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इश्क के लिए साइकल से सात समंदर पार पहुंचा ये बंदा

1975 में ये लव स्टोरी शुरू हुई थी. दो साल बाद लड़के ने उठाई साइकल और इंडिया से यूरोप पहुंच गया.

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शार्लोट संग पीके महानंदिया. Photo: PK Mahanandia
साल था 1975. इसी साल भारत में इमरजेंसी लगी थी. इसी साल सर्दियों में स्वीडन की एक लड़की अपने यहां घूमने आई थी. शार्लोट फुन शेडविन. कनॉट प्लेस में उसे एक आर्टिस्ट दिखा. घुंघराली बलखाती जुल्फें, हैंडल बार वाली मूंछें और मोटी सफेद दांतों वाली मुस्कान.
नाम पूछा तो पता चला पीके महानंदिया. स्केच आर्टिस्ट था. शार्लोट ने महानंदिया से पूछा कि क्या वह उसका पोर्टेट बना सकता है? तस्वीर बनी. कैनवस पर भी और दिलों में भी. दोनों में इश्क हुआ और इश्क के लिए अपना बंदा साइकल से यूरोप चला गया.
ये लव स्टोरी फिल्मी लग रही होगी, लेकिन है असली. पीके महानंदिया ने शार्लोट से कहा था कि वह 10 मिनट में उसकी तस्वीर बना सकता है. शार्लोट राजी हो गईं, लेकिन उन्हें तस्वीर खास पसंद नहीं आई और वह अगले दिन दोबारा पहुंच गईं. लेकिन ये दिन भी कारगर साबित नहीं हुआ.
Photo: PK Mahanandia
Photo: PK Mahanandia

अपने बचाव में जनाब महानंदिया ने कहा कि उनकी मां की एक बात ने उनके दिमाग में घर कर रखा है. ओडिशा में अपने स्कूली दिनों के दौरान उन्हें अपरकास्ट छात्रों का भेदभाव सहना पड़ा था क्योंकि वह दलित हैं, जिन्हें सामाजिक पायदान पर सबसे निचला माना जाता है.

इसलिए वह जब भी उदास फील करते हैं उनकी मां कहती हैं कि एक दिन उनकी ऐसी लड़की से शादी होगी, जिसकी राशि टॉरस (वृषभ) होगी, वह दूर देश से आई होगी, म्यूजिकल होगी और एक जंगल की मालकिन होगी.

इसलिए वह जब शार्लोट से मिले उन्हें अपनी मां की यह बात याद आ गई. उन्होंने शालोर्ट से पूछ ही डाला, 'क्या आपके पास कोई जंगल है?'
शार्लोट का जवाब चौंकाने वाला था. उनके पास जंगल भी था, वह न सिर्फ म्यूजिकल मिजाज की थीं, बल्कि खुद पियानो बजाती थीं और उनका जॉडिएक साइन भी टॉरस ही था.
बस. मिस्टर महानंदिया के दिल का गिटार बज गया. बीबीसी से बातचीत में वह याद करते हैं, 'मुझे अब तक नहीं पता कि मैंने क्या सोचकर उससे ये सब पूछा और उसे चाय के लिए इनवाइट किया. मुझे लगा कि वह पुलिस में कंप्लेन कर देगी.'
लेकिन शार्लोट का रिएक्शन पॉजिटिव था. वह कहती हैं, 'मुझे लगा कि वह ईमानदार थे और मैं जानना चाहती थी कि उन्होंने मुझसे ये सवाल क्यों पूछे.'

फिर बातचीत का सिलसिला निकला. शार्लोट और महानंदिया ओडिशा गए. वहां कोणार्क मंदिर घूमा. फिर कुछ समय बिताकर दिल्ली लौट आए. महानंदिया बताते हैं, 'उसने साड़ी पहनी और पहली बार मेरे पिताजी से मिली. मुझे नहीं पता कि उसने यह कैसे मैनेज किया. पिताजी के आशीर्वाद से हमने आदिवासी परंपराओं के मुताबिक शादी कर ली.'

शार्लोट अपने दोस्तों के साथ ड्राइव करके हिप्पी ट्रेल के रास्ते यानी यूरोप, तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए भारत आई थीं. इसमें 22 दिन लगे थे. स्वीडन वापस जाने से पहले शार्लोट ने महानंदिया को गुडबाय कहा और उससे वादा लिया कि वह उसके पीछे स्वीडन के बोरास शहर आए.
एक साल से ज्यादा समय बीत गया. दोनों एक-दूजे को चिट्ठियां भेजते रहे. महानंदिया के पास प्लेन की टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे. तो उन्होंने अपना सब कुछ बेचकर एक साइकल खरीदी और उसी रास्ते पर उतर गए. 22 जनवरी 1977 को उनका सफर शुरू हुआ और वह रोज 70 किलोमीटर साइकल चलाते थे.
Pk mahanandia

जहां पैसे की कमी पड़ी, वहां लोगों के स्केच बनाए और काम भर की कमाई कर ली. 70 के दशक में दुनिया बहुत अलग थी. देशों से उस पार जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं होती थी. वह बताते हैं, 'अफगानिस्तान बहुत अलग देश था. शांत और सुंदर. लोग आर्ट को पसंद करते थे.' 28 मई को आखिरकार वह यूरोप पहुंचे.

64 साल के महानंदिया अब शार्लोट और अपने दो बच्चों के साथ स्वीडन में रहते हैं. बतौर आर्टिस्ट उनका काम जारी है. कहते हैं, 'शार्लोट से उतना ही प्यार है, जितना 1975 में था.'
महानंदिया कहते हैं कि पता नहीं लोग उनके साइकल से यूरोप जाने को इतनी बड़ी बात क्यों मानते हैं. वह कहते हैं, 'मैंने वही किया जो मैं कर सकता था. मेरे पास पैसे नहीं थे. मुझे उससे मिलना ही था. मैं प्यार के लिए साइकल से गया. साइकल चलाना मुझे पसंद नहीं था. इट्स सिंपल.'

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