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मेडिसिन का नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिक से नहीं हो पा रहा संपर्क, वजह भी पता चली

Fred Ramsdell उन तीन वैज्ञानिकों में से एक हैं, जिन्हें 2025 Nobel Prize in Medicine मिला. लेकिन Nobel Committee उनसे संपर्क नहीं कर पाई है.

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फ्रेड रामस्डेल को साल, 2025 में फिजियोलॉजी या मेडिसिन के क्षेत्र में दो अन्य वैज्ञानिकों के साथ नोबेल पुरस्कार दिया गया है. (फोटो- AP)

फिजियोलॉजी या मेडिसिन के क्षेत्र में दो अन्य वैज्ञानिकों के साथ जिन फ्रेड रैमस्डेल को साल, 2025 नोबेल पुरस्कार देने का ऐलान किया गया, उनसे नोबेल देने वाली समिति अब तक संपर्क ही नहीं कर पाई है. वजह, खुद फ्रेड रैमस्डेल के दोस्त और उनके लैब में काम करने वाले जेफरी ब्लूस्टोन ने बताई है.

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फ्रेड रैमस्डेल का लैब ‘सोनोमा बायोथेरेप्यूटिक्स’ अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में मौजूद है. उन्हें मैरी ई. ब्रन्को और शिमोन साकागुची के साथ फिजियोलॉजी या मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा सोमवार, 6 अक्टूबर को की गई. अब इसे लेकर रैम्सडेल के दोस्त और लैब के को-फाउंडर जेफरी ब्लूस्टोन ने न्यूज एजेंसी AFP से बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि रिसर्चर (फ्रेड रैमस्डेल) इस पुरस्कार को पाने के हकदार हैं. लेकिन वो भी उनसे संपर्क नहीं कर सके. जेफरी ब्लूस्टोन ने कहा,

मैं खुद उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहा हूं. मुझे लगता है कि वो इडाहो के किसी पिछड़े इलाके में घूम रहे होंगे.

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नोबेल समिति रैमस्डेल के साथ ही ये पुरस्कार जीतने वाली मैरी ब्रन्को से भी संपर्क नहीं कर पाई थी. दिलचस्प बात ये है कि दोनों शोधकर्ता अमेरिका के पश्चिमी तट पर रहते हैं. ये इलाका, स्टॉकहोम में मौजूद नोबेल समिति के हेडक्वार्टर से लगभग नौ घंटे की दूरी पर है. हालांकि, समिति बाद में ब्रन्को से संपर्क करने में सफल रही.

इससे पहले, नोबेल समिति के महासचिव थॉमस पर्लमैन ने विजेताओं की घोषणा की थी. कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की नोबेल असेंबली में उन्होंने बताया कि मैरी ई. ब्रन्को, फ्रेड रैम्सडेल और शिमोन साकागुची को 'पेरिफेरल इम्यून टॉलरेंस' से जुड़ी उनकी खोज के लिए नोबेल से नवाजा गया है. इन तीनों वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में बताया कि हमारा प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) कैसे खुद को कंट्रोल करता है.

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फ्रेड रैमस्डेल, शिमोन साकागुची और मैरी ई ब्रन्को (बाएं से दाएं). (फोटो- AP)

हमारा इम्यून सिस्टम हर दिन हजारों वायरस, बैक्टीरिया और हानिकारक जीवों से हमारी रक्षा करता है. ये विषाणु शरीर में घुसकर कई बार ह्यूमन सेल्स जैसा आकार विकसित कर लेते हैं. मकसद होता है इम्यून सिस्टम को गच्चा देना. उसे भटकाना. लेकिन इसके बावजूद हमारा इम्यून सिस्टम ज्यादातर मौकों पर इन हानिकारक वायरसों की न सिर्फ पहचान कर पाता है, बल्कि उन्हें खत्म भी कर देता है.

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इन तीनों वैज्ञानिकों का रिसर्च ये साबित करता है कि इस सिस्टम में यह पहचानने की काबिलियत है कि शरीर में कौन सा सेल अपना है और कौन सा बाहरी दुश्मन. और अगर यह सिस्टम काम करना बंद कर दे, तो इंसान का जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा.

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