चांद की दूधिया रौशनी में नहाया एक शहर. जिसकी दीवारें एक आशंका से कांप रही थीं. हवा में धूल थी. धुंआ था. और इन सबके बीच गूंज रही थी तोपों की गड़गड़ाहट. ये 29 मई, 1453 की वो रात थी, जब इतिहास का पासा पलटने वाला था. कुस्तुनतुनिया, एक शहर जो सदियों से अजेय था, अब अपनी आख़िरी सांसे गिन रहा था. इसकी बड़ी-बड़ी दीवारों के पीछे लोग अपने घरों में दुबके हुए प्रार्थना कर रहे थे. बाहर खड़ा था था एक युवा सुल्तान, मोहम्मद द्वितीय, जो अपने पूर्वजों का सपना पूरा करने के लिए एक विशाल सेना के साथ तैयार खड़ा था. उसकी आंखों में जीत की चमक थी, और दिल में एक नए युग की शुरुआत का जोश. ये सिर्फ एक शहर की कहानी नहीं थी. ये दो सभ्यताओं, दो धर्मों, और दो युगों के बीच का संघर्ष था. क्या है कहानी इस शहर की, जानने के लिए देखें तारीख का ये एपिसोड.
तारीख: कैसे बर्बाद हुआ इस्तांबुल की शान कहा जाने वाला Constantinople?
बड़ी-बड़ी दीवारों के पीछे लोग अपने घरों में दुबके हुए प्रार्थना कर रहे थे. बाहर खड़ा था था एक युवा सुल्तान, मोहम्मद द्वितीय, जो अपने पूर्वजों का सपना पूरा करने के लिए एक विशाल सेना के साथ तैयार खड़ा था.
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