आज जो हुआ, उसके बाद शायद ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि प्यार की तरह नफरत की भी कोई सीमा नहीं. ऐसा आखिर हुआ क्या? दिलीप साहब के निधन के बाद सुरेश चव्हाणके ने ट्वीट कर लिखा,
जिस दिलीप कुमार नाम से प्रसिद्धि, पैसा और प्रतिष्ठा पाई, उस नाम के अनुसार जलाया जाएगा या यूसुफ खान नाम से दफनाया जाएगा?
यहां से लव जिहाद और बर्बादी की शुरुआत हुई थी.

चव्हाणके के पोस्ट पर आया कमेंट.
एक और यूज़र ने लिखा,
बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है हमें सुनकर कोई दुख नहीं हुआ.

चव्हाणके के पोस्ट पर आया कमेंट.
एक और नफरती चिंटू ने लिखा,
चलो कम से कम एक तो आतंकियों का साथ देने वाला कम हुआ.

क्रेडिट: नफरती चिंटू
दूसरे यूज़र ने लिखा,
वैसे वो कुछ अधिक दिन रह गया.

नफरती चिंटू रिटर्न्स.
चव्हाणके ने पहले ट्वीट कर लिखा था,
दिलीप कुमार के नाम से प्रसिद्ध अभिनेता मोहम्मद यूसुफ खान नहीं रहे.
इसपर एक यूज़र ने जहर उगलते हुए लिखा,
मुल्ला मरा है, कोई जवान नहीं.

क्रेडिट: नफरती चिंटू पार्ट 2
ऐसे कमेंट्स देखकर लगता है कि नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका है. लेकिन नफरत चाहे कितनी भी गाढ़ी हो, प्यार पनप ही जाता है. क्योंकि चव्हाणके के पोस्ट पर हमें ऐसे कमेंट भी मिले जो इंसानियत में भरोसा कायम रखते हैं. चव्हाणके के दफनाने या जलाने वाले पर ट्वीट पर एक यूज़र ने लिखा,
ठीक ऐसा ही सवाल कबीर के निधन के बाद भी खड़ा हुआ था. बहस छिड़ गई कि उन्हें जलाया जाए या दफनाया जाए और हम सब जानते हैं कि उसका समाधान कैसे हुआ था.
हम समझते हैं कि आप बेकार इंसान हो लेकिन लोग आपके ऐसे वक्तव्य को पढ़कर आपको घटिया से भी ऊपर वाली श्रेणी में रखेंगे.
आगे लोगों ने चव्हाणके से सवाल किए कि तब कहां थे, जब गंगा में लाशें तैर रही थी. तब क्यों नहीं पूछा कि उन लाशों को दफनाना चाहिए या जलाना. चव्हाणके ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद देंगे भी नहीं.