आज इनके बारे में बात इसलिए कि इन्होंने एफबी पर एक पोस्ट लिखी है. अर्टिकल 370 के समर्थन में. आइए सबसे पहले उसे पढ़ते हैं-# कवि ने कहा-
कई तरह की व्याख्याएं होंगी, भविष्य को लेकर कई तरह की अटकलें लगेंगी और बहसें होंगी, लेकिन आज की तारीख़ (5 अगस्त, 2019) इतिहास में दर्ज तो हो ही गई. यह काग़ज़ के पन्नों पर नहीं, इस उपमहाद्वीप के भूगोल पर उकेरा गया वर्तमान है, जो अब आने वाले भविष्य के हर पल के साथ इतिहास बनता जा रहा है. धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर, आज के दिन भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया, अब उस स्वर्ग या जन्नत के फ़रिश्ते भी देश के सामान्य नागरिकों के अविभाज्य अंग बन कर उसमें घुलमिल जायं, इससे अधिक और क्या कामना हो सकती है? अब जम्मू-कश्मीर समेत समूचे देश की जनता के मूलभूत संवैधानिक नागरिक अधिकार समान और एक हो गए हैं. अब हमारे संघर्ष और उपलब्धियां, जय और पराजय भी एक ही होंगे.
अब आते हैं मुद्दे की बात पर. आजकल ‘टू पॉइंट ओ’ बड़ा वायरल हो रहा है. जैसे मोदी सरकार ‘टू पॉइंट ओ’. कश्मीर ‘टू पॉइंट ओ’. वैसे ही ये उदय प्रकाश का भी ‘टू पॉइंट ओ’ वर्ज़न है. पहला वर्ज़न 2016 में आया था. तब भी इन्होंने एक समर्थन किया था. न न मोदी सरकार का नहीं. इस बात का कि, 'देश में इन्टॉलरेंस बढ़ रहा है'. और इस समर्थन में इन्होंने अवार्ड वापस कर दिया था. ऐसा करने वाले ये पहले थे. इनके समर्थन का अन्य कवि, लेखक, कलाकारों, एक्टिविस्ट्स ने समर्थन किया. यूं अवार्ड वापसी की शॉर्ट टर्म प्रथा चल पड़ी. तब चूंकि तब मोदी सरकार थी इसलिए 'देश में इन्टॉलरेंस बढ़ रहा है' वाली बात का समर्थन करना सरकार का विरोध करना था. यानी कल मोदी सरकार का विरोध था आज समर्थन है. यूं कि- वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. वैसे आउट ऑफ़ कॉन्टेक्स्ट बात बताऊं- ‘टू पॉइंट ओ’ तो अवार्ड वापसी का भी आया था. अभी हाल ही में तो.# दिल्ली की दीवार-
बैक टू दी टॉपिक- मुझे लगता है कि अगर आप किसी व्यक्ति या संस्था की पहली बात का समर्थन करते हैं और दूसरी का विरोध तो ये आपकी तटस्थता दिखाता है, आपका पारदर्शी होना दिखाता है. मुझे नहीं पता तब किया गया विरोध सही था या गलत, अब किया गया समर्थन सही है या गलत, लेकिन अगर ये केवल और केवल उसी घटना की प्रतिक्रिया है जिसकी प्रथम दृष्टया लग रही है, तो उनके इस स्टैंड का स्वागत होना चाहिए. यानी फेस वैल्यू पर उनका पिछला विरोध और आज का समर्थन दोनों ही स्वागत योग्य हैं. फिर चाहे आप उनके विरोध का सर्मथन करें या समर्थन का विरोध. और जब तक कोई नया तथ्य न पता चल जाए तब तक क्यूं न घटनाओं को फेस वैल्यू पर ही लिया जाए. ये कहना ग़लत है कि तब मोदी सरकार का विरोध किया था, आज समर्थन करके दोहरापन दिखाया जा रहा है. कहना तो ये सही होगा कि पहले किसी एक मुद्दे का विरोध किया आज किसी दूसरे मुद्दे का समर्थन. अब ये तो बहुत गलत है न कि चूंकि पिछली बार इस व्यक्ति या संस्था की बुराई की थी तो आज उसकी तारीफ़ करके आप विश्वास करने योग्य नहीं रह जाते. बल्कि आप और विश्वसनीय हो जाते हैं. कि भाई, ये बंदा ये नहीं देखता कि बात किससे जुड़ी है, बल्कि ये देखता है कि बात क्या है. और बात ये है कि-# नयी सदी का पंचतंत्र-
एक भाषा हुआ करती है, जिसका नाम है विरोध. और अंत में प्रार्थना, जिसका नाम समर्थन.
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चेन्नई के एक होटल ने लेस्बियन कपल को बाहर निकाल दिया, वजह बहुत ही बेहूदा है-











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