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इतनी लापरवाही! SC ने मणिपुर पुलिस को गलतियां गिना-गिना कर फटकारा, कहा- अब DGP खुद पेश हों

कोर्ट ने कहा है कि मणिपुर सरकार की रिपोर्ट प्रशासन और कानून व्यवस्था के पूरी तरह विफल होने की ओर संकेत करती है

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा मणिपुर में संवैधानिक ढांचा पूरी तरह फेल. (फोटो क्रेडिट - पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई को मणिपुर सरकार से 6,523 FIR की पूरी जानकारी मांगी थी. जिस पर राज्य सरकार ने रातों-रात तैयार की गई अपनी रिपोर्ट अगले दिन यानी 1 अगस्त को पेश की. इसे देखने के बाद कोर्ट ने कहा है कि मणिपुर सरकार की रिपोर्ट प्रशासन और कानून व्यवस्था के पूरी तरह विफल होने की ओर संकेत करती है.

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोर्ट ने ये भी कहा कि इस रिपोर्ट में राज्य सरकार ने जो जानकारियां दी हैं, वे पूरी नहीं हैं.

चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने मणिपुर सरकार से सवाल करते हुए कहा,

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"इससे पता चलता है कि मई की शुरुआत से जुलाई खत्म होने तक राज्य में संवैधानिक ढांचा पूरी तरह चरमरा गया था. राज्य में कोई कानून नहीं था. कानून-व्यवस्था पूरी तरह खत्म हो गई थी. अगर कानून-व्यवस्था नागरिकों की सुरक्षा नहीं कर सकती, तो हम कहां आ गए हैं?"

कोर्ट ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक (DGP) को व्यक्तिगत तौर पर 7 अगस्त दोपहर 2 बजे कोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया है. साथ ही राज्य सरकार को इस दिन पूरी जानकारी देने के लिए भी कहा है. इसमें मणिपुर सरकार को बताना होगा कि अपराध कब हुआ? उसकी ज़ीरो FIR कब लिखी गई? गवाहों के बयान कब दर्ज़ किए गए? कब गिरफ्तारी हुई? और गिरफ्तार किए गए आरोपियों के नाम भी बताने होंगे.  

'पुलिस की जांच धीमी और सुस्त' - सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि शुरुआती तौर पर देखने में साफ है कि सभी मामलों में पुलिस की जांच बेहद धीमी और सुस्त थी. किसी घटना के होने और उसकी FIR लिखे जाने में काफी समय का अंतर था. गवाहों के बयान लिखने में भी बहुत देर की गई. बहुत कम आरोपियों को ही गिरफ्तार किया गया, वो भी देर से.

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CJI चंद्रचूड़ ने कहा,

"ये पूरी तरह साफ है कि 4 मई से 27 जुलाई तक राज्य पुलिस के चार्ज में नहीं था. क्या स्थिति इतनी खराब थी कि FIR भी न लिखी जा सके? केवल 1 या 2 मामलों को छोड़ दिया जाए तो किसी में कोई गिरफ्तारी नहीं हुई. पुलिस की जांच बेहद सुस्त रही. कई मामलों में घटना के 2 महीने बाद FIR दर्ज़ की गई. बयान तक रिकॉर्ड नहीं हुए."

पिछले 3 महीनों में हुई हिंसा की FIR

सुप्रीम कोर्ट ने जिन FIR पर मणिपुर सरकार से रिपोर्ट मांगी थी, वे पिछले 3 महीनों में राज्य में हुई जातीय हिंसा की हैं. इसमें हत्या, यौन उत्पीड़न, आगजनी, महिलाओं के खिलाफ अपराध, गांव, घरों और पूजा स्थलों को जलाने के मामले शामिल हैं.

कोर्ट ने एक मामले में पाया कि 4 मई को एक मां को कार से बाहर निकाला गया. उसे और उसके बेटे को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला. इसकी FIR 23 जुलाई को लिखी गई.

कोर्ट ने एक दूसरे मामले का ज़िक्र किया जिसमें एक आदमी की हत्या कर दी गई. फिर उसके घर में आग लगा दी. इसकी FIR भी दो महीने बाद लिखी गई. एक दूसरे मामले में सामने आया कि जांच से पहले ही CCTV फुटेज ऑटो डिलीट हो गई.

मणिपुर सरकार की रिपोर्ट

मणिपुर सरकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राज्य में हुई हिंसा में अब तक 150 मौतें हुई हैं. इनमें से 59 मौतें 3 से 5 मई के बीच हुईं. 27 से 29 मई के बीच 28 लोगों ने अपनी जान गंवाई. वहीं 9 जून को हुई हिंसा में 13 लोगों की जान गई. इसमें बताया गया कि 502 लोग इन घटनाओं में घायल हुए हैं. 5,107 आगजनी की घटनाएं हुईं.

सरकार ने अपनी रिपोर्ट में आगे बताया कि इन सभी मामलों में 252 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. वहीं 12,740 लोग प्रिवेंटिव मेज़र (हिंसा को रोकने के लिए उठाया गया कदम) के तहत हिरासत में रखे गए हैं.

वीडियो: ग्राउंड रिपोर्ट: दिल्ली से आई कुकी महिला ने मणिपुर हिंसा के सवाल पर गुस्से में क्या कह दिया?

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