काबुल से पेशावर के रास्ते में एक जगह पड़ती है- जलालाबाद. 1842 की बात है, जब अफ़गान से लड़ाई में ब्रिटिश फौज की बुरी हार हुई. 4 से 5 हज़ार सैनिकों समेत 16 हज़ार ब्रिटिशर्स के लौटने का इंतज़ार करती रेस्क्यू पार्टी जलालाबाद के मुहाने पर खड़ी थी. दूर से एक घायल खच्चर पर सवार एक लस्त-पस्त सा नौजवान आता दिखता है. सर मानो धड़ में धंस चुका हो, चोटों से बेहाल, खून से सनी वर्दी…एक अकेला फौजी. वो 16 हज़ार ब्रिटिशर्स, जिनका इंतज़ार हो रहा था.उनमें से वो अकेला बचा था. पहले ब्रिटिश-अफ़गान वॉर में अफ़गान लड़ाकों ने इतनी ही बेरहमी से पूरी ब्रिटिश सेना को कब्रगाह में तब्दील कर दिया था. कौन थे ये साढ़े 6 फीट के कबीलाई, जो एक वार में धड़ से सिर निकाल लिया करते थे. और क्या कहानी है इन कबीलों की, जहां राज्य से कहीं ऊपर रहे हैं कबीले के कानून. जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड.