The Lallantop

देश के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है? एक क्लिक में सब जानिए!

आज राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है. द्रौपदी मुर्मू NDA की उम्मीदवार हैं और यशवंत सिन्हा विपक्ष के प्रत्याशी हैं.

Advertisement
post-main-image
विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार यशवंत सिन्हा और NDA की कैंडिडेट द्रौपदी मुर्मू. (इंडिया टुडे)

देश में आज नए राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है. पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और देश के सभी सांसद और विधायक अपनी अपनी पार्टी लाइन के मुताबिक राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोट कर रहे हैं. आज मतदान हो रहा है और 21 जुलाई को वोटों की गिनती के साथ देश के नए राष्ट्रपति के नाम का ऐलान हो जाएगा. लेकिन ये राष्ट्रपति चुनाव है. और राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती उतनी सरल नहीं है जितनी जब सांसद और विधायक चुनते हैं तब होती है. सांसद भी वोट करते हैं और विधायक भी. लेकिन सबके वोटों की एक वैल्यू होती है. तो राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के साथ साथ आज आप ये भी जान लीजिए कि राष्ट्रपति चुनाव की प्रकिया क्या है, वोटों की गिनती कैसे होती है. किसके वोट का वेटेज ज्यादा होता है, किसका कम?

Advertisement
राष्ट्रपति भवन. ( Credit- Presidential Secretariat)

कौन चुनता है हमारा राष्ट्रपति?

हमारे देश के राष्ट्रपति हैं. हम इन्हें क्यों नहीं चुनते? जैसा अमेरिका में होता है. वहां तो राष्ट्रपति के चुनाव में हर आदमी वोट डालता है, यहां पर हमने कभी वोट नहीं डाले. दरअसल हमारे देश का राष्ट्रपति हम ही चुनते हैं. सीधे तौर पर नहीं. हमारे चुने हुए विधायक और सांसद इस चुनाव में हमारी नुमाइंदगी करते हैं.

हमारे देश में नौ राज्यों में विधानपरिषद है. साधारण भाषा में इनके सदस्यों को एमएलसी कहते हैं. ये लोग इस चुनाव में वोट नहीं डाल सकते. इसके अलावा राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा 12 मनोनीत सदस्य होते हैं. इन लोगों को भी इस चुनाव में वोट डालने का अधिकार नहीं होता है. कारण यह है कि इस सदस्यों को जनता सीधे तौर पर अपना प्रतिनिधि नहीं चुनती है. फिर तो इस हिसाब से राज्यसभा सदस्यों को भी वोट डालने का अधिकार नहीं होना चाहिए. राज्यसभा के सदस्य भी तो सीधे नहीं चुने जाते. दरअसल राज्यसभा के सदस्य राज्य का केंद्र में प्रतिनिधित्व करते हैं. इसलिए उन्हें इस चुनाव में वोट डालने का अधिकार होता है.

Advertisement
एक वोट की कीमत अलग-अलग क्यों?

हम अक्सर बात करते हैं कि राष्ट्रपति के चुनाव में फलाने उम्मीदवार को इतने मूल्य के वोट मिले. सीधा क्यों नहीं बोलते हैं कि इतने वोट मिले. ये मूल्य का क्या चक्कर है? देश के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की जनसंख्या अलग-अलग है. सब धान 22 पसेरी तो नहीं हो सकता. इस चुनाव में हर एक वोट की औकात अपने राज्य की जनसंख्या के हिसाब से तय होती है. ताकि हर वोट सही मायने में जनता की नुमाइंदगी करे.

चुनाव से पहले रखा बैलेट बॉक्स. (ANI)

कैसे तय होता है वोट का मूल्य?

जैसा कि पहले से बताया जा चुका है कि किसी भी विधायक का वोट उस राज्य की जनसंख्या के आधार पर तय होता है. लेकिन इसमें एक पेच है. यह हाल की जनसंख्या के आधार पर तय नहीं हो रहा है. इसके लिए 1971 की जनसंख्या को आधार बनाया गया है. विधायक और सांसद के वोट का मूल्य तय करने का तरीका अलग-अलग है.

विधायक के वोट का मूल्य एक साधारण फॉर्म्युले से तय होता है. सबसे पहले हम उस राज्य की जनसंख्या (1971 की जनसंख्या के हिसाब से) रख देते हैं. इसके बाद हम उस राज्य के कुल विधायकों की संख्या को 1000 से गुणा कर देते हैं. जो संख्या प्राप्त होती है उसका भाग कुल जनसंख्या में दे देते हैं. जवाब में जो संख्या प्राप्त होती है वही उस राज्य के विधायक के वोट का मूल्य होता है.

Advertisement

मसलन पश्चिम बंगाल की 1971 की जनगणना के हिसाब से कुल जनसंख्या 44,312,011 है. वहां कुल विधायक हैं 294. जब हम 294 को 1000 से गुणा करते हैं तो जवाब आता है 294000. अब 44,312,011 में जब हम 294000 का भाग देते हैं तो जवाब आता है 150.72. अब वोट दशमलव वाली संख्या तो नहीं हो सकता. इसके लिए नियम यह बनाया गया है कि अगर भाग देने के बाद जितना शेषफल बचता है उसे प्रति हजार के हिसाब से एक मूल्य गिन लिया जाता है. इस हिसाब से बंगाल का एक विधायक का मूल्य हुआ 151. सिक्किम के एक विधायक के वोट की कीमत महज 7 है, जोकि देश में सबसे कम है. उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट की कीमत 208 है. यह देश में सबसे ज्यादा है.

वोट का मूल्य

सांसदों के वोट की कीमत तय करने का तरीका तो और भी आसान है. सबसे पहले देश भर के सभी विधायकों के वोट की कीमत जोड़ ली जाती है. इसके बाद उसमें राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों की संख्या को जोड़ कर उसका भाग दे दिया जाता है. जो संख्या मिलती है वही एक सांसद के वोट की कीमत होती है. मसलन उत्तर प्रदेश में 403 विधायक है. एक विधायक के वोट की कीमत 208 है. जब हम 208 को 403 से गुणा कर देते हैं तो सभी विधायकों के वोट की कुल कीमत 83,824 आ जाती है. इसी तरह से हर राज्य के सभी विधायकों के वोट की कीमत को जोड़ लिया जाता है. यह संख्या 543,231 है.

राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डालते पीएम मोदी. (ANI)

 
राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 233 है. लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या 543 है. कुल मिलाकर हुए 776. अब 543,231 में 776 का भाग देने पर हमें जवाब मिलता है 700. विधायकों और सांसदों के कुल वोट को मिलाकर कहा जाता है, 'इलेक्टोरल कॉलेज.' यह संख्या बैठती है, 10,86,431

कैसे होता है चुनाव?

इस चुनाव में कोई भी पार्टी व्हिप जारी नहीं कर सकती. व्हिप का मतलब होता है एक किस्म का आदेश. जब किसी ख़ास मुद्दे जैसे अविश्वास प्रस्ताव वगैरह पर संसद में वोटिंग होती है तो हर पार्टी की तरफ से एक व्हिप जारी की जाती है कि पार्टी का हर सांसद या विधायक अमुक मसले पर अमुक पक्ष में वोट डालेगा. अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसकी सदस्यता निरस्त हो जाती है. इस चुनाव में ऐसी कोई व्हिप जारी नहीं की जा सकती है.

चुनाव में दो रंग के मतपत्र होते हैं. पहला हरे रंग का जिस पर सांसद अपना वोट देंगे. दूसरा गुलाबी रंग का जिस पर विधायक अपना वोट देंगे. आम चुनाव की तरह यहां उम्मीदवार के नाम के सामने मोहर नहीं लगाई जाती. बल्कि नंबर लिखा जाता है. जिस उम्मीदवार को पहली वरीयता का वोट देना है उसके नाम के सामने 1 लिख दिया जाता है. जिस उम्मीदवार को दूसरी वरीयता का वोट देना है, उसके सामने 2 लिख दिया जाता है. अगर कोई विधायक या सांसद अपना वोट देते वक़्त नंबर की जगह शब्द लिख दे तो वो वोट अमान्य हो जाता है. कोई भी सदस्य अपने पेन से वोट नहीं दे सकता. वोट देने के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित ख़ास बैंगनी रंग के पेन का इस्तमाल किया जाता है.

क्या है वरीयता वोट?

मान लीजिए मैं बंगाल का विधायक हूं. मेरे पास 151 कीमत का वोट है. क्योंकि कोई व्हिप जारी नहीं की गई है, तो मैं अपनी मर्जी के हिसाब से वोट दे सकता हूं. तो क्या मैं एक उम्मीदवार को 100 मूल्य के वोट दे सकता हूं और दूसरे को 51 मूल्य का? ऐसा नहीं है. वोट एक ही लगेगा. बस उसमें आपको अपनी पसंद चुनने का हक़ है. जिस उम्मीदवार को आप राष्ट्रपति बनाना चाहते हैं उसे पहली वरीयता का वोट देंगे. अगर वो ना जीत पाए तो आप अपनी दूसरी वरीयता का वोट देते हैं.

ऐसे वरीयता वाला वोट दिलवाने की जरुरत कहां पड़ी? मतलब एक ही उम्मीदवार को वोट दो और काम खत्म. दरअसल इस चुनाव में सबसे ज्यादा वोट लाने भर से कोई उम्मीदवार जीत नहीं जाता. उसे कम से कम 50 फीसदी से एक वोट ज्यादा हासिल करना जरूरी है. जब किसी भी उम्मीदवार को 50 फीसदी वोट नहीं हासिल होते तो दूसरी वरीयता के वोट गिने जाते हैं. इसमें जिसके सबसे ज्यादा वोट होते हैं, वो उम्मीदवार जीत जाता है. 1969 में वीवी गिरी के चुनाव में फैसला दूसरी वरीयता के वोट की गिनती के बाद आया था.

तो इस तरह चुने जाते हैं हमारे महामहिम. अगर आपको अब कोई संदेह रह गया हो तो आप हमें मेल करके, या कमेंट बॉक्स में लिख कर अपने सवाल पूछ सकते हैं.

नेतानगरी में राष्ट्रपति चुनाव पर क्या चर्चा हुई?

Advertisement