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कश्मीर में रहने वाला कौन हिंदू कश्मीरी पंडित है और कौन नहीं, हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है

घाटी के सब हिंदू कश्मीरी पंडित नहीं हैं, हाई कोर्ट ने कहा है.

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कोर्ट ने कहा कश्मीरी पंडित एक अलग पहचान वाला समुदाय है जो लंबे समय से घाटी में रह रहा है.
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने हाल ही के एक फैसले में कहा कि कश्मीर घाटी में रहने वाला हर हिंदू कश्मीरी पंडित नहीं है. उसने इसके लिए दिए गए तर्क को ही 'बेतुका' और 'अस्वीकार्य' करार दिया है. हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि कोई दूसरा समुदाय कश्मीरी पंडितों से जुड़ी विशेष रोजगार योजनाओं का लाभ नहीं ले सकता है.
दरअसल, कश्मीरी पंडितों को नौकरी देने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री पैकेज की घोषणा की हुई है. जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में याचिका दायर मांग की गई थी कि इस पैकेज में कुछ हिंदू समूहों और सिखों को भी शामिल किया जाए. लेकिन हाई कोर्ट ने ये याचिका खारिज कर दी.
एनडीटीवी और लाइव लॉ में छपी खबर के अनुसार, याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना था कि राजपूत, क्षत्रिय, अनुसूचित जाति, और गैर कश्मीरी ब्राह्मणों को भी कश्मीरी पंडितों के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए. खबर के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं ने ये तर्क भी दिया कि साल 2017 में सरकार ने संशोधन कर प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के लिए उन कश्मीरी पंडितों को भी योग्य कर दिया था, जो 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी से विस्थापित नहीं हुए.
Kashmiri Pandits Celebrate Navreh
श्रीनगर के एक मंदिर प्रार्थना करते कश्मीर पंडित. (फाइल फोटो- पीटीआई)

इस पर याचिका का विरोध कर रहे सरकारी वकीलों ने कहा कि सरकारी विभागों में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए विशेष आधार पर अतिरिक्त पोस्ट दी गई थीं. उन्होंने जम्मू-कश्मीर माइग्रेंट्स (स्पेशल ड्राइव) रिक्रूटमेंट रूल्स, 2009 का हवाला दिया. कहा कि इसके नियम 2 में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि कौन लोग कश्मीरी पंडितों के लिए अलग से दिए गए पदों पर नियुक्ति के योग्य हैं. नियम के मुताबिक, ऐसे पद पर उस व्यक्ति यानी कश्मीरी पंडित को नौकरी दी जा सकती है जो,
- 1 नवंबर 1989 के बाद कश्मीर छोड़कर गया हो, साथ ही रिलीफ कमिश्नर के यहां रजिस्टर्ड हो. - जिसने 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी छोड़ दी हो, लेकिन अलग-अलग कारणों के चलते रिलीफ कमिश्नर के यहां रजिस्टर्ड ना हो. जैसे वो सरकारी नौकरी में रहते हुए अलग-अलग जगहों पर रहा हो, नौकरी या आजीविका या अन्य वजह से घाटी छोड़ दी हो, किसी अचल संपत्ति का मालिक हो लेकिन संकटग्रस्त इलाका होने की वजह से वहां फिर से ना बस पाया हो. - ऐसा व्यक्ति जो सुरक्षा कारणों से घाटी में अपनी मूल जमीन से अलग हो गया हो और रिलीफ एंड रीहैबिलिटेशन कमिश्नर (माइग्रेंट) के यहां रजिस्टर्ड हो या, - कश्मीर घाटी से आता हो और 1 नवंबर 1989 के बाद भी उसने घाटी ना छोड़ी हो और अभी भी वहीं रह रहा हो.
लाइव लॉ के मुताबिक, भारत के सहायक सॉलिसिटर जनरल टीएम शम्सी और दो अन्य सरकारी वकील उस्मानी गनी और सजाद अशरफ ने कहा कि याचिकाकर्ता इन नियमों के तहत किसी भी तरह से विस्थापित श्रेणी में नहीं आते हैं और ना ही उनका किसी कश्मीरी पंडित परिवार से कोई ताल्लुक है.
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कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की हत्याओं के विरुद्ध प्रदर्शन की एक तस्वीर. (साभार- पीटीआई)

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इन तमाम दलीलों को सही माना. मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,
"कश्मीरी पंडित एक अलग पहचान वाला समुदाय है जो घाटी में रहने वाले राजपूतों के अलावा ब्राह्मणों से भी अलग हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कश्मीरी पंडित वो समुदाय है जो कश्मीरी ब्राह्मण हैं और कश्मीरी बोलते हैं, जो लंबे समय से घाटी में रह रहे हैं. उनकी परंपराएं, रहन-सहन, पहनावा उनकी पहचान है जो उन्हें अन्य हिंदुओं से अलग करती है."
न्यायधीश ने आगे कहा,
"याचिकाकर्ताओं के वकील के तर्क को स्वीकार करना मुश्किल है, जो कहते हैं कि राजपूत, क्षत्रिय, अनुसूचित जाति, और गैर कश्मीरी ब्राह्मण को कश्मीरी पंडितों के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए."
बता दें कि 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कश्मीरी प्रवासियों की कश्मीर घाटी में वापसी और पुनर्वास की सुविधा के लिए एक प्रधानमंत्री पैकेज की शुरुआत की थी.
योजना के तहत प्रवासी कश्मीरी पंडितों के लिए 6000 सरकारी नौकरियों की घोषणा की गई थी. उनमें से 4000 पद पहले ही भरे जा चुके हैं. और बचे 2000 पदों के लिए हाल ही में जम्मू-कश्मीर सेवा चयन बोर्ड द्वारा विज्ञापन दिया गया था.

(ये ख़बर हमारे साथी साजिद ने लिखी है.)

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