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बारिश के मौसम में गर्मी कम और नमी ज्यादा, फिर भी क्यों आता है पसीना? आज जान लें

हम बेसब्री से बारिश के मौसम का इंतजार करते हैं. सोचते हैं, बारिश होगी तो रूखे मौसम और गर्मी से राहत मिलेगी. लेकिन कई बार होता इसका उल्टा है. बारिश की नमी में शरीर में पसीना भी ज्यादा दिखता है. पर तापमान इतना ज्यादा नहीं होता. फिर क्या वजह है कि मौसम में नमी के साथ पसीना भी आता है?

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Key and Peele यूट्यूब चैनल के एक वीडियो का सीन (सांकेतिक तस्वीर)

साल था 2003. गर्मी के चलते फ्रांस में करीब 15 हजार लोगों ने अपनी जान गंवा दी. फ्रांस के अलावा कई यूरोपीय देशों ने भी मौसम की मार झेली. हजारों लोगों की जान गई, वजह थी बढ़ा तापमान और हीट वेव. लेकिन इस हीट वेव में अधिकतम तापमान 28 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान ( wet bulb temperature) से ज्यादा नहीं था. 28 डिग्री सेल्सियस तापमान ज्यादा नहीं लगता. लेकिन यह वेट बल्ब तापमान था. इसमें तापमान के साथ नमी का भी हिसाब रखा जाता है.

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वेट बल्ब तापमान क्या है?

हमें ये तो समझ आता है कि भयंकर गर्मी में शरीर से ज्यादा पसीना निकलता है, लेकिन बारिश के मौसम में नमी के चलते भी, क्या हमें ज्यादा गर्मी लगती है? ये नमी, पसीना और वेट बल्ब तापमान का पूरा मामला समझते हैं. 

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घरों में जैसे कूलर होता है, वैसे हमारे शरीर में भी एक सिस्टम है. जिसके जरिए ये खुद को ठंडा रखता है. जैसे हमारी त्वचा, स्वेट ग्लैंड्स या पसीना बनाने वाली ग्रंथियां और हमारी चाल-फेर. इन सब की मदद से हमारा शरीर तापमान करीब 37 डिग्री सेल्सियस रखने की कोशिश करता है. इसे Homeostasis (होमियोस्टैसिस) कहा जाता है.

दरअसल हमारे शरीर में तमाम प्रोटीन और एंजाइम, जो शरीर को चलाने के लिए बेहद जरूरी हैं, इसी 37 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ठीक से काम करते हैं. तमाम केमिकल रिएक्शन इसी तापमान पर होते हैं. इसलिए हमारा शरीर तमाम जुगाड़ लगाकर इस तापमान पर रहने की कोशिश करता है.

ठंड में जब तापमान कम होता है, तो यह कंपकंपी करके गर्मी पैदा करता है. वहीं गर्मी में त्वचा के पास की खून की पतली नलियां फैलती हैं तो पसीने की ग्रंथियां एक्टिव हो जाती हैं. ताकि शरीर से गर्मी को बाहरी वातावरण में भेजा जा सके.

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wet bulb temp
सर्दियों कंपकंपा कर और गर्मियों पसीने वगैरह से शरीर कुछ ऐसे तापमान नियंत्रित रखता है.
पसीने से कैसे ठंडा होता है शरीर?

पसीने से शरीर को ठंडा करने का मामला कुछ-कुछ मिट्टी के घड़े जैसा है. जो पानी की मदद से खुद-ब-खुद ठंडा रहता है. ऐसे ही हमारे शरीर की त्वचा से निकलने वाला पसीना, जब शरीर से भाप बनकर उड़ता है. तो अपने साथ शरीर की गर्मी ले जाता है. जैसा कूलर वगैरह में होता है.

जैसा कि हम जानते हैं, किसी तरल को गैस में बदलने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है. ऐसे ही जब पसीना भाप में बदलता है, तो अपने आस-पास से ऊर्जा लेता है. जिससे यह शरीर को ठंडा करता है. ताकि जानलेवा गर्मी से खुद को बचा सके.

पर बारिश के मौसम में तो खुद इतनी नमी रहती है. दूसरी तरफ गर्मियों के मुकाबले ताप कम रहता है. फिर भी शरीर पसीना-पसीना रहता है. तो क्या बारिश में हमारा शरीर गर्मियों के मुकाबले ज्यादा पसीना निकालता है? इसको वेट बल्ब टेंपरेचर (Wet Bulb Temperature) से समझते हैं, जिसकी बात हमने शुरुआत में की थी.

इस थर्मामीटर को बुखार है क्या, जो इस पर गीली पट्टी रखते हैं?

जाहिर सी बात है, Wet bulb temperature (वेट बल्ब टेंपरेचर) मापने के लिए, थर्मामीटर भी थोड़ा अलग होता होगा. थोड़ा होता भी है. इस थर्मामीटर के बल्ब पर गीली पट्टी या कपड़ा रखते हैं. भला ऐसा क्यों? दरअसल इसके जरिए, तापमान के साथ मौसम में नमी भी मापी जाती है. 

wet bulb temperature
वेट बल्ब थर्मामीटर में कुछ ऐसे बल्ब के ऊपर गीला कपड़ा लगा रहता है.

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होता ये है कि एक थर्मामीटर के सिरे पर एक गीला कपड़ा रखते हैं. फिर कपड़े से नमी सूखने का इंतजार करते हैं. ताकि ये देख सकें कि पानी उड़ने के साथ बल्ब कितना ठंडा होता है. फिर जो कम से कम रीडिंग आती है, वो वेट बल्ब टेंपरेचर होता है. यानी कोई चीज पानी के भाप बनने से कम से कम कितनी ठंडी हो सकती है, यह बात हमें वेट बल्ब टेंपरेचर से पता चलती है.

दरअसल हवा में नमी सोखने की एक सीमित क्षमता है. जैसे पानी में चीनी घोलते-घोलते एक वक्त ऐसा आता है कि चीनी घुलना बंद हो जाती है. वैसा ही कुछ मामला हवा में नमी का भी है. आपने भी बारिश के मौसम में ध्यान दिया होगा, जब हवा में दबाकर नमी होती है, तब कपड़े देर से सूखते हैं. ठीक ऐसे ही बारिश के मौसम में हमारे शरीर का पसीना भी देर से सूखता है. क्योंकि मौसम में पहले से काफी नमी होती है.

अब ऐसे मौसम में हमारा शरीर पसीना तो निकालता है, लेकिन वह जल्दी सूख नहीं पाता. जिससे हमारा शरीर इतनी जल्दी ठंडा नहीं होता है. शरीर ठंडा नहीं होता, तो पसीना और नमी रहते हुए हमें गर्मी लगती है.

माने हम समझ सकते हैं कि नमी ज्यादा होगी तो कम तापमान में भी खुद को ठंडा रखना मुश्किल होगा. आपने भी देखा होगा, जब नमी वाले इलाकों में क्रिकेट मैच वगैरह होते हैं. तो क्रिकेटर्स पसीना-पसीना रहते है. ऐसे ही सुंदर वन जैसे वर्षावनों में भी, तापमान इतना ज्यादा न होते हुए भी खुद को ठंडा रखना मुश्किल होता है. ऐसा ही कुछ मामला बारिश के मौसम वाली नमी का भी है.

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