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कहानी बाघिन अवनी की, जिसकी लड़ाई अब भी लड़ी जा रही है

अवनी किलिंग से प्रेरित है फिल्म शेरनी

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विद्या बालन की एक फिल्म आई है शेरनी. इसकी कहानी अवनी नाम की बाघिन की असल कहानी से प्रेरित है. अवनी को मारने के बाद देश में काफी बवाल हुआ था. (फोटो-इंडिया टुडे-स्क्रीन ग्रैब)
"जब आप जंगल में शेर देखने 100 बार जाते हैं तो आपको एक बार शेर देखने को मिलता है, लेकिन आप ये बात ध्यान रखिए कि शेर आपको 99 बार देख चुका होता है."
हाल ही में अमेजन प्राइम पर रिलीज़ हुई फिल्म शेरनी (Sherni) का ये डायलॉग बताता है कि जंगल पर पहला हक किसका है. यकीनन जंगल के बाशिंदे जानवरों का. इस फिल्‍म का नाम शेरनी एक उपमा है- नरभक्षी बाघिन टी-12 और विद्या विंसेंट के लिए. फिल्म में विद्या विंसेट एक फॉरेस्ट ऑफिसर हैं और उनका किरदार विद्या बालन ने निभाया है. य‍ह फिल्‍म अवनी यानी T1 नाम की बाघिन के शिकार की असल घटना से प्रेरित है. इस बाघिन ने महाराष्‍ट्र के यवतमाल जिले में पंढारकवड़ा-रालेगांव के जंगलों में 2016 से 2018 के बीच 13 लोगों का तथाकथित शिकार करके उन्‍हें अपना ग्रास बनाया था. इसे नरभक्षी घोषित करके मारने का आदेश दे दिया गया. लेकिन लोग इसके खिलाफ खड़े हो गए. फिर क्या हुआ? आइए जानते हैं अवनी बाघिन की कहानी में. वो धरती जो अवनी का घर था महाराष्ट्र का यवतमाल जिला. इलाका पंढारकवड़ा. इलाका ऐसा कि जहां तक देखो जंगल ही जंगल. जंगलों में इंसान की रिहाइश ऐसी कि हरी चादर के बीच-बीच में पैबंद जैसी. ऐसे ही इलाके में एक गांव है बोराती. गांव में ज्यादातर लोग गरीब हैं. ज्यादातर कॉटन, सोयाबीन और चने की खेती से ही गुजारा करते हैं. कुछ ने कई मवेशी रखे हुए हैं जिनसे गुजारा होता है. पूरा इलाका फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधीन आता है. लेकिन जंगल में जाकर मवेशियों को चराने का अधिकार गांव में रहने वालों को मिला हुआ है. मवेशी चराने के दौरान गांव के कुछ जियाले बाघ को देखने के किस्से तो सुनाते थे, लेकिन कभी किसी का इससे साबका नहीं पड़ा था. 2016 तक सबकुछ ठीक था. उसके बाद इस गांव के आसपास कुछ ऐसा हुआ कि सबकुछ हमेशा के लिए बदल गया.
मई महीने में जंगल में मवेशी चराने गई सोनाबाई घोसले की लाश मिली. पूरी लहूलुहान. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को खबर की गई. इसे इंसान और जानवर के अचानक सामने आ जाने का मामला मान कर जांच की गई. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट जानता था कि यह इलाका दो बाघ का है. बोराती गांव और आसपास का 170 किलोमीटर का ये पूरा इलाका अवनी और उसके पार्टनर नर बाघ का था. गांववाले भी इसे अलहदा घटना मानकर अपने काम पर लग गए. थोड़े चौकन्ने रहे, लेकिन कोई पैनिक नहीं हुआ. कुछ ही महीनों के भीतर इलाके के आसपास 4 और मौते हुईं. सभी में एक बात कॉमन. मरने वाले सभी मवेशी चराने जंगल में गए थे और लाश काफी क्षत-विक्षत थी. अब फॉरेस्ट डिपार्टमेंट इस बात को समझ चुका था कि इलाके में कोई शेर इंसानों पर लगातार हमला कर रहा है. लेकिन कौन, इसका पता लगाना अभी बाकी था. कैसे पता चला कि अवनी ने सबको मारा? फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने मामले को रिपोर्ट किया और शेर को पहचाने का एक्शन शुरू हुआ. असल में इंसान और शेर के बीच किसी भी तरह का संघर्ष होने पर नेशनल टाइगर कॉन्जर्वेशन अथॉरिटी फैसला लेती है. इस अथॉरिटी की गाइडलाइन पर ही आगे का एक्शन लिया जाता है. अगस्त 2017 में मामले को लेकर कमेटी बना दी गई और शेर को पहचानने का काम शुरू हो गया. पहचान करने के लिए मूल रूप से दो तरीके अपनाए जाते हैं.
# इलाके में कैमरा ट्रैप लगाना जिसमें उस शेर की तस्वीर खिंच जाए #  अगला शिकार होने पर शेर का डीएनए सैंपल लिया जाए और पहचान की जाए
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट बताते हैं कि शेर का मूल स्वभाव होता है कि वह एक बार शिकार मिलने के बाद उस जगह पर बार-बार आता है. ऐसे में जहां पहले हमला हो चुका होता है वहां पर नाइट विजन सुविधा वाले कैमरे लगाए जाते हैं. हमला करने वाला शेर जैसे ही इलाके में दोबारा आता है उसकी तस्वीरें खींची जाती हैं. दूसरे तरीके में शिकार हुए इंसान के शरीर से शेर के डीएनए सैंपल उठाए जाते हैं. मरने वाले के घाव पर से शेर की लार के सैंपल लिए जाते हैं. शेर के बाल भी काफी झड़ते हैं ऐसे में शिकार के ऊपर बाल भी मिलते हैं. इनके जरिए भी डीएनए सैंपलिंग की जाती है. इन डीएनए के जरिए यह तो सटीक नहीं बताया जा सकता कि कौन सा शेर था, लेकिन यह जरूर बताया जा सकता है कि शेर की उम्र और लिंग क्या था.
इधर इलाके में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट आमदखोर शेर को पहचानने में जुटा था, उधर इन सब बातों से बेफिक्र शेर शिकार कर रहा था. 2017 के आखिर तक आते-आते शिकार होने वालों का नंबर 10 तक पहुंच गया. अब इलाके में अफरातफरी बढ़ती जा रही थी. फॉरेस्सट डिपार्टमेंट पर भी लगातार दबाव बढ़ रहा था. इस बीच कैमरे और डीएनए सैंपल से तस्दीक हो चुकी थी कि, इलाके में शिकार करने वाली बाघिन है और उसकी उम्र भी उतनी ही है जितनी T1 यानी अवनी की है. आंकड़े और तस्वीरें बता रही थीं कि अवनी और इंसान आमने-सामने आ चुके हैं. जल्द ही कुछ किया जाना जरूरी है. अवनी का मामला हाईकोर्ट पहुंचा 2 नवंबर 2018 को इस बात की आधिकारिक तस्दीक कर ली गई कि अवनी ही 13 लोगों को मारने की जिम्मेदार है. इसे जनता का बढ़ता दबाव कहें या फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की बेसब्री, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने अवनी को मारने का आदेश दे दिया. इस तरह के आदेश का प्रावधान भारत के वाइल्ड लाइफ लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 में किया गया है. एक्ट यहां क्लिक
करके पढ़ सकते हैं. इस एक्ट का सेक्शन 11 कहता है कि
"अगर चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को संतुष्टि है कि कोई जानवर इंसानी जिंदगी के लिए खतरा बन गया है और उसे पकड़ा जाना मुमकिन नहीं है तो वह अपने लिखित आदेश में कारण बताते हुए किसी भी इंसान को उस जानवर का शिकार करने का आदेश दे सकता है."
अवनी को मारने का आदेश आने के बाद वाइल्ड लाइफ को लेकर चिंतित लोगों में खलबली मच गई. अवनी के शिकार के आदेश को चुनौती देने के लिए लोगों ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा,
"फॉरेस्ट डिपार्टमेंट शेर को पहले बेहोश करने और असफल होने पर उसे मार देने के आदेश से बंधा हुआ है. बाघिन को बेहोश किया जाएगा और बचाव केंद्र भेजा जाएगा. अगर T1 (अवनी) के साथ ऐसा करने में असफलता मिलती है तो किसी भी इंसान को मरने से बचाने के लिए उसे गोली मारी जा सकती है. यवतमाल के सक्षम अधिकारी इस आदेश को देने के लिए अधिकृत हैं. लेकिन वह बाघिन को मारने वाले को किसी भी तरह का ईनाम या प्रोत्साहन राशि नहीं दे सकते."
11 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बदलने से इंकार कर दिया. अब अवनी के आखिरी दिनों की गिनती शुरू हो चुकी थी. अवनी की चिंता करने वाले यही आस लगाए थे कि उसे बेहोशी की दवा देकर पकड़ लिया जाए.
Avni T1 Tigress
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अवनी के शिकार को नियम के अनुसार बताया और सुप्रीम कोर्ट ने भी शिकार रोकने से मना कर दिया. यह तस्वीर तब की है जब अवनी को मरने के बाद पोस्टमॉर्टम के लिए नागपुर लाया गया. (फोटो-इंडिया टुडे)
अवनी का शिकार इधर अवनी को बचाने के लिए लोग हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हुए थे, उधर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट एक खास टीम तैयार कर रहा था. पंढारकवड़ा इलाके में लोनी नाम के गांव के पास कैंप बनाया गया. ड्रोन से लेकर कैमरे तक अवनी को खोजने में लग गए. अवनी के शिकार के लिए हैदराबाद के नवाब परिवार से ताल्लुक रखने वाले प्राइवेट शिकारी नवाब शफत अली खान और उनके बेटे असगर खास तौर पर बुलाए गए. इसे लेकर बहुत बवाल शुरू हुआ. मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद मेनका गांधी ने भी हस्तक्षेप किया और शिकारी नवाब वापस भेजे गए. इसके बाद सितंबर 2018 में मध्य प्रदेश से एक्सपर्ट्स की टीम बुलाई गई. ये टीम अपने साथ चार हाथी लेकर आई. एक पांचवे हाथी को मदद के लिए तादोबा अंधेरी टाइगर रिजर्व चंद्रपुर से बुलाया गया. यह हाथी मौके पर पहुंचा, लेकिन एक रात बेकाबू हो गया. उसने इलाके में उत्पात मचा दिया और 2 लोगों को मार डाला.
इस बीच हंगामे में महाराष्ट्र के तत्कालीन फॉरेस्ट मिनिस्टर सुधीर मुंगेकर भी कूद पड़े. उन्होंने नवाब शफत अली खान और उनके बेटे असगर अली को वापस बुला लिया. इलाके के सीनियर फॉरेस्ट ऑफिसर को पंधारकावाड़ा इलाके में तैनात कर दिया गया. इस हिदायत के साथ, कि जब तक अवनी को को पकड़ा या मारा नहीं जाता वह इलाके से नहीं हटेंगे. इसे लेकर नागपुर में फिर से प्रदर्शन शुरू हो गए.
आखिर में 3 नवंबर 2018 को महाराष्ट्र के फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने स्टेटमेंट जारी करके बताया कि T1 यानी अवनी को पिछली रात 11 बजे मार गिराया गया. आधिकारिक बयान में कहा गया किबाघिन अवनी को बेहोश करने की कोशिश की गई, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली. उसके बाद बाघिन ने पेट्रोलिंग पार्टी पर हमला बोल दिया. असगर अली जो खुली जीप में थे उन्होंने आत्मरक्षा में गोली चला दी. इस बयान को लेकर भी बाद में भारी विवाद हुआ. शिकार करने वाले असगर अली ने बताया,
"हम पिछले एक महीने से इलाके में कैंप कर रहे थे. हमें जानकारी मिली कि एक लोकल मार्केट के पास T1 को देखा गया है. हम वन विभाग के कुछ लोगों के साथ मौके पर पहुंचे और उसे बेहोश करने के लिए डार्ट (बेहोशी के इंजेक्शन वाली गोली) चलाए. जैसे ही बेहोशी वाले डार्ट उसे लगे उसने हम पर हमला बोल दिया. हमने आत्मरक्षा में गोली चला दी."
 
Asgar Ali Avni
शिकारी असगर अली खान ने अवनी का शिकार किया. कहा आत्मरक्षा में गोली चलाई. हालांकि बाद में उनके दावे पर सवाल उठे. (तस्वीर-इंडिया टुडे)

इस शिकार को लेकर तीखी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई. तब मेनका गांधी ने ट्वीट किया था.
"जिस तरह से अवनी बाघिन की निर्मम हत्या की गई है उससे मैं बहुत दुखी हूं."
आदित्य ठाकरे ने उस वक्त किए ट्वीट में लिखा
"फॉरेस्ट मिनिस्टर का नाम बदल कर शिकारी मंत्री रख देना चाहिए. बेहद शर्म की बात है."

 

अवनी के शिकार पर NTCA ने उठाए गंभीर सवाल

अवनी के शिकार पर बवाल होने के बाद नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने मामले की जांच के लिए 8 नवंबर 2018 को 2 सदस्यों की एक जांच कमेटी बनाई. इसके सदस्य रिटायर्ड एडिशनल प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट ओ. पी. कालेर और वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के सदस्य जोस लुइस शामिल थे. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 27 नवंबर 2018 को सौंपी. रिपोर्ट में महाराष्ट्र सरकार को जम कर लताड़ा गया था. पूरे मामले में महाराष्ट्र सरकार की अप्रोच को बहुत कैजुअल और प्लानिंग को बहुत बुरा कहा गया. इस रिपोर्ट में ये मुख्य बातें कहीं गईं.

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# अवनी को मारने वाले शिकारियों और अथॉरिटी के बीच किसी तरह का कोऑर्डिनेशन नहीं था.

# बेहोशी की दवा सप्लाई करने वाले डॉक्टर काडू ने बेहोशी का जो डार्ट सप्लाई किया था उसे 24 घंटे के भीतर इस्तेमाल किया जाना था. फॉरेस्ट कंजर्वेशनिस्ट मुखबिर शेश ने इसे 56 घंटे बाद इस्तेमाल किया. यही वजह है कि अवनी बेहोश नहीं हुई और उसे मारना पड़ा. मुखबिर शेख को सिर्फ अवनी को खोजने का काम करना था. अवनी को डार्ट मारने का काम एक्सपर्ट का होना चाहिए.

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# जो टीम अवनी को पकड़ने गई थी उसका वेटेनरी टीम के साथ कोई कोऑर्डिनेशन नहीं था. अवनी को बेहोश करने के लिए जिस डार्ट का इस्तेमाल किया गया उसके बारे में वेटेनरी टीम से सलाह तक नहीं ली गई.

# अवनी को 2 नवंबर 2018 को भी कई बार इलाके में देखा गया. उसे बेहतर प्लानिंग और फॉरेस्ट और वेटनरी टीम के साथ के साथ मिल कर आराम से पकड़ा जा सकता था. ऐसा करने के बजाय उसे फौरन मार दिया गया. इसके अलावा अवनी को मारने के लिए गांववालों ने शिकारी को ईनाम भी दिया.


# शिकारी (असगर अली) को यह भी याद नहीं है कि जिस बंदूक से उन्होंने शिकार किया वह कौन सी थी. कई बार कहे जाने के बाद भी न तो बंदूक और न ही खाली शेल उपलब्ध कराए गए हैं. यह साफ दिखाता है कि महत्वपूर्ण तथ्य छुपाने की कोशिश की जा रही है.
बता दें कि 2 नवंबर 2018 यानी अवनी के शिकार से पहले असगर खान ने वेरिफिकेशन के लिए 2 बंदूकों के लाइसेंस की कॉपी उपलब्ध कराई थीं. दोनों लाइसेंस असगर अली के पिता शफत अली खान के नाम पर थीं. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के मुताबिक आर्म्स एक्ट 1959 कहता है लाइसेंसी हथियार के इस्तेमाल के वक्त लाइसेंस धारक का मौके पर मौजूद होना जरूरी है. हालांकि जब अवनी का शिकार किया गया तब सिर्फ असगर अली मौजूद थे. अगर ऐसा है तो पूरा ऑपरेशन ही गैरकानूनी कहा जाएगा. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की तरफ से शिकार के लिए इस्तेमाल की गई बंदूक के लिए असगर अली से समन भेजा गया लेकिन 3-4 महीने तक कुछ नहीं हुआ. तकरीबन 4 महीने बाद बंदूक फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को उपलब्ध कराई गई. यह अब भी राज़ की बात है कि जिस बंदूक से अवनी का शिकार किया गया था उसका लाइसेंस किसके नाम है. अवनी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और बयान बेमेल अवनी को मार गिराने के लिए आधिकारिक बयान पर तब भी सवाल उठे जब अवनी की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई. बाघिन को मारने के बाद उसके मृत शरीर को पोस्टमॉर्टम के लिए गोरेवाडा ज़ू नागपुर भेज दिया गया. सबके मन में एक ही सवाल था कि क्या बाघिन को मारने से पहले बेहोश करने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए थी? मीडिया में भी पोस्टमॉर्टम और आधिकारिक बयान के बेमेल होने की बातें आईं. कई चश्मदीद गवाहों ने और मौके पर मौजूद लोगों ने आधिकारिक बयान से उलट बयान दिए. (ये रिपोर्ट
देखें).  इस मामले को करीब से देखने वाले एक वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट ने दी लल्लनटॉप को बताया कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट की हड़बड़ी के चलते ये मामला ज्यादा बिगड़ गया. उन्होंने कहा कि
"असल में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने अवनी को पकड़ने के लिए 2 टीमें बना दीं. एक को बेहोश करने का जिम्मा दिया गया और दूसरी टीम असगर अली की थी. इन दोनों टीमों के बीच एक तरह का कंपटीशन शुरू हो गया. शिकारी असगर अली की टीम लगातार बाघिन को मारने की कोशिश में लगी थी."
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. अवनी पर जिस हालात में गोली चलाने की बात कही गई थी वह पोस्टमॉर्टम में मिले तथ्यों से मैच नहीं कर रही थी. केस को नजदीक से देखने वाले जानकार का कहना है कि
"असगर अली और अवनी के शिकार के वक्त मौजूद लोगों का कहना था कि गोली तब चलाई गई जब उसने हमला किया. लेकिन बाघिन को गोली लेफ्ट साइड से लगी थी. अगर बाघिन सामने से हमला करती तो गोली उसके चेहरे या गले के नीचे के हिस्से में लगनी चाहिए थी. अवनी की मौत शिकारियों द्वारा आजमाए जाने वाले क्लासिक किल शॉट यानी छाती पर मारी गई गोली से हुई थी."
अवनी चली गई, पीछे छोड़ गई दो शावक और कई सवाल अवनी को जब मारा गया उस वक्त इसके साथ 10 महीने की उम्र के दो शावक भी थे. अवनी की मौत के बाद उनकी तलाश शुरू की गई. उनके बचने की उम्मीद कम ही थी, क्योंकि 1 साल से छोटे शावक बिना मां के नहीं बच पाते. वह हमेशा ही जंगली जानवरों के निशाने पर रहते हैं. खासतौर पर नर बाघ के. बड़ी मशक्कत के बाद एक शावक मिला. उसका नाम रखा गया PTRF-84. दूसरे का क्या हुआ इसका कोई आधिकारिक रेकॉर्ड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के पास नहीं है. जो शावक मिला उसको फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने जंगल के एक खास एरिया में पाला. 6 मार्च 2021 को उसको पेंच टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया. जंगली माहौल में नए बाघ के लिए भी खतरनाक होता है. 3-4 दिन बाद ही तकरीबन 3 साल के इस बाघ की झड़प किसी दूसरे बाघ से हो गई. PTRF-84 बुरी तरह से घायल हो गया. कुछ दिन बाद ही उसकी मौत हो गई.
इस घटना से भारत का वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट सिस्टम उघड़ कर सामने आ गया. किसी भी जंगली जानवर को जिंदा पकड़ने को लेकर किसी भी मजबूत सिस्टम और ट्रेनिंग का न होना सबसे बड़ा सवाल बना. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट भारतीय कानून को भी जानवरों की सुरक्षा के लिए नाकाफी बताते हैं. वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 72 में चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन को किसी जानवर को मरवाने की खुली आजादी जानवरों के प्रति असंवेदनशीलता का सबसे बड़ा प्रमाण पेश करती है.
अवनी की मौत के बाद भी इसे लेकर लड़ाई खत्म नहीं हुई है. मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने जनवरी 2021 में महाराष्ट्र फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को तगड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा है कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट उन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करे जिनका अवनी टाइगर की शूटिंग में गैर-जिम्मेदाराना रवैया रहा है. फरवरी 2021 को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या वाकई में अवनी 'आदमखोर' थी. कोर्ट ने राज्य सरकार से ये भी पूछा है कि क्या अवनी के शिकार के लिए किसी को ईनाम भी दिया गया है? फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने इसके जवाब में बताया कि किसी भी तरह का पुरस्कार उनकी तरफ से नहीं दिया गया. असगर अली को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम गांव में ही हुआ जिसमें फॉरेस्ट डिपार्टमेंट का कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं थी.  13 जून 2021 को महाराष्ट्र सरकार ने 6 सदस्यों की खास कमेटी बना कर इस मामले की जांच करने के आदेश दे दिए हैं. अब देखना है कि अवनी बाघिन की कहानी कहां पर जाकर खत्म होती है.

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