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आसान भाषा में: क्या होनी को टालना संभव है? क्या है किस्मत का खेल?

चेले को समझ आ गया..नियति का मंच होता है और कर्म तय करते हैं कि कहानी कैसे आगे बढ़ेगी. आप ही मोहरा, आप ही खिलाड़ी. कर्ता भी आप, कर्म भी आप, क्रिया भी आपकी, प्रारब्ध भी आपका. तो कर्म किए जाइए. कुछ चीज़ें संभवतः आप नहीं बदल सकते पर कुछ चीज़ें ज़रूर बदल सकते हैं.

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क्या इंसानी विकास, यानी एवोल्यूशन, विज्ञान का नतीजा है या फिर हमारा यहां तक आना भी पहले से ही लिखा हुआ था? इस संसार में हम मौजूद हैं लेकिन क्या वाकई हमारे हाथ में कुछ भी नहीं? आप ये वीडियो पूरा देखेंगे या स्किप कर देंगे, क्या ये भी पहले से तय है? आज इसको टेस्ट कर लेते हैं, समझ लेते हैं. क्या सब पहले से लिखा हुआ है कि जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहां कल क्या हो किसने जाना? या फिर नर का समस्त साधन जय का, उसकी बाहों में रहता है? वो तय करता है कि कब क्या होगा. इस गुत्थी को दुनियाभर के विद्वानों ने अपने तरीके से परखा और इसे कहा- डिटर्मिनिज़्म या नियतिवाद. जो इस सवाल से डील करता है कि क्या इंसान अपनी किस्मत खुद लिखता है, या वो बस एक पहले से तयशुदा स्क्रिप्ट का हिस्सा है? जानने के लिए देखें पूरा वीडियो.

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