धोनी जब बैटिंग करने आए तो इंडिया को 23 ओवरों में 183 रन चाहिए थे. कोहली 45 रन बनाकर आउट होकर जा चुके थे. इंडिया का स्कोर 140/4 था. जब अपनी सफेद दाढ़ी वाले अपने नए लुक में धोनी बल्ला लेकर क्रीज पर पहुंचे थे तो क्राउड को काफी उम्मीदें थीं. मगर धोनी पहले ही हार मान चुके थे. महेंद्र सिंह धोनी की तरफ से डिफेंसिव एटीट्यूड देखकर क्राउड हैरान हुआ. वो सिंगल-डबल लेकर खेलते रहे. लगभग 10 ओवरों तक चली उनकी पारी में उन्होंने सिर्फ 2 चौके मारे. 47वें ओवर की पहली गेंद में जब धोनी ने लंबा शॉट खेलने की कोशिश की, वो बाउंड्री पर लपके गए.

धोनी की तरफ से टारगेट के करीब पहुंचने की कोशिश न होता देख, क्राउड सकपका गया.
जब वापस जा रहे थे तो क्राउड ने तालियों की बजाए हूटिंग की. हैरानी की बात ये कि इंडिया की पारी में एक भी छक्का नहीं पड़ा. 2011 वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के बाद ये पहला मौका है जब इंडिया की किसी वनडे पारी मे एक भी छक्का नहीं पड़ा हो. मैच के बाद प्रजेंटेशन सेरेमनी में कोहली ने धोनी का बचाव करते हुए कहा कि धोनी के दिमाग में ये चल रहा था कि इंडिया बड़े अंतर से न हारे. इसी के चलते वो आखिर तक खड़े रहना चाहते थे.
खैर जो भी हो, धोनी की ये पारी क्रिकेट देखने वालों के लिए अखरने वाली थी. उनसे बड़े शॉट्स खेलने की उम्मीद स्वभाविक है. धोनी की इसी पहचान और खेलने के अंदाज के चलते उन्होंने तमाम करियर 5 और 6 नंबर पर बैटिंग करने आने के बावजूद वनडे क्रिकेट में 10,000 रन पूरे किए. ऐसा करने वाले वो चौथे भारतीय औऱ वर्ल्ड क्रिकेट में दूसरे विकेटकीपर बन गए हैं. इंडिया के लिए सचिन, गांगुली और द्रविड़ के नाम 10,000 से ज्यादा रन हैं.
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