क्या है ई-श्रम पोर्टल, जो अब देश के मजदूरों का डेटा रखेगा?
इसकी ज़रूरत क्यों महसूस हुई?
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मंत्री भूपेंद्र यादव (दाएं) ने मजदूरों का डेटा रखने के लिए ई-श्रम पोर्टल लॉन्च किया है. (फोटो- PTI)
पिछले साल कोरोना के दौरान हमने हज़ारों मज़दूरों को पैदल घर जाते देखा था. जब लॉकडाउन में काम-धंधे बंद हो गए थे, तो प्रवासी मज़दूरों की आमदनी बंद हो गई. बिना कमाई पेट पालने का संकट देखकर वो अपने गांवों की तरफ पैदल ही निकल पड़े थे. लेकिन जब सरकार से संसद में पूछा गया कि कोरोना में कितने मज़दूरों की नौकरी गई, कितनों की जान गई, तो जवाब मिला कि डेटा नहीं है. देश में कामगारों के एक बड़े हिस्से का सरकार ने कभी डेटा रखा ही नहीं. हमारे जैसे लोग जो बड़े दफ्तरों में काम करते हैं, जहां सैकड़ों कर्मचारी होते हैं, वहां काम करने वालों का डेटा सरकार के पास होता है. ये संगठित क्षेत्र में आता है. लेकिन ये छोटा हिस्सा है. 90 फीसदी कामगार असंगठित क्षेत्र के हैं. ढाबे पर काम करने वाले, किसी के घरों में काम करने वाले, ट्रक चलाने वाले, सिलाई करने वाले, रेहड़ी-पटरी वाले, ऐसे कामों में लगे लोगों की जानकारी सरकार के पास होती ही नहीं है. वो कहां काम करते हैं, कितनी तनख्वाह मिलती है, न्यूनतम मज़दूरी भी मिलती है या नहीं, साल में कितने दिन उनको काम मिलता है, इन बातों से सरकार को कोई वास्ता नहीं रहता है. समय-समय पर इसे लेकर कई कानून भी बने, लेकिन हुआ कुछ नहीं.
क्या डेटा के लिए कानून बने ही नहीं?
1979 में Inter-State Migrant Workmen Act बना था. इस कानून के तहत राज्यों की ये जिम्मेदारी है कि असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों का डेटा तैयार किया जाए. लेकिन कभी ऐसा डेटा रखने पर गंभीरता बरती ही नहीं गई. . इसके अलावा कंस्ट्रक्शन के काम में लगे मजदूरों के लिए Building and Other Construction Workers Act, 1996 है. असंगठित क्षेत्र के लिए 2008 में Unorganised Sector Social Security Act बनाया गया था. कोरोना के दौर में हमें मालूम चला कि ये कानून मजूदरों के किसी काम नहीं आ रहे. मजदूरों के मामले जब न्यायपालिका तक गए तो वहां भी सरकार को डेटा ना रखने पर फटकार पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल जून में मोदी सरकार से पूछा था कि डेटा बेस अभी तक तैयार क्यों नहीं हुआ, क्यों इतनी देर हो रही है. तो अब जाकर बाद मोदी सरकार ई-श्रम पोर्टल लेकर आई है. जहां अंसगठित क्षेत्र के मजदूरों का डेटा बेस रखा जाएगा. दो बार में सरकार ने इसे लॉन्च किया है. मंगलवार को केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसका लोगो लॉन्च किया था. अब मंत्री जी ने पोर्टल लॉन्च की है.
क्या है ई-श्रम पोर्टल?
इसमें असंगठित क्षेत्र के कामगारों का डेटा रखा जाएगा, जैसे वो क्या करते हैं, कहां के रहने वाले हैं, कहां काम करते हैं, ऐसी जानकारियां.
कोई भी श्रमिक अपने आधार नंबर के साथ ई-श्रम पोर्टल पर खुद को रजिस्ट्रर कर सकता है. नाम, काम, पते के अलावा बैंक अकाउंट की जानकारी भी देनी होगी. और रजिस्ट्रेशन होने पर श्रमिकों को 12 डिजिट का यूनिक नंबर मिलेगा. जैसे आधार नंबर होता है, वैसे ही कामगारों का खास आईडी नंबर होगा. किस तरह के कामगार इसके दायरे में आएंगे. रेहड़ी पटरी वाले, घरों में काम करने वाले, जिन्हें अंग्रेज़ी में डोमेस्टिक वर्कर्स कहा जाता है. खेतिहर मजूदर, प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले, कंस्ट्रक्शन के काम में लगे मजदूर, या ऐसे किसी फैक्ट्री, कारखाने के मज़दूर जहां 10 से ज्यादा लोग काम ना करते हों. सरकार कह रही है कि असंगठित क्षेत्र के 38 करोड़ लोगों का इसके तहत रजिस्ट्रेशन होना है.
रजिस्ट्रेशन के लिए नंबर
आज पोर्टल लॉन्च होते ही रजिस्ट्रेशन भी शुरू हो गया है. सरकार ने इसके लिए एक टोल फ्री नंबर भी जारी किया है. ये नंबर है - 14434. अगर किसी को रजिस्ट्रेशन में कोई दिक्कत आती है तो इस नंबर से मदद मिल सकती है. सरकार कह रही है कि वो पूरे देश में इसके लिए जागरुकता अभियान चलाएंगे. राज्य सरकारें, ट्रेड यूनियन भी इस काम में सहयोग करेंगी. अब बात आती है कि रजिस्ट्रेशन से फायदा क्या होगा? कामगार क्यों खुद को इस यहां रजिस्टर करें. सरकार कह रही है कि कामगारों को किसी सरकारी योजना का फायदा देना होगा तो ई-श्रम पोर्टल के डेटा बेस को आधार बनाया जाएगा. तो देर से ही सही, कम से कम अब असगंठित क्षेत्र के कामगारों का डेटा तो सरकार के पास होगा. लाभ देने ना देने की बात तो बाद में आती है.
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