि असली हीरा कार्बन से बना होता है. यानी अगर हीरे को ओवन में 763 डिग्री सेल्सियस पर गरम किया जाए, तो यह जलकर कार्बन डाई-ऑक्साइड बन जाता है. उसमें कोई राख तक नहीं बचती.
उसी तरह कार्बन को जमा करके लैब में हाई प्रेशर और हाई टेंप्रेचर के साथ ट्रीट किया जाए तो तो आर्टिफिशियल हीरा बन सकता है. इसके लिए कार्बन सीड यानि कार्बन से बने एक बीज की जरूरत होती है. उसे एक माइक्रोवेव चैंबर में रखकर डेवलप किया जाता है. तेज तापमान में गरम करके एक चमकने वाली प्लाज़्मा बॉल बनाई जाती है. इस प्रोसेस में ऐसे कण बनते हैं जो कुछ हफ्तों बाद डायमंड में बदल जाते हैं. फिर उसकी कटिंग और पॉलिशिंग होती है.
इसे बनाने के दो तरीके हैं-
-High Pressure High Temperature (HPHT)
कार्बन सीड को शुद्ध ग्रेफाइट कार्बन के साथ लगभग 1,500 डिग्री सेल्सियस तापमान और हाई प्रेशर में मिलाया जाता है.
-Chemical Vapour Deposition (CVD)
कार्बन के सीड को कार्बन युक्त गैस से भरे सीलबंद चैंबर में करीब 800 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है. गैस बीज से चिपक जाती है और धीरे-धीरे हीरा बन जाता है.
इस बारे में जानकारी देते हुए समय बताते हैं,
“लैब ग्रोन डायमंड डेवलप करने के लिए जो मशीनें चाहिए वो सस्ती नहीं होती. मशीन में ही करोड़ों का खर्चा आ जाएगा. ये हर कोई नहीं कर सकता. कैपिटल होना जरूरी है.”
बता दें, गुजरात के सूरत को डायमंड हब माना जाता है. TOI की रिपोर्ट के मुताबिक, अभी सूरत में 25-30 फीसदी डायमंड पॉलिशिंग यूनिट लैब ग्रोन डायमंड की कटिंग-पॉलिशिंग का काम करती है. इनमें से 15 फीसदी यूनिट्स लैब ग्रोन डायमंड तैयार करती है. समय कहते हैं,
असली और लैब वाले में क्या अंतर?“हम चीन से कार्बन सीड खरीदते हैं और लैब में डेवलप करते हैं. चीन अभी डायमंड सीड का सबसे बड़ा सप्लायर है.”
नैचुरल हीरे | लैब ग्रोन हीरे |
बनने में लाखों साल लगते हैं | कुछ हफ्तों में ही बन जाता है |
कीमत काफी ज्यादा | अफोर्डेबल कीमत (75 फीसदी सस्ता) |
खनन से वातावरण को नुकसान | इको फ्रेंडली |
रीसेल वैल्यू ज्यादा होती है | रीसेल वैल्यू कम |
1 फरवरी को सरकार ने बजट पेश करते हुए बताया कि देश में लैब ग्रोन हीरों के प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के लिए किसी एक IIT को पांच साल तक रिसर्च ग्रांट दिया जाएगा. सरकार का प्रस्ताव है कि लैब ग्रोन हीरे बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कार्बन सीड पर बेसिक कस्टम ड्यूटी को खत्म कर देना चाहिए. फिलहाल ये 5 फीसदी है.
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