क्या हो जब एक गुरु देश की आज़ादी को धता बताकर शोक दिवस कहे? चेला उसका विरोध करे. और सालों बाद वही चेला खुद गणतंत्र दिवस को शोक दिवस के तौर पर बनाए. और संसद में एक अलग देश की मांग करके सबको चौंका दे. लेकिन पॉलिटिक्स तो ऐसी ही होती है साहब. जो वक़्त आने पर यू टर्न लेने को मजबूर कर दे. तारीख में आज कहानी एक पार्टी और उसके नेता की, जिसने दक्षिण भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया. आज बात दक्षिण में कांग्रेस की छुट्टी करने वाली ‘DMK’ और उसके संस्थापक अन्नादुरै की.
तारीख: कहानी DMK की जिसने आर्य बनाम द्रविड़ और हिंदी के विरोध से राजनीति शुरू की?
1962 में अन्नादुरै DMK की तरफ़ से राज्यसभा के सदस्य चुने गए. राज्यसभा पहुंचे सरकार से मतभेद रखने वाले अन्नादुरै चीन से युद्ध के दौर में देश के सुर में बोलते नज़र आए. उनके राज्यसभा जाने से DMK को एक और फ़ायदा हुआ. हिंदी-तमिल का मुद्दा आते-जाते सुर्ख़ियों में रहने लगा.
Advertisement
Add Lallantop as a Trusted Source

Advertisement
Advertisement