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शैलेंद्र के गाने सुनकर मरीजों का दर्द हो जाता था कम

पढ़िए कैसे शैलेंद्र और राजकपूर की जोड़ी मिसाल बन गई.

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फोटो - thelallantop
'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार' गाना लिखने वाले शैलेंद्र का आज जन्मदिन है. यह गाना आज भी लोगों की जुबान पर है. शैलेंद्र के पिता फ़ौज में थे. रावलपिंडी पोस्टिंग हुई तो वहां चले गए. रावलपिंडी में ही शैलेंद्र पैदा हुए. रिटायरमेंट के बाद पिताजी मथुरा आकर बस गए. कॉलेज टाइम में ही उनकी कविताएं हंस, धर्मयुग जैसी पत्रिकाओं में छपने लगीं. भारत छोड़ो आंदोलन में शैलेंद्र जेल भी गए. बाद में जब घर की जिम्मेदारियां आईं तो रेलवे में नौकरी करने लगे. पहले झांसी में रहे. फिर पोस्टिंग हो गई मुंबई. वहां काम मिला वेल्डर का पर अब भी अधिकतर वक्त कविताएं लिखते ही बीतता.

राजकपूर से बोले, 'मैं पैसों के लिए नहीं लिखता.'

मुंबई में रहते हुए वो इप्टा से जुड़ गए. जब भारत आज़ाद हुआ तब शैलेंद्र ने एक गाना लिखा, 'जलता है पंजाब साथियों'. एक मंच पर जब वो ये गाना गा रहे थे तब राजकपूर भी श्रोताओं में बैठे थे. जौहरी ने हीरे को पहचान लिया. उन्हें शैलेंद्र का लिखा हुआ बहुत पसंद आया. जब राज कपूर ने उनसे अपनी फिल्म 'आग' में यूज करने को ये गाना मांगा तो शैलेंद्र ने मना कर दिया. बोले 'मैं पैसों के लिए नहीं लिखता.' उसके बाद दोनों की कोई बातचीत नहीं हुई. एक साल बाद शैलेंद्र की शादी हो गयी. घर के खर्चे बढ़ गए. ऐसे में जरूरत थी पैसों की. तो शैलेंद्र राजकपूर के पास गए. राजकपूर उस वक्त बरसात बना रहे थे. राजकपूर ने बरसात के लिए शैलेंद्र से दो गाने लिखवाए. शैलेंद्र का लिखा इस फिल्म का टाइटल ट्रैक 'बरसात में हमसे मिले तुम...' बहुत फेमस हुआ. इसके बाद तो शैलेंद्र जिंदगी भर गीत ही लिखते रहे. जब दुनिया से रुखसत हुए तब तक आठ सौ के करीब गाने उनकी झोली में थे.

शैलेंद्र के गाने सुनकर मरीजों का दर्द हो जाता था कम

उनकी बेटी ने एक इंटरव्यू में 'बीबीसी' को बताया कि शैलेंद्र का लिखा 'आवारा हूं... आवारा हूं... या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं...' गाना इतना फेमस हुआ था कि एक बार उनके घर के पास रहने वाले तुर्कमेनिस्तान के आदमी ने उन्हें ये गाना अपनी भाषा में गाकर सुनाया था. इतना ही नहीं इस गाने का जिक्र अलेक्जेंडर सोल्ज़ेनित्सिन ने अपनी किताब 'द कैंसर वार्ड' में भी किया है. इसमें नर्स कैंसर के मरीज की तकलीफ इस गाने को गाकर कम करने की कोशिश करती है.

लेटर लिखकर बचाई शंकर-जयकिशन से अपनी दोस्ती

शब्दों से जादू बिखेरने वाले शैलेंद्र ने एक नोट लिखकर अपनी दोस्ती बचा ली थी. हुआ यूं  था कि शंकर-जयकिशन से उनका मनमुटाव चल रहा था. शैलेंद्र ने उन्हें एक नोट भेजा. नोट में लिखा था: 'छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते, तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे, तो पूछेंगे हाल' और इसके बाद ज़िंदगी भर ये दोस्ती रही. 1961 में शैलेंद्र ने 'तीसरी कसम' मूवी में इंवेस्ट किया. फिल्म ने नेशनल अवॉर्ड तो जीता. लेकिन कॉमर्शियल तौर पर फेल रही. इकोनॉमिक लॉस की वजह से वो परेशान रहने लगे. एल्कोहल ज्यादा लेने से उनकी हेल्थ खराब रहने लगी. यही आगे चलकर उनकी मौत का कारण बना. ये हैं शैलेंद्र के कुछ फेमस गीत- 1
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