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आशुतोष राणा ने अपने पिता को याद करते हुए जो किस्सा लिखा, वो सबको पढ़ना चाहिए

जब मां-बाबूजी को इम्प्रेस करने के चक्कर में बड़ी सीख मिल गई.

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जब आशुतोष राणा के पिता ने उन्हें स्कूल और विद्यालय का फर्क समझाया.
ये लेख आशुतोष राणा ने अपने पिता को याद करते हुए 2016 में फेसबुक पर लिखा था. लल्लनटॉप के पाठकों को भी एक बार आशुतोष के पिता के जीवन की बहुमूल्य सीख देने वाले इस वाकये के बारे में पढ़ना चाहिए.
आज मेरे पूज्य पिताजी का जन्मदिन है, सो उनको स्मरण करते हुए एक घटना साझा कर रहा हूं.
बात सत्तर के दशक की है. जब हमारे पूज्य पिताजी ने हमारे बड़े भाई मदनमोहन, जो रॉबर्ट्सन कॉलेज जबलपुर से M.Sc कर रहे थे, की सलाह पर हम 3 भाइयों को बेहतर शिक्षा के लिए गाडरवारा के कस्बाई विद्यालय से उठाकर जबलपुर शहर के क्राइस्टचर्च स्कूल में दाख़िला करा दिया. मध्य प्रदेश के महाकौशल अंचल में क्राइस्टचर्च उस समय अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों में अपने शीर्ष पर था. पूज्य बाबूजी व मां हम तीनों भाइयों ( नंदकुमार, जयंत, और मैं) का क्राइस्टचर्च में दाख़िला करा हमें हॉस्टल में छोड़ कर अगले रविवार को फिर मिलने का आश्वासन दे कर वापस चले गए.
मुझे नहीं पता था कि जो इतवार आने वाला है, वह मेरे जीवन में सदा के लिए चिन्हित होने वाला है. इतवार का मतलब छुट्टी होता है, लेकिन सत्तर के दशक का वह इतवार मेरे जीवन की छुट्टी नहीं 'घुट्टी' बन गया.
इतवार की सुबह से ही मैं आह्लादित था. ये मेरे जीवन के पहले सात दिन थे जब मैं बिना मां-बाबूजी के अपने घर से बाहर रहा था. मन मिश्रित भावों से भरा हुआ था. हृदय के किसी कोने में मां-बाबूजी को इम्प्रेस करने का भाव बलवती हो रहा था. यही वो दिन था जब मुझे प्रेम और प्रभाव के बीच का अंतर समझ आया. बच्चे अपने माता-पिता से सिर्फ़ प्रेम ही पाना नहीं चाहते, वे उन्हें प्रभावित भी करना चाहते हैं. दोपहर 3:30 बजे हम हॉस्टल के विज़िटिंग रूम में आ गए.
आशुतोष राणा अपने पिता के साथ.
आशुतोष राणा अपने पिता के साथ.


ग्रीन ब्लेज़र, वाइट पैंट, वाइट शर्ट, ग्रीन एंड वाइट स्ट्राइब वाली टाई और बाटा के ब्लैक नॉटी बॉय शूज़.. ये हमारी स्कूल यूनीफ़ॉर्म थी. हमने विज़िटिंग रूम की खिड़की से स्कूल कैम्पस के मेन गेट से हमारी मिलेट्री ग्रीन कलर की ओपन फ़ोर्ड जीप को अंदर आते हुए देखा, जिसे मेरे बड़े भाई मोहन ,जिन्हें पूरा घर भाईजी कहता था, ड्राइव कर रहे थे,और मां बाबूजी बैठे हुए थे. मैं बेहद उत्साहित था, मुझे अपने पर पूर्ण विश्वास था कि आज इन दोनों को इम्प्रेस कर ही लूंगा. मैंने पुष्टि करने के लिए जयंत भैया, जो मुझसे 6 वर्ष बड़े हैं, उनसे पूछा मैं कैसा लग रहा हूं ? वे मुझसे अशर्त प्रेम करते थे मुझे ले कर प्रोटेक्टिव भी थे, बोले शानदार लग रहे हो. नंद भैया ने उनकी बात का अनुमोदन कर मेरे हौसले को और बढ़ा दिया. जीप रुकी..
आशुतोष राणा अपने पिता संग. (फ़ोटो उनकी फेसबुक वाल से ली है )
आशुतोष राणा अपने पिता संग. (फ़ोटो उनकी फेसबुक वाल से ली है )


उलटे पल्ले की गोल्डन ऑरेंज साड़ी में मां और झक्क सफ़ेद धोती कुर्ता गांधी टोपी और काली जवाहर बंड़ी में बाबूजी उससे उतरे. हम दौड़ कर उनसे नहीं मिल सकते थे, ये स्कूल के नियमों के ख़िलाफ़ था. सो मीटिंग हॉल में जैसे सैनिक विश्राम की मुद्रा में अलर्ट खड़ा रहता है, एक लाइन में तीनों भाई खड़े मां बाबूजी का अपने पास पहुंचने का इंतज़ार करने लगे. जैसे ही वे क़रीब आए, हम तीनों भाइयों ने सम्मिलित स्वर में अपनी जगह पर खड़े-खड़े Good evening Mummy, Good evening Babuji कहा.
मैंने देखा Good Evening सुनके बाबूजी हल्का सा चौंके, फिर तुरंत ही उनके चहरे पर हल्की स्मित आई जिसमें बेहद लाड़ था. मैं समझ गया कि ये प्रभावित हो चुके हैं. मैं जो मां से लिपटा ही रहता था, मां के क़रीब नहीं जा रहा था ताकि उन्हें पता चले कि मैं इंडिपेंडेंट हो गया हूं. मां ने अपनी स्नेहसिक्त मुस्कान से मुझे छुआ. मैं मां से लिपटना चाहता था, किंतु जगह पर खड़े-खड़े मुस्कुराकर अपने आत्मनिर्भर होने का उन्हें सबूत दिया. मां ने बाबूजी को देखा और मुस्कुरा दीं, मैं समझ गया कि ये प्रभावित हो गईं हैं. मां, बाबूजी, भाईजी और हम तीन भाई हॉल के एक कोने में बैठ बातें करने लगे, हमसे पूरे हफ़्ते का विवरण मांगा गया, और 6:30 बजे के लगभग बाबूजी ने हमसे कहा कि अपना सामान पैक करो, तुम लोगों को गाडरवारा वापस चलना है, वहीं आगे की पढ़ाई होगी.
हमने अचकचा के मां की तरफ़ देखा, मां बाबूजी के समर्थन में दिखाई दीं. हमारे घर में प्रश्न पूछने की आज़ादी थी. घर के नियम के मुताबिक़ छोटों को पहले अपनी बात रखने का अधिकार था, सो नियमानुसार पहला सवाल मैंने दागा और बाबूजी से गाडरवारा वापस ले जाने का कारण पूछा ? उन्होंने कहा रानाजी मैं तुम्हें मात्र अच्छा विद्यार्थी नहीं, एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता हूं. तुम लोगों को यहां नया सीखने भेजा था, पुराना भूलने नहीं. कोई नया यदि पुराने को भुला दे तो उस नए की शुभता संदेह के दायरे में आ जाती है, हमारे घर में हर छोटा अपने से बड़े परिजन, परिचित,अपरिचित जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसके चरण स्पर्श कर अपना सम्मान निवेदित करता है. लेकिन देखा कि इस नए वातावरण ने मात्र सात दिनों में ही मेरे बच्चों को परिचित छोड़ो अपने माता-पिता से ही चरण स्पर्श की जगह Good Evening कहना सिखा दिया.
रेणुका और आशुतोष की शादी की तस्वीर. बीच में पिताजी बैठे हैं.
रेणुका और आशुतोष की शादी की तस्वीर. बीच में पिताजी बैठे हैं.


मैं नहीं कहता कि इस अभिवादन में सम्मान नहीं है. किंतु चरण स्पर्श करने में सम्मान होता है, यह मैं विश्वास से कह सकता हूं. विद्या व्यक्ति को संवेदनशील बनाने के लिए होती है, संवेदनहीन बनाने के लिए नहीं होती.  मैंने देखा तुम अपनी मां से लिपटना चाहते थे लेकिन तुम दूर ही खड़े रहे, विद्या दूर खड़े व्यक्ति के पास जाने का हुनर देती है न कि अपने से जुड़े हुए से दूर करने का काम करती है. आज मुझे विद्यालय और स्कूल का अंतर समझ आया, व्यक्ति को जो शिक्षा दे वह विद्यालय, जो उसे सिर्फ़ साक्षर बनाए वह स्कूल, मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे सिर्फ़ साक्षर हो के डिग्रीयों के बोझ से दब जाएं. मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर दर्द को समझने, उसके बोझ को हल्का करने की महारत देना चाहता हूं. मैंने तुम्हें अंग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए भेजा था, आत्मीय भाव भूलने के लिए नहीं. संवेदनहीन साक्षर होने से कहीं अच्छा संवेदनशील निरक्षर होना है.  इसलिए बिस्तर बांधो और घर चलो. हम तीनों भाई तुरंत मां-बाबूजी के चरणों में गिर गए, उन्होंने हमें उठा कर गले से लगा लिया व शुभआशीर्वाद दिया कि किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो.. पूज्य बाबूजी जब भी कभी थकता हूं या हार की कगार पर खड़ा होता हूं, तो आपका यह आशीर्वाद "किसी और के जैसे नहीं, स्वयं के जैसे बनो" संजीवनी बन नव ऊर्जा का संचार कर हृदय को उत्साह उल्लास से भर देता है. आपको शत् शत् प्रणाम.

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