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भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी बैंक डकैती

30 दिसंबर 2007 के दिन केरल के एक बैंक में भारत के इतिहास की सबसे बड़ी बैंक डकैती को अंजाम दिया गया. इस डकैती में केरल ग्रामीण बैंक से लगभग 8 करोड़ की कीमत का सोना और कैश चुराया गया था.

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भारत के इतिहास की इस सबसे बड़ी बैंक लूट का आइडिया चोर को धूम के जॉन अब्राहम को देखकर आया था (तस्वीर-IMDB/Google)

31 दिसंबर 2007 की शाम. केरल के मलप्पुरम जिले का चेलेमब्रा नाम का एक छोटा सा क़स्बा अचानक पूरे देश के लिए कौतुहल का केंद्र बन गया. क्या हुआ था वहां? एक डकैती हुई थी. हालांकि भारत के इतिहास में कई बड़ी-बड़ी डकैतियां हुई हैं. लेकिन इस डकैती ने पिछले सारे रिकार्ड्स को तोड़ दिया. रात ही रात में लुटेरे बैंक से आठ करोड़ रूपये लेकर चम्पत हो गए(Chelembra Bank Robbery). सुराग के नाम पर पुलिस के पास उंगली के निशान तक नहीं थे. था तो बस बैंक की फ्लोर पर बना एक छेद, और दीवार में लिखा एक नारा, ‘जय माओ’. जिसका एक मतलब ये हो सकता था कि ये नक्सलियों का काम है. पुलिस ने इसी एंगल से तहकीकात की और केस उलझता चला गया. आखिर में पुलिस के हाथ लगा एक फोन नंबर. जिससे पता चला कि पुलिस जिसे नक्सली समझ रही थी, वो असल में खुद को धूम(Dhoom) का जॉन इब्राहिम(John Abraham) समझता था. जिसने पीछे पड़े 23 अभिषेक बच्चनों को 57 दिनों तक नचा कर रख दिया था. भारत के इतिहास की इस सबसे बड़ी बैंक लूट को किसने अंजाम दिया, कैसे अंजाम दिया, और कैसे पकड़ा गया चोर?

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इस कहानी की शुरुआत होती है बाबू नाम के एक किरदार से. बचपन में एक बार उसने क्रिसमस पर पटाखों की दुकान से कुछ पटाखे चुरा लिए. ये जुर्म की दुनिया में बाबू का पहला कदम था. आगे चलकर भी उसका यूं ही छोटी मोटी चोरियां करना और जेल में आना जाना लगा रहा. ऐसे की एक जेल प्रवास के दौरान बाबू की मुलाक़ात हुई शिबू से. बाबू ने शिबू को अपना सपना बताया, सपना कि एक दिन वो बहुत बड़ी चोरी करेगा, और उसके बाद एक मस्त जिंदगी बिताएगा. जेल से निकलकर बाबू के सपनों में एक लड़की ने दखल दिया. उसे अनीता नाम की एक लड़की से प्यार हुआ और उससे शादी भी कर ली. अनीता के पिता अमीर थे. इसलिए बाबू की जिंदगी आराम में कटने लगी.

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Keral Gramin Bank
साल 2007 में केरल के मलप्पुरम जिले के केरल ग्रामीण बैंक से लगभग 8 करोड़ रुपये कि चोरी हुई थी (सांकेतिक तस्वीर-netivartha.in)

शादी के बाद बाबू ने कुछ छोटी मोटी नौकरियां की. एक पत्रिका का एडिटर रहा, और कुछ समय गांजा भी बेचा. इसी दौरान एक बार उसकी मुलाक़ात दुबारा शिबू से हुई. शिबू ने उसके सोए सपने को दोबारा जिन्दा कर दिया. दोनों के बीच कई मीटिंग्स हुई. जिसमें दोनों पैसे कमाने के अलग-अलग तरीकों के बारे में सोचते थे. अंत में तय हुआ कि बैंक लूटना सबसे मुफीद तरीका होगा. ये आईडिया उन्हें मिला धूम फिल्म देखकर.

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इसके बाद दोनों ने इलाके में मौजूद कई सारे छोटे बड़े बैंकों की रेकी करना शुरू किया. और बात फाइनल हुई केरल ग्रामीण बैंक(Kerala Gramin Bank) पर. इस बैंक को चुनने के दो कारण थे. रेकी के दौरान बाबू और शिबू ने पाया कि रात को बैंक में कोई गार्ड मौजूद नहीं होता था. और दूसरा कारण ये था कि बैंक बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर मौजूद था. जिसके नीचे एक रेस्त्रां हुआ करता था. इस रेस्त्रां से ही डकैती की जमीन तैयार की जानी थी, या कहें कि काटी जानी थी. बाबू और शिबू ने दो और लोगों को अपने साथ जोड़ा, राधाकृष्णन और उसकी पत्नी कनकेश्वरी. चारों लोगों को लेकर बाबू रेस्त्रां के मालिक से मिलने गया. रेस्त्रां बंद होने की कगार पर था. इसलिए शिबू ने उसे ऑफर दिया कि वो 300 रूपये रोजाना और 50 हजार की पगड़ी पर रेस्त्रां किराए पर दे दे. रेस्त्रां मालिक तैयार हो गया.

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अगले कुछ दिनों तक मेज कुर्सी जैसे रेस्त्रां के सामान लाए गए. बाबू ने वहां कई सारा बिल्डिंग मेटेरियल भी इकठ्ठा करवा लिया, ताकि लगे कि रेस्त्रां में रिमॉडलिंग का काम चल रहा है. अगले कुछ महीने तक सब कुछ सामान्य रहा, रेस्त्रां के अंदर तोड़फोड़ की आवाजें आती रहीं लेकिन किसी को कुछ शक न हुआ. अंदर बाबू और उसके साथी रेस्त्रां की छत यानी बैंक के फ्लोर पर एक छेद तैयार कर रहे थे.

Kerala Police Team
केरल पुलिस कि वो टीम जिसने लुटेरों को पकड़ा (तस्वीर-netivartha.in)

30 दिसंबर , 2007 की तारीख. सन्डे यानी छुट्टी का दिन था. उस रोज़ बाबू बैंक के फ्लोर में बने छेद से स्ट्रांगरूम में घुसा. उसने गैस कटर्स का उपयोग कर बैंक के लाकर्स को काटा और वहां मौजूद सोना और कैश निकाल लिया. इसके बाद चारों वहां से फरार हो गए. अगली यानी 31 दिसंबर की सुबह रोज़ की तरह बैंक खुला. बैंक कर्मचारियों ने पाया कि बैंक से कैश और सोना गायब था, जिसके कुल कीमत लगभग 8 करोड़ रूपये थी. खबर बड़ी थी क्योंकि ये भारतीय इतिहास में हुई सबसे बड़ी बैंक डकैती थी. इससे पहले सबसे बड़ी बैंक डकैती का रिकॉर्ड 1987 में बना था. जब ख़ालिस्तान कमांडो फ़ोर्स के कुछ लोग पुलिस वालों के भेष लुधियाना में पंजाब नेशनल बैंक की एक ब्रांच में घुसे और 6 करोड़ रुपये लेके फरार हो गए.

केरल में उस साल हुई बैंक डकैती देश में हुई सबसे बड़ी बैंक डकैती थी. इसलिए हर ओर इसके चर्चे फ़ैल गए. पुलिस पर लुटेरों को जल्द से जल्द पकड़ने का प्रेशर था. तुरंत मलप्पुरम पुलिस सुपरिटेंडेंट पी विजयन की लीडरशिप में एक टीम बनाई गयी. और केस की तहकीकात शुरू हो गई. शुरुआत से ही पुलिस के सामने इस केस में बड़ी मुश्किलें थी. बाबू ने बड़ी सफाई से काम को अंजाम देते हुए कोई सुराग नहीं छोड़ा था. रेस्त्रां या बैंक की किसी भी चीज पर हाथों के निशान तक नहीं थे. बस था तो बैंक की दीवार पर लिखा एक नारा, “जय माओ”. मलप्पुरम का इलाका तब नक्सली गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था. पिछले सालों में कई छोटे-मोटे बैंकों को नक्सलियों द्वारा लूटा जा चुका था. इसलिए शुरुआत में पुलिस ने इस केस की जांच नक्सली एंगल से की. जल्द ही उन्हें कुछ और सुराग भी मिले. पुलिस को हैदराबाद के एक होटल से कॉल आया, जहां एक कमरे से कुछ सोना बरामद हुआ था. ये सोना बैंक से हुई लूट का हिस्सा था. जल्द की कुछ और कॉल भी आए. लेकिन पुलिस को जल्द ही समझ आ गया कि ये सब जांच को बरगलाने की साजिश है.

जांच नए सिरे से शुरू हुई. जिस इलाके से चोरी हुई थी, उसके पास ही एक मोबाइल टावर था. पुलिस ने घटना की रात, इस टावर से जाने वाली सभी कॉल्स को मॉनिटर करने का निर्णय लिया. ये बहुत कठिन काम था. क्योंकि इसके लिए लगभग 20 लाख कॉल्स को सुना जाना था. कई लोगों की हफ़्तों की मेहनत के बाद पुलिस को एक कॉल पर शक हुआ, जिसमें कोई बाबू बात कर रहा था. इस नंबर के मालिक की पहचान भी झूठी थी. बाबू ने इस दौरान एक CDMA फोन का इस्तेमाल किया था, जिसमें सिम लगाने की जरुरत नहीं होती थी. यही फोन बाबू के पकड़े जाने का सबब बना. पुलिस ने बाबू का फोन ट्रेस करते हुए कोड़िकोड में बाबू के ठिकाने का पता लगाया और उसे धर पकड़ा. उसका असली नाम जोसफ था.

India's Money Heist Book
इस घटना पर अनिर्बन भट्टाचार्य ने एक किताब लिखी है और इसपर जल्द ही एक फिल्म भी बनने वाली है (तस्वीर-thesouthfirst.com)

गिरफ्तार होते ही बाबू ने शिबू का ठिकाना भी बता दिया. पुलिस को पता चला कि घटना में शामिल कनकेश्वरी ने अपने पति राधाकृष्णन को छोड़ दिया है और वो शिबू के साथ रहने लगी है. 57 दिन चले ऑपरेशन के बाद पुलिस चारों लोगों को पकड़ने में कामयाब रही. और चोरी का अधिकतर माल भी रिकवर कर लिया. इस मामले में लूटी हुई रकम में से लगभग 80 % वापस रिकवर कर ली गयी. जो अपने आप में एक और रिकॉर्ड है. बाबू और उसके साथियों पर केस चला. 5 साल चले मुक़दमे के बाद कनकेश्वरी को छोड़ सबको 10 साल कैद की सजा सुनाई गई. वहीं कनकेश्वरी को 5 साल कैद की सजा मिली. इस दौरान बेल पर बाहर रहने वाले बाबू ने तमिल नाडु में एक गहनों की दुकान में एक और बार चोरी करने की कोशिश की. जहां सीसीटीवी की मदद से उसे दुबारा पकड़ लाया गया.

इस केस में कमाल की बात ये भी थी की जितना सोना चोरों ने बेचा था, वो भी रिकवर कर लिया गया. और जब तक ये सोना रिकवर हुआ, तब तक उसकी कीमत काफी बढ़ चुकी थी. याद कीजिए ये चोरी 2008 आर्थिक संकट से ठीक पहले हुई थी. जिस कारण आने वाले सालों में सोने की कीमत में खूब इजाफा हुआ. और बैंक ने जितना सोना खोया था, उससे ज्यादा कीमत का सोना उन्हें वापिस मिल गया. ऐसा ही कुछ उन फ्लैट्स से साथ हुआ जो बाबू ने बंगलुरु में खरीदे थे. वो भी बैंक को वापिस मिल गए.

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