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रौशनी कांच को कैसे पार कर जाती है? लकड़ी को क्यों पार नहीं कर पाती?

कांच या ग्लास के बारे में एक मजेदार बात है. इसे ‘सुपर कूल्ड लिक्विड’ (Super cooled liquid) भी कहा जाता है. बोले तो ‘भयंकर ठंडा तरल’. कारण बताया जाता है कि ठोस होकर भी इसके मॉलिक्यूल्स या अणु किसी लिक्विड की तरह धीरे-धीरे तैरते रहते हैं.

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सही तरह की तरंगें इंसानों के भी आर-पार निकल जाती हैं. (सांकेतिक तस्वीर)

बताया जाता है कि इंसानों ने कांच बनाने की कला करीब 6000 साल पहले सीख ली थी. लोहा गलाना सीखने से भी पहले. इसका फायदा हमने घरों, कारों और इमारतों में लिया. जरा सोचिए, अगर कांच न होते तब या तो हम सिर्फ सूरज की रौशनी ले पाते, या फिर हवा ही रोक पाते. लेकिन कांच की वजह से रौशनी भी देखी जा सकती है और हवा से भी बचा जा सकता है. ठोस कांच के पारदर्शी होने के तमाम फायदे हैं. लेकिन कांच पारदर्शी होता क्यों है? लाइट कांच से तो आर-पार निकल जाती है, लेकिन लकड़ी से नहीं, क्यों? (Why glass is transparent)

कांच या ग्लास के बारे में एक मजेदार बात है. इसे ‘सुपर कूल्ड लिक्विड’ (Super cooled liquid) भी कहा जाता है. बोले तो ‘भयंकर ठंडा तरल’. कारण बताया जाता है कि ठोस होकर भी इसके मॉलिक्यूल्स या अणु किसी लिक्विड की तरह धीरे-धीरे तैरते रहते हैं.

कांच को सॉलिड या ठोस मानने के बजाय इसे एमॉर्फस सॉलिड (amorphous solid) कहा जाता है. माने इसके एटम एक निश्चित संरचना में नहीं रहते. जैसा आमतौर पर क्रिस्टल्स वगैरह में होता है. जबकि ये बना एक तरह के क्रिस्टल से ही होता है. जिसे क्वार्ट्ज कहते हैं.

क्वार्ट्ज से कांच तक

ऑक्सीजन और सिलिकॉन धरती की सतह पर सबसे ज्यादा पाए जाने वाले तत्वों में शामिल हैं. दो ऑक्सीजन और एक सिलिकॉन मिलकर सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO2) बनाते हैं. जैसे दो हाइड्रोजन और एक ऑक्सीजन मिलकर, H2O यानी पानी बनाते हैं. अब ये SiO2 मिलकर एक फिक्स संरचना में जमा होकर क्वार्ट्ज बनाते हैं. जैसे ईंट की निश्चित संरचना से एक कमरा बनता है.

क्वार्ट्ज आमतौर पर रेत के कणों में मिलते हैं. यही कांच बनाने की मुख्य सामग्री है. लेकिन क्वार्ट्ज के क्रिस्टल नुकीले से होते हैं. अलग-अलग दिशा में लाइट रिफ्लेक्ट कर सकते हैं. जैसे बर्फ वगैरह टूटने पर आपने देखा होगा. नमक के दाने को करीब से देखें, तो भी क्रिस्टल देखने मिलते हैं. लेकिन कांच की सतह पर क्रिस्टल नजर नहीं आते.

दरअसल कांच को जल्दी से गर्म करके फट से ठंडा किया जाता है. ये प्रक्रिया कांच में क्रिस्टल जैसा फिक्स स्ट्रक्चर बनने नहीं देती. इसका नतीजा ये होता है कि कांच की संरचना में सिलिकॉन डाइऑक्साइड किसी लिक्विड की तरह रहता है. यही कारण है कि इसे एमॉर्फस सॉलिड कहा जाता है. चूंकि इस वजह कांच के अंदर कोई स्ट्रक्चर नहीं बनता, इसलिए लाइट से टकराने के लिए कुछ बचता ही नहीं. उसे सीधे पार जाने का रास्ता मिल जाता है. नतीजा, रौशनी हमें कांच के पार से दिखाई देती है.

लेकिन इससे तो हमें बस ये पता चला कि कांच में लाइट दूसरे क्रिस्टल जैसे तितर-बितर क्यों नहीं होती. अब जानते हैं कि लकड़ी से टकराने पर लाइट के साथ क्या होता है और कांच के साथ क्या?

हमारे आस-पास कई तरह की तरंगें घूमती हैं. इनमें से एक है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक यानी विधुत चुम्बकीय तरंगें. एक्स-रे, माइक्रोवेव, अल्ट्रावायलेट (UV) किरणें और प्रकाश या लाइट सब इसी का हिस्सा हैं.

एक्स-रे भी इन तरंगों की मदद से ही लिया जाता है. एक्स-रे मशीन से निकलीं तरंगें शरीर के आर-पार निकल जाती हैं. माने अगर एक्स-रे मशीन में कैमरा लगा दें तो उससे देखने पर इंसान भी पारदर्शी से ही दिखेंगे. यानी कुछ तरंगों के लिए कांच के अलावा बाकी चीजें भी पारदर्शी हो सकती हैं. ये तरंगें दूसरी ठोस चीजों के आर-पार भी निकल सकती हैं.

अब सवाल ये कि ऐसा होता क्यों है? 

दो चीजें कभी एक दूसरे को छू नहीं सकती हैं! 

हम जानते हैं कि हमारे आस-पास की तमाम चीजें एटम या परमाणु से मिलकर बनी होती हैं. ये कॉमिक बुक वाला परमाणु नहीं है. बल्कि किसी तत्व का मूलभूत रूप है. ज्यादा टेक्निकैलिटी में फिर कभी चलेंगे. फिलहाल इतना समझते हैं कि देखने में तो हमें ज्यादातर चीजें ठोस लगती हैं, पर अगर हम बाल की खाल निकालें और फिर उस खाल की भी खाल निकालते-निकालते परमाणु के लेवल पर पहुंच जाएं, तो माजरा कुछ और निकलता है. 

पता चलता है, एटम तो लगभग पूरा खाली है. ज्यादातर हिस्से में कुछ नहीं है. समझते हैं. एटम में न्यूक्लियस होता है जिसके चारों ओर इलेक्ट्रॉन होते हैं. लेकिन ये सब जगह कितनी लेते हैं. बताया जाता है कि अगर एटम फुटबॉल के मैदान के आकार का है, तो न्यूक्लियस मटर के दाने के आकार का होगा. इलेक्ट्रॉन तो और भी छोटे होते हैं. मानो स्टेडियम की सीट पर रेत के कण हों.

इसलिए फिजिक्स वाले कहते हैं कि क्वांटम लेवल पर हम कभी किसी चीज को छूते नहीं हैं. हमें लगता तो है कि हम किसी चीज को छू रहे हैं. पर अगर हम क्वांटम लेवल पर देखें तो हमारे हाथ की त्वचा और किसी चीज के एटम कभी एक दूसरे को छूते नहीं हैं. उनके बीच हमेशा गैप रहता है.

वापस कांच पर आते हैं. अब लाइट बनी होती है फोटॉन से, जो एनर्जी के एक पैकेट जैसे होते हैं. वहीं UV और एक्स-रे तरंगों की भी अपनी एनर्जी होती है. ये जब किसी चीज से टकराती हैं तो एनर्जी का लेन-देन होता है. अब एटम का ज्यादातर हिस्सा पूरी तरह खाली ही है, तो इससे ये तो समझा जा सकता है कि कांच के एटम से टकराए बिना लाइट निकल सकती होगी. पर सवाल ये कि बाकी मटेरियल में ऐसा क्यों नहीं होता? 

इसके लिए इलेक्ट्रॉन पर नजर डालते हैं. होता ये है कि इलेक्ट्रॉन अपनी-अपनी कक्षा में रहते हैं. जैसे स्टेडियम में नीचे और ऊपर की सीट होती हैं. नीचे की सीट से ऊपर जाने के लिए एनर्जी चाहिए होती है. अब फोटॉन में एक निश्चित एनर्जी होती है. जिसे लेकर कुछ चीजों में ये इलेक्ट्रॉन नीचे की सीट से ऊपर की सीट तक पहुंच सकते हैं. लाइट की एनर्जी इनमें एब्जार्ब हो जाती है और आर-पार नहीं निकल पाती है.

पर पर पर… कांच में ये सीटें बहुत दूर-दूर होती हैं. यानी फोटॉन में इतनी एनर्जी नहीं होती कि उसे लेकर इलेक्ट्रॉन ऊपर की सीट में जा सकें. इसलिए ये फोटॉन कांच से चुपचाप निकल जाते हैं. हालांकि अल्ट्रावायलेट (UV) लाइट से इतनी एनर्जी मिल जाती है कि कांच के इलेक्ट्रॉन ऊपर की सीट तक पहुंच सकें. इसलिए कुछ कांच ऐसे होते हैं जिनसे अल्ट्रावायलेट लाइट नहीं निकल पाती, वो अब्जॉर्ब हो जाती है.

इसकी वजह से हम दृश्य प्रकाश में कांच के आर पार देख सकते हैं. कांच में जो काम UV किरणों के साथ होता है, वही काम लकड़ी वगैरा में दृश्य प्रकाश की किरणों के साथ होता है. इनके इलेक्ट्रॉन की सीटें पास-पास होती हैं. तो ये प्रकाश के फोटॉन की एनर्जी लेकर ऊपर की सीट तक पहुंच जाते हैं. और फोटॉन इनसे पार नहीं हो पाते.

बाकी बाल की खाल निकाली जाए तो एटम के लेवल में बहुत कुछ होता है. अजूबा है ये दुनिया भी. क्वांटम दुनिया के बारे में आप क्या सोचते हैं? हमें बताएं.

वीडियो: डॉक्टर ने मरीज़ की आंख निकालकर लगा दी कांच की गोली