सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के बढ़ते मामलों के लिए लव मैरिज को काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया है. बुधवार, 17 मई को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये बात कही. एक दंपती के वैवाहिक विवाद से जुड़े केस को सुनते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि प्रेम विवाहों में तलाक के मामले ज्यादा हो रहे हैं. बार एंड बेंच में छपी रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस गवई ने कहा,
'लव मैरिज से हो रहे ज्यादातर तलाक', सुप्रीम कोर्ट की बात पर जनता बंट गई
लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के बयान पर सवाल उठाए हैं?
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"ज्यादातर तलाक लव मैरिज से ही हो रहे हैं."
रिपोर्ट के मुताबिक सुनवाई में शामिल एक वकील ने बताया कि ये लव मैरिज थी, तभी जस्टिस गवई ने ये बयान दिया. कोर्ट ने इसके बाद आपसी मध्यस्थता से इस मसले को हल करने की बात कही, लेकिन पति ने इस पर आपत्ति जताई. हालांकि, आखिर में मध्यस्थता पर ही बात बनी.
जनता ने क्या कहा?
शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर जनता बंटी हुई है. सुनील नाम के एक यूज़र ने लिखा,
“ये बात किस डेटा के बेस पर कही गई है? अभी भी ज्यादातर विवाह अरेंज्ड या सेमी-अरेंज्ड होते हैं. तो क्या सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि और किसी का तलाक ही नहीं हो रहा है?”
एक और यूज़र स्मरजीत ने भी कुछ ऐसा ही सवाल पूछा,
"क्या ये किसी प्रामाणिक डेटा पर बेस्ट है या ऐंवई?"
अदित्य नाम के एक यूज़र ने लिखा,
"क्या ये सुप्रीम कोर्ट का अरेंज्ड मैरिज की तरफ ढकेलने का तरीका है? शायद न्यायाधीशों को इनमें हो रहे डिवोर्स और विश्वासघात के बारे में पता नहीं है. कोई कितना भी पढ़ा लिखा क्यों ना हो, कुछ-ना-कुछ सबसे रह ही जाता है."
एक और यूज़र ने लिखा,
“ये नैचुरल है, क्योंकि दोनों लोग आत्मनिर्भर हैं और अपनी जिंदगी का फैसला लेना जानते हैं.”
वहीं दूसरी तरफ से भी प्रतिक्रियाए आईं. पीयूष चौबे नाम के यूज़र ने लिखा -
मैं इस बात को सही मानता हूं. ख़ासकर की वो लव मैरेज, जो मां-बाप के खिलाफ जाकर की गई हो…
रंजना नाम के यूज़र ने लिखा -
क्योंकि परिवार ने इनकी ज़िम्मेदारी नहीं ली थी और दोनों लोग बहुत कम उम्र और इम्मैच्योर होते हैं, तो वो ज़िम्मा छोड़ देते हैं.
हाल के समय में शादी और तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ये दूसरी बार कोई अहम टिप्पणी की है. इससे पहले इसी महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने एक फैसले में कहा था कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते में सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो संविधान के आर्टिकल 142 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल कर कोर्ट तलाक को मंजूरी दे सकता है. कोर्ट का ये फैसला बेहद अहम माना गया, क्योंकि अब तक ये तलाक के लिए कानूनी तौर पर मजबूत आधार नहीं था.
जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, एएस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी की बेंच ने सुनवाई में कहा कि अगर संबंधों को जोड़ना संभव ही न हो, तो कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकारों के जरिए मामले में दखल दे सकता है. साथ ही इस तरह के मामले में तलाक के लिए 6 महीने इंतजार की कानूनी बाध्यता भी जरूरी नहीं है.
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