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हां मैं अपराधी हूं, कि मैंने सच कहा है : 'उड़ता पंजाब' के लेखक की कलम से

'पूरा मुल्क टीवी से चिपका बस यही जानना चाहता है कि क्या तुम एक कुत्ते को जैकी चेन बुला सकते हो'. पढ़ें, कैसे एक रचनाकार का दुस्वप्न उसकी आपबीती बन गया.

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Youtube screen grab

sudip sharma
सुदीप शर्मा 'उड़ता पंजाब' के लेखक हैं.
 उनकी फिल्म आज राष्ट्रीय बहस का विषय है. कुछ लोगों के अनुसार वो आज देश के सामने मौजूद सबसे गंभीर समस्या है, जिसे रोका ना गया तो अनर्थ हो जाएगा. कुछ अन्य लोग उसे राजनैतिक युद्ध के टूल में बदल देना चाहते हैं. कुछ लोग फिल्म में 'आपत्तिजनक' की लम्बाई नाप रहे हैं, कुछ अन्य इस कृत्य में अभिव्यक्ति की आज़ादी का घटता फैलाव.

'उड़ता पंजाब' आज सब कुछ है, बस एक अदद सच्ची सिनेमाई रचना होने को छोड़कर. सुदीप शर्मा इससे पहले 'एन एच 10' लिख चुके हैं. आज उनका ये नितांत पर्सनल पीस पढ़िए, बीते कुछ दिनों की आपबीती. उन अंधेरों को जानिए जिनसे एक रचनाकार गुज़रता है जब उसकी कलाकृति को देखे बगैर राजनैतिक अखाड़े में उछाला जाता है. उन बेचैनियों को समझने की कोशिश कीजिए, जिनसे वो गुज़रता है जब उसकी ईमानदारी पर शक किया जाता है. Over to Sudip —



तुम एक कॉफ़ी शॉप में हो. ये भी उन तमाम कॉफ़ी के अड्डों जैसी ही है, जो अंधेरी इलाके के हर नुक्कड़ पर बिखरी हैं. तुम जानते हो, क्योंकि तुमने वो सब देख रखी हैं. तुम इनमें नियमित आने वालों को जानते हो, अौर वो तुम्हें. ठीक तुम्हारी तरह वो भी 'अंधेरी के कैदी' हैं, एक कॉफ़ी शॉप से दूसरी के बीच भटकते रहते हैं, क्योंकि उनमें हिम्मत नहीं है कि हार मान लें अौर दौड़ने से इनकार कर दें. लेकिन आज कुछ बदला हुआ है. कुछ बदला हुआ है उस नज़र में जिससे वो तुम्हें घूरते हैं.

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तुम्हारा फ़ोन बीते एक घंटे में चौथी बार बजता है. फिर अपरिचित नंबर. तुम अपनी पत्नी को कोसते हो, जिसने तुम्हें नया आईफोन गिफ़्ट किया था, 'तुम्हारी बड़ी फिल्म जो आ रही है!' कहकर. ये कमबख़्त ट्रू-कॉलर इस पर चलता क्यों नहीं! तुम घंटी बजने देते हो. तुम जानते हो सामने कौन होगा. वो तुमसे लेख चाहते हैं, या एक बाइट ही मिल जाए. इससे क्या फर्क पड़ता है कि उन्होंने तुम्हारा नाम बस अभी पांच मिनट पहले ही पहली बार सुना है. तुम्हारा दोस्त तुम्हें देखकर मुस्काता है अौर बोलता है, "भाई, ये तूने खुद को कहां फंसा लिया."

तुम टीवी देख रहे हो. प्राइम टाइम, अौर लगता है कि जैसे पूरा मुल्क टीवी से चिपका बस यही जानना चाहता है कि क्या तुम एक कुत्ते को जैकी चेन बुला सकते हो.. the nation wants to know. तुम्हें समझ नहीं आता कि ये वास्तव में घटित हो रहा है या तुम नीम बुखार की हालत में कोई सपना देख रहे हो. फिर तुम्हें उसके शब्द याद आते हैं. 'ऐसा ही महसूस होता है हेरोइन लेने के बाद', उसने तुम्हें बताया था.

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तुम एक रिहैबिलिटेशन सेंटर में हो. ये उन अनगिनत रिहैब सेंटर्स में से एक है, जिन्हें तुम 2013 अौर 2014 में देखने वाले हो. वो सिर्फ़ 18 साल का है, अौर वो तुम्हें बता रहा है कि हेरोइन लेने पर कैसा महसूस होता है, अौर क्यों वो कभी ये लत छोड़ नहीं पाएगा. तुम सहन नहीं कर पाते अौर भाग जाना चाहते हो. अब तुम इन दर्दनाक कहानियों को अौर बर्दाश्त नहीं कर सकते. लेकिन तुम जानते हो कि तुम वापस आअोगे. क्योंकि तुम्हें अपनी कहानियों में एक निष्कपट ईमानदारी को लाना है, क्योंकि तुम्हें अपनी कहानियों में सच्चाई चाहिए.

वैसे ये सच्चाई है किस चिड़िया का नाम, तुम खुद से पूछते हो. क्या टीवी जो दिखा रहा है वो सच्चाई है? या ट्विटर पर जो ट्रेंड कर रहा है, वो सच्चाई है? तुम ट्विटर पर नहीं हो, लेकिन झूठ क्यों बोलना, सच ये है कि तुम बीते कुछ दिन से मिनट-दर-मिनट हर अपडेट ले रहे हो.  कौन क्या कह रहा है? वो अच्छा था, या खराब? क्या वो उसे वैसे ही चलने देंगे, जैसा हमने उसे बनाया है? या वो उसे बन्द करवा देंगे? सबकी अपनी राय हैं.

तुम्हारे पास बस एक अदद दरख़्वास्त है, एक ईमानदार गुज़ारिश कि फ़रमान सुनाने से पहले एक बार देख तो लें.

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Youtube screengrab
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एक अौर अंजान नंबर. लेकिन इस बार तुम फोन उठा लेते हो. तुम फोन करनेवाले पर बरसने ही वाले हो, कि अचानक तुम रुक जाते हो. दूसरी अोर फोन पर जालंधर से एक बूढ़ी मां हैं. वे कहती हैं कि वो तुम्हें शुक्रिया कहने को फोन कर रही हैं, शुक्रिया इस फिल्म के लिए. वो तुम्हें अपने बेटे के बारे में बताती हैं. वो बेटा, जिसे वे हेरोइन के नशे के आगे हार गईं.

तुम फिर ट्विटर खोलते हो. देखते हो कि तुम्हारे प्रॉड्यूसर का नाम ट्रेंड कर रहा है. कुछ समय बीतता है. फिर बेचारे जैकी चेन का नाम ट्रेंड पर है. तुम उस फीड को ऐसे देखते हो जैसे विश्वकप फाइनल की लाइव अपडेट्स देख रहे हो. सब तुम्हें बता रहे हैं कि ये मामला, ये विवाद बहुत बड़ा हो गया है. ये बात तब अौर साफ़ हो जाती है, जब तुम्हारी मां तुम्हें फोन करती हैं. आखिर ये खबर उन तक भी पहुंच गई. अब क्या कर दिया तूने, बड़ी मुश्किल से वो ये पूछने से खुद को रोक रही हैं.

तुम 16 के हो, अौर अपनी स्कूल प्रिंसिपल के कमरे में खड़े हो. ये प्रिंसिपल मैम के सामने परेड का तुम्हारा इस महीने में तीसरा मौका है. 'तुमने फिर से खराब शब्दों का इस्तेमाल किया', वो तुम्हें घूरती हैं. खरगोश से दातों वाली क्लास टीचर मैम पीछे से उन 'खराब शब्दों' की लिस्ट पढ़ती हैं, जैसे ये तुम्हारे 'अपराध' हैं. तुम बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी छुपाते हो. 'कहां से सीखा तुमने ये सब? ये तो नहीं सिखाया था हमने तुम्हें यहां' वे सवाल करती हैं. 'हर तरफ़ मैम, हर तरफ़ तो मैं यही सुनता हूं', तुम उन्हें बताना चाहते हो. she hates your balls, हालांकि वो इसके लिए कोई अौर शब्द इस्तेमाल करती हैं. शब्द जो ऐसा 'खराब' ना हो.

तुम 37 के हो, अौर स्क्रीनिंग रूम में खड़े हो. एक सदस्यीय ज्यूरी के सामने तुम्हारी परेड होती है. 'आपने बहुत ज़्यादा खराब शब्दों का इस्तेमाल किया है', वो तुम्हें घूरते हैं. उन्होंने अभी-अभी तुम्हारी फिल्म देखी है. पीछे खड़ा आदमी उन 'खराब शब्दों' की लिस्ट पढ़ता है, जैसे ये तुम्हारे 'अपराध' हैं. लेकिन इस बार तुम हंसना तो दूर, मुस्कुरा भी नहीं पाते. 37 की उमर में इंसान हंसना भूल चुका होता है. तुम अपने निर्देशक को, अपने दोस्त को देखते हो. कि उसे देख एक अंदरूनी तसल्ली मिलती है, चलो कम से कम ये एक आदमी तो है जो इस वक्त मुझसे भी बुरा फील कर रहा होगा. is it really happening, वो भी खुद से यही पूछ रहा होगा. तुम खुद को चिकोटी काटते हो. ठीक वैसे, जैसे कोई 18 साल का लड़का ठीक इसी वक्त अपनी शिराअों में ज़हर भरी नीडल डाल रहा होगा. ठीक उसी की तरह, सच्चाई तुम्हें निगलने आ गई है.

तुम फिर टीवी चलाते हो. तुम्हारा प्रॉड्यूसर है वहां, तुम्हारे हिस्से की लड़ाई लड़ता हुआ. तुम उसे मैसेज करते हो - 'i envy your balls'. उसका जवाब आता है - 'i envy your talent'. ये बहुत थका हुआ सा लगता है, सहानुभूति से भरा. जैसे किसी लम्बी रिलेशनशिप में जोड़े एक-दूसरे को आदतन भेजते हैं, अलग हो जाने के ठीक पहले. लेकिन सच में, तुम उसकी दिलेरी से रश्क करते हो. तुम अपनी हिम्मत टटोलते हो. तुम्हें खुद पर भरोसा नहीं है. तुम चीखना चाहते हो. लेकिन तुम्हें शक है कि तुम्हारी आवाज़ खुद तुम तक भी नहीं पहुंचेगी. क्योंकि आज टीवी का स्वर इतना ऊंचा है, अौर उसमें बोलती आवाज़ें बहुत तीखी अौर भेदनेवाली. कुछ तुम्हारे पक्ष में बोलती हैं, कुछ तुम्हारे खिलाफ़. तुम उन सबको भूल जाते हो. सिर्फ़ एक आवाज़ को छोड़कर उस एक को छोड़कर जिसने कहा कि तुम अपने काम में ईमानदार नहीं थे. क्योंकि एक वही है जो चुभती है.




ये पीस पहले मूल अंग्रेज़ी में film companion
वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ. यहां हम इसका सरल हिन्दी तर्जुमा लेखक की इजाज़त लेकर छाप रहे हैं.

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