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बनारस के दो मर्दों में समलैंगिक रिश्ते दिखाने वाली पेंटिंग 22 करोड़ में बिकी

समलैंगिकता को प्रदर्शित करती है भूपेन खाखर की ये पेंटिंग.

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'टू मेन इन बनारस' 37 साल पहले बनी है.
एक पेंटिंग है. नाम है 'टू मेन इन बनारस.' नाम के मुताबिक 2 आदमी हैं. एक के बाल सफेद हैं और दूसरे के काले. दोनों न्यूड हैं. एक दूसरे को गले लगा रहे हैं. दूसरी तरफ एक नदी है. नदी किनारे मंदिर हैं. और शिवलिंग हैं. एक पीपल का पेड़ है. जिसके चबूतरे पर कुछ लोग बैठे हैं. एक शिवलिंग के सामने एक व्यक्ति लेटा हुआ है. बाहर कुछ भिखारी बैठे हैं. टाइटल में बनारस है तो नदी गंगा हो सकती है. कुल मिलाकर मोटा-माटी पेंटिंग में यही चीजें दिख रही हैं. पेंटिंग देखने के लिए यहां क्लिक करें.

लंदन में एक नीलामी घर है. सोथबी. वहीं पर 10 जून को इस पेंटिंग की नीलामी हुई, जिसने रिकॉर्ड बना दिया. ये पेंटिंग पूरे 31 लाख 87, 500 डॉलर में बिकी. अपने रुपए में बताएं तो 22 करोड़ से ऊपर का हिसाब बनता है.
भारतीय कलाकार खाखर पेंटिंग में समलैंगिक संबंधों को दर्शाते थे
खाखर की ये पेंटिंग 1986 में पहली बार बॉम्बे में प्रदर्शित हुई.

क्या खास है इसमें? समलैंगिकता. 'टू मेन इन बनारस' समलैंगिकता को दिखाती है. भूपेन खाखर पेंटिंग्स में अपनी यौन भावनाओं को खुलकर प्रदर्शित करते हैं. लेकिन 1970 से पहले ऐसा नहीं था. 1970 में इंग्लैंड में होमोसेक्सुअलिटी की स्वीकार्यता बढ़ रही थी. वहां के कुछ स्थानीय कलाकारों से बातचीत के बाद खाखर ने होमोसेक्सुअलिटी पर पेंटिंग्स बनानी शुरु की. कुछ समय बाद होमोसेक्सुअलिटी उनके आर्ट का हॉलमार्क बन गया. खाखर पहले ऐसे इंडियन आर्टिस्ट थे, जिन्होंने अपने आर्ट के जरिए अपनी यौन इच्छाओं को स्वतंत्रतापूर्वक प्रदर्शित किया. ये पेंटिंग 1982 में बनी थी. पहली बार 'टू मेन इन बनारस' मुंबई के केमोल्ड गैलरी में प्रदर्शित हुई. अब तक ये लंदन, पेरिस और बर्लिन की प्रदर्शनियों में लग चुकी है.
भूपेन अपनी पेंटिंग्स में सामाजिक बंधनों को तोड़ते नजर आते हैं.
भूपेन अपनी पेंटिंग्स में सामाजिक बंधनों को तोड़ते नजर आते हैं.

भूपेन खाखर कौन हैं? भूपेन 1934 में मुंबई के मिडिल क्लास गुजराती फैमिली में पैदा हुए. एकाउंटेंट की पढ़ाई की. लेकिन बन गए आर्टिस्ट. 1962 में बड़ौदा चले गए. यहीं से उन्होंने अपना रास्ता बदला. अब भूपेन अपना करियर एक कलाकार और लेखक के रूप में बनाना चाहते थे. धीरे धीरे बड़ौदा में खाखर फाइन आर्ट्स का जाना माना नाम बन गए. खाखर और उनके दोस्तों ने 'प्लेस ऑफ पीपल' नाम से एक प्रदर्शनी लगाई. चलती फिरती प्रदर्शनी, जिसने 1981 में बड़ौदा से दिल्ली तक का सफर तय किया. 1976 में खाखर पहली बार देश से बाहर गए. एक कल्चरल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत भारत सरकार ने उन्हें युगोस्लाविया, इटली और इंग्लैंड भेजा. खाखर अपनी पेंटिंग्स में लगातार सामाजिक बंधनों को तोड़ते नजर आते हैं. वे उन मुद्दों को छूने से कभी नहीं हिचके जिन्हें विवादित माना जाता रहा है. सन 2000 में खाखर को रॉयल पैलेस ऑफ एम्सटर्डम में प्रिंस क्लॉज अवॉर्ड मिला. 1986 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. 2003 में खाखर का निधन हो गया.


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