The Lallantop

68 साल की उम्र में वो बन गया स्कूली बच्चा

बीवी के मरने के बाद तन्हाई को दूर करने के लिए जाने लगे स्कूल

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credit: Reuter
तन्हाई है. उम्र का तकाज़ा है. हाथ में छड़ी है. सर पर टोपी. जिस्म पर स्कूल यूनिफार्म है और कमर पर किताबों से भरा बस्ता लदा है. ये सीन है बीवी के गुज़र जाने के बाद 68 साल के दुर्गा कामी का. बुलंद हौसलों की ये दास्तां नेपाल के स्यांग्जा की है. पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती. कई बार सुना होगा. लोग पढ़ते भी हैं. लेकिन दुर्गा कामी अपनी तन्हाई को दूर करने के लिए स्कूल पढ़ने जाते हैं. बीवी के मरने के बाद वो अकेले एक कमरे के घर में रहते हैं. अकेले रहना यकीनन मुश्किल होता है. इसका अंदाज़ा बुज़ुर्ग के स्कूल जाने से लगाया जा सकता है. दुर्गा कामी श्री कला भइराब हायर सेकंडरी स्कूल में 10वीं क्लास के स्टूडेंट हैं. उनका रहना सहना उनकी ग़रीबी को बयां करता नज़र आता है. दुर्गा के पास स्कूल पहनकर जाने के लिए फटे हुए मोज़े हैं, फटी हुई टीशर्ट है. यूनिफार्म स्कूल की तरफ से मुफ्त में दी गई है. जब रात को बिजली चली जाती है तो अंधेरे में पढ़ने के लिए उनके पास एक टॉर्च है. उनकी बुढ़ापा वॉलीबॉल के खेल में छू हो जाता है. स्कूली बच्चों के साथ वो एन्जॉय करते हैं.

यह स्टोरी ‘दी लल्लनटॉप’ के साथ जुड़े मोहम्मद असगर ने लिखी है.

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