The Lallantop
Advertisement

जब स्टॉक मार्केट के दलालों को घुटनों पर ले आए धीरूभाई!

18 मार्च 1982 के दिन कलकत्ता के कुछ शेयर दलालों ने रिलायंस के शेयर गिराने कि कोशिश की, धीरुभाई अंबानी ने दलालों को सबक सिखाया और 3 दिन तक शेयर मार्केट में ताला लगवा दिया.

Advertisement
Dhirubhai Ambani
रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव रखने वाले धीरूभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1932 के दिन हुआ था (तस्वीर-Indiatoday)
pic
कमल
28 दिसंबर 2022 (Updated: 27 दिसंबर 2022, 20:20 IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

ये उस दौर की बात है जब लोग शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करते तो थे, लेकिन ग्रोथ के लिए नहीं, बल्कि डिविडेंड्स के लिए. अधिकतर कंपनियों का उद्देश्य मुनाफा कमाना हुआ करता था. और शेयरहोल्डर्स को इस मुनाफे की एवज में डिविडेंड्स मिल जाया करते थे. फिर 70 और 80 के दशक में एक आदमी ने इस खेल को पूरी तरह बदल डाला. इस शख्स का नाम था धीरू भाई अंबानी(Dhirubhai Ambani). अंबानी  किसी भी हाल में अपने शेयर्स की कीमत में कमी आने देने को तैयार नहीं थे. इसी का नतीजा हुआ कि 90 का दशक आते-आते रिलायंस से 24 लाख निवेशक जुड़ चुके थे.

यहां पढ़ें-नरसिम्हा राव ने क्यों ठुकरा दी बेनजीर की चाय?

रिलायंस(Reliance Industries) की सालाना होने वाली जनरल मीटिंग के लिए पूरा स्टेडियम बुक करना पड़ता था. रिलायंस का मतलब था फायदे का सौदा. निवेशकों को इतना विश्वास कि लोग अपनी जमा पूंजी लेकर रिलायंस में निवेश करने पहुंच जाते थे. इसका एक कारण तो ये था कि रिलायंस दिन रात तरक्की कर रही थी. वहीं एक बड़ी जरूरी बात ये थी कि धीरूभाई अंबानी किसी भी हालत में रिलायंस को शेयर मार्केट के खेल से बचाकर रखते थे.

यहां पढ़ें-गुरु गोबिंद सिंह के बेटों की हत्या का बदला कैसे लिया?

धीरूभाई अंबानी  की पैदाइश आज ही के दिन यानी 28 दिसंबर, 1932 के दिन हुई थी. इस मौके पर आपको सुनाएंगे वो किस्सा जब दलालों ने रिलायंस को गिराने की कोशिश की और धीरूभाई ने 3 दिन तक शेयर मार्केट(share market) में ताला लगवा दिया.

Dhirubhai Ambani
रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी (तस्वीर-Indiatoday)
समुंद्र में डाल दे या खा जाए

कहानी की शुरुआत होती है गुजरात की जूनागढ़ रियासत से. यहां साल 1932 में एक मध्यवर्गीय परिवार में धीरजलाल हीराचंद उर्फ़ धीरूभाई की पैदाइश हुई. पिता अध्यापक थे, लेकिन धीरूभाई का मन पढ़ाई में न था. शुरुआत में वो गांठिया नाम का एक गुजराती व्यंजन बेचा करते थे. सिर्फ इतनी सी तमन्ना थी कि अपने पास भी एक जीप हो जाए, क्योंकि जीप में आने वालों को गार्ड्स सलाम करते थे. पैसे कमाने की इसी ललक ने धीरूभाई को विदेश पहुंचा दिया. अदन के एक बंदरगाह में पेट्रोल पंप पर काम करने से शुरुआत की. और धीरे-धीरे तरक्की करते हुए उन्होंने शेल कम्पनी के साथ काम करने वाली एक फ्रेंच फर्म में सेल्स मैनेजर की नौकरी की. जब भारत लौटे तो उनकी तनख्वाह 11 सौ रूपये हो चुकी थी. धीरूभाई कहते हैं,

“अदन में रहते हुए मैं 10 रूपये खर्च करने से पहले 10 बार सोचता था. लेकिन कम्पनी एक टेलीग्राम भेजने के लिए पांच हजार खर्च कर देती थी. इससे मुझे इनफार्मेशन का महत्त्व समझ आया. जो जानकारी चाहिए, वो बस चाहिए ”

भारत लौटकर धीरूभाई ने 15 हजार रूपये से एक कंपनी की शुरुआत की. कंपनी मसालों का निर्यात करती थी. इसी कम्पनी से जुड़ा एक किस्सा है. धीरूभाई अंबानी  अरब में एक शेख को मसाले बेचा करते थे. एक रोज़ उन्हें पता चला कि शेख को अपने गुलाब के बगीचे के लिए मिट्टी चाहिए. धीरू भाई ने शेख को ये मिट्टी भारत से भेजकर उसमें भी मुनाफा कमा लिया. इस बाबत पूछे गए एक सवाल के जवाब में वो कहते हैं,

“उधर उसने लेटर ऑफ़ क्रेडिट खोला और इधर पैसा मेरे खाते में. इसके बाद मेरी बला से वो मिट्टी समुंद्र में डाल दे या खा जाए”

70 के दशक में धीरूभाई अंबानी  में टेक्सटाइल और पेट्रोकेमिकल उद्योग में कदम रखा. 1980 में उन्होंने रायगढ़, पातालगंगा में पॉलीस्टर बनाने का प्लांट लगाया. इसी प्लांट से जुड़ा एक किस्सा है. एक बार पातालगंगा नदी में इतनी भयानक बाढ़ आई कि उनका पेट्रोकेमिकल प्रोजेक्ट तहस नहस हो गया. धीरूभाई के बेटे मुकेश(Mukesh Ambani) तब इस प्रोजेक्ट को देख रहे थे. इस प्रोजेक्ट में एक दूसरी कम्पनी डुपोंट भी काम कर रही थी. डुपोंट के अभियंताओं ने हिसाब लगाया कि प्लांट को दोबारा शुरू करने में कम से कम तीन महीने का समय लग जाएगा. मुकेश ने ये बात धीरूभाई तक पहुंचाई. धीरूभाई ने उनसे कहा, डुपोंट वालों का बोरा बिस्तर बांधो, हम 14 दिन में प्लांट दोबारा शुरू कर देंगे. ऐसा ही हुआ भी. 13वें ही दिन प्लांट दुबारा चालू हालत में पहुंच गया.

Dhirubhai Ambani Reliance Industries
1977 में जब रिलायंस ने अपना पहला IPO जारी किया (तस्वीर-indiafilings.com)

धीरूभाई अंबानी  ने जब धंधे की शुरुआत की, उस दौर में किसी भी काम के लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता था. और ऐसे में लगातार और तेज़ वृद्धि करना किसी भी बिजनेस घराने के लिए मुश्किल काम होता था. लेकिन धीरूभाई अंबानी  इसके बावजूद लगातार सफलता हासिल करते जा रहे थे. गुरचरण दास अपनी किताब ‘उन्मुक्त भारत’ में लिखते हैं

‘धीरूभाई सबसे बड़े खिलाड़ी थे जो लाइसेंस राज जैसी परिस्थिति में भी अपना काम निकाल पाये.’

जहां दूसरे बड़े घराने जैसे बिड़ला, टाटा या बजाज लाइसेंस राज के आगे हार मान जाते थे, धीरुभाई येन केन प्रकरेण अपना हित साध लेते थे. और इसी के चलते रिलायंस लगातार मुनाफा कमा रहा था. इसी का नतीजा था कि साल 1977 में जब रिलायंस ने अपना पहला IPO जारी किया. ये IPO 7 गुना की दर से ओवरसब्सक्राइब हुआ. 1982 आते आते रिलायंस का शेयर 131 रूपये तक पहुंच गया था. फिर उसी साल मार्च महीने में कुछ ऐसा हुआ, जिसने धीरूभाई को शेयर मार्केट का मसीहा बना दिया.

धीरूभाई ने शेयर मार्केट के दलालों को पटखनी दी 

18 मार्च 1982 की तारीख थी . ये दिन स्टॉक एक्सचेंज में हाहाकार मचाने वाला था. हुआ ये कि कलकत्ता के कुछ शेयर दलालों ने रिलायंस को गिराना शुरू कर दिया. स्टॉक्स की भाषा में ऐसे लोगों को बियर यानी भालू कहा जाता है. ये लोग शेयरों की कीमत गिराकर उसे दोबारा खरीदने से मुनाफा कमाते हैं. वहीं इसके उलट जो लोग शेयर खरीदकर उनके दाम बढ़ाते हैं , और फिर उसे ऊंची कीमत पर बेचकर मुनाफा कमाते हैं, उन्हें अंग्रेजी में ‘बुल’ यानी बैल कहा जाता है. तो ऐसे ही कुछ बियर्स का प्लान था रिलायंस को नीचे गिराने का. और ऐसा करने के लिए वो वायदा कारोबार का इस्तेमाल करने वाले थे. वायदा कारोबार यानी सिर्फ ज़ुबानी ख़रीद-फ़रोख्त. वायदा कारोबार में दलाल के पास शेयर नहीं होते. वो बस वायदा करते हैं कि अमुक दिनों में शेयर्स बेच देंगे या खरीद लेंगे. इसमें एक नियम ये भी होता है कि अगर नियत समय पर भुगतान में देरी हो जाए तो 50 रुपये प्रति शेयर देना होता है.

Dhirubhai Ambani with Mukesh and Anil Ambani
धीरुभाई अंबानी अपने बेटों के साथ, मुकेश अंबानी (बाएं) अनिल अंबानी (दाएं) (तस्वीर-indiafilings.com)

उस रोज़ कुछ ऐसा हुआ कि स्टॉक एक्सचेंज खुलते ही रिलायंस का 131 रुपये का शेयर गिरकर 121 रुपए पर आ गया. दलालों को उम्मीद थी कि कोई बढ़ा निवेशक इस डूबते शेयर में अपने हाथ नहीं जलाएगा. जिसके चलते रिलायंस के निवेशकों में भगदड़ मचेगी और शेयर गिरता चला जाएगा. एक नियम ये भी था कि कंपनी खुद अपने शेयर नहीं खरीद सकती. इसलिए रिलायंस का डूबना तय था. हालांकि धीरूभाई अंबानी इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे. धीरूभाई को जैसे ही शेयर्स गिरने की खबर लगी उन्होंने तुरंत ‘बुल’ दलालों से संपर्क किया. बुल मार्केट में कूद चुके थे. और यहां से बुल और बीयर्स के बीच रस्साकस्सी शुरू हो गई. एक तरफ कलकत्ता में बैठे बियर्स रिलायंस के शेयर बेच रहे थे तो वहीं बुल इसे खरीद रहे थे. इस तनातनी का नतीजा हुआ कि दिन ख़त्म होते होते शेयर 125 रूपये की कीमत पर जाकर रुक गया. अगले दिन भी यही रस्साकसी जारी रही. धीरूभाई के लिए इस खेल में जीतना जरूरी नहीं था. उन्हें बस इतना करना था कि वायदा कारोबार की अवधि तक शेयर ज्यादा डूबे नहीं. क्योंकि अगर शेयर बुल्स की उम्मीद के हिसाब से नहीं गिरता तो हफ्ते के एन्ड तक उन्हें वायदे के अनुसार शेयर चुकाने पड़ते.

अगले कुछ दिनों तक बुल्स ने धड़ाधड़ शेयर खरीदे. चंद दिनों के भीतर ही रिलायंस के 11 लाख शेयर बिक गए और इनमें से साढ़े आठ लाख के करीब, अंबानी के दलालों ने खरीद लिए. जब तक खेल ख़त्म हुआ, शुक्रवार आ चूका था. अब कलकत्ता में बैठे दलालों के होश उड़ने वाले थे. क्यूंकि उनकी उम्मीद थी कि वो 131 में बेचा हुआ शेयर कहीं कम कीमत पर खरीद लेंगे. लेकिन शुक्रवार तक शेयर की कीमत 131 से भी ऊपर पहुंच गई. जिसका मतलब था अब शेयर चुकाने के लिए बियर्स को कहीं ऊंची कीमत पर शेयर खरीदने पड़ते. वहीं अगर वो शेयर नहीं चुकाते तो उन्हें प्रति शेयर 50 रूपये देना पड़ता.

बियर्स ने बुल्स से समय मांगा. लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. शेयर मार्केट के अधिकारियों ने समझौता कराने की कोशिश की. लेकिन बुल्स तैयार नहीं हुए. धीरूभाई बियर्स को अच्छा सबक सिखाना चाहते थे. लिहाजा अगले 3 दिनों तक जिस कीमत पर भी रिलायंस के शेयर उपलब्ध थे, खरीद लिए गए. हालात ऐसे बने कि तीन दिनों तक शेयर मार्केट खुलते ही बंद हो गया. रिलायंस के निवेशकों ने खूब मुनाफा लूटा. 10 मई 1982 तक रिलायंस का शेयर आसमान छू चूका था. धीरुभाई अंबानी स्टॉक मार्किट के मसीहा बन गये थे और रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज निवेशकों को सोने के अंडे देने वाली कंपनी.गीता पीरामल अपनी किताब ‘बिज़नेस महाराजास’ में इस किस्से का जिक्र करते हुए लिखती हैं,

"इस किस्से ने धीरूभाई को लीजेंड बना दिया. वो शेयर स्टॉक मार्केट के लिए मसीहा बन गए.लेकिन इसलिए नहीं कि उनकी वजह से बाज़ार तीन दिन तक बंद रहा और इसलिए भी नहीं कि उन्होंने बिकवाली दलालों को अपने सामने नतमस्तक करवा दिया था. यकीनन ये बड़ा हौसंले वाला काम था. लेकिन जो बात उन्हें मसीहा बनाने वाली साबित हुई वो थी- आम निवेशकों का उनमें भरोसा.”

Vimal
धीरूभाई अंबानी ने सिंथेटिक कपड़ों के बाज़ार में विमल ब्रांड की शुरुआत की जो छोटे शहरों में काफ़ी लोकप्रिय हुआ (तस्वीर-indiafilings.com)
चमक के चमत्कार 

धीरूभाई यहीं नहीं रुके. उस दौर में जब सिंथेटिक कपड़ों को महज मेट्रो शहरों तक सीमित माना जाता था. धीरूभाई विमल ब्रांड(Only Vimal) के साथ मार्केट में उतरे और धमाल मचा दिया. जब बड़े वितरकों ने उनका ब्रांड बेचने से इंकार कर दिया, तो धीरूभाई देश भर में घूमे और छोटे शहरों में नए व्यापारियों को इस क्षेत्र में ले आए. विमल की फ़्रेंचाइज़ बांटते हुआ उनका वादा था,

”अगर नुकसान हुआ तो मेरे पास आना और अगर मुनाफा हुआ तो अपने पास रख लेना”

गीता पीरामल विमल की फ्रैंचाइज़ की तुलना मैक्डोनाल्ड से करते हुए लिखती हैं, दूसरे ब्रांड बस बड़े शहरों तक सीमित थे, वहीं रिलायंस छोटे-छोटे शहरों में ढेरों शोरूम खोल रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब एक दिन में विमल के सौ शोरूमों का उदघाटन हुआ! गीता पीरामल लिखती हैं.

‘मुंबई के मूलजी जेठा बाज़ार में पॉलिएस्टर को चमक कहा जाता है. धीरुभाई अंबानी उस चमक के चमत्कार थे!'

हालांकि इस चमक में कई स्याह पहलू भी थे. धीरूभाई अंबानी  पर कई बार ये इल्जाम लगा कि उन्होंने सरकार से नजदीकी बनाकर लाइसेंस राज का फायदा उठाया. खुद धीरूभाई अंबानी ने खुद कहा,

“सरकारी तंत्र में अगर मुझे अपनी बात मनवाने के लिए किसी को सलाम भी करना पड़े तो मैं दो बार नहीं सोचूंगा.”

इसके बावजूद इसमें कोई शक नहीं कि रिलायंस भारत में औद्योगिक क्रांति का एक महत्वपूर्ण चैप्टर लिखती है, जिसका पूरा श्रेय धीरूभाई अंबानी को जाता है.

वीडियो: तारीख़: क्यों त्रावणकोर पर बमबारी को तैयार हो गए थे नेहरू?

Comments
thumbnail

Advertisement

Advertisement