
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर पर 200 पॉइंट रोस्टर को वापस लाने का भारी दबाव था. सामाजिक न्याय एवं न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत भी रोस्टर को वापस लागू करने के लिए जावडेकर को लेटर लिख चुके थे.
अब सवाल उठता है कि ये रोस्टर क्या होता है? किसी भी दफ्तर में काम करने वाले लोगों के लिए एक शिफ्ट चार्ट बना होता है. उसमें तय होता है कि कौन किस दिन ड्यूटी पर होगा. यानी ड्यूटी का एक तय पैटर्न. इसी पैटर्न/शिफ्ट चार्ट को रोस्टर कहते हैं. हायर एजुकेशन सिस्टम में रोस्टर शब्द के और भी मायने हैं. यहां इसका मतलब है कि कौन से नंबर पर किस वर्ग से आने वाले लोगों को नौकरी मिलेगी.
अब समझिए 13 पॉइंट रोस्टर, जो लागू था मान लीजिए कि यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के लिए भर्ती होनी है. खाली पदों की संख्या है 16. अब 13 पॉइंट रोस्टर के मुताबिक 16 जगहों में पहली तीन अनरिज़र्व्ड कैटेगरी के लिए, चौथी OBC के लिए, पांचवी और छठी फिर अनरिज़र्व्ड कैटेगरी, सातवीं SC वर्ग के लिए, आठवीं जगह OBC, नौंवीं, दसवीं और ग्यारहवीं जगह अनरिज़र्व्ड कैटेगरी, बारहवीं जगह OBC, तेरहवीं जगह अनरिज़र्व्ड, चौदहवीं जगह ST के लिए, 15 वीं जगह SC के लिए और 16वीं जगह OBC के लिए होगी. लेकिन पेच यही फंसा था. क्योंकि हकीकत में होता ये था कि इस रोस्टर में 13 के बाद गिनती भूल जाने का चलन था. मतलब ये कि 13 सीटों पर तो भर्ती नियम के मुताबिक होती थी, लेकिन जैसे ही 14वीं भर्ती होनी होती थी, गिनती एक से शुरू हो जाती थी. मतलब ये कि जो 14वीं सीट ST को मिलनी चाहिए थी, वो मिल जाती थी अनरिज़र्व्ड कैटेगरी को. और इसकी वजह से होता क्या था? होता ये था कि 49.5 फीसदी आरक्षण देने का जो नियम है, वो लागू नहीं हो पाता था.
संविधान क्या कहता है? संविधान कहता है कि हर भर्ती में 49.5 फीसदी जातिगत आरक्षण मिलेगा. लेकिन अगर 13 पॉइंट रोस्टर की प्रचलित व्यवस्था देखें तो ये आरक्षण सिर्फ और सिर्फ 30 फीसदी तक ही पहुंच रहा है. अब 13 सीटों में सिर्फ 4 सीटों पर ही आरक्षण मिल रहा है, तो ये 30 फीसदी ही तो हुआ. और वो भी तब, जब एक साथ कम से कम 13 भर्तियां हों. अगर मान लीजिए एक भर्ती है, तो सीट जनरल को मिलेगी, अगर दो है तो भी जनरल को मिलेगी, अगर तीन है तो भी जनरल को मिलेगी, और अगर सीटों की संख्या चार है, तो तीन सीटें जनरल को और एक सीट OBC को मिलेगी. अब भी इसमें SC -ST शामिल नहीं हैं. अगर छह भर्तियां हैं, तब भी पांच सीटें जनरल के पास आएंगी और 1 सीट OBC को जाएगी. अगर भर्तियों की संख्या सात है, तब जाकर कहीं SC को एक सीट मिल पाएगी. अब इतनी भर्तियां किसी यूनिवर्सिटी में एक साथ तो निकल सकती हैं, लेकिन अगर ये नियम डिपार्टमेंट वाइज लागू हो तो. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि ये 13 पॉइंट रोस्टर यूनिवर्सिटी पर नहीं, यूनिवर्सिटी के एक डिपार्टमेंट पर लागू होता है. अब ऐसा तो शायद ही कभी होगा कि किसी यूनिवर्सिटी के इतिहास, भूगोल, विज्ञान या किसी भी डिपार्टमेंट में एक साथ 13 भर्तियां हों. और अगर ऐसा नहीं होगा, तो SC और ST कैटेगरी के लोग कभी किसी यूनिवर्सिटी में टीचर बन ही नहीं पाएंगे. और पूरा बवाल इसी को लेकर हो रहा था.
अब ये 200 पॉइंट रोस्टर क्या बला है? 13 पॉइंट को हटाकर सरकार, 200 पॉइंट रोस्टर ला रही है. अब इसे समझने की कोशिश करते हैं. तो सबसे पहले तो इस नियम के तहत नौकरियां यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट वाइज नहीं, बल्कि पूरी यूनिवर्सिटी में निकलती हैं. और दूसरी बात, 13 पॉइंट रोस्टर में जो गिनती 13 के बाद खत्म हो जाती थी, वो गिनती अब 200 के बाद खत्म होगी.

5 मार्च को 200 से ज्यादा संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया था. पूरे देश में अलग-अलग जगहों पर इसके खिलाफ प्रदर्शन हुआ.
अब भर्ती कैसे होगी? भर्ती उसी तरह से होगी, जैसे 13 पॉइंट में आरक्षण मिलता है. 13 तक तो आरक्षण की गिनती वैसे ही चलेगी. और प्रचलित 13 पॉइंट रोस्टर के हिसाब से जिस 14वें नंबर पर अनरिज़र्व्ड भर्ती हो जाता था, उस सीट पर अब ST की भर्ती होगी. इससे होगा क्या. होगा ये कि अगर किसी यूनिवर्सिटी में 200 सीटें भर जाएंगी, तो संविधान ने जो 49.5 फीसदी का आरक्षण दिया है, वो पूरी तरह से लागू हो जाएगा. जब किसी यूनिवर्सिटी में 200 सीटें पूरी हो जाएंगी तो गिनती फिर एक से शुरू हो जाएगी.
और अगर सीटों की संख्या तीन हुई तो क्या होगा? अगर यूनिवर्सिटी में सीटों की संख्या तीन ही हुई तो उसपर अनरिज़र्व्ड कैटिगरी के ही लोग भर्ती होंगे. लेकिन अगली बार जब यूनिवर्सिटी के किसी भी डिपार्टमेंट में कोई पोस्ट निकलेगी और वो एक भी होगी तो OBC को ही मिलेगी. अब OBC के बाद फिर दो सीटों पर अनरिज़र्व्ड भर्ती होंगे. और फिर से जब भर्ती निकलेगी तो उसपर SC की भर्ती होगी. 200 की संख्या पूरी होने तक यही प्रकिया चलती रहेगी.

कई यूनिवर्सिटीज़ के स्टूडेंट और टीचर 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. डीयू और जेएयू में पिछले कुछ महीनों में ये सबसे ज्वलंत मुद्दा था.
एक छोटा सा सवाल, 200 ही क्यों? आप सोच रहे होंगे कि 200 पॉइंट रोस्टर ही क्यों? 100 या 50 पॉइंट क्यों नहीं. इसका जवाब छुपा है गणित में. दरअसल, ST वर्ग के लिए 7.5 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं. लेकिन 100 में से 7.5 सीटें देना तो मुमकिन नहीं है. इसलिए इसे दोगुना कर दें तो बनती हैं 15 सीटें. जिसपर भर्ती मुमकिन है. सो लाज़मी है कि 100 की जगह 200 तक गिनती जाएगी.
कैसे आया 200 पॉइंट रोस्टर? साल 2006. केंद्र में यूपीए सरकार थी. उस वक्त हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूटस/यूनिवर्सिटीज़ में OBC वर्ग के लिए आरक्षण लागू किया जा रहा था. यूनिवर्सिटीज़ में SC/ST वर्ग को पहले से मिल रहे आरक्षण में तमाम खामियां थीं. जानकार बताते हैं कि 2006 से पहले यूनिवर्सिटीज़ में आरक्षण ढंग से लागू नहीं हो पाया था. आरक्षण सिर्फ असिस्टेंट प्रफेसर पोस्ट के लिए लागू किया गया. इसके अलावा भर्तियां भी डिपार्टमेंट वाइज़ हुईं. बाद में इन खामियों को दुरुस्त करने की मांग तेज़ हुई. दबाव बढ़ा तो यूपीए-1 ने 200 पॉइंट रोस्टर लागू करने के लिए कदम उठाए. चूंकि, यूनिवर्सिटीज़ में नियुक्तियां यूजीसी करती है, इसलिए सरकार ने यूजीसी को लेटर लिखा. लेटर में कमिटी बनाकर सही तरीके से आरक्षण लागू करने को कहा गया. यूजीसी ने तीन सदस्यों की एक कमिटी बनाई. अध्यक्ष बनाए गए जेएनयू में प्रफेसर रहे प्रो. राव साहब काले. इस कमिटी ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) की 2 जुलाई, 1997 में जारी गाइडलाइन के मुताबिक 200 पॉइंट का रोस्टर बनाया. इस रोस्टर में विभाग की जगह यूनिवर्सिटी/कॉलेज को यूनिट मानने की सिफारिश की गई. इसके पीछे दो लॉजिक दिए गए-
पहला- नियुक्ति यूनिवर्सिटी/कॉलेज करता है, न कि एक विभाग. दूसरा- यूनिवर्सिटी/कॉलेज में भले ही अलग-अलग विभाग हों, लेकिन सभी नियुक्तियों की टर्म ऐंड कंडीशंस बराबर हैं.

UGC यूनिवर्सिटीज़ को फंड जारी करती है. सभी ज़रूरी दिशा-निर्देश देने का काम भी UGC के जिम्मे होता है.
जब सबको हक मिल रहा था, तो 200 पॉइंट रोस्टर पर विवाद क्यों? यूपीए सरकार ने प्रफेसर काले कमिटी की सिफारशों को लागू कर दिया. ये काफी हद तक लीक प्रूफ फॉर्मूला था. इस रोस्टर ने तय कर दिया कि आने वाली भर्ती किस कैटेगरी से होगी. जिस यूनिवर्सिटी/कॉलेज ने इससे पहले रिजर्व्ड कैटेगरी की सीटें नहीं भरी थीं, उन्हें अब भरनी पड़तीं. लेकिन बीएचयू, दिल्ली यूनिवर्सिटी, और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी समेत कई यूनिवर्सिटीज़ ने इसे लागू नहीं किया. यूजीसी ने जांच कमिटी बिठा दी. 200 पॉइंट रोस्टर ना मानने वाली यूनिवर्सिटीज़ को चेतावनी दी गई. दिल्ली यूनिवर्सिटी पर तो कार्रवाई भी हुई और फंड रोक दिया गया.

5 मार्च को हुए भारत बंद के समर्थन में दिल्ली यूनिवर्सिटी अध्यापक संघ और जेएनयू अध्यापक संघ ने भी हिस्सा लिया.
फिर हुई अदालत की एंट्री 200 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ बीएचयू के एक छात्र विवेकानंद तिवारी ने इलाहाबाद कोर्ट में याचिका फाइल की. याचिका का आधार बना उत्तर प्रदेश सरकार का कानून में ज़रूरी सुधार किए बिना भर्तियां निकालना. 200 पॉइंट रोस्टर के हिसाब से आरक्षण लागू करने के लिए सभी राज्यों को कानून बदलना था. लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हुआ. मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो इलाहाबाद कोर्ट ने इस व्यवस्था को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने जजमेंट दिया कि 200 पॉइंट रोस्टर लागू करने में सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण और भर्तियों संबंधी दिए निर्णयों का उल्लंघन हुआ है. कोर्ट ने 200 पॉइंट रोस्टर पर रोक लगा दी और उसकी जगह 13 पॉइंट रोस्टर को लागू करने का आदेश दिया. केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी, 2019 को 13 पॉइंट रोस्टर को ही लागू रखने का आदेश दिया.
ऐक्टविस्ट भी हुए ऐक्टिव ऐक्टविस्ट 13 पॉइंट रोस्टर को हायर एजुकेशन सिस्टम में पहले से बैठे ताकतवर लोगों के हाथ में आरक्षण का विरोध करने का एक टूल बताते हैं. उनका कहना है कि
13 भर्तियां कभी एक साथ नहीं निकाली जातीं. हमेशा तीन या तीन से कम वेकेंसी ही निकाली जाती है, ताकि आरक्षण का हक न मिल सके.अब जब 200 पॉइंट रोस्टर के लिए सरकार अध्यादेश ला रही है, तो भी ऐक्टिविस्ट इससे भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी में टीचर और ऐक्टिविस्ट लक्ष्मण यादव का कहना है-
"आरक्षण व्यवस्था समाज के पासमांदा तबके को सामाजिक बराबरता दिलाने के लिए है. अगर सरकार सच में ऐसा चाहती है तो उसे रोस्टर व्यवस्था में सबसे पहला हक पिछड़ों को देना चाहिए. पहली तीन सीटें ST,SC और OBC को मिलनी चाहिए."

पिछले सालों में आरक्षण को सही तरीके से लागू करने के लिए कई बार दिल्ली में प्रदर्शन किए गए हैं. अब 200 पॉइट रोस्टर को लागू करने की मांग पूरी होती दिखाई दे रही है.
200 पॉइंट रोस्टर दोबारा लागू होने से नई भर्तियों में रिजर्व्ड कैटेगरी से आने वाले लोगों को पूरा आरक्षण मिलेगा. लेकिन 13 पॉइंट और 200 पॉइंट के फेरबदल के बीच जो भर्तियां निकलीं या नियुक्तियां हुईं, उनका क्या भविष्य है, ये देखना होगा. क्योंकि अध्यादेश का फैसला 7 मार्च को हुआ है. लेकिन इससे ठीक पहले यूनिवर्सिटी में खूब भर्तियां हुई हैं और अब इन भर्तियों को भी कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी चल रही है. एक और अपडेट. और वो ये कि इस अध्यादेश के खिलाफ कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं.
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