आज के जमाने में हम सब टीवी चलाने के लिए अलग-अलग कंपनियों की DTH सर्विस (डायरेक्ट-टू-होम सेवा) का सहारा लेते हैं. लेकिन दशक भर पहले ऐसा नहीं था. उस दौर में लोग टीवी चैनलों को देखने के लिए केबल सर्विस प्रोवाइडर पर निर्भर हुआ करते थे. उस दौर में केबल सर्विस प्रोवाइडर एक-एक घर में केबल के मार्फत कनेक्शन पहुंचाते थे. इस केबल कनेक्शन की मदद से लोग चैनल बदल-बदल कर टीवी देखते थे. तब एक शहर में कई-कई केबल सर्विस प्रोवाइडर हुआ करते थे. उनमें आपसी रार भी चलती रहती थी. लेकिन यही रार मुंबई जैसे महानगर में एक-दूसरे की जान लेने की हद तक पहुंच जाती. कईयों की जानें गई भी. लेकिन एक केबल सर्विस प्रोवाइडर ऐसा भी था जो केबल सर्विस भी चलाता था. वकालत भी करता था. और साथ ही मुंबई के सर्वाधिक रसूखदार पते यानी मातोश्री के अंदर तक अपनी बेरोक-टोक पहुंच भी रखता था. मातोश्री में इतनी तगड़ी पकड़, कि जब भी बाल ठाकरे न्यूज चैनलों से खफा होते तो यही कहते,
जिन अनिल परब का वसूली में आया नाम, कभी बाल ठाकरे के वसीयतनामे के गवाह बने थे
मंत्री अनिल परब पर निलंबित पुलिस अफसर सचिन वाझे ने वसूली के गंभीर आरोप लगाए हैं.

"अनिल को बोल देता हूं. केबल खिंचवा लेगा. फिर देखता हूं कौन इनके चैनल देखता है."
जी हां, हम बात कर रहे हैं महाराष्ट्र सरकार के मंत्री अनिल परब की. 56 बरस के अनिल परब पर महाराष्ट्र के निलंबित पुलिस अफसर सचिन वाझे ने अपने हाथ से लिखी एक चिट्ठी में कुछ संगीन आरोप लगाए हैं. उनके इन आरोपों ने महाराष्ट्र की सियासत में भूचाल ला दिया है. इस चिट्ठी में सचिन वाझे ने शिवसेना के मंत्री अनिल परब पर पैसों की उगाही के गंभीर आरोप लगाए हैं. सचिन वाझे ने लिखा है कि जुलाई-अगस्त 2020 में महाराष्ट्र के मंत्री अनिल परब ने मुझे अपने सरकारी बंगले पर बुलाया था. इसी दरम्यान DCP पद पोस्टिंग को लेकर आंतरिक आदेश भी जारी किए गए थे. वाझे ने अपनी चिट्ठी में यह भी लिखा है किमीटिंग के दौरान अनिल परब ने मुझसे कहा SBUT (Saifee Burhani Upliftment Trust) कंप्लेंट पर ध्यान दीजिए, जिसकी जांच प्राथमिक स्तर पर थी. साथ ही उन्होंने मुझसे कहा कि मैं SBUT के ट्रस्टी से इन्क्वायरी बंद करने के लिए बातचीत करूं और इसके लिए 50 करोड़ की रकम की डिमांड करूं.

महाराष्ट्र के निलंबित पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाझे ने अनिल परब पर पैसे मांगने के गंभीर आरोप लगाए हैं. (फ़ोटो क्रेडिट : सोशल मीडिया)
आपको बता दें कि यही अनिल परब एक जमाने में मुंबई के सबसे बड़े केबल सर्विस प्रोवाइडर्स में से एक हुआ करते थे. चूंकि अब अनिल परब चर्चा में हैं, तो आज हम इनकी कहानी से आपको रूबरू करवा रहे हैं. कौन हैं अनिल परब?
मुंबई में अनिल परब का घर बांद्रा के गांधीनगर इलाके में पड़ता है. यह इलाका ठाकरे परिवार की रिहायश मातोश्री से महज कुछ कदमों की दूरी पर है. छात्र जीवन से ही अनिल परब बाल ठाकरे के मुरीद रहे. काॅलेज के दिनों में शिवसेना की स्टूडेंट विंग विद्यार्थी सेना से जुड़े. फिर वकालत की पढ़ाई पूरी कर मुंबई हाईकोर्ट में वकालत करने लगे. इसी दौर में वे शिवसेना संसदीय दल के नेता मधुकर सरपोतदार के संपर्क में आए. सरपोतदार की सरपरस्ती में ही मातोश्री आना-जाना शुरू किया और उसके बाद से फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. समय के साथ बाल ठाकरे का अनिल परब पर भरोसा बढ़ता चला गया. उनका यह भरोसा सिर्फ पार्टी के मामले में ही नहीं बल्कि निजी मामलों में भी था. निजी मामलों में कैसे - यह आगे बताएंगे. इस दरम्यान अनिल परब ने सियासत के साथ-साथ केबल टीवी के बिजनेस में भी हाथ बढ़ाया और देखते ही देखते वे मुंबई के सबसे बड़े केबल सर्विस प्रोवाइडरों में शुमार हो गए. इसी दरम्यान देश में सैटेलाइट न्यूज चैनलों का दौर शुरु हुआ. लेकिन न्यूज चैनलों का काम तो न्यूज दिखाना है. इसलिए इन न्यूज चैनलों पर देश की अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं की तरह मुंबई और महाराष्ट्र की घटनाओं को भी दिखाया जाने लगा. कई बार ऐसी न्यूज़ शिवसेना की गतिविधियों की वजह से बनती और यह बाल ठाकरे को नागवार गुजरती. फिर वह केबल कटवाने जैसी धमकियां देते, जिसका जिक्र मैंने शुरुआत में किया था.
बाल ठाकरे की वसीयत के गवाह
अनिल परब शिवसेना के लिए सिर्फ एक केबल ऑपरेटर और कानूनी सलाहकार भर ही नहीं थे. उनकी भूमिका इससे कहीं ज्यादा बड़ी थी. इतनी बड़ी कि अपने अंतिम दिनों में जब बाल ठाकरे ने अपनी वसीयत लिखी, तो उसमें भी गवाह के तौर पर अनिल परब का नाम दर्ज था. बाद में 2015 में बाल ठाकरे के दूसरे बेटे जयदेव ठाकरे ने इस वसीयतनामे पर सवाल उठाते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जयदेव ने इसे उद्धव ठाकरे के पक्ष में एकपक्षीय मानते हुए फर्जी बताया था. जब यह मामला बढ़ा तब अनिल परब ने कोर्ट में उपस्थित होकर पक्ष रखा. कोर्ट ने भी वसीयतनामे को सही माना और इससे उद्धव ठाकरे को बड़ी राहत मिली.
लेकिन शिवसेना में अनिल परब की हैसियत इस वसीयत विवाद से काफी पहले बढ़ चुकी थी. 2012 में बाल ठाकरे के बिल्कुल आखिरी दिनों में परब को शिवसेना की तरफ से विधान परिषद में भेजा जा चुका था. नवंबर 2012 में बाल ठाकरे का निधन हो गया और शिवसेना की कमान उनके बेटे उद्धव ठाकरे के हाथ आ गई. अनिल परब के उद्धव ठाकरे से भी गहरे संबंध रहे थे. खासतौर से उस समय जब राज ठाकरे की जगह शिवसेना में उद्धव ठाकरे का रास्ता साफ किया गया था. उस दौर में भी अनिल परब ने इस पूरे ऑपरेशन में बाल ठाकरे के साथ रहकर पर्दे के पीछे से अपनी भूमिका निभाई थी. तब से उद्धव ठाकरे और अनिल परब के बीच जो भरोसे का रिश्ता कायम हुआ, वह आज तक कायम है.
बाल ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ अनिल परब (बीच में)
2014 में अलग-अलग चुनाव लड़ने के बावजूद, चुनाव के बाद की परिस्थितियों में शिवसेना को भाजपा की देवेन्द्र फडणवीस सरकार को समर्थन देना पड़ा. फडणवीस की सरकार बन गई. लेकिन भाजपा और शिवसेना के मतभेद गहराते चले गए. साल 2017 आते-आते तो दोनों दलों में इतने ज्यादा मतभेद बढ़ गए कि शिवसेना ने मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया. इन चुनावों में शिवसेना की कमान संभाली उसके विधान पार्षद अनिल परब ने. चूंकि अनिल परब मुंबई के ही थे और सियासत, वकालत और केबल व्यवसाय की वजह से वे मुंबई के चप्पे-चप्पे की नब्ज से वाकिफ थे. उनके इस अनुभव का फायदा शिवसेना को मिला भी और वह मुंबई महानगरपालिका में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस चुनाव के बाद विधान परिषद् में भी अनिल परब को प्रमोशन दे दिया गया और वे शिवसेना के विधान परिषद् में फ्लोर लीडर बना दिए गए. साथ ही 2018 में उन्हें दोबारा विधान परिषद् भेजा गया.
जब अनिल परब मंत्री बनाए गए
2019 का साल था. मतभेद के बावजूद भाजपा और शिवसेना ने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव साथ-साथ लड़ा. लेकिन दोनों दलों के बीच भरोसा तो 2014 में ही खत्म हो चुका था. गठबंधन भी ऐसे ही चल रहा थास जैसे वो पुरानी कहावत है - दिल से दिल मिले न मिले, हाथ से हाथ मिलाते चलो. बस किसी प्रकार रिश्ता निभाया जा रहा था. लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो हालात ऐसे बन गए कि शिवसेना अपना मुख्यमंत्री बनाने की सोच सके. 288 सदस्यों की महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा को 104, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं. अब शिवसेना के पास दो विकल्प थे - पहला विकल्प था पूर्व की भांति भाजपा की जूनियर पार्टनर बनकर सरकार का हिस्सा बन जाना, जबकि दूसरा विकल्प एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार मुहैया करा रहे थे. इस दूसरे विकल्प में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के लिए मुख्यमंत्री बनने का मौका था. उद्धव ने भी दूसरा विकल्प ही चुना और तीन दलों (शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस) सरकार के मुख्यमंत्री बने. उनकी सरकार में अनिल परब को 2 बड़े विभागों (ट्रांसपोर्ट और संसदीय कार्य) का मंत्री बनाया गया. तब से लेकर अबतक उनकी गिनती उद्धव ठाकरे सरकार के सबसे ताकतवर मंत्रियों में होती रही है. पार्टी में रसूखदार तो वह पहले से ही माने जाते थे. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने 2005 में शिवसेना छोड़ी थी, तब भी उन्होंने पार्टी छोड़ने की वजहों में से एक वजह अनिल परब को ही बताया था. बकौल नारायण राणे, अनिल परब उन लोगों में शामिल थे जिन्होंने शिवसेना के भीतर राणे के खिलाफ माहौल बनाया था.

अनिल परब ने अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से खारिज किया है. (फ़ोटो क्रेडिट : Gettyimages)
अब क्या होगा?
लेकिन सचिन वाझे के आरोपों से घिरे अनिल परब अब क्या करेंगे - यह देखना दिलचस्प होगा. कुछ ही दिनों पहले ऐसे ही आरोपों की वजह से महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को भी इस्तीफा देना पड़ा है. हालांकि अनिल परब ने अपनी ओर से बचाव की हरसंभव कोशिशें शुरू कर दी हैं. इन आरोपों का जवाब देते हुए उन्होंने यह भी कहा है कि मैं स्वर्गीय बाल ठाकरे और अपनी दोनों बेटियों की कसम खाकर कहता हूं कि इस तरह की कोई डिमांड मैंने नहीं रखी थी, जिसके आरोप सचिन वाझे लगा रहा हैं. अब यही देखना है मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र की महायुति सरकार उनके पक्ष में कब तक खड़ी रह पाती है! या फिर क्या अनिल परब सचिन वाझे के आरोपों को गलत साबित कर पाने में कामयाब होंगे?