मुगलों से लड़ने के लिए महाराणा प्रताप जंगलों में फिरते रहे. घास की बनी रोटियां खाई लेकिन झुके नहीं. प्रतिज्ञा ली कि चित्तौड़ को दुबारा जीत कर ही दम लेंगे. महराणा की वीरता के ये किस्से हमने आपने कई बार सुने हैं. लेकिन फिर एक सवाल है, महाराणा प्रताप और मुग़ल बादशाह अकबर के बीच दुश्मनी पैदा कैसे हुई. इस सवाल का जवाब छुपा है एक दुर्ग में. एक दुर्ग जिसे कभी अभेद्य माना जाता है. लेकिन जिस तरह हर चमकती चीज पर अभिशाप होता है कि वो सबसे पहले हमलावरों की नज़र में आएगी, यही चित्तौड़गढ़ दुर्ग के साथ भी हुआ
तारीख: चित्तौड़गढ़ फ़तेह के लिए इस हद तक चले गए थे मुग़ल बादशाह अकबर!
चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर 1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने हमला किया. जिसकी एक कहानी हमें रानी पद्मिनी के जौहर के रूप में सुनाई जाती है. लेकिन ये आख़िरी बार नहीं था कि चित्तौड़गढ़ में जौहर किया गया हो.
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