वंदे भारत एक्सप्रेस (Vande Bharat Express) जब किसी नए रूट पर शुरू होती है, तो खबर बनती है. खबर में ये भी बताया जाता है कि वंदे भारत एक्सप्रेस फलां रूट पर अब कम वक़्त में लंबी दूरी तय कर लेगी. हमारे दिमाग में वंदे भारत ट्रेन की छवि ऐसी ट्रेन की बनी हुई है जो सुविधाओं के लिहाज से लक्जरी है और स्पीड के मामले में सबसे तेज. लेकिन क्या असल में ऐसा है? 1 मिनट से कम वक़्त में 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार पकड़ने में सक्षम इस ट्रेन की औसत स्पीड पर सवालिया निशान क्यों हैं? असल दिक्कत ट्रेन में है या वजह कुछ और है? आज इन्हीं सवालों के जवाब तलाशेंगे.
सबसे पहले उन कुछ वंदे भारत ट्रेनों के बारे में जान लें जो हाल-फिलहाल में शुरू हुई हैं या होने वाली हैं.
वंदे भारत ट्रेनें अपनी असली स्पीड से नहीं चल पा रहीं, असली दुश्मन कौन?
रेलवे ट्रैक की कुछ दिक्कतें वंदे भारत ट्रेन पर हावी हैं.

आज 25 मई 2023 से एक नई वंदे भारत ट्रेन शुरू होने वाली है. ये ट्रेन उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन तक चलेगी. ख़बरों के मुताबिक ये ट्रेन करीब ढाई सौ किलोमीटर की दूरी साढ़े 4 घंटे में कवर करेगी. इसके अलावा देश के उत्तर-पूर्वी हिस्से में एक और वंदे भारत ट्रेन शुरू होने वाली है. ये ट्रेन पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी से असम के गुवाहाटी तक चलेगी. इस हिसाब से ये पूर्वोत्तर के लिए पहली और पश्चिम बंगाल के लिए तीसरी वंदे भारत ट्रेन होगी. कहा जा रहा है ये ट्रेन भी इस रूट पर सफ़र के घंटे कम कर देगी.
इसके पहले बीती 18 मई को PM मोदी ने देश की 16 वीं वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई थी. ये ट्रेन ओडिशा के पुरी से पश्चिम बंगाल के हावड़ा शहर तक जाती है. तो इस तरह कुल मिलाकर देश में 16 रूट्स पर ट्रेनें चल रही हैं. आने वाले वक़्त में कुछ और रूट्स पर भी वंदे भारत ट्रेन चलने वाली है. लेकिन सवाल ट्रेन की स्पीड पर है. और साफ शब्दों में कहें तो एवरेज स्पीड पर. कैसे? समझते हैं.
वंदे भारत ट्रेन को रेल मंत्रालय के तहत आने वाले रिसर्च डिजाइंस एंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन यानी RDSO ने डिज़ाइन किया है. जबकि इसकी मैन्यूफैक्चरिंग इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) ने की है. अभी तक इस ट्रेन में सिर्फ चेयरकार हैं. लेकिन इंडियन रेलवे इसका स्लीपर वर्जन भी जल्दी ही लाने वाला है.
वंदे भारत एक्सप्रेस एक सेमी- हाईस्पीड इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट ट्रेन (EMU) है. EMU माने, इसे कोई एक लोकोमोटिव इंजन नहीं खींचता बल्कि इसके कई कोचों में इलेक्ट्रिक मोटर लगे होते हैं. इसलिए इसका एक्सीलेरेशन ज्यादा है. बिलकुल वैसा, जैसा मेट्रो ट्रेनों का होता है. वंदे भारत के बाद, देश की सबसे तेज रेलगाड़ियों में दूसरे नंबर पर शताब्दी एक्सप्रेस का नंबर माना जाता है. इसका एक्सीलेरेशन मेट्रो ट्रेनों की तुलना में करीब 40 फीसद है. माने वंदे भारत, शताब्दी से दोगुनी तेज़ी से रफ्तार पकड़ती है. वैसे कायदे से हमें ये कहना चाहिए कि वंदे भारत, शताब्दी में लगने वाले इंजन से ज़्यादा तेज़ है, क्योंकि वही खिंचाई करता है, डिब्बे ज़ोर नहीं लगाते.
ICF के जनरल मैनेजर BG माल्या ने द हिंदू बिज़नेस लाइन से बात करते हुए बताया कि
"16 कोच वाली वंदे भारत ट्रेन में 8 मोटर वाले कोच होते हैं. इनमें 840 किलोवाट तक की पावर होती है. आपको वंदे भारत ट्रेनों में लोकोमोटिव इंजन नहीं दिखेगा लेकिन इन ट्रेनों में 1.8 से लेकर 2 लोकोमोटिव के बराबर पावर होती है."
इन ट्रेनों में स्पीड से जुड़ी कुछ और खूबियां हैं. जैसे इन ट्रेनों को एक बार धीरे होने के बाद दोबारा स्पीड पकड़ने में कम वक़्त लगता है. ये भी एक वजह है कि अलग-अलग रूट्स पर सफ़र करने में वंदे भारत ट्रेनों को बाकी ट्रेनों से कम वक़्त लगता है. मिसाल के लिए चेन्नई से बंगलुरु तक, वंदे भारत एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस से 25-30 मिनट जल्दी पहुंचती है. दूसरी खासियत ये भी है कि वंदे भारत ट्रेनों में ब्रेकिंग तेज है. अब इसका मतलब क्या है?
BG माल्या कहते हैं,
“शताब्दी ट्रेनों में किसी स्टेशन पर रुकने के लिए एक किलोमीटर पहले से ब्रेक लगाना शुरू करना होता है. जबकि वंदे भारत में इतनी देर पहले से ब्रेक लगाना शुरू करने की जरूरत नहीं होती.”
BG माल्या ये भी बताते हैं कि वंदे भारत ट्रेनें बाकी ट्रेनों के मुकाबले एनर्जी एफिशिएंट भी हैं. माने ट्रेन स्टार्ट करने या स्पीड बढ़ाने के वक़्त ज्यादा बिजली की जरूरत नहीं होती.
इन सब खूबियों के बावजूद वंदे भारत ट्रेनों की औसत चाल कम है. क्यों? हम बताते हैं.
वंदे भारत ट्रेनों को अधिकतम 180 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर टेस्ट किया गया है. ट्रेन निर्माताओं का दावा है कि ये गाड़ी 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से भी चल सकती है. लेकिन भारत में अलग-अलग रूट्स पर वंदे भारत की अधिकतम गति ट्रैक की स्थिति पर निर्भर करती है. फिलहास सबसे तेज़ है रानी कमलापति वंदे भारत, जो दिल्ली से आगरा के बीच कुछ सेक्शन्स में 160 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती है. आगरा से भोपाल के बीच ये गाड़ी 130 किलोमीटर की रफ्तार से चलती है. भारत में बाकी सभी वंदे भारत 130 या 110 किलोमीटर प्रति घंटा की अधिकतम रफ्तार से ही चलती हैं. क्योंकि ट्रैक, माने रेल पटरी इतनी ही रफ्तार की इजाज़त देती है.
मध्यप्रदेश के चंद्र शेखर गौर नाम के एक व्यक्ति ने एक RTI दायर की थी. जिसके जवाब में ये जानकारी सामने आई कि साल 2021-22 में वंदे भारत ट्रेनों की औसत स्पीड 84.48 किलोमीटर प्रति घंटा थी जबकि साल 2022-23 में ये स्पीड 81.38 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई. कई मीडिया रिपोर्ट्स में रेलवे प्रशासन के अधिकारियों ने भी कबूल किया है कि वंदे भारत ट्रेनों की अधिकतम स्पीड भले 130 या 160 किलोमीटर प्रति घंटा रखी गई हो, लेकिन इन ट्रेनों के रूट में ज्यादातर जगह ट्रेनें इस स्पीड पर नहीं चल पा रही हैं. और इसके कई कारण हैं -
1. कॉशन
कॉशन माने चेतावनी. रेलवे की भाषा में कॉशन का मतलब होता है स्पीड लिमिट. किसी पुराने पुल, तीखे मोड़ या फिर जटिल यार्ड (जहां ढेर सारी पटरियां आपस में मिलती हों) पर गाड़ी को तेज़ चलाने से उसके बेपटरी होने का खतरा रहता है. इसीलिए ट्रैक के ऐसे हिस्सों पर आते ही सारी गाड़ियां अपनी रफ्तार कम करती हैं, चाहे वो माल गाड़ी हों या फिर सेमी हाईस्पीड ट्रेन. ज़ाहिर है, वंदे भारत को भी कॉशन का पालन करना पड़ता है. और उसकी औसत रफ्तार कम हो जाती है. भारत में रेल नेटवर्क पर बहुत दबाव है, तो यहां ढेर सारे कॉशन्स हैं.
2. धीमे टर्नआउट्स
आपने गौर किया होगा, गाड़ी जब किसी स्टेशन पर पहुंचती है, तो वो मुख्य पटरी से हटकर प्लेटफॉर्म वाली पटरी पर आ जाती है. इसके लिए गाड़ी को पॉइंट्स से गुज़रना होता है. पॉइंट माने वो कांटा, जहां से गाड़ी नई पटरी पकड़ती है. इन पॉइंट्स के डिज़ाइन और ज्योमेट्री से तय होता है कि गाड़ी इनपर कितनी रफ्तार से चल पाएगी. एक वक्त भारत में बहुत धीमे पॉइंट्स होते थे. धीरे धीरे इनकी रफ्तार 30 किलोमीटर तक बढ़ाई जा रही है. लेकिन इस काम में अभी बहुत वक्त लगेगा. नतीजा, जब जब हम वंदे भारत (या किसी दूसरी ट्रेन) को किसी स्टेशन पर रोकने का फैसला लेते हैं, उसे धीमे पॉइंट्स के चलते नाहक अपनी रफ्तार कम करनी पड़ती है. दुनिया के उन्नत नेटवर्क्स पर ऐसे पॉइंट्स लगे होते हैं, जहां गाड़ी 50 से 70 किलोमीटर की रफ्तार से भी पटरी बदल लेती है. ऐसे में इन गाड़ियों का समय बचता है.
3. पटरियों के किनारे फेंसिंग
आपने ऐसी ढेर सारी खबरें पढ़ी होंगी, जिनमें वंदे भारत की नाक टूटने का ज़िक्र होता है. अक्सर ये तब होता है, जब कोई जानवर पटरी पर आ जाता है. 160 किलोमीटर प्रति घंटा या उससे तेज़ जाने के लिए ज़रूरी है कि ट्रैक के इर्द गिर्द फेंसिंग हो, जो जानवरों को रोके. जब तक ये नहीं होगा, तब तक गाड़ियों की रफ्तार बढ़ाने में खतरा बना रहेगा.
4. सिग्नल और कवच
कोई भी ट्रेन लोको पायलट या ड्राइवर की मर्ज़ी से नहीं चलती है. गाड़ी के चलने न चलने का फैसला लेता है गार्ड, जिसे अब ट्रेन मैनेजर कहा जाता है. ट्रेन मैनेजर के बाद ड्राइवर सिर्फ एक की सुनता है - सामने नज़र आ रहे सिग्नल की. ड्राइवर को लाइन क्लीयर मिलेगी, तो वो गाड़ी चलाता रहेगा, नहीं मिलेगी, तो वो गाड़ी धीमी कर देगा, या रोक देगा. जैसे जैसे संचालन की रफ्तार बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे ड्राइवर के लिए सिग्नल पर ध्यान बनाए रखना मुश्किल होता जाता है, खासकर तब, जब विज़िबिलिटी कम होती है, मिसाल के लिए कोहरे में. इसीलिए तेज़ रफ्तार रूट्स पर ये इंतज़ाम किया जाता है कि रेल गाड़ी, पटरियों से बात कर सके. जी हां. सिग्नल वाला खंभा आने से पहले ड्राइवर कैब में मालूम हो जाता है कि अगला सिग्नल हरा है, या लाल. तो ड्राइवर निश्चिंत गाड़ी दौड़ाता रहता है. जब ड्राइवर सिग्नल पर अमल नहीं करता, तो ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाते हैं. ये तकनीक न सिर्फ गाड़ियों को रफ्तार देती है, बल्कि सुरक्षित भी बनाती है. दिक्कत ये है, कि ये तकनीक भारत में फिलहाल सिर्फ एक लंबे रूट पर काम कर रही है - दिल्ली-आगरा. यहां लगा है TPWS - ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वॉर्निंग सिस्टम. इसीलिए इस रूट पर गतिमान और वंदे भारत 160 की रफ्तार पर चलती हैं. और भोपाल शताब्दी 150 की.
भारत ने TPWS का एक स्वदेशी वर्ज़न भी तैयार किया है, जो पहले TCAS - ट्रेन कोलिज़न अवॉइडेंस सिस्टम कहलाता था. अब इसे नया नाम मिला है कवच. कवच को लगाने की शुरुआत हो चुकी है, लेकिन इसका इस्तेमाल अभी व्यापक नहीं है. जब तक ये नहीं होगा, वंदे भारत या कोई दूसरी ट्रेन 130 की रफ्तार से आगे नहीं जा पाएगी. नतीजा - औसत खराब होता रहेगा. और ये चीज़ आंकड़ों में नज़र भी आ रही है.
अभी तक जो वन्दे भारत ट्रेनें चल रही हैं उनमें सबसे तेज है दिल्ली से वाराणसी रूट की वंदे भारत. ये ट्रेन 96.37 किलोमीटर प्रति घंटा की औसत रफ़्तार से चलती है. रानी कमलापति वंदे भारत की औसत स्पीड 95.89 किलोमीटर प्रति घंटा है. लेकिन सारी वंदे भारत इतनी किस्मत वाली नहीं हैं. ज़्यादातर वंदे भारत 70 से 90 के औसत के बीच झूल रही हैं. सबसे कम स्पीड वाली वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन है मुंबई-शिर्डी वंदे भारत, जिसकी औसत रफ्तार सिर्फ 65.96 किलोमीटर प्रति घंटा है. ये वो औसत हैं, जो पहले से चल रहे LHB कोच वाली गाड़ियों (जैसे राजधानी-शताब्दी) और उनसे भी पुरानी ICF कोच वाली गाड़ियों से भी हासिल कर सकते हैं. मतलब साफ है, हमने एक बेहतर ट्रेन तो बना ली है. लेकिन उसे पूरी क्षमता से चलाने लायक पटरियां हमारे पास नहीं हैं. इससे पहले हम LHB गाड़ियों और उन्नत लोकोमोटिव की क्षमताओं का दोहन भी इसी वजह से नहीं कर पाए थे. अब यही वंदे भारत का हश्र हो रहा है.
वंदे भारत ट्रेनें बनाने का श्रेय सुधांशु मणि को जाता है. वे इन ट्रेनों के आर्किटेक्ट रहे हैं और ICF के पूर्व जनरल मैनेजर भी. द हिंदू बिज़नेस लाइन से बात करते हुए सुधांशु मणि भी कुछ ऐसा ही कहते हैं,
"आज 17 वंदे भारत ट्रेनें चल रही हैं. जब 100 ऐसी ट्रेनें चल रही होंगी तो सुविधाएं बेहतर करने के मामले में भारतीय रेलवे की छवि भी बेहतर होगी. ये अच्छी बात है. लेकिन एक पक्ष यह भी है कि ट्रैक को बेहतर करने का काम तेजी से नहीं चल रहा है. बाकी ट्रेनों की तुलना में ये महंगी ट्रेन है. इसलिए बेहतर होगा कि ये अच्छी स्पीड से चलें और लोगों का वक़्त बचे."
तो जितनी ज़रूरी है नई ट्रेन, उतना ही ज़रूरी है नया और उन्नत ट्रैक. तभी वंदे भारत का असली फायदा भारत को मिलेगा. इस बारे में आप क्या सोचते हैं. हमें कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताइए.
वीडियो: भारतीय रेलवे ने इस रूट पर वंदे भारत ट्रेन बंद कर दी, वजह जान हैरान रह जाएंगे