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एक स्पेशल बच्चे की मम्मी ने आपको ख़त लिखा है..

वक्त निकालकर इसे जरूर पढ़ें.

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आद्या
deepikaदीपिका देहरादून के एक कॉलेज में मैनेजमेंट संभालती हैं. इसके अलावा वो एक प्यारी सी बच्ची की मां हैं. उनकी दुनिया बच्ची और जॉब के बीच झूलती है. अपनी जिंदगी की मुश्किलों और चाहतों से हमारा सामना करा रही हैं. ओवर टू दीपिका: मैं एक बहुत ही प्यारी पांच साल की 'स्पेशल' बच्ची की मां हूं. वो ख़ास है क्योंकि वो हमारे समाज द्वारा निर्धारित किये गए लक्षणों के तहत 'सामान्य' बच्चों से काफी अलग है. उसे सेरेब्रल पाल्सी है. सेरेब्रल पाल्सी कोई बीमारी नहीं, एक अवस्था है जिसमें दिमाग को हुए किसी नुकसान की वजह से दिमाग और शरीर के बाकी हिस्सों में संदेशों का आदान प्रदान सही तरीके से नहीं हो पाता. उसका असर व्यक्ति के उठने, बैठने, चलने से लेकर बोलने तक हो सकता है. एक ऐसे समाज में, जहां किसी भी तरह की बीमारी या विकलांगता को सीधे सीधे पिछले जन्मों के बुरे कर्मों का नतीजा बताकर पीड़ित को अपराधी घोषित कर दिया जाता है, जहां अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि डॉक्टर से पहले तमाम तरह के टोटके और पूजा पाठ करने की सलाह आपको हर दूसरा आदमी मुफ्त में दे जाता है. जहां सुविधाएं तो छोड़िये, जानकारियां तक ना हों, ऐसे में एक ख़ास बच्चे को आरामदायक और सम्मान की जिंदगी देने के लिए पहले उस बच्चे के मां बाप को बहुत ख़ास होना पड़ता है. 'स्पेशल' बच्चा आपके लिए एक सरप्राइज की तरह होता है. एक ऐसा सरप्राइज जिसकी कल्पना आप बुरे सपने में भी नहीं करते. प्रेगनेंसी में एक होने वाली मां अपने सामर्थ्य के हिसाब से अच्छे से अच्छा खाती है, अपना ख्याल रखती है ताकि बच्चा स्वस्थ पैदा हो. कई बार तो पैरेंट्स लंबे समय तक स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके बच्चे के साथ ऐसा कुछ हो गया है. और स्वीकार कर लेने के बाद उनकी दुनिया हमेशा के लिए पूरी तरह से बदल जाती है. एक ख़ास बच्चे को बहुत ख़ास देखभाल की जरूरत पड़ती है. दुनिया भर की जानकारियां जुटाने से लेकर डॉक्टर्स, थैरेपीज़ और स्पेशल स्कूल ढूंढना अपने आप में बहुत मुश्किल और तोड़ देने वाला काम है जो लगातार चलता रहता है. पूरे परिवार और खासकर उस बच्चे के माता पिता की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. ज्यादा से ज्यादा वक़्त बच्चे को देना, उसके लिए सुविधाएं जुटाना और साथ में अपने दर्द से लड़ना उन्हें समाज से काट देता है.
ये बहुत ही निराशाजनक था जब मैं अपनी बेटी की कंडीशन और उसके मैनेजमेंट के लिए संभावनाएं तलाश कर रही थी, मेरे आस पास कोई भी नहीं था जिससे मैं इस बारे में बात कर पाती. जो भी मिलता हमेशा एक दया भाव और सब कुछ किस्मत पर छोड़ देने की सलाह के साथ मिलता. उस वक़्त मुझे सोशल मीडिया ने बहुत मदद की. मैंने विदेशी लोगों के ऐसे कई ग्रुप ज्वाइन किये जो स्पेशल पेरेंट्स थे, जिनके पास बहुत सारी जानकारियां और सुझाव थे, जो मुझे किसी भी तरह की दया नहीं, सहयोग देते थे, मेरा हौसला बढ़ाते थे. मैंने अपने सारे डर, परेशानियां उन लोगों से बांटनी शुरू की जिससे ना सिर्फ मेरी हिम्मत बढ़ी बल्कि बच्चे की परेशानी को देखने का मेरा नजरिया भी बदला.
एक स्पेशल मां होने के नाते मैं आप सबको यही बताना चाहती हूं कि अगर आपके दोस्तों, रिश्तेदारों या आस पड़ोस में कोई स्पेशल बच्चा हो तो उस बच्चे के साथ साथ उसके पेरेंट्स के लिए भी थोड़ा संवेदनशील बनिए. हो सकता है वो लोग आपसे मिलने ना आ पाते हों, दोस्त हों तो बाहर घूमने ना जा पाते हों, पार्टी ना कर पाते हों तो ऐसा नहीं कि वे ऐसा करना नहीं चाहते, ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पास वक़्त ही नहीं होता. हमारे रेस्टोरेंट या अन्य सार्वजानिक स्थल विगलांगों को चेंजिंग, व्हीलचेयर जैसी कई सुविधाएं नहीं देते, जिनके बिना खास बच्चों के साथ बाहर जाना मुश्किल होता है. ऐसे पेरेंट्स से उनके बच्चे के बारे में खुलकर बात कीजिये. बच्चे की कंडीशन को समझते हुए अपना थोड़ा सा समय निकालकर उनसे मिलने जाइये, अपने बच्चों से उस बच्चे को मिलवाइए और उसे समझाइये कि बेशक वो बच्चा थोड़ा अलग है लेकिन उसके साथ भी खेला जा सकता है. इससे दोनों बच्चों को अच्छा लगेगा. आपके पास किसी थेरेपी सेंटर, स्पेशल स्कूल या डॉक्टर की जानकारी हो तो उन्हें दीजिये. कुल मिलाकर थोड़ा सहयोग थोड़ा प्यार दीजिए बाकी वो खुद संभाल लेंगे क्योंकि वो ख़ास बच्चों के खास पेरेंट्स है.