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मिलिए पाकिस्तान के रामाधीर और सरदार खान से

बाप की हत्या का बदला लेने के लिए मुंडी काटकर फुटबॉल की तरह खेला गैंगस्टर उजैर. ये कहानी है रहमान डकैत और पप्पू की दुश्मनी की. दोनों जबर गुंडे.

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एक था वासेपुर. पहले बंगाल, फिर बिहार और अब झारखंड में. जहां कोयला खान से एक दुश्मनी पैदा हुई थी. रामाधीर सिंह और शाहिद खान. शाहिद मरा तो सरदार आया. वो भी बदला पूरा न ले पाया. और आखिर में फैजल ने मार गोली सब छितरा दिया. तीन पीढ़ियों तक फैली दुश्मनी. आधी हकीकत, आधा फसान. जिसे अनुराग कश्यप गैंग्स ऑफ वासेपुर के नाम से लाए. अब हम आपको सीरियल वालों की तरह रिकैप काहे झिलाए रहे हैं. काहे कि इंट्रो में ऐसा करना होता है. एक नई चीज को हौले से चिपकाना होता है. तो आगे कहानी ये है कि पड़ोस में भी एक वासेपुर है. आइए अब आपको वहीं ले चलते हैं. दो जानी दुश्मनों की बिलकुल नई नवेली कहानी सुनाने. ऐसी कि जैसे चापड़ से बस अभी अभी जान गई हो और मांस में जिंदा के ठीक बाद की हरारत बची हो.
ल्यारी, कराची, पाकिस्तान. कभी गैंगवॉर के लिए मशहूर था. था, क्योंकि अब यहां भी पैसा, पावर और महीन पॉलिटिक्स पहुंच गई है. लेकिन था और है के बीच दो नाम हैं. जो डकैत थे. रहमान और अरशद पप्पू. कभी जिगरी यार रहे. मगर दोस्ती जब दुश्मनी में बदली तो आलम ये हो गया कि दूसरे के तरफ जाती हवा को भी जहर दे दें.
पहले रहमान डकैत से मिलो सरदार अब्दुल रहमान बलोच उर्फ रहमान डकैत. वल्द नहीं पता. पता ये है कि ड्रग्स की सप्लाई करते थे अब्बू जान. पैदाइश1980 में कराची में हुई. सील टूटी 13 की उमर में. एक आदमी को भरे बाजार से सटी गली में चाकूओं से गोद गाद मुक्त कर दिया. अगली मौत दी अपनी मां को. नाम खदीजा बीबी. रहमान की नजर में गुनाह. विरोधी गैंग वालों से रिश्ता रखना. जाहिर है कि इस हकीकत या कि फसाने के और भी झोल रहे होंगे. मगर जो किस्सा ठहरा रहा वो ये कि रहमान के खुंरेजी तेवरों के तमाम चौराहों और मुहल्लों में बंद खुले चर्चे होने लगे. उसने ड्रग्स से शुरुआत की. फिर इसके मुंहबोले भाई रंडीबाजी पर भी कब्जा जमा लिया. इस काम के लिए पूरे कराची शहर में उसके कुल 33 ठिकाने थे पुलिस फाइल्स के मुताबिक. मगर ये जो पइसा कमाता था रहमान. इसे उड़ाता कहां था. एक बड़ा हिस्सा उसके हिसाब से जकात में जाता था. यानी गरीबों की मदद होती थी. इससे रहमान की रॉबिन हुड इमेज बन गई. तस्वीर का दूसरा पहलू भी था. जैसे अरुण गवली के लिए मुंबई की दगड़ी चाल के गरीब एक ह्यूमन शील्ड का काम करते रहे हैं, वैसे ही ये गरीब रहमान की शील्ड थे.
उसने स्लम में स्कूल खोले, अस्पताल खोले और अपनी मसीहाई इमेज बना ली. मगर जब ये सब हो रहा था, तब वहां की पॉलिटिक्स क्या दतौन कर रही थी. नहीं, बल्कि रहमान के हाथों ईदी ले रही थी. वोटों की. रहमान सत्तारूढ़ पाकिस्तान पीपल्स पार्टी का डॉन था. आसपास के ग्रामीण इलाकों में उसका रुतबा था. और सर पर था बेनजीर भुट्टो के खास जुल्फिकार मिर्जा का हाथ.
मगर कद इतना बड़ा हो गया कुछ साल में, कि हाथ को सर से सरकना पड़ गया. रहमान ने अपनी पॉलिटिकल पार्टी बना ली. पीपल्स अमन कमेटी के नाम से. सुरक्षा एजेंसियों को लगा कि उसकी सप्लाई चेन बलूचिस्तान तक पहुंच गई. बलूचिस्तान यानी पाकिस्तान का कश्मीर. जहां लगातार आजादी के नारे और उसके लिए संघर्ष चलता रहता है. 2007-08 में सिंध की आबोहवा हमेशा के लिए बदलने लगी. निर्वासन से लौटीं बेनजीर भुट्टो की हत्या हो चुकी थी. उनकी सहानुभूति की सबसे तगड़ी लहर मादरे वतन यानी कराची और आसपास ही थी. उस पर सवार हो पीपीपी सत्ता में लौटी. मगर अब सरताज बदल चुके थे. बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी के इशारों से मोहरे गिरते सरकते थे अब. और उन्होंने रहमान को गिराने का फैसला किया. फाइल पर दस्तखत किए सिंध के गृह मंत्री जुल्फिकार मिर्जा ने. ये नाम सुना लग रहा है न. अभी दो पैरा ऊपर ही बताया. यही मिर्जा था, जिसने रहमान को एक अरसे तक पाला था. अगस्त 2009 में उसे ठोंक दिया गया. बाकी जो एनकाउंटर के आसपास कहानी गढ़नी होती है, वो गढ़ी ही गई. मिर्जा बोले, और जो बोले, उसे पढ़ते वक्त उनकी मासूमियत पर भी निसार होइएगा.
'जब मैंने पाया कि वो किलर है. तो फौरन हुकुम दिया. कि उसे पकड़ लो. पुलिस वही करने गई थी. पर गोली चली. पुलिस ने उसे मार दिया. पुलिस मेरे अंडर है. मैं जिम्मेदार हूं.
https://www.youtube.com/watch?v=PZAd0FzmMPk पर ये कहानी तो रहमान और अरशद पप्पू की दुश्मनी की थी. तो पप्पू कहां था. आइए, उसकी एंट्री करवाते हैं. तो मामला ये है कि रहमान जब मरा तो बचा खुचा अस्तबल संभाला चचाजाद भाई उजैर बलोच ने. उजैर बलोच, वही गैंगस्टर जिसे जनवरी में पाक रेंजर्स ने पकड़ लिया था. उजैर बलोच अब भी पुलिस की पकड़ में है. अब कहानी उजैर के अब्बा फैज मोहम्मद और हाजी लालू की दोस्ती और दुश्मनी की. दोनों एक नंबर के पक्के यार. फिर धंधे की चढ़ती सनक के साथ इरादे बदल गए. दोस्त दुश्मन हो गए. फैज मोहम्मद के पापा हाजी लालू ने मार दिया. हाजी लालू भी बड़ा वाला गैंगस्टर. बेटा अरशद पप्पू बाप से भी आगे. गैंग का नाम भी इसी नाम पे. अरशद पप्पू गैंग. बाप की मौत का बदला उजैर लेना चाहता था. रहमान डकैत की गैंग में मिल गया. और फिर 2013 में अरशद पप्पू को उजैर ने किडनैप कर लिया. बॉडी की बोटी-बोटी कर डाली थी. अरशद पप्पू धड़ से अलग की मुंडी से फुटबॉल खेला. अरशद पप्पू को मारने का इंटरनेट पर मौजूद वीडियो बेहद विभत्स है. ल्यारी में अरशद पप्पू गैंग को खत्म किया जा चुका था. उजैर बलोच रहमान डकैत की गैंग संभाल रहा था. वो गुंडा ही क्या, जिसके नेता बनने की ख्वाहिश न हो. उजैर बलोच भी खुद को नेता मानने लगा. कमाई आई रहमान डकैत की बसाई पीपल्स अमन कमेटी. नारे लगने लगे.

'एक ल्यारी सब पे भारी, उजैर भाई, उजैर भाई'

नेता नगरी में उजैर बलोच भले ही घुस गया था. लेकिन गैंग भी तो किसी को संभालनी था. काम आता है बाबा लाडला. लेकिन 2014 में बाबा लाडला के अच्छे दिन चले गए. ईरानी फौजियों ने बॉर्डर पार करते वक्त गोली मार दी. उजैर बलोच पर भी 20 से ज्यादा केस दर्ज हैं. हत्या से लेकर किडनैपिंग तक. पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ कैड़े कदम लेने लगे. कराची में ऑपरेशन चालू कर दिया. पाक रेंजर्स हाथों में बंदूक लेकर क्रिमिन्लस को खोजने लगे. हजार से ज्यादा लोग पकड़े. फाइनली पकड़ में आया उजैर बलोच. रहमान डकैत और अरशद पप्पू गैंग कमजोर पड़ गईं. अब ल्यारी की आबोहवा में गैंग के चर्चे कम सुनाई देते हैं.