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जब पूरा लंदन गटर में डूब गया था!

लंदन की थेम्स नदी एक जमाने में गटर से भी गंदी थी. वजह थी इंग्लिश कमोड. कैसे?

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1858 की गर्मियों में लंदन में वो बदबू फ़ैली की सांसद भी लंदन छोड़कर भागने लगे (तस्वीर: Wikimedia Commons/fiveminutehistory)

वेस्टमिनिस्टर पैलेस में उस रोज़ नजारा देखने लायक था. वेस्टमिनिस्टर पैलेस यानी ब्रिटेन की संसद. स्पीकर महोदय बोल रहे थे. लेकिन आवाज कम आ रही थी. वजह थी वो रूमाल जो स्पीकर ने अपनी नाक से लगाया हुआ था. बाकी सांसद भी रुमाल पकड़े हुए थे. और जिनके पास रुमाल न था, वो उंगलियों से नाक दबाए हुए थे. ये तो था अंदर का हाल. 

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बाहर मंजर और भी दिलचस्प हुआ जाता था. हुआ यूं कि उस रोज़ महारानी विक्टोरिया को शौक चढ़ा. मुलाजिमों ने नाव तैयार की और थेम्स में उतार दी. गर्मियों के मौसम में रानी को लगा था ठंडी हवा का आनंद उठाएंगे. लेकिन मिनट भर गुजरा कि नाव वापस लौटने लगी. अब एक और रुमाल निकल रहा था. एक शाही रुमाल. हालांकि सिर्फ यही चीज शाही नहीं थी. अगले दिन अखबार में छपी हेडलाइंस में बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था, “द ग्रेट स्टिंक’. यानी ‘बड़ी भयानक बदबू’.

इंग्लिश कमोड ने बरपाया कहर 

19 वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश साम्राज्य अपने उरूज पर पहुंच चुका था. पैसा बढ़ा तो लोग बढ़े. और साम्राज्य की राजधानी लन्दन दुनिया का सबसे बड़ा शहर बन गया. 1800 में लन्दन की आबादी 10 लाख थी. 1840 तक ये बढ़कर 30 लाख हो गई. जनसंख्या का सबसे बड़ा प्रेशर पड़ा पेट पे. गटर लबालब होने लगे. महामारी फैलने लगी. वो हाल हुआ कि 1832 से 1854 के बीच लंदन में तीन बार कॉलरा फैला. इलाज़ तो दूर, ये तक पता नहीं था कि बीमारी फैलती कैसे है. कोई कहता, ईश्वर का प्रकोप है. तो कोई कहता, बदबू से बीमारी फ़ैल रही है. इस चक्कर में 40 हजार लोग मारे गए. मृत्युदर ऐसी थी कि आधे से ज्यादा बच्चे 5 साल से ज्यादा जिन्दा नहीं बचते थे. दो दशक तक जब हालात नहीं सुधरे, तो सरकार ने बड़ा कदम उठाया.

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जैसे गंगा को मां मानते हैं वैसे ही थेम्स को ब्रिट्रेन में पिता का दर्ज़ा प्राप्त है (तस्वीर: Wikimedia Commons)

साल 1846 में संसद ने एक क़ानून पास किया. कॉलरा बिल नाम से मशहूर इस क़ानून में एक खास चीज शामिल थी. मॉडर्न कमोड ईजाद हुए सालों हो गए थे. लेकिन आम लोगों में ये प्रचलित नहीं था. सरकार ने मॉडर्न कमोड को बढ़ावा दिया. लोग भी खुशी-खुशी तैयार हो गए. नए कमोड से घर साफ़ रहता था और बदबू भी नहीं आती थी. अब सुनने से तो ऐसा लगता है कि क्या जबरदस्त फैसला था. लेकिन जागरूक नागरिकों को ये समझ नहीं आया कि गंदगी घर से बाहर निकालने से काम पूरा नहीं होता. उसका निपटारा करना पड़ता है. वरना रहेगी तो वो आपके घर के बाहर ही. ऐसे में आप कितनी देर बचे रहने की उम्मीद कर सकते हैं.

लन्दन के लोग भी नहीं बचे. नए कमोड से सफाई के बजाय गंदगी और बढ़ गई. क्योंकि नए कमोड में खूब पानी डालने की जरूरत पड़ती थी. पानी डाला जाता और पहुंचता सेप्टिन टैंक में. लोगों के पर्सनल सेप्टिक टैंक थे. ज्यादा पानी डाला तो भर गए और लबलबाने लगे. बाहर निकला लोगों का मल और ब्रिटेन की सड़कों पर फैलने लगा. पूरा लन्दन एक बड़े गटर में तब्दील हो गया. लेकिन इसके बाद भी हाकिमों की नींद नहीं टूटी. उन्हें नींद से जगाने के लिए बड़े धमाके की जरूरत थी. ये धमाका भी जल्द ही हो गया. धमाका ऐसी सड़ांध का जिसने लन्दन की संसद और राजमहल तक को ‘महका’ दिया.

ये साल था 1858 का. सड़कों और नालियों से बहता हुआ मल थेम्स नदी तक पहुंच चुका था. महान वैज्ञानिक फैराडे ने लिखा, “पानी इतना काला हो चुका है कि कागज़ का टुकड़ा थेम्स में डालते ही गायब हो जाता है”.

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पानी छोड़ बियर पीते रहे, इसलिए बच गए  

सरकार ने जुगाड़ लगाने की कोशिश की. रोज़ थेम्स के किनारे 250 टन चूना डाला गया. इसमें खूब पैसा खर्च होता था. 21 वीं सदी के हिसाब से 80 लाख रूपये प्रति दिन. हालांकि इससे 
भी कोई अंतर न पड़ा. थेम्स लन्दन के लिए पानी का मुख्य स्रोत थी. इसलिए लोग यही पानी पीने को मजबूर थे. जिसका मतलब था और ज्यादा बीमारी, और ज्यादा मौतें. हालांकि अब तक कॉलरा के फैलने के तरीका का पता चल गया था. जॉन स्नो नाम के एक डॉक्टर ने पता लगा लिया था कि बीमारी पानी से फैलती है. 

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कॉलरा के प्रकोप से लंदन में 40 हजार लोग मारे गए थे (तस्वीर: wikimedia Commons)

इस खोज की अपनी एक दिलचस्प कहानी है. दरअसल एक रोज़ किसी इलाके में बीमारी फ़ैली और काफी लोग मारे गए. लेकिन 70 लोग थे, जो बच गए थे. जॉन स्नो ने पाया कि ये लोग एक बियर की फैक्टरी यानी ब्रूअरी में काम करते थे. ये लोग पानी का काम बियर से लेते थे. और इत्तेफाक से यही बात उनकी जान बचा गई. जॉन स्नो बीमारी का इलाज़ खोजना चाहते थे, लेकिन इससे पहले ही उनकी मौत हो गई. इत्तेफाक से साल 1858 में, जब लन्दन में बदबू कहर बरपा रही थी.

1858 में हालात खराब होने के कुछ और कारण भी थे. एक मुख्य कारण था तापमान. उस साल लन्दन में पारा 47 डिग्री तक पहुंच गया. गर्मी से सड़कों पर फैला मल सड़ने लगा. ऐसी बदबू फ़ैली कि संसद का काम चलाना भी मुश्किल हो गया. और जैसा कि शुरुआत में बताया था, रानी को भी ये गंध झेलनी पड़ी. सबसे ताकतवर साम्राज्य की रानी की नाक में जैसे ही थेम्स की ‘महक’ गई, अखबार सरकार पर टूट पड़े.

इलस्ट्रेटेड न्यूज़ नाम के अखबार ने लिखा, 

“हम दुनिया के अंतिम कोने तक पहुंच सकते हैं. भारत को जीत सकते हैं. पूरी दुनिया में धन दौलत के भंडार लगा सकते हैं लेकिन एक काम हम नहीं कर सकते, ‘थेम्स की सफाई’” 

बात बदबू तक सीमित रहती, तो भी ठीक था. जल्द ही लन्दन को एक और केमिकल रिएक्शन का अनुभव हुआ. सड़ते हुए मल से गैस निकलती है. मिथेन, जो एक ज्वलनशील गैस है. लोगों की जान बीमारी से तो जा ही रही थी, अब धमाकों से भी लोग मरने लगे. इन सब कारकों ने जन्म दिया एक महान उद्यम को. एक ऐसा उद्यम जिसने थेम्स को इतना साफ़ कर दिया कि उसका आचमन किया जा सकता था. इस उद्यम के तहत लन्दन में एक आधुनिक सीवेज सिस्टम बनाया गया. जिसकी बदौलत 21 वीं सदी में लन्दन दुनिया के सबसे साफ़ शहरों में से एक है. इस काम को अंजाम देने का श्रेय जिस शख्स को जाता है, उसका नाम था, सर जोसेफ विलियम बेज़ेलगेट. जिनका जन्म आज के ही रोज़ हुआ था. तारीख 28 मार्च, साल 1819.

लंदन खोद दिया 

बेजेलगेट लंदन नगरपालिका में हेड इंजीनियर थे. उन्होंने लन्दन के लिए एक नए सीवर सिस्टम का प्लान तैयार किया. इस सिस्टम में 3 फ़ीट चौड़ी नालियों का एक जाल था. जो आगे जाकर 11 फ़ीट चौड़े सीवर से जुड़ जाता था. इस पूरे नेटवर्क की लम्बाई 1800 किलोमीटर थी.

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जॉन स्नो (बाएं) और विलियम बेज़ेलगेट (तस्वीर: Wikimedia Commons)

इस काम में 16 साल का वक्त लगा. कुल 318 करोड़ ईटें और 7 लाख क्यूबिक मीटर कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ. बेजेलगेट ने जगह-जगह पम्पिंग स्टेशन तैयार करवाए. सीवेज के ट्रीटमेंट के लिए दो प्लांट बनाए और तीन बांध भी तैयार करवाए. साल 1965 में नए सीवेज सिस्टम का उद्घाटन हुआ. और कुछ ही सालों में इसका असर भी दिखने लगा. थेम्स साफ़ होने लगी. कॉलरा और बाकी बीमारियों का प्रकोप कम हो गया. ये बदलाव इतना यकायक हुआ कि बेजेलगेट लन्दन के हीरो बन गए. उन्हें नाइटहुड की उपाधि दी गई.

एक इतिहासकार के अनुसार, विक्टोरियन इतिहास के किसी भी अधिकारी की तुलना में बेजेलगेट ने अधिक जानें बचाईं. वो लन्दन के सर्वमान्य हीरो हैं. बेजलगेट के काम का महत्त्व इस बात से समझिए कि हालिया समय में जब भी किसी नदी को साफ़ करने की बात होती है, थेम्स की सफाई को केस स्टडी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. 

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