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सेना प्रमुख से लेकर CDS तक का सफर तय करने वाले जनरल बिपिन रावत के बारे में जानिए

जनरल बिपिन रावत 37 सालों के सैन्य करियर में उपलब्धियों की एक लंबी फेहरिस्त छोड़ गए हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जनरल बिपिन रावत (फाइल फोटो)
हेलिकॉप्टर क्रैश में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल बिपिन रावत  (General Bipin Rawat) का निधन हो गया. इस हादसे में उनकी पत्नी मधुलिका रावत की भी जान चली गई.  उनका जीवन साहस और शौर्य से भरा रहा है. इसके दम पर वह सेना के उस सर्वोच्च पद तक पहुंचे, जहां अब तक कोई नहीं गया था. आइए नजर डालें, उनके जीवन के अहम पड़ावों और उपलब्धियों पर.
जनरल रावत का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में 16 मार्च 1958 को एक सैन्य परिवार में हुआ था. उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत लेफ्टिनेंट जनरल के पद से 1988 में रिटायर हुए थे. बिपिन का बचपन सैन्य माहौल में ही बीता और यह उनके करियर की राह तय करने में निर्णायक साबित हुआ. उनकी शुरुआती पढ़ाई कैंब्रिज हाईस्कूल, देहरादून और सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला में हुई.
BIPIN RAWAT अपने गांव में लोगों के साथ बिपिन रावत (फाइल फोटो- आजतक)

जनरल बिपिन रावत में एक वॉरियर का जुनून ही नहीं था, उनमें पढ़ने की ललक भी कूट-कूटकर भरी थी. सैन्य करियर के दौरान भी वह कोई न कोई कोर्स और डिग्री हासिल करते रहे थे. उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की. आई.एम.ए देहरादून में उन्हें 'सोर्ड ऑफ ऑनर' से सम्मानित किया गया था. बाद में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से रक्षा एवं प्रबन्ध अध्ययन में एम फिल की डिग्री भी ली. फिर मद्रास विश्वविद्यालय से स्ट्रैटेजिक एंड डिफेंस स्टडीज में एमफिल किया और आखिरकार 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से सैन्य मीडिया अध्ययन. उन्होंने अपनी पीएचडी भी पूरी कर ली. सेना में रहते हुए हायर स्टडीज के लिए वह अमेरिका भी गए. वहां उन्होंने डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज से डिग्री ली और फोर्ट लिवरवर्थ में हायर कमांड कोर्स भी किया. सैन्य करियर बिपिन रावत को 16 दिसंबर1978 को सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में कमीशन मिला. उनकी पहली पोस्टिंग मिजोरम में हुई और वहीं उन्होंने इस बटालियन का नेतृत्व भी किया. वह सेना में शुरू से अपने जोश, बुद्धि और सैन्य कौशल के लिए अधिकारियों की नजरों में रहे और उन्हें जो भी काम सौंपा गया उसे पूरी निष्ठा और सफलता से अंजाम दिया.
बिपिन रावत ने सेना में रहते हुए शुरू से ही बड़े और अहम ऑपरेशन्स में भाग लिया. युद्धों के अलावा देश और विदेश में अशांत क्षेत्रों के मिलिट्री ऑपरेशंस में उनकी सक्रिय भागीदारी रही. इससे उन्हें शीर्ष पदों पर आने के बाद युद्ध की रक्षात्मक और आक्रमक नीतियां बनाने में मदद मिली. रावत ने दक्षिणी कमान के कमांडर और सह-सेनाध्यक्ष का पदभार भी संभाला था. उन्हें कांगो में मल्टीनेशनल ब्रिगेड की कमान के साथ-साथ यूएन मिशन में सेक्रेटरी जनरल और फोर्स कमांडर जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गईं. रावत को लिखने का भी शौक था और राष्ट्रीय सुरक्षा पर लिखे गए उनके अनेक लेख दुनिया भर के सैन्य जर्नल्स में प्रकाशित हुए.
CDS बनने की रेस में सबसे आगे चल रहे हैं सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत. वो फिलहाल तीनों सेनाध्यक्षों में सबसे सीनियर हैं और चीफ्स ऑफ स्टाफ कमिटी के अध्यक्ष भी. जनरल बिपिन रावत की फाइल फोटो.
युद्ध का अनुभव रावत के पास पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी, पाकिस्तान के साथ लगी नियंत्रण रेखा और पूर्वोत्तर में काम करने का अच्छा खासा अनुभव था. उन्होंने 1999 में करगिल युद्ध में भी भाग लिया और अहम मोर्चों पर फतह हासिल करने में सेना की मदद की. इसी युद्ध में सरकार को सैन्य ऑपरेशंस की कई खामियों का अंदाजा लगा और बाद में पता चला कि सेना के तीनों अंगों के बीच सामंजस्य की कमी है. तभी से तीनों सेनाओं के लिए एक चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) नियुक्त करने की कवायद तेज हो गई. रावत ने एलओसी के पार और पूर्वोत्तर में कई आतंकी ठिकानों पर हमले वाले सैन्य ऑपरेशंस की देखरेख की थी.
दिसंबर 2016 में जनरल रावत देश के 27 वें थलसेना प्रमुख बने. भारत सरकार ने उन्हें दो वरिष्ठ अफसरों लेफ्टिनेंट जनरल प्रवीन बक्शी और लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हारिज को दरकिनार कर भारतीय सेना की कमान सौंपी थी. इसके पीछे उनके अदम्य सैन्य कौशल, शौर्य और उपलब्धियों को आधार बताया गया.
जनरल बिपिन रावत की रक्षा नीति में आक्रमण और तकनीक के प्रयोग को अहम बताया जाता है. उरी हमले के बाद हुए सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर बालाकोट एयर-स्ट्राइक की रणनीति के पीछे भी उनका अहम रोल रहा है. जनरल रावत की रणनीतियों को मौजूदा सरकार का काफी भरोसा हासिल रहा और निधन से ऐन पहले तक वह कई बड़े प्लान पर काम कर रहे थे.
सेना अब तक का सबसे बड़ा पुनर्गठन कर रही है. जिसके प्रस्तावक थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत हैं.  जनरल बिपिन रावत की फाइल फोटो.
सेनाओं के चीफ 31 दिसंबर 2019 को भारत सरकार ने जनरल बिपिन रावत को देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) बनाने की घोषणा की. यह नियुक्ति उनके सेनाध्यक्ष पद से रिटायर होने के एक दिन पहले ही हुई. 1 जनवरी 2020 को उन्होंने तीनों सेनाओं के रक्षा प्रमुख के तौर पर पद ग्रहण कर लिया. इस पद पर नियुक्ति के लिए पहले भी सरकारें कोशिश करती रही थीं, लेकिन कई रणनीतिक और राजनीतिक वजहों से यह टलता रहा. सैन्य सुधार जनरल बिपिन रावत सैन्य सुधार की दिशा में अपने कामों के लिए भी जाने जाएंगे. सेना प्रमुख से लेकर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तक वह लगातार भारतीय सेना को आधुनिक और नई जरूरतों के अनुरूप तैयार करने पर जोर देते रहे. हथियारों के आधुनिकीकरण के साथ ही डिजिटल टेक्नॉलजी पर निवेश और निर्भरता के लिए वह सरकार को लगातार योजनाएं सुझाते रहे. पाकिस्तान से लगी सीमा, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर में सैन्य चुनौतियों से निपटने के लिए उन्होंने कई थियेटर कमान बनाने की सिफारिश की थी. वह सेनाओं को भविष्य में स्पेस वॉर के लिए भी सक्षम बनाने की बात करते रहे थे. पदक और सम्मान सेना में रहते जनरल बिपिन रावत को मिले पदक और सम्मान उनके उत्कृष्ट करियर और उपलब्धियों की गवाही देते हैं. उन्हें परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक, सेना पदक और विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया गया था.

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