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क्या इंदिरा गांधी को 'दुर्गा' कहकर पलट गए थे अटल बिहारी?

वाजपेयी बोले - इंदिरा ने अपने बाप नेहरू से कुछ नहीं सीखा.

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विजय त्रिवेदी की किताब ‘हार नहीं मानूंगा- एक अटल जीवन गाथा’. पूर्व पीएम और बीजेपी लीडर अटल बिहारी वाजपेयी के जिंदादिल किस्सों से भरी है ये किताब. इसे छापा है हार्पर कॉलिन्स ने. हम आपको इसी किताब से कुछ किस्से पढ़वा रहे हैं. आज अटल की बरसी है. इस मौके पर पढ़िए वो किस्सा, जिसमें आपको मालूम होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा था या नहीं.


साल था 1975. इमरजेंसी का दौर चल रहा था. आडवाणी, अटल एक संसदीय समिति की बैठक में हिस्सा लेने बंगलुरु गए थे. वहीं गिरफ्तार कर लिए गए. वहां तमाम लोगों ने सलाह दी कि कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण यानी हैबियस कॉप्रस दायर की जाए.
14 जुलाई 1975 को सुनवाई होनी थी. वाजपेयी की तबीयत खराब हो गई. अपेंडिसाइटिस का ऑपरेशन के लिए भर्ती हुए. चीरा लगा तो पता चला कि अपेंडिक्स तो ठीक है. दर्द की वजह कुछ और है. बाद में एम्स में स्लिप डिस्क का इलाज हुआ.
अटल बिहारी वाजपेयी पर विजय त्रिवेदी की किताब: हार नहीं मानूंगा - एक अटल गाथा
अटल बिहारी वाजपेयी पर विजय त्रिवेदी की किताब: हार नहीं मानूंगा - एक अटल जीवन गाथा

अदालत में कहा गया कि 21 जुलाई से संसद शुरू हो रही है. मधु लिमये, वाजपेयी वगैरह का रहना जरूरी है. अदालत ने 17 जुलाई की तारीख दी. 16 को नेताओं को छोड़ दिया गया. फिर गिरप्तार कर लिया गया. वाजपेयी और तीन नेताओं को एयरफोर्स के प्लेन से दिल्ली रवाना किया गया. सब रोहतक जेल भेजे गए. वाजपेयी एम्स में भर्ती हो गए. उस दौरान एक नर्स से प्रेम प्रसंग का किस्सा भी उड़ा.
वाजपेयी दिल्ली में थे. वहीं पर देवी प्रसाद त्रिपाठी उर्फ डीपीटी भी भर्ती थे. दोनों को प्राइवेट कमरे. दोनों खाने-पीने के शौकीन. वाजपेयी ने डीपीटी से पूछा - देवी प्रसाद, शाम की क्या व्यवस्था है. डीपीटी नीचे उतरे. पीसीओ से एक आईएफएस अफसर की बहन को फोन किया. उम्दा विह्स्की की इंतजाम हो गया.
वाजपेयी ने चिकन और चखने का इंतजाम किया. शाम को बैठक सजी. वाजपेयी ने डीपीटी से कहा, 'इंदिरा ने अपने बाप नेहरू से कुछ नहीं सीखा. मुझे दुख है कि मैंने उन्हें दुर्गा कहा.'
ये किस्सा मशहूर टीवी पत्रकार विजय त्रिवेदी ने अपनी किताब हार नहीं मानूंगा - एक अटल जीवन गाथा में वाजपेयी के एक दोस्त के हवाले से लिखा है. इस किस्से का एक सिरा और भी है, किताब के बाहर.
जब वाजपेयी इस घटना के दो दशक बाद पीएम बन गए, तो उन्होंने एक और टीवी पत्रकार रजत शर्मा को दिए इंटरव्यू में दुर्गा वाले कथन से साफ इनकार कर दिया. अटल ने तब कहा, मैंने इंदिरा के लिए दुर्गा उपमा का इस्तेमाल नहीं किया था. कुछ अखबारों ने कही-सुनी बातों के आधार पर यह खबर छाप दी. मैंने अगले दिन इसका खंडन किया, तो उसे कोने में समेट दिया गया.
दुर्गा कहा हो या न कहा हो. मगर कांग्रेसी सत्ता के दुर्ग में सेंध लगाकर वाजपेयी ने अपनी पताका तो फहरा ही दी थी राजनीति के उत्तरार्ध में. वह देश के पहले गैरकांग्रेसी पीएम थे, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया.


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