ये आर्टिकल राना सफवी ने डेली ओ के लिए लिखा था. वे इतिहासकार, ब्लॉगर और राइटर हैं. उनकी कई किताबों में से एक 'वेयर स्टोन्स स्पीक' भी है. आर्टिकल में लिखे विचार उनके निजी हैं. इन्हें यहां हिंदी में दी लल्लनटॉप की रुचिका प्रस्तुत कर रही हैं.
संजय लीला भंसाली की 'पद्मावती' इन दिनों काफी विवादों में है. इन्हीं के चलते मैंने मलिक मोहम्मद जायसी की लिखी 'पद्मावत' या 'पदुमावत' पढ़ी. नतीजतन, यहीं से मैं दो बहुत शानदार लेखकों राम्या श्रीनिवासन और आदित्य बहल तक पहुंची. फिर विवरण व अनुवादों सहित 'पद्मावत' के व्याख्या युक्त उर्दू वर्ज़न तक पहुंची.
मलिक मोहम्मद जायसी एक सूफ़ी संत थे. उन पर चिश्ती और महदवी सिलसिले के दो सूफ़ी संतों का काफ़ी प्रभाव था. इन सूफ़ी संतों में से एक थे जौनपुर के सैयद अशरफ जहांगीर सिमनानी. जायसी के पीर-ओ-मुर्शिद थे शेख मुबारक शाह बोडाले, जो शायद सिमनानी के वंशज थे.
दूसरे मुर्शिद थे जौनपुर के सैयद मोहम्मद के शिष्य शेख बुरहानुद्दीन अंसारी.
चिश्ती सिलसिले में योग की परंपरा थी. वो भी खासकर हठ योग. इसमें सांस से जुड़ी वैसी ही यौगिक क्रियाएं (एक्सरसाइज़) होती थीं, जैसी गोरखनाथ के नाथ पंथियों में प्रचलित हैं.

पद्मावती की एक पेंटिंग. पद्मावती का ज़िक्र लिखित इतिहास में नहीं मिलता.
'पद्मावत' साल 1504 में लिखी गई थी. मोहम्मद गौस ग्वालियर ने बहर-उल-हयात लिखा था. ये अमृतकुंड का फ़ारसी अनुवाद था. अमृतकुंड योग पर लिखा एक संस्कृत ग्रंथ था. बहर-उल-हयात से मालूम चलता है कि उस समय सूफ़ी परंपरा में योग मौजूद था.
परमात्मा से मिलने के लिए एक सूफ़ी को अपनी यात्रा चार स्टेज में तय करनी होती है- शरिया (धार्मिक कानून), तरीक़ा (रास्ता), हकीक़त (सत्य) और मरीफ़ा (अपने प्रिय के साथ एक हो जाना).
एक सूफ़ी अपनी इस यात्रा की तैयारी धार्मिक कानून जानने से शुरू करता है, जिसमें वो नैतिक व्यवहार और धर्म के बारे में सीखता है. 'तरीक़ा' एक यात्री की अपने सूफी गुरु के प्रति वफादारी की कसम होती है. ये सूफ़ी गुरु यात्री के मार्गदर्शक की तरह काम करते हैं. हकीक़त का मतलब इस सच्चाई को जानने से है कि खुदा हमारे अंदर है. इसके लिए अपने अहंकार को काबू में करना होता है. 'मरीफ़ा' वो मुकाम है जिस तक सूफ़ी संतों के अलावा बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं. इसमें यात्री के दिल से पर्दा उठ जाता है और वो पाक साफ़ हो जाता है, अपने प्रेमी (ईश्वर) के साथ एक हो जाता है.परमात्मा के लिए एक इंसान के प्यार को इश्क-ए-हक़ीकी कहते हैं. ये इकलौता ऐसा प्यार है जिसे पाने की इच्छा होनी चाहिए. क्योंकि सिर्फ़ खुदा ही गहरा प्यार करने लायक है.
इसी वजह से एक सूफ़ी संत की बरसी पर पड़ने वाला उर्स ऐसे मनाया जाता है, जैसे हमारे यहां होने वाली शादियां. ये उस मौके का जश्न होता है जब आत्मा अपने सच्चे प्यार के पास जा रही है, जिससे मिलकर उसकी यात्रा पूरी होगी. आत्मा और उसका प्रिय आखिरकार एक हो रहे हैं.

फिल्म के ट्रेलर में रतनसेन के रोल में शाहिद कपूर.
इस रास्ते में यात्री को कई मुश्किलों से गुज़रना पड़ता है, जिन्हें वो अपनी भक्ति के सहारे पार करता चला जाता है. उसे लगातार अपने परमात्मा का ध्यान रहता है, वो अपने अहंकार पर काबू रखे रहता है.
जायसी की 'पद्मावत' परमात्मा की इसी भक्ति पर आधारित एक रूपक कविता है. ये अवधी में लिखी गई थी, जो कि इलाहाबाद, जौनपुर और अयोध्या के आसपास के इलाकों में बोली जाती है. जायसी अमेठी और रायबरेली के जिस इलाके से आते थे, वो इन्हीं के आस-पास थी. वहां भी अवधी बोली और समझी जाती थी.
'पद्मावत' के लिए जायसी ने फ़ारसी के बजाय अवधी को शायद इसलिए चुना कि वो ज़्यादा से ज़्यादा आम लोगों तक पहुंच सके. इन्हीं लोगों के ज़रिए 'पद्मावत' का इतना प्रसार हुआ.
हालांकि इस कविता की सबसे पहली ज्ञात पांडुलिपि (हाथ से लिखा हुआ दस्तावेज़) फ़ारसी में लिखी गई थी. इसे रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में देखा जा सकता है. फिर इसकी एक कॉपी बनी 1675 में. बनाने वाला था महमूद शाकिर, जो अमरोहा में अब्दुल क़ादिर जलाली की खानक़ाह से था.
इसके बाद 'पद्मावत' को कई बार कॉपी किया गया. हर बार हाथ से पूरी कविता लिखी जाती. कभी अनुवाद होता, कभी रूपांतर (अडेप्टेशन) बनाए जाते. हर बार मूल कथा में से कुछ न कुछ पीछे छूट जाता. 'पद्मावत' का सूफी भाव इसी तरह उससे बाहर होता चला गया.
चित्तौड़ की किसी राजपूत रानी पद्मावती/पद्मिनी का ज़िक्र एेतिहासिक तौर पर सबसे पहले जायसी की 'पद्मावत' में ही मिलता है. मसनवियों की फ़ारसी परंपरा के अनुसार ही ये महाकाव्य अल्लाह और पैगम्बर के गुणगान से शुरू होता है.
आदित्य बहल की किताब 'The Soul’s Quest in Malik Muhammad Jayasi's Hindavi Romance' के मुताबिक हिंदवी सूफी परंपराओं में रास की भाषा वही है, जो गोरखनाथ परंपरा के योगियों की है. ये वही भाषा है, जिसमें कृष्ण को उनके भक्त पूजते हैं, प्यार करते हैं.
क्या है 'पद्मावत' की कहानी?
'पद्मावत' की कहानी एक ऐसी राजकुमारी की है, जो सिंहलद्वीप नाम की जगह पर रहती है. ये द्वीप पद्मिनी के चलते मशहूर था, जिसे एक आदर्श औरत माना जाता था. राजकुमारी पद्मिनी के पास एक तोता था, जिसका नाम था हीरामन. वो उसे इतना पसंद करती थी कि उनके पिता यानी राजा को उससे जलन होने लगी थी. उन्होंने तोते को मारने की कोशिश भी की.हीरामन वहां से तो ज़िंदा उड़ गया लेकिन लग गया एक बहेलिए के हाथ. अब इस बहेलिए ने हीरामन को बेच दिया चित्तौड़ के राजा रतनसेन को.
तोता रतनसेन को पद्मिनी की खूबसूरती के बारे में बताता. ये सब सुनकर रतनसेन के दिमाग पर पद्मिनी का जादू कुछ ऐसा चढ़ा कि उसने पद्मिनी से शादी करने का मन बना लिया. रतनसेन ने अपना राज्य छोड़ दिया और हीरामन की अगुवाई में 16,000 आदमियों की फौज लेकर पद्मिनी की खोज में निकल गया. फौज में योद्धा भी थे और राजकुमार भी.
'पद्मावत' पढ़ने पर रतनसेन की इस यात्रा में सूफियों की आध्यात्मिक यात्रा के निशान मिलते हैं.

'पद्मावती' फिल्म के ट्रेलर में दीपिका.
रतनसेन ने सिंहलद्वीप पर हमला किया. पहले रतनसेन को कामयाबी नहीं मिली, लेकिन फिर सिंहलद्वीप के राजा गंधर्वसेन को अहसास हुआ कि रतनसेन सचमुच पद्मिनी से प्यार करता है. उन्होंने अपनी बेटी की शादी उससे करवा दी. अब तक राजकुमारी को भी रतनसेन से प्यार हो गया था.
रतनसेन अपनी इस नई पत्नी के साथ चित्तौड़ आ गए. उनकी पहली पत्नी नागमती को पद्मिनी से बहुत जलन होती थी. एक दिन रतनसेन ने अपनी दोनों पत्नियों को डांट लगाई और समझाया, जिसके बाद से वो दोनों दोस्त बन गईं. इसे हम आध्यात्मिक और भौतिक जीवन के बीच तालमेल बनाने की कोशिश की तरह पढ़ सकते हैं.
रतनसेन के दरबार में राघव चेतन नाम का एक ब्राह्मण था. उसने छल से एक प्रतियोगिता जीती, जिसके चलते रतनसेन ने उसे राज्य से बेदखल कर दिया. पद्मिनी ने उसके अपमान को कुछ कम करने के लिए अपनी चूड़ी भेंट कर दी. राघव ने उसे देखा और उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया.
राघव दिल्ली में अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में पहुंचा. उसने खिलजी के सामने रानी की इतनी तारीफ़ की कि वो उनके प्यार में पागल हो गया. उसने तय कर लिया कि वो पद्मिनी को पाकर रहेगा. सूफ़ी परंपरा में सिखाया जाता है कि 'हकीकत' और 'मरीफ़त' की तरफ़ बढ़ना की पहली शर्त ये है कि अपने गुरूर पर काबू किया जाए.
बस यही अंतर था रतन सेन और अलाउद्दीन खिलजी में. पद्मिनी को पाने की उसकी चाह में सूफियों सा समर्पण और फकीरी थी. इसलिए वो हीरो था. खिलजी विलेन था, क्योंकि उसमें पद्मिनी को भोगने भर की इच्छा थी और वो अपने गुरूर पर काबू नहीं कर पाया.

फ़िल्म 'पद्मावती' में खिलजी के किरदार में रणवीर सिंह.
अपने घमंड के चलते ही खिलजी ने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी. उसे चारों और से घेर लिया और पद्मिनी को आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया, जिसे रतनसेन ने खारिज कर दिया. इसके बदले रतनसेन ने कुछ और उपहार देने की पेशकश की, लेकिन खिलजी ने उन्हें ठुकरा दिया.
अपने विश्वस्त जागीरदारों गोरा और बादल की सलाह न मानते हुए रतनसेन ने खिलजी को महल में आमंत्रित किया. यहां खिलजी को शीशे में रानी पद्मिनी की एक झलक दिखाई गई. इसने खिलजी के पागलपन को और बढ़ा दिया. अपनी पसंद को पाने में नाकामयाब होने की खीझ में खिलजी रतनसेन को पकड़कर दिल्ली ले गया. अपना गुलाम बनाकर.रतनसेन को बचाने के लिए पद्मिनी ने गोरा और बादल को भेजा. वो पद्मिनी और उसकी दासियों का भेस बनाकर एक पालकी में पहुंचे. इसी बीच, पास के राज्य कुंभलनेर के राजा देवपाल ने पद्मिनी की खूबसूरती का गुणगान सुन उन्हें शादी का प्रस्ताव भेज दिया. इसे पद्मिनी ने ठुकरा दिया.
गोरा और बादल रतनसेन को छुड़ाने में कामयाब रहे. लेकिन इस कवायद में गोरा मारा गया. जैसे ही रतनसेन को देवपाल के दुस्साहस के बारे में पता चला, उन्होंने उसे सबक सिखाने का फ़ैसला किया. उन्होंने देवपाल को द्वंद्व युद्ध के लिए चुनौती दी. रतनसेन को लग रहा था कि वो खिलजी के चित्तौड़ पर आक्रमण करने से पहले वापस आ जाएंगे. लेकिन लड़ाई में देवपाल और रतनसेन दोनों मारे गए.
इसके बाद रतनसेन की दोनों रानियां अपने पति की चिता पर सती हो गईं.

रानी पद्मिनी की पेंटिंग
इसी बीच अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर फिर से आक्रमण किया और उसे अपने कब्ज़े में ले लिया. पुरुष लड़ाई में मारे गए और महिलाओं ने जलती आग में गिरकर जौहर कर लिया.
अंत में खिलजी जीत तो गया, लेकिन उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. क्योंकि उसने ये सब जिस पद्मिनी को पाने के लिए किया था, वो राख में तब्दील हो चुकी थी.अवध में इस तरह की वीर गाथाएं बहुत मशहूर थीं. जायसी ने भी इनका इस्तेमाल अपनी सूफ़ी फ़िलॉसफ़ी को बुनने में किया. जायसी की कविता में चित्तौड़ 'शरीर' है, सिंहलद्वीप 'दिल' है, पद्मिनी 'ज्ञान' है और तोता वो 'मार्गदर्शक' है जो 'ज्ञान' तक पहुंचने का सही रास्ता दिखाता है. नागमती भौतिक सुख का प्रतीक है जो ज्ञान की खोज में निकले इंसान को भटकाता है. जादूगर राघव 'शैतान' है. खिलजी एक 'भ्रम' या 'अस्थाई दुनिया' है.
खिलजी का पद्मिनी के लिए प्यार स्वार्थ और शारीरिक लालसा से भरा हुआ था. जबकि रतनसेन का प्यार पवित्र और इश्क-ए-हकीकी था. रतनसेन और पद्मिनी का विवाह आत्मा का परमात्मा से मिलन था. पद्मावती का आग में जलकर मर जाना सूफ़ी फ़िलॉसफ़ी में फ़ना होना है. यानी प्यार की अग्नि में जलकर खुद को परमात्मा को समर्पित कर देना. 'सिंहलद्वीप' एक काल्पनिक दुनिया है, जहां तक की आध्यात्मिक यात्रा पर प्रेमी निकला हुआ है. 'चित्तौड़' के चुनाव की वजह शायद ये रही होगी कि उसे तोड़ने पर 'चित' और 'और' बनता है. 'चित' माने मन होता है, 'और' का एक अर्थ दिल होता है.

पद्मावती फिल्म की रिलीज डेट फिलहाल आगे बढ़ गई है.
अब कुछ एेतिहासिक संदर्भों पर बात
जायसी ने अपनी कविता में बताया है कि उन्होंने इसे 1540 में लिखा था. तब, जब दिल्ली पर शेरशाह सूरी राज कर रहे थे. जबकि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के राजा रतनसेन को 1303 में हराया था. चित्तौड़ में ही एक और रतनसेन हुए थे, जिन्होंने 1527-32 तक राज किया था. गुजरात के बहादुर शाह ने 1531 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था. उस समय महिलाओं ने जौहर किया था.बाबरनामा के मुताबिक राणा सांगा की पत्नी का नाम पद्मावती था. 1537 में, जब रोहतास को चारों ओर से घेर लिया गया था, तब शेरशाह सूरी अपने सैनिकों के साथ महिलाओं के कपड़े पहनकर पालकी में बैठकर दुश्मन के किले में दाखिल हुए थे. अमीर खुसरो ने रणथंभोर की घेराबंदी के दौरान किए गए जौहर का वर्णन किया है, लेकिन उन्होंने उसमें चित्तौड़ में हुए किसी जौहर के बारे में कुछ नहीं लिखा.
अब आती है सबसे चौंकाने वाली बात
श्रीनिवासन के मुताबिक हो सकता है कि जायसी कंफ्यूज़ हो गए हों. अलाउद्दीन खिलजी और मालवा के घियाथ अल-दीन खिलजी (1469-1500) के बीच. घियाथ अल-दीन खिलजी को आवारा माना जाता था. बताया जाता है कि वो भी एक 'पद्मिनी' की खोज में था. ये कोई राजपूत राजकुमारी नहीं थी. हिंदू ग्रंथों के मुताबिक प्यार और व्यवहार के मामले में 'पद्मिनी' को बिलकुल आदर्श महिला माना गया है. उदयपुर के आसपास मिले एक हिंदू शिलालेख के मुताबिक घियाथ अल-दीन खिलजी 1488 के युद्ध में बादल-गोरा नाम के सेनापति के हाथों हारे थे, जो कि संयोग से रतनसेन के दो जागीरदारों, बादल और गोरा के भी नाम थे.

कुछ राजपूत समूहों का आरोप है कि फिल्म में कुछ दृश्य ऐसे हैं, जहां सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी और राजपूत रानी पद्मावती के बीच नज़दीकियां दिखाई गई हैं.
खिलजी एक ताकतवर राजा था. वो अपना राज्य बढ़ाने के लिए लगातार चढ़ाई करता रहता था. इसलिए राजपूताने के राजपूत राजाओं में एक असुरक्षा का भाव था. श्रीनिवासन का मानना है कि चूंकि जायसी इन्हीं राजाओं से बख्शीश लेते थे, तो उन्होंने खिलजी को विलेन बताना बेहतर समझा.
खिलजी अपने आप को दूसरे सिकंदर की तरह देखता था. वो भूमि सुधार और बाज़ार के लिए बनाए अपने नियमों के लिए मशहूर था, न कि रोमांटिक स्वभाव के लिए.
तो क्या जायसी ने गलत खिलजी के बारे में लिख दिया? या ये जानबूझकर की गई एक कोशिश थी, उन लोगों को सचेत करने की, जो दिल्ली के ताजो-तख्त पर आंखें गड़ाए रहते थे?
जायसी ने सूफी परंपरा, यौगिक ग्रंथ, ऐतिहासिक घटनाओं और फारसी साहित्य को देशज भाषा में गूंथकर पद्मावत लिख दिया था. ताकि वो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंच सके.
जायसी का महाकाव्य इस बात पर खत्म होता है कि चित्तौड़ इस्लामिक बन जाता है. ऐसे देखा जाए तो ये अलाउद्दीन खिलजी की जीत का नतीजा था, लेकिन एक सूफ़ी कवि के दिमाग से सोचा जाए तो फिर ये गुरूर पर इश्क-ए-हकीकी की जीत होगी.
हिंसा कभी जीत नहीं सकती और उससे मिली जीत से कुछ हासिल नहीं होता. अगर जायसी को मालूम चलता कि उनकी इस सूफ़ी कविता के नाम पर कितनी हिंसा और भय का माहौल बन रहा है, तो वो चौंक जाते.
सूफ़ी परंपरा अपने गुस्से और गुरूर पर काबू रखना सिखाती है. अगर राजपूतों ने इस महाकाव्य को पढ़ा होता तो वो इस तरह फ़िल्म का विरोध नहीं करते और कुछ सबक सीखते.
ये भी पढ़ें:
पद्मावती को राष्ट्रमाता नहीं मान पाएंगे लोग, वजह सॉलिड है
पद्मावती के बाद अब टाइगर ज़िन्दा है की भी रिलीज़ टलेगी
'पद्मावती' पर वोटिंग चल रही है, बैन करना है तो वोट करो !
गुजरात की इस रानी की कहानी जानते हैं, जिसने जौहर कर लिया
पद्मावती मैटर में सबसे सही बात नाना पाटेकर ने कही है
पद्मावती फ़िल्म : खिलजी इतना ही बेवकूफ़ था या भंसाली ने जानबूझकर ऐसा दिखाया?
'पद्मावती' की वो फुटेज और गाने जो फिल्म में नहीं दिखाए जाएंगे !
पद्मावती विवाद पर श्याम बेनेगल ने ये 8 तगड़ी बातें बोली हैं
वीडियो देखें: