पिछले दिनों खबर आई कि अमेरिका ने भारत को मिलने वाले 21 मिलियन डॉलर (182 करोड़ रुपये से अधिक) की सहायता राशि रोक दी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने ये घोषणा की थी. अब इन पैसों से जुड़ी कुछ जानकारियां सामने आई हैं. रिपोर्ट है कि ये पैसे भारत के लिए थे ही नहीं. ये सहायता राशि बांग्लादेश के लिए अलॉट हुई थी.
ट्रंप ने 182 करोड़ की जो सहायता राशि रोकी थी वो भारत के लिए थी ही नहीं, इतना कंफ्यूजन हुआ कैसे?
21 Million Dollars AID: दस्तावेजों से पता चला है कि 2008 के बाद से भारत में CEPPS का कोई भी ऐसा प्रोजेक्ट है ही नहीं जिसे USAID के माध्यम से फंड मिलता हो. बल्कि जुलाई 2022 में USIAD के 'आमार वोट आमार' (मेरा वोट मेरा है) के लिए पैसे अलॉट किए गए थे. ये प्रोजेक्ट बांग्लादेश के लिए है.

इस मामले की चर्चा ट्रंप के ही बयान के कारण हो रही है. उन्होंने इसकी घोषणा करते हुए पत्रकारों से कहा,
भारत में वोटर टर्नआउट को बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर की क्या जरूरत? मुझे लगता है कि ये पैसे किसी और को चुनाव जिताने के लिए खर्च होते थे.
ट्रंप के इस बयान को इस सवाल के साथ वायरल किया गया कि क्या पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, भारत के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे. इंडियन एक्सप्रेस ने इन पैसों से जुड़े रिकॉर्ड के हवाले से इसे रिपोर्ट किया है. ये पैसे अमेरिका के USAID योजना से मिलते थे. ट्रंप सरकार ने इस योजना को ही बंद करने का एलान किया है.
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साल 2022 में 21 मिलियन डॉलर की राशि बांग्लादेश के लिए अलॉट हुई थी. इसमें से 13.4 मिलियन डॉलर (116 करोड़ रुपये से अधिक) पहले ही दिए जा चुके हैं. बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से शेख हसीना के हटने से कुछ महीनों पहले ये पैसे दिए गए थे. ये पैसे कंसोर्टियम फॉर इलेक्शन्स एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (CEPPS) के माध्यम से भेजे गए.
CEPPS को USAID से 486 मिलियन डॉलर (4200 करोड़ रुपये से ज्यादा) मिलने थे. एलन मस्क के नेतृत्व वाली DOGE यानी Department of Government Efficiency ने 16 फरवरी को एक लिस्ट जारी की थी. लिस्ट में उन अमेरिकी खर्चों का जिक्र था, जो अमेरिका दूसरे देशों पर करता है. इसमें भारत का भी नाम था. कन्फ्यूजन यहीं से शुरू हुआ.
DOGE के मुताबिक, यूरोपियन देश मोल्दोवा में 22 मिलियन डॉलर मिलते थे. इनका इस्तेमाल समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए किया जाता था. DOGE ने कहा कि भारत में भी मतदाता जागरूकता के लिए 21 मिलियन डॉलर खर्च होते थे.
दस्तावेजों से पता चला है कि 2008 के बाद से भारत में CEPPS का कोई भी ऐसा प्रोजेक्ट है ही नहीं जिसे USAID के माध्यम से फंड मिलता हो. बल्कि जुलाई 2022 में USIAD के आमार वोट आमार (मेरा वोट मेरा है) के लिए पैसे अलॉट किए गए थे. ये प्रोजेक्ट बांग्लादेश के लिए है.
USAID और CEPPS ने अपनी वेबसाइट्स बंद कर दी हैं, DOGE ने X पर पूछे इंडियन एक्सप्रेस के सवालों का जवाब नहीं दिया है. विदेश मंत्रालय और बांग्लादेश उच्चायोग का भी इस मामले पर कोई जवाब नहीं आया है.
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