याहया ख़ान ने पूर्वी पाकिस्तान का भविष्य तभी तय कर दिया था जब उन्होंने रणनीति अपनाई - 'पूर्वी पाकिस्तान की रक्षा पश्चिमी पाकिस्तान में निहित है' (तस्वीर:Getty)
3 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान ने युद्ध की घोषणा की. खबर मिलते ही पाक राष्ट्रपति याहया के एक पुराने दोस्त ब्रिगेडियर गुल मवाज (रिटायर्ड) उनसे मिलने पहुंचे. ये सोचकर कि युद्ध के मसलों पर मशवरा किया जाएगा. लेकिन मवाज पहुंचे तो देखा, नजारा कुछ और ही था. याहया और उनके चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ जनरल हमीद पूरी तरह शराब के नशे में धुत्त थे. युद्ध का मसला उठा तो याहया बोले,
‘जंग की घोषणा करके मैंने अपना काम कर दिया है. अब आगे का काम जनरल देख लेंगे’
उसी समय जापान से एक कॉल आया. मशहूर गायिका नूरजहां फ़ोन पर थीं. देश के दो टुकड़े होने जा रहे थे और देश का सुप्रीम कमांडर फ़ोन पर ग़ज़ल की फ़रमाइश का रहा था. पहला शेर यानी मतला तो उसी दिन मौजूं हुआ, लेकिन मक्ते की खबर लगी 13 दिन बाद. जब 16 दिसंबर की शाम जनरल नियाजी ने सरेंडर के काग़ज़ों पर दस्तख़त किए. भारत युद्ध जीता और तब जाकर ये मुसलसल ग़ज़ल पूरी हुई. हर साल इस दिन को हम विजय दिवस के रूप में मनाते हैं. इस मौक़े पर हम लाए हैं तीन आर्टिकल्स की एक सीरीज. 14 दिसम्बर को पब्लिश हुए पहले आर्टिकल में हमने आपको बताया कि कैसे पाकिस्तानी सेना ने हार सामने देखते हुए नए नवेले देश की जड़ पर चोट की. और पाकिस्तान के प्रबुद्धजनों को किडनैप कर उनकी निर्मम हत्या कर दी.
मशहूर पाकिस्तानी गायिका नूर जहां और याहया ख़ान बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे (फ़ाइल फोटो)
युद्ध ख़त्म होने के बाद जब पाकिस्तान ने हार के कारणों को खंगाला तो एक विशेष बात पता चली. वो ये कि पश्चिमी पाकिस्तान से कभी सरेंडर का कोई ऑर्डर जारी ही नहीं हुआ था. जनरल नियाज़ी के अपने लिखे से पता चलता है कि तब ढाका के इर्द-गिर्द उनके 26 हज़ार ट्रूप्स थे. और भारत के सिर्फ़ 3000. वो भी ढाका से 30 किलोमीटर दूर. 14 तारीख़ को UN में सीजफ़ायर का प्रस्ताव पेश हो चुका था. कुछ दिन और रुक जाते तो शायद पाकिस्तान हार की शर्मिंदगी से बच जाता. फिर क्या कारण रहे कि पाकिस्तान ने सरेंडर कर दिया? और सरेंडर के ठीक एक दिन पहले युद्ध की ज़मीन पर और पॉलिटिक्स में क्या खेल चल रहा था?
पर्चे आसमान से
क्रिस्टॉफर नोलन की फिल्म डनकर्क का पहला सीन है. जर्मन सेना ने अलाइड फ़ोर्सेस को डनकर्क के बीच पर घेर लिया है. आसमान से पर्चे गिराए जा रहे हैं. ब्रिटिश फ़ौज का एक लड़का आसमान से गिरते एक पर्चे को पकड़कर उसे देखता है. जिसमें डनकर्क बीच की तरफ कुछ निशान बने थे. लिखा था, ‘तुम चारों तरफ से घिर चुके हो’.
1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान कुछ ऐसा ही हाल पाकिस्तानी सेना का भी था. उर्दू पश्तो और बांग्ला में पर्चे छपवाकर पूरे पूर्वी पाकिस्तान में गिराए जा रहे थे. जिनमें लिखा होता कि पाकिस्तानी सेना सरेंडर कर दे. मानेकशॉ ने ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से भी यही संदेश दिया. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में जो पाकिस्तानी सैनिक हैं, उनके पास भागने का कोई रास्ता नहीं बचा है. न ही पाकिस्तान से कोई मदद उन तक पहुंच सकती है. उसके पास अपने जवानों की जान बचाने का एक ही रास्ता है- आत्मसमर्पण. अगर ऐसा नहीं होता है, तो मुक्ति वाहिनी के गुस्से से उनके परिवारों को बचा पाना मुश्किल होगा.
जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी (तस्वीर: Commons)
दरअसल, 14 तारीख़ को UN में पोलेंड ने सीजफ़ायर का प्रस्ताव पेश किया था. युद्ध लम्बा खिंचने की स्थिति में सीजफ़ायर का प्रस्ताव कभी भी पास हो सकता था. इसलिए ज़रूरी था कि पाकिस्तानी सेना का मनोबल तोड़ा जाए, ताकि वो जल्द से जल्द आत्मसमर्पण कर दे.
पूर्वी पाकिस्तान में सेना के कमांडर जनरल नियाजी सरेंडर करने में हिचकिचा रहे थे. 14 तारीख़ तक उन्हें उम्मीद थी कि कहीं ना कहीं से कोई मदद आएगी. या सीजफ़ायर की घोषणा हो जाएगी. वो लगातार याहया खान को मदद के लिए संदेश भेज रहे थे. याहया उन्हें कठिन लड़ाई लड़ने के लिए शाबाशी तो दे रहे थे. लेकिन कोई साफ़ दिशानिर्देश जारी करने में हिचक रहे थे.
भुट्टो और याहया की कश्मकश
युद्ध की शुरुआत से पाकिस्तान की लीडरशिप आश्वस्त नहीं थी. याहया ख़ान जो उसी साल फरवरी में बयान दे रहे थे,
"30 लाख लोगों को मार डालो. जो बाकी बचेंगे, वो हमारे हाथों से फेंके गए टुकड़े खाएंगे."
दिसंबर आते-आते उन्हें असलियत का अहसास हो चुका था. 7 तारीख़ से ही याहया ख़ान कोशिश में थे कि किसी तरह युद्ध रुक जाए और वो शर्मिंदगी से बच जाएं. दूसरी ओर ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो इस फ़िराक में थे कि हार का ठीकरा याहया खान के सर फूटे और सत्ता पर उनका क़ब्ज़ा हो जाए. इसलिए जब याहया ने भुट्टो को संयुक्त राष्ट्र परिषद में भेजा. तो 8 दिसम्बर को रवाना हुए भुट्टो 10 दिसंबर को न्यू यॉर्क पहुंचे. 14 दिसंबर को पोलैंड ने सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव रखा कि पूर्वी पाकिस्तान के चुने हुए प्रतिनिधियों, यानी मुजीब ऐंड पार्टी को शांति से सत्ता सौंप दी जानी चाहिए. इधर UN में ये प्रस्ताव पेश हो चुका था और भुट्टो बेखबर थे. उनको बाद में मीडिया से मालूम हुआ. न तो भुट्टो ने और न ही पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने, याहया खान को ये खबर देना जरूरी समझा. 24 घंटे बाद जाकर याहया को उस प्रस्ताव की कॉपी मिली.
याहया ने न्यूयॉर्क फोन मिलाया. ताकि भुट्टो से कह सकें कि प्रस्ताव पर हामी भर दो. मगर भुट्टो कहीं मिले ही नहीं. बाद में भुट्टो मिले तो याहया को फोन मिलाया गया. याहया ने कहा, प्रस्ताव ठीक है. रजामंदी दे दो. फोन के इस तरफ भुट्टो कह रहे थे- हेलो, हेलो. मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है. फोन के दूसरी तरफ से याहया ने कई बार अपनी बात दोहराई. मगर भुट्टो का वही जवाब- 'हेलो, हेलो. मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा.' याहया और तेज से बोले जा रहे थे. भुट्टो जहां बैठकर बात कर रहे थे, वहीं पास में फोन ऑपरेटर भी थी. उससे रहा नहीं गया. उसने कहा, 'सर, जब मुझे सुनाई दे रहा है तो आपको कैसे नहीं सुनाई दे रहा.' भुट्टो ने गुस्से से उसकी तरफ देखा. फिर बोले- शट अप.
नियाजी का बुरा हाल
जहां UN से भुट्टो अपनी गोटियां बिठा रहे थे. वहीं ढाका में नियाजी का और भी बुरा हाल था. युद्ध से पहले ही अति आत्मविश्वास उन्हें ले डूबा. मेजर सादिक सिद्दीक़ी तब पूर्वी पाकिस्तान में पब्लिक रिलेशन ऑफ़िसर के पद पर तैनात थे. अपनी किताब 'विटनेस टू सरेंडर' में सिद्दीक़ी बताते हैं कि प्लानिंग के दौरान उन्होंने जनरल नियाजी को ट्रूप्स और रिसोर्स की कमी की ओर ध्यान दिलाया. सिद्दीक़ी ने उन्हें समझाया कि पश्चिमी फ़्रंट पर लड़ाई छिड़ी तो उनकी मदद को कोई नहीं आएगा. तब नियाजी ने लगभग दुत्कारते हुए उनसे कहा,
“युद्ध का फ़ैसला सेना की संख्या नहीं, ज़नरल की स्किल करती है.”
सादिक़ सिद्दीक़ी ने अपनी किताब में जनरल नियाजी की करतूतों का खुलासा किया (तस्वीर : IMDB)
भारतीय सेना ने जब 7 दिसंबर को जेस्सोर पर कब्जा किया तो नियाजी को अपनी जान का डर सताने लगा. मीडिया को दिए बयान में वो आख़िरी सेकेंड तक लड़ाई की बात कर रहे थे, लेकिन अंदर ही अंदर वो बदहवासी की हालत में पहुंच चुके थे. ‘पाकिस्तान: आई ऑफ द स्ट्रॉम’ में ओवेन बैनेट जोन्स लिखते हैं,
"7 दिसंबर को नियाजी पहुंचे गवर्नर एएम मलिक के पास. गर्वनर ने कुछ ही शब्द कहे होंगे कि नियाजी ने रोना शुरू कर दिया. वो जोर-जोर से रो रहे थे. गवर्नर अपनी सीट से उठे. उन्होंने नियाजी की पीठ थपथपाई. उन्हें ढाढ़स बंधाया."
10 दिसम्बर को नियाजी ने रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय (GHQ) को एक संदेश भेजा. उन्होंने बताया कि इंडिया ने नरसिंगड़ी तनगेल में एक ब्रिगेड बराबर फ़ौज पैरा-ड्रॉप की है. असलियत में भारत की फ़ौज सिर्फ़ 2 बटालियन के बराबर थी. सम्भव था कि नियाजी को असलियत का पता नहीं था. या शायद वो जानबूझकर ट्रूप्स की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे थे, ताकि पाकिस्तान से मदद जल्दी आए. 12 तारीख़ तक उन्हें किसी भी हालत में मदद की ज़रूरत थी. तब GHQ से जनरल गुल हुसैन ने दिलासा देते हुए कहा,
‘गोरे दोस्त दक्षिण से और पीले दोस्त उत्तर से आ रहे हैं. चिंता मत करो’.
गोरे दोस्तों से मतलब अमेरिका से और पीले दोस्तों से मतलब चीन से था. ना पीले आए न गोरे. नियाजी का पाला गेहुएं रंग वाली भारतीय फ़ौज से पड़ा. 10 दिसम्बर से 13 दिसंबर के बीच नियाजी को पाकिस्तान से कोई संदेश नहीं मिला. 14 तारीख़ को संदेश आया. वो भी गवर्नर मलिक के नाम. संदेश में कहा गया था कि युद्ध को रोकने के जो भी प्रयास ज़रूरी लगे, वो करें. ताकि पाकिस्तान के सैनिक अधिकारियों की जान बच सके.
कमाल कि बात ये थी कि ये संदेश खुले चैनल से भेजा गया था. जिसे IAF आसानी से इंटरसेप्ट कर सकती थी. ऐसे मेसेज से इंडियन आर्मी को संदेश जाता कि वो अपने ऑपरेशन और तेज करे. इसलिए पहले तो नियाजी को लगा ये भारतीयों की चाल है. उन्होंने अपने स्टाफ़ से मेसेज को वेरिफ़ाई कराने को कहा. मेसेज असली थी. ओपन चैनल पर मेसेज भेजने का याहया ख़ान का मकसद कुछ और था. वो किसी तरह पूर्वी पाकिस्तान से अपना पिंड छुड़ाने के कोशिश में थे.
टेबल के नीचे इस्तीफे पर हस्ताक्षर हुए
14 दिसम्बर सुबह क़रीब 11 बजे IAF ने एक और मेसेज इंटरसेप्ट किया. उन्हें पता चला कि पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर एएम मलिक ने दोपहर 12 बजे गवर्नर हाउस में एक मीटिंग बुलाई है. गवर्नर हाउस ढाका के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े में मौजूद था. इसके बावजूद 45 मिनट के अंदर IAF के मिग-21 विमानों ने ना सिर्फ़ गवर्नर हाउस को लोकेट कर दिया, बल्कि ठीक उसी कमरे पर निशाना लगाया जिसमें मीटिंग होनी थी. बमबारी के बीच ही गवर्नर मलिक ने अपना इस्तीफ़ा लिखा. इस दौरान वो टेबल के नीचे छिपे हुए थे.
पूर्वी पाकिस्तान में पैराशूट से उतरते भारतीय पैराट्रूपर्स (तस्वीर: भारत सरकार )
इसके बाद उन्होंने अपनी पूरी कैबिनेट सहित इंटरकॉन्टिनेंटल होटल में पनाह ली. जिसे UN प्रोटेक्शन के तहत न्यूट्रल ज़ोन घोषित किया जा चुका था. इसी के साथ 14 तारीख़ को पूर्वी पाकिस्तान में सरकार गिर गई. टाइगर नियाजी के नाम से मशहूर जनरल 14 तारीख़ को अपने बंकर से बाहर भी नहीं निकले.
पाकिस्तान से मिले सिग्नल में आत्मसमर्पण के लिए नहीं कहा गया था. लेकिन नियाजी इतने डरे हुए हुए थे कि उन्हें बिना कोई समय गंवाए अमेरिकी काउन्सिल जनरल मिस्टर स्पिवाक से कहा कि वो भारत सरकार से साथ सीज फ़ायर अरेंज़ करें. स्पिवाक ने ये संदेश वाशिंगटन भिजवाया. अमेरिका ने इस्लामाबाद में अपने एम्बेसडर से कहा कि वो याहया खान से ये प्रपोज़ल अप्रूव कराएं. अप्रूवल आया. लेकिन याहया से नहीं.
अब दो सवाल. नियाजी को किस बात का डर था. और याहया ने प्रस्ताव क्यों अप्रूव नहीं किया. दूसरे सवाल का जवाब ये है कि याहया उस रात इस हालत में ही नहीं थे कि कुछ भी अप्रूव कर सकें.
पेशावर में पार्टी और ब्लैक पर्ल
15 दिसंबर यानी आज ही का दिन था. या कहें की रात थी. पेशावर में याहया का आलीशान मकान कुछ ही दिन पहले बनकर तैयार हुआ था. मौक़े पर पार्टी दी गई थी. और पार्टी में कुछ चुनिंदा मेहमानों के अलावा एक खास बंगाली महिला भी थी. नाम का तो पता नहीं, लेकिन सत्ता के गलियारों में सब उन्हें ब्लैक पर्ल के नाम से जानते थे. वो याहया की घनिष्ठ मित्र थीं. याहया ने उन्हें ऑस्ट्रिया में राजदूत के तौर पर नियुक्त किया हुआ था. पार्टी में खूब शोर गुल था. देर रात ‘ब्लैक पर्ल’ ने याहया से जाने की इजाजत लेनी चाही. याहया शराब के नशे में धुत थे. बोले, 'मैं घर छोड़ के आऊंगा.'
याहया खान और नूर जहां (तस्वीर: डॉन)
याहया के मिलिटरी सेक्रेटरी मेजर जनरल इशाक को ज़बरदस्ती उन्हें रोकना पड़ा. याहया नहीं माने तो इशाक बोले, कम से कम अपनी पतलून तो पहन लीजिए. इशाक पूर्वी पाकिस्तान को तो नहीं बचा पाए, लेकिन उस दिन याहया की इज्जत बचा ली.
इसके बाद विदेश सचिव सुल्तान अहमद ने याहया की बिना पर सीजफ़ायर का प्रपोज़ल स्वीकार किया. जनरल नियाजी ने सीजफ़ायर का प्रपोज़ल मानेकशॉ को भेजा. मानेकशॉ हवाई रेड रोकने को सहमत हो गए, लेकिन नियाजी को 16 दिसम्बर सुबह 9 बजे तक का वक्त दिया. तब तक अगर पाकिस्तानी सेना सरेंडर नहीं करती तो ढाका पर हमला कर दिया जाता.
तब तक 3 इंडियन ब्रिगेड (73, 301 and 311 ब्रिगेड - लगभग 10 हज़ार ट्रूप्स) मेघना नदी को पार कर ढाका पर अटैक करने को तैयार हो चुकी थीं. बालू नदी को पार कर एक 75/24 होविटजर गन ढाका कैंटोन्मेंट के मुहाने पर पहुंचा दी गई थी. साथ में 168 गोले थे. और हर आधे घंटे में एक गोला दागा जा रहा था.
चलो इसी बहाने बच्चे सुंदर पैदा होंगे
अब दूसरा सवाल. नियाजी को किस बात का डर था. उन्हें भारतीय फ़ौज के हाथों हार का डर नहीं था. हार की सूरत में भी सेना उनकी जान बख्श सकती थी. लेकिन अगर वो मुक्तिवाहिनी के हाथ लगते तो किसी हालत में उन्हें ज़िंदा नहीं छोड़ा जाता. और इसमें उनके अपने ही कर्मों का दोष था. युद्ध के बाद बांग्लादेश में रेड क्रॉस ने पूरे बांग्लादेश में अबॉर्शन कैम्प बनाए. कारण- 25 हज़ार औरतों को रेप कर गर्भवती कर दिया गया था.
पाकिस्तानी सेना ने 25 हज़ार औरतों का रेप किया. युद्ध के बाद रेड क्रॉस को पूरे बांग्लादेश में अबॉर्शन कैम्प लगाने पड़े (तस्वीर: Getty)
अनुशासन से बंधी सेना इक्के-दुक्के मौक़ों को छोड़कर आम तौर पर ऐसा नहीं करती. बशर्ते ऊपर कमांड से उन्हें इसकी हरी झंडी ना मिली हो.
मेजर जनरल ख़ादिम हुसैन राजा ने इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना की 14th डिविज़न को कमांड किया था. अपनी किताब 'A Stranger in my own country' में वो रेप कल्चर का कारण नियाजी को बताते हैं. वो लिखते हैं,
“नियाज़ी गाली-गलौज और हंगामा करने लगा था. उसने कहा- ‘मैं इस हरमजादी कौम की नस्ल बदल दूंगा. ये मुझे क्या समझते हैं’. नियाजी ने धमकी दी कि वो अपने लड़कों को बंगाल की औरतों के पीछे छोड़ देगा.' कोई इस पर कुछ नहीं बोला. अगली सुबह पता चला कि एक बंगाली अधिकारी मेजर मुश्ताक कमान मुख्यालय के बाथरूम में गए. और उन्होंने खुद को सिर में गोली मार ली.”
राष्ट्रपति याहया खान को जब इसका पता चला तो उन्होंने जवाब दिया
, "चलो इसी बहाने बच्चे सुंदर पैदा होंगे पूर्वी पाकिस्तान में"नियाजी की इन्हीं करतूतों के चलते सरेंडर के बाद भी मुक्तिवाहिनी के दस्ते उनके पीछे लगे थे. लेकिन भारतीय सेना ने उनकी जान बख्शने का वादा किया था. सो निभाया भी.
अगले पार्ट में जानेंगे कि कैसे एक भारतीय ऑफ़िसर ने लगभग ब्लफ़ खेलते हुए नियाजी को सरेंडर के लिए राजी किया? साथ ही जानेगें कि सरेंडर से पहले ही इंदिरा ने संसद में इसका ऐलान क्यों किया? और क्या कारण था कि पाकिस्तान से दो बार सरेंडर के काग़ज़ात पर दस्तख़त करवाए गए?
पार्ट 1: किस्सा डायरी का, जिसने पाक के 'घिनौने कारनामे' एक्सपोज़ किए