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RBL बैंक में 'सब चंगा सी' वाले RBI के बयान में कितना दम है?

क्यों टूटे RBL बैंक के शेयर और कैसी है इसकी माली हालत?

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आरबीएल बैंक और स्टॉक ट्रेडिंग की सांकेतिक तस्वीर (साभार : आज तक)
एक कहावत है- दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है. तीन साल के भीतर ही पांच प्राइवेट बैंकों की बर्बादी देख चुके लोग, अब एक आहट पर भी हरकत में आ जाते हैं. करीब 78 साल पुराने आरबीएल बैंक (RBL Bank- पहले रत्नाकर बैंक) के एमडी और सीईओ विश्ववीर आहूजा अचानक छुट्टी पर क्या चले गए, बैंक की माली हालत को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया. तभी पता चला कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने आरबीएल बैंक के बोर्ड में निगरानी के लिए अपना आदमी नियुक्त कर दिया है. फिर क्या था. बैंक की तकदीर को लेकर मीडिया रिपोर्ट्स, ब्रोकरेज और रेटिंग फर्मों ने नई इबारतें लिखनी शुरू कर दीं. नतीजा सोमवार 27 दिसंबर को शेयर मार्केट में दिखा.
आरबीएल बैंक के शेयर करीब 20 पर्सेंट टूट गए. लोवर सर्किट लग गया यानी बैंक शेयरों की बिक्री पर रोक लग गई. शेयर बाजार पर बैंक की इस सफाई का भी कोई असर नहीं हुआ कि उसकी माली हालत बिल्कुल दुरुस्त है. एनपीए यानी न लौटने वाले लोन के मोर्चे पर भी कोई चिंताजनक बात नहीं है. लेकिन कहीं से भी यह पुख्ता जानकारी नहीं मिली कि आखिर बैंक में अगर कुछ गड़बड़ चल रहा है तो वो क्या है?
मार्केट सेंटिमेंट ज्यादा बिगड़ें, इसके पहले फिर आरबीआई ने दखल दिया. सोमवार को एक बयान जारी कर उसने कहा कि आरबीएल बैंक में सब कुछ सामान्य चल रहा है. वित्तीय हालत को लेकर चिंता की कोई बात नहीं है. फिर थोड़ी देर के लिए निवेशकों का भरोसा लौटा. बैंक शेयरों ने थोड़ी तेजी दिखाई, लेकिन आखिरकार स्टॉक 18.10 पर्सेंट नीचे 141.60 रुपये के भाव पर बंद हुआ. यह बीते एक साल का सबसे निचला स्तर है. पिछले तीन साल में आरबीएल बैंक के शेयर का मूल्य 700 रुपये से गिरकर यहां तक आ पहुंचा है. क्या है पूरा मामला ? आरबीएल बैंक की माली हालत और उसके शेयरों की कीमत हाल-फिलहाल बहुत अच्छे संकेत नहीं दे रहे थे. लेकिन ट्विस्ट आया विश्ववीर आहूजा के मेडिकल लीव पर चले जाने की खबर से. 25 दिसंबर को बैंक ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को बताया था कि उसके एमडी और सीईओ छुट्टी पर चले गए हैं. वह 11 साल से इस पद पर थे. आरबीएल को एक छोटे प्राइवेट बैंक से नेशनल लेवल का कामयाब बैंक बनाने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है. इनके कार्यकाल में बैंक का मुनाफा दस साल में ही करीब 42 गुना बढ़कर 12 करोड़ से 508 करोड़ हो गया था.
लेकिन कानून कामयाबी के पंख नहीं गिनता. 59 साल के विश्ववीर को आरबीआई ने केवल एक साल और बैंक के टॉप पोस्ट पर रहने की इजाजत दी थी. जबकि बैंक की ओर से उन्हें कम से कम तीन साल का एक्सटेंशन देने की मांग की गई थी. तीन की जगह एक साल का एक्सटेंशन देखने में मामूली बात लगती है. लेकिन जिन लोगों ने इसके पहले आईसीआईसीआई बैंक की चंदा कोचर, एक्सिस बैंक की शिखा शर्मा और यस बैंक के राणा कपूर को पद से हटते देखा है, उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. निवेशकों के मन में यह पहला खटका था. तभी इस खबर ने तूफान मचा दिया कि आरबीआई ने बैंक के बोर्ड में दखल देते हुए उसके कामकाज पर निगरानी  बिठा दी है.
बैंक ने झटपट विश्ववीर की जगह एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर राजीव आहूजा को अंतरिम एमडी और सीईओ बनाने की घोषणा भी की थी. रविवार को बैंक से जुड़ी खबरों पर सफाई देने के लिए राजीव आहूजा मीडिया के सामने आए और कई टीवी चैनलों को दिए इंटरव्यू में कहा कि बैंक में सब कुछ ठीकठाक है. विश्ववीर निजी कारणों से छुट्टी पर गए हैं. यह भी कि नए मैनेजमेंट को आरबीआई का समर्थन हासिल है.
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पिछले 11 साल से आरबीएल बैंक के एमडी और सीईओ रहे विश्ववीर आहूजा. (फोटो: इंडिया टुडे)
फिर शेयर औंधे मुंह क्यों गिरे? शेयर मार्केट सिर्फ आंकड़ों पर नहीं चलता. अटकलों पर भी कान देता है. विश्ववीर के जाने के साथ, जैसे ही यह खबर आई कि आरबीआई ने 25 दिसंबर को ही अपने एक चीफ जनरल मैनेजर योगेश दयाल को आरबीएल बैंक के बोर्ड में एडिशनल डायरेक्टर नियुक्त किया है, मार्केट के कान खड़े हो गए. निवेशकों को वो दिन भी याद आए होंगे, जब यस बैंक में राणा कपूर को हटाए जाने से पहले और बाद में कभी अच्छी तो कभी बुरी खबरें आती रहती थीं. आखिरकार सारी अटकलें, खराब आंकड़ों की शक्ल लेकर सामने आईं थी. यस बैंक कंगाली के कगार पर खड़ा था.
आरबीएल बैंक के बोर्ड में आरबीआई का दखल आम बात नहीं है. बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट की धारा 36एबी के तहत प्राइवेट बैंकों में एडिश्नल डायरेक्टर की नियुक्त की जाती है. ऐसा तब होता है जब आरबीआई को लगे कि बैंक बोर्ड को रेग्युलेटरी या सुपरवाइजरी मामलों में और गहन निगरानी की जरूरत है.
विश्ववीर ने आरबीएल बैंक 2010 में जॉइन किया था. इससे पहले वह बैंक ऑफ अमेरिका में भी शीर्ष पदों पर लंबे समय तक रह चुके थे. अपुष्ट सूत्रों से ऐसी खबरें भी उड़ रही हैं कि आहूजा के आखिरी वर्षों में बड़े पैमाने पर बैंक के कॉरपोरेट लोन संदिग्ध हाथों में जा फंसे. अब उनकी रिकवरी मुश्किल होगी. लेकिन न तो कंपनी के किसी सदस्य ने और न ही सरकार की ओर से इस बारे में कोई इशारा आया है. लेकिन दूसरी ओर बैंक यूनियनों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया जताई गई है. ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयी एसोसिएशन (AIBEA) ने वित्तमंत्री से मांग की है कि आरबीएल बैंक का किसी सरकारी बैंक के साथ मर्जर किया जाए. यह मांग भी शेयर बाजार को नागवार गुजरी.
आरबीएल बैंक के आंकड़े कम से कम पिछले दो-तीन साल में उसकी अच्छी सेहत की गवाही नहीं देते. उसके कई लोन बड़ी कंपनियों में फंसे हुए हैं. उसके राजस्व और मुनाफे को लगातार चोट लगती आ रही है. साल 2018-19 में बैंक का नेट प्रॉफिट 867 करोड़ रुपये था, जो 2020-21 में घटकर 508 करोड़ रुपये हो गया. रिटर्न ऑन ऐसेट 1.27 से घटकर 0.54 पर्सेंट हो गया. लोन की ग्रोथ भी जस की तस बनी हुई है. तीन साल में यह 54,308 करोड़ से 58,623 करोड़ रुपये ही हो सकी.
यह भी देखना होगा कि शेयर कीमतों में गिरावट अचानक नहीं आई है. फिसलन बहुत पहले शुरू हो गई थी. जुलाई 2019 में इस बैंक के एक शेयर का मूल्य 700 रुपये हुआ करता था, आज यह 141 रुपये के लेवल पर आ टिका है. यानी पिछले तीन साल से बैंक स्टॉक में निवेशकों को लगातार चपत लगती आ रही है.
हालांकि नए सीईओ राजीव आहूजा ने बैंक के कामकाज और कारोबार को सामान्य बताते हुए आगे ग्रोथ की उम्मीद जरूर जताई है, लेकिन हालिया तिमाही आंकड़ों से हाल फिलहाल किसी बड़ी ग्रोथ या तेजी के आसार नहीं नजर आ रहे.
पहले लोन और प्रॉफिट में लगातार बढ़ोतरी को देखते हुए शेयर मार्केट इसके शेयरों को ऊंचा 'प्राइस टु बुक वैल्यू रेश्यो' दे रहा था. ज्यादा रेश्यो का मतलब है कि शेयर का बाजार भाव उस लेवल से ऊंचा है, जितना इसे वास्तव में होना चाहिए. 
साल 2018-19 के बाद से शेयरों के दाम बढ़ने का नाम नहीं ले रहे थे. यहां से निवेशकों ने बैंक से दूरी बनानी शुरू कर दी.
इस बीच ब्रोकरेज हाउस एडिलविस सिक्योरिटीज (Edelweiss Securities) के हवाले से एक खबर आई कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की मार्च में होने वाली समीक्षा में आरबीएल बैंक को बैंक निफ्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है. उसकी जगह बैंक ऑफ बड़ौदा की एंट्री हो सकती है.
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राकेश झुनझुनवाला (फोटो- इंडिया टुडे टीवी)
बिग बुल का नाम भी उछला बैंक के शेयर सोमवार को जब गिरावट की नई जमीन छूने लगे, तब मार्केट में एक और उड़ती खबर आई. वह यह कि 'बिग बुल' कहे जाने वाले दिग्गज निवेशक राकेश झुनझुनवाला और राधाकिशन दमानी आरबीएल बैंक में हिस्सेदारी लेना चाहते हैं. एक रिपोर्ट ने तो यहां तक कहा कि झुनझुनवाला इस बैंक के 10 प्रतिशत शेयर खरीद सकते हैं. लेकिन इस बारे में न तो इन निवेशकों की ओर से कोई पुष्टि की गई और न ही किसी ने इसे खारिज किया. यह कंपनी के शेयरों के लिए अच्छी बात थी. लेकिन आरबीआई निगरानी और बैंक से कुछ न कुछ गड़बड़ निकलने की आशंका हावी थी. एडिश्नल डायरेक्टर की नियुक्ति को निवेशकों ने इतनी गंभीरता से लिया है कि बिग बुल के निवेश वाली खबर धरी रह गई. आरबीआई ने क्या कहा ? सोमवार को शेयर बाजार में इस स्टॉक को लेकर मची हलचल के बीच आरबीआई ने एक बयान जारी कर कहा :
"हम बताना चाहते हैं कि बैंक में अच्छी खासी पूंजी है और वित्तीय हालत संतोषजनक है. जमाकर्ताओं या निवेशकों को अटकलों वाली खबरों पर प्रतिक्रिया दिखाने की जरूरत नहीं है. बैंक की वित्तीय सेहत स्थिर है "
लेकिन जानकारों का कहना है कि आरबीआई का बयान ऐसे मामलों में अक्सर सधा हुआ और इसी तरह का आता है. उसकी कोशिश किसी भी मामले से जुड़े दूसरे बाजारों को किसी अफरा-तफरी या भारी उतार-चढ़ाव से बचाना होता है. यही वजह है कि यह बयान भी आरबीएल के शेयरों में जान नहीं फूंक पाया.
इसके पहले बैंक के नए सीईओ राजीव आहूजा ने भी आंकड़ों के जरिए अच्छी माली हालत पर जोर दिया था. उन्होंने कहा था कि बैंक के पास फिलहाल इतनी लिक्विडिटी (पैसा) है कि अगले 8 से 12 महीनों तक उसे किसी पूंजीगत या वित्तीय संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा. कैपिटल एडिक्वेसी 16.3 पर्सेंट है, जो सामान्य से बेहतर है. लिक्विड कवरेज रेश्यो जो आरबीआई के नियमों के मुताबिक कम से कम 100 होना चाहिए वह 155 है. एनपीए 2.14 पर्सेंट पर स्थिर है. क्रेडिट डिपॉजिट रेश्यो 74.1 पर्सेंट है. लिवरेज रेश्यो 10 पर्सेंट है. इन सभी पैमानों पर कोई ऐसा संकेत नहीं मिलता कि बैंक के कामकाज में कोई बाधा आने वाली है. क्यों सहमे हैं निवेशक? पंजाब नेशनल बैंक में फर्जी 'लेटर ऑफ अंडरटेकिंग' से 11,356 करोड़ रुपये की कॉरपोरेट लूट और बैंक ऑफ बड़ौदा के कई खातों की जांच ने अरसे बाद बैंकों पर लोगों का भरोसा हिला दिया था. बैंक सरकारी थे और सरकार ने जैसे-तैसे संभाल लिया. लेकिन फिर एक के बाद एक प्राइवेट बैंकों और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशल कॉरपोरेशंस (NBFC) से बुरी खबरें आनी शुरू हुईं. खराब लोन के चलते डूबने की कगार पर पहुंचे यस बैंक को भी सरकार ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) का सहारा दिलाकर उबार लिया. फिर पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव (PMC) बैंक में गड़बड़ी की भनक मिलते ही आरबीआई ने पैसे की निकासी पर रोक लगा दी. हाल ही में लक्ष्मी विलास बैंक (LVB) में करोड़ों के लोन डूबने की खबरें सुर्खियों में थीं. इस बैंक का एक फंसा हुआ लोन तो 720 करोड़ रुपये तक का था. इसके अलावा IL&FS और DHFL जैसे गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों के डूबने का वाकया भी बैंकिंग सेक्टर में निवेशकों के डगमगाते भरोसे की कहानी कहता है.

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