'पूरे भारत के लोग परेशान हैं इनसे, आप पूरे 365 दिन भी इन लोगों के खिलाफ खबर चलाओगे तो भी इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा. स्थितियां तभी ही सुधरेंगी जब लोग खुद जागरुक होंगे. हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं.'ये बोल हैं पुणे साइबर क्राइम के इंस्पेक्टर जयराम पाइगुड़े के. अब आप सोचेंगे कि ऐसी बातें वो क्यों कह रहे हैं? आखिर ऐसी क्या वजह है जिससे पूरा देश परेशान है, और जिसका हल चाह कर भी पुलिस वाले नहीं ढूंढ पा रहे हैं.
इसका जवाब है साइबर क्राइम. डिजिटल युग में साइबर क्राइम इस हद तक बढ़ चुका है, कि आपके आसपास भी इसका कोई न कोई शिकार मिल ही जाएगा. इस खबर पर आगे बढ़ने से पहले हम ये जरूर कहेंगे कि अगर आप किसी वादे के आधार पर किसी अनजान शख्स को ऑनलाइन पैसे भेजते हैं, तो आप बेवकूफी कर रहे हैं. और अपने साथ ही गलत कर रहे हैं. क्योंकि पैसों के मामले में किसी भी व्यक्ति को बेहद सावधान रहने की ज़रूरत है. इस बारे में बैंक वालों के मैसेज भी अक्सर ही आते हैं कि अपना बैंक अकाउंट डिटेल, एटीएम, ओटीपी, कार्ड नंबर किसी से शेयर न करें. इसके बाद भी किसी अनजान को पैसे भेजना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है.
अब आते हैं खबर पर.
विवेक धवड़. लल्लनटॉप के पाठक हैं. पुणे में रहते हैं. उन्होंने अपने दोस्त अजय कश्यप की परेशानी हमें ईमेल के ज़रिए बताई. उन्होंने बताया कि कश्यप के साथ 23 हजार का फ्रॉड हुआ है, और पुलिस चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रही है. हमने ईमेल में दिए गए अजय के नंबर पर फोन किया. उन्होंने जो जानकारी दी वो कुछ इस तरह से है.
हमें एक एक्टिवा लेना था. हम पास के मार्केट में गए तो रेट हमें समझ में नहीं आया. फिर मैंने OLX पर एक विज्ञापन देखा. वहां एक एक्टिवा दिखी जो काफी अच्छी स्थिति में थी और बेचने वाले ने रेट काफी कम लगाए थे. मैंने तुरंत फोन करके एक्टिवा खरीदने की इच्छा जताई. सामने वाले ने कहा 'एक्टिव नासिक में है और ये हम आपको कुरियर के ज़रिए भेजेंगे, अगर आपको लेना है तो कुछ पैसे सिक्योरिटी के तौर पर पर देना होगा, हम ये एक्टिवा आपके नाम पर बुक कर देंगे.' मैंने भी सोचा कि सिर्फ 500 रुपये के चक्कर में अच्छी एक्टिवा हाथ से नहीं जाने देना चाहिए. मैंने तुरंत 500 रुपये गूगल पे के ज़रिए ट्रांसफर कर दिए.

OLX पर 18 हजार की स्कूटी के चक्कर में युवक को 23 हजार रुपये की चपत लगी.
अब यहां पर जैसे ही सामने वाले ने पैसे की बात की वैसे ही अजय को सतर्क हो जाना चाहिए था लेकिन वो सतर्क नहीं हुए. मनीष ने इस सवाल पर जवाब दिया-
जहां इंसान 17 हजार की एक्टिवा ले रहा हो, वहां उसे सिक्योरिटी के नाम पर 500 रुपये देने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. सो मैंने दे दिए. लेकिन मेरे साथ आगे जो हुआ, वहां सतर्क हो जाना चाहिए था, जहां हमसे सबसे बड़ी गलती हुई.हमने फिर पूछा कि शुरुआत जब 500 से हुई फिर ये मामला 23 हजार तक कैसे पहुंच गया. फिर अजय कश्यप ने बताया-
अगले दिन हमाने पास अजय यादव नाम के युवक का फोन आया, उन्होंने बोला 'एक्टिवा आपकी एयरपोर्ट पर क्लियरेंस में फंसी है. इसके लिए आपको 1 हज़ार रुपये ट्रांसफर करने होंगे'. हमने वो ट्रांसफर कर दिए. पुणे एयरपोर्ट पहुंचने के बाद अजय ने फिर से फोन किया बोला 'गेट नंबर 2 के पास दूसरे क्लियरेंस के लिए आपको 2 हजार और देने होंगे'. हमने फिर से वो भी ट्रांसफर कर दिए. अब इसके बाद 6 हज़ार, 3 हजार, फिर 6 हजार और फिर 5 हजार. कुल मिलाकर 2 घंटे के भीतर सामने वाले ने हमसे 23 हज़ार रुपये मंगवा लिए. लेकिन एक्टिवा का कोई अता-पता नहीं चला.हमने पूछा कि 17 हज़ार की एक्टिवा के लिए उसने आपसे 23 हजार रुपये ले लिए आपको फ्रॉड के बारे में समझ में नहीं आया. मनीष ने बोला-
सामने वाले ने विश्वास जीतने के लिए अपना आधार कार्ड, पैन कार्ड, जॉब कार्ड सब भेज दिया. जिससे हमें विश्वास हो गया था कि वो आर्मी से है. लेकिन काफी घंटे बाद जब एक्टिवा नहीं आई, और उसका नंबर बंद हो गया तब हमें अपनी गलती का अहसास हुआ. जब हम पुलिस के पास पहुंचे, तब पुलिस की बातों ने हमें और ज्यादा चौंका दिया. क्योंकि पुलिस के पास पहले से एक व्यक्ति बैठे थे, जिनसे सवा लाख का फ्रॉड हुआ था. और वो फ्रॉड उसी व्यक्ति ने किया था जिसने अजय कश्यप को ठगा था.

ठगों ने खुद को सीआरपीएफ का कॉन्स्टेबल बताया और प्रूफ के लिए पहचान पत्र भी भेज दिया, हालांकि सब कुछ ही फर्जी था.
हमने केस के बारे में विस्तार से जानने के लिए गुरुनाथ को फोन किया. गुरुनाथ ने हूबहू वही बातें बताई जैसा कि अजय कश्यप ने बताया. गुरुनाथ से भी एयरपोर्ट क्लियरेंस और फिर तमाम बहानों के नाम पर सवा लाख रुपये ऐंठ लिए गए. लेकिन फर्क बस इस बात का था कि गुरुनाथ को वैगन गाड़ी बेची जा रही थी और अजय कश्यप को एक्टिवा.

ठगों ने गुरुनाथ को सवा लाख रुपये की चपत लगाई. (इनसेट में ठगों का एक्टिव नंबर)
इसके बाद हमने पुणे पुलिस के साइबर क्राइम के इंस्पेक्टर जयराम पाइगुड़े से बात की. पूछा कि आप इस मामले में कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं, जबकि सामने वाले की आईडी कार्ड है, वोटर आईडी कार्ड है, पैन कार्ड है, गाड़ी का नंबर है, फिर भी मामले में न्याय क्यों नहीं हो रहा है. फिर जयराम कहा-
जनाब पैन कार्ड फर्जी है, आधार कार्ड फर्जी है, गाड़ी का मालिक कोई और है. और एक्टिवा का मालिक कोई और. सब कुछ फर्जी हैं. ये राजस्थान के भरतपुर के 30-35 लोगों का ग्रुप है जो काफी टाइम से लोगों को बेवकूफ बनाकर पैसे वसूल रहे हैं. बात सिर्फ ये दो केस की नहीं है. देश के लगभग हर राज्य में इन्होंने लोगों को बेवकूफ बनाया है. और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं.हमने पूछा कि क्यों नहीं कर पा रहे हैं. आरोपियों को पकड़ा क्यों नहीं जा रहा है. फिर जयराम ने कहा-
एक बार हम भरतपुर गए थे. आरोपियों को ट्रेस करने के लिए. लेकिन वहां न साइबर क्राइम की टीम है और न ही वहां की पुलिस हमें सपोर्ट करती है. ये फ्रॉड भरतपुर के काफी अंदर वाले इलाके में रहते हैं जहां पहुंचने मात्र से जान को खतरा है. एक बार साइबर क्राइम की टीम गई भी थी. 5 लोग वहां पहुंचे लेकिन किसी को पकड़ नहीं पाई.हमने सवाल पूछा भी कि क्या पुलिसिया सिस्टम इन फ्रॉड के आगे नत-मस्तक है, सिस्टम इनका क्या कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. तब जयराम ने कहा-
फिलहाल तो हम सचमें कुछ नहीं कर पा रहे, इनसे बचने का एक ही उपाय है अवेयरनेस. आप अगर लगातार 365 दिन भी इनके खिलाफ खबर बनाओगे तो भी इनका कुछ नहीं होगा, जब तक कि लोग खुद जागरुक नहीं होंगे, बेवकूफ बनते रहेंगे.हमें जयराम ने दिल्ली पुलिस के साइबर टीम में इंस्पेक्टर राजपाल डबास से भी बात करने की सलाह दी. बोला कि आपको समझ में आएगा कि हम खुद इन फ्रॉड से लड़ने की कितनी कोशिश कर रहे हैं लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं. जिसके बाद हमने राजपाल से बात की, राजपाल डबास ने कहा-
भरतपुर इन फ्रॉड्स का गढ़ है. ये इतने शातिर हैं कि किसी के पकड़ में नहीं आते. पैसे ये 'गूगल पे' के ज़रिए मंगाते हैं जिससे इनका पूरा पैसा सीधा अकाउंट में ट्रांसफर हो जाता है. हमारे पास अकाउंट की जानकारी नहीं मिल पाती जिससे ये पकड़ में नहीं आते. एक नंबर बंद कराओ तो दूसरा नंबर चालू कर देते हैं. एक बार हमारे लोग गए भी थे पकड़ने, जेब से 10 हजार रुपये भी खर्च किए. लेकिन सिस्टम की कमज़ोरी की वजह से ये पकड़ नहीं पाए.हमने सवाल किया कि दिक्कत कहां है. कमी किस चीज़ की है. राजपाल डबास ने जवाब दिया-
इच्छा शक्ति, विल पावर, नॉलेज, इंटेंशन इन सब की भारी कमी है. इच्छा शक्ति सभी को मिलकर दिखानी होगी तभी जाकर कुछ होगा. लेकिन तब तक के लिए लोग अवेयर होंगे तभी ऐसे फ्रॉड्स से बच सकेंगे. हम निजी तौर पर कोशिश करते रहते हैं, लेकिन अवेयरनेस की कमी की वजह से कहीं न कहीं लोग ठगे ही जा रहे हैं.अब आपको जानकर ये अचरज होगा कि सामने वाले का नंबर अभी भी चालू है. हमने भी जब फोन करके गाड़ी के बारे में जानकारी मांगी तो सामने वाले ने उसी कॉन्फिडेंस के साथ गाड़ी की तस्वीरें और RC की फोटो भेज दी, जैसा की उसने दूसरे लोगों के साथ किया. तस्वीरें आप नीचे देख सकते हैं.

ठग ने गाड़ी बेचने के लिए हमें भी उसी तरह से गुमराह करने के लिए तस्वीरें भेजी जैसे दूसरों को भेजी. व्हाट्स एप चैट का स्क्रीनशॉट.
कुल मिलाकर बात इतनी है कि ऐसे फ्रॉड्स से आपको खुद बचना होगा. अगर कोई आपसे किसी भी चीज़ के एवज में पैसे मांगे तो उसे 5 बार जांचे, 10 बार जांचें. ऐसे लोगों की नज़र आपकी गाढ़ी कमाई पर होती है जिसमें ज़रा सी चूक आपका तगड़ा नुकसान करवा सकती है.
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