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ये है दुनिया का सबसे बड़ा रुपैया

नोट बहुत बड़ा था लेकिन उसकी कीमत ना बराबर थी. अब ये नोट केवल दीवारों पर सजाने के ही काम आता है.

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फोटो - thelallantop

एक बात बताइए. आपने सबसे बड़ा नोट कितने रुपए का देखा है? हिन्दुस्तानी करेंसी में. 2000 रुपए का?  अच्छा अब ज़रा तुक्का मार के बताइए कि सबसे बड़ा नोट कितने का होता होगा. एक लाख? 1 करोड़? चलिए कोई बात नहीं. हम बताते हैं आपको.

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ज़िम्बाब्वे में 2009 में कुछ महीनों तक एक नोट खूब चला. इस नोट की वैल्यू थी, 100 ट्रिलियन ज़िम्बाब्वे डॉलर का. यानी 100 अरब. मतलब 1 के आगे 14 जीरो. और इतने बड़े से नोट की ढेर सारी गड्डी से लोग खरीद क्या पाते थे? केवल घरेलू सामान. खाने पीने का या और कुछ छुटपुट सी चीज़ें.

2009 में ज़िम्बाब्वे की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गयी थी. इतनी ख़राब कि 1 अमेरिकन डॉलर 2,621,984,228, 675,650,147,435,579,309,984,228 ज़िम्बाब्वे डॉलर (इसको हम शब्दों में नहीं लिख पाए. आप बता पाएं तो भला हो) के बराबर हो गया था. इतना बुरा इन्फ्लेशन (inflation) कई सालों बाद इंटरनेशनल मार्केट ने देखा था. इसलिए सरकार को एक के बाद एक बड़े-बड़े नोट बाज़ार में लाने पड़े.

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पर ये इन्फ्लेशन है क्या बला

अगर आपने इकोनॉमिक्स की पढ़ाई की है तो आप अच्छे से जानते होंगे इन्फ्लेशन या मुद्रास्फीति के बारे में. लेकिन बहुत सारे लोग हमारी तरह होंगे. केवल शब्द सुना होगा. अखबार में पढ़ा भी होगा. लेकिन बहुत क्लियर नहीं होगा. कोई बात नहीं. हम बता देते हैं.

एक छोटा सा मार्केट ले लो. इस मार्केट में किसी एक सामान की मांग बहुत बढ़ गयी. हर कोई वही खरीदना चाहता है. लेकिन वो सामान पूरा बिक गया. दुकानदार जहां से ये सामान मंगवाता है, वहां से भी नहीं आ पा रहा है. लेकिन खरीददार उस सामान के लिए कोई भी दाम देने को तैयार हैं. जैसे ही थोड़ा सा भी आता है, खूब ऊंचे दाम में बिक जाता है. पैसे की कीमत एकदम से गिर गयी. 10 रुपये की चीज़ के लिए लोग लाखों देने को तैयार हैं.

जब मार्केट में चीज़ों की एकदम से कमी हो जाती है लेकिन उनकी मांग बढ़ती ही जाती है. इस हालत को इन्फ्लेशन कहते हैं.

 

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ज़िम्बाब्वे का 100 ट्रिलियन ज़िम्बाब्वे डॉलर:

2009 में ज़िम्बाब्वे में सिर्फ इन्फ्लेशन नहीं था. हाइपर इन्फ्लेशन था. मतलब उनकी इकॉनमी की हालत बहुत ख़राब हो गयी थी.

100 ट्रिलियन ज़िम्बाब्वे डॉलर की कीमत 0.4 अमेरिकन डॉलर के बराबर हो गयी थी. सामानों की कीमतें हर 24 घंटे में दोगुनी हो रही थीं. एक ब्रेड के पैकेट की कीमत उस वक़्त 3 करोड़ 50 लाख ज़िम्बाब्वे डॉलर हो गयी थी.

जहां बैंक ऑफ़ इंग्लैंड को हमेशा ये डर सताता है कि किसी साल इन्फ्लेशन 2 प्रतिशत से ज्यादा न बढ़ जाये. 2009 में ज़िम्बाब्वे का इन्फ्लेशन रेट 79.6 अरब परसेंट पहुंच गया था. मतलब चीज़ों की कीमत 79.6 अरब गुना बढ़ गयीं. वहां की करेंसी की कोई वैल्यू ही नहीं रह गयी थी. सरकार ने आख़िरकार अपनी करेंसी ख़त्म ही कर दी. उसकी जगह अमेरिकन डॉलर, ब्रिटिश पाउंड और बहुत सारी विदेशी करेंसियां अपना लीं.

ज़िम्बाब्वे में आज भी अपनी कोई करेंसी नहीं चलती. लेकिन सरकार मार्केट में एक समानता लाने की कोशिश कर रही है. इसके लिए वो पुराने ज़िम्बाब्वे डॉलर को अमेरिकन डॉलर से बदल सकते हैं. हर 175 क्वाड्रिलियन यानी 175 खरब (175,000,000,000,000,000) ज़िम्बाब्वे डॉलर के बदले सरकार 5 अमेरिकन डॉलर दे रही है.

A man holds up for a picture a one hundred and an a fifty trillion Zimbabwean dollars notes inside a shop in Harare

ज़िम्बाब्वे का ये 2008-2009 का इन्फ्लेशन दुनिया के सबसे बड़े 5 इन्फ्लेशन्स में से एक था. इसके अलावा जिन 4 हाइपर इन्फ्लेशन्स ने दुनिया की इकॉनमी को हिला दिया था, उनके बारे में भी जान लीजिये:

हंगरी 1946:

दुनिया की इकॉनमी में ये सबसे बड़ा इन्फ्लेशन माना जाता है. पहले वर्ल्ड वॉर में हंगरी की हालत बिलकुल बिगड़ गयी थी. इस वॉर में हंगरी, जर्मनी की तरफ से लड़ा था. जर्मनी की मदद करने के लिए उसने बहुत सारा पैसा उधार लिया. लेकिन वॉर के बाद हंगरी ये पैसे कभी लौटा नहीं पाया. नतीजा ये हुआ कि वहां का इन्फ्लेशन रेट 13.6 क्वाड्रिलियन यानी 13.6 ख़रब (13,600,000,000,000,000) परसेंट पहुंच गया. मतलब चीज़ों के दाम अपने पुराने दाम से 13.6 ख़रब गुना बढ़ गए!

यूगोस्लाविया 1994:

1990 की शुरुआत में रिसेशन का दौर था. इस वजह से करीब 1100 कंपनियां बंद हो गयीं. जो कंपनियां बचीं, उन्होंने अपने मजदूरों को पैसे देने बंद ही कर दिए. सरकार के पास भी कोई ढंग की पॉलिसी नही थी. चीज़ों के दाम 5 क्वाड्रिलियन यानी 5 खरब (5,000,000,000,000,000) परसेंट बढ़ गए.  हर 34 घंटे में दाम दोगुने हो रहे थे.

जर्मनी 1923:

जब पहला वर्ल्ड वॉर शुरू हुआ, हंगरी की तरह ही जर्मनी ने भी खूब सारा पैसा उधार ले लिया था. लेकिन जर्मनी हार गया. उधार चुकाने के पैसे नहीं थे. तो खुद ही नोट छापने शुरू कर दिए. नोट तो खूब सारे हो गए लेकिन उससे खरीद पाने के लिए मार्केट में चीज़ें ही नहीं थीं. दाम उन्तीस हज़ार पांच सौ (29,500) गुना बढ़ गए. हर 3.7 दिनों में दाम दोगुने हो गए. करीब डेढ़ साल तक यही हालत रही.

ग्रीस 1944:

दूसरे वर्ल्ड वॉर में ग्रीस ने बैंकों से बहुत सारा पैसा उधर लिया था. वही हाल हुआ जो पहले हंगरी और जर्मनी का हुआ था. वॉर तो ख़त्म हो गया. लेकिन उसके बाद देश में चीज़ों की बहुत कमी हो गयी. दाम एक महीने में ही तेरह हज़ार आठ सौ (13,800) गुना बढ़ गए. और हर 4.3 दिनों में दोगुने होने लगे.


ये स्टोरी दी लल्लनटॉप की साथी मौलश्री ने लिखी है.

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